मराठी सिनेमा को समर्पित इस सीरीज़ 'चला चित्रपट बघूया' (चलो फ़िल्में देखें) में हमआपका परिचय कुछ बेहतरीन मराठी फिल्मों से कराएंगे. वर्ल्ड सिनेमा के प्रशंसकों कोअंग्रेज़ी से थोड़ा ध्यान हटाकर इस सीरीज में आने वाली मराठी फ़िल्में खोज-खोजकर देखनीचाहिए... --------------------------------------------------------------------------------आज की फिल्म है नटरंग.तमाशा. महाराष्ट्र की लोककला. महाराष्ट्र की मिट्टी का उत्सव. मराठी कला जगत कीशायद सबसे ज़्यादा प्रभावशाली पेशकश. जिसके हिस्से तारीफ़ और तिरस्कार समान मात्रामें आया. एक तरफ इसके कला पक्ष पर मुग्ध लोगों की पूरी जमात मौजूद रही. वहीं दूसरीतरफ इसपर अश्लीलता के आरोप भी लगे.कोई ज़माना था, जब महाराष्ट्र की गृहिणियां तमाशा को अपने घर-संसार में आग लगानेवाली चीज़ समझती थीं. इसे कोसने वालों की ठीक-ठाक संख्या रही. वहीं इससे जुनून की हदतक इश्क करने वाले भी बेशुमार रहें. 'नटरंग' ऐसे ही एक दीवाने की कहानी है, जिसनेतमाशा के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया. अपना परिवार, अपनी गृहस्थी, अपनासम्मान. यहां तक कि अपने पौरुष का अभिमान भी सरेंडर कर दिया.'नटरंग' कहानी है महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में रहने वाले गुणा कागलकर की.गुणा को अगर किसी एक चीज़ से दीवानगी की हद तक प्यार है, तो वो है तमाशा. ढोलकी कीथाप सुनने भर से उसकी रगों का ख़ून दुगनी रफ़्तार से दौड़ने लगता है. फिर खांसता हुआबाप और बेटे की स्कूल की ज़रूरतें नज़रअंदाज़ हो जाती हैं. दिमाग में घूमता है तो बसतमाशा.दीवानगी का आलम जब हद से गुज़रने लगता है तो गुणा, दर्शक की भूमिका छोड़कर आर्टिस्टकी भूमिका में आने की ठान लेता है. लगान के भुवन ने जैसे अंग्रेज़ों के खिलाफ अपनेगांव की टीम खड़ी की थी, कुछ-कुछ उसी तर्ज पर गुणा भी अपने यार-दोस्तों की टीम खड़ीकर लेता है. जद्दोजहद करके साज़ोसामान लायक पैसे जुगाड़ लिए जाते हैं. तमाशा केमैनेजर का ज़िम्मा पांडोबा को दिया जाता है. जो कि तमाशा की दुनिया में बरसों सेघुसा हुआ है.पांडोबा के साथ गुणा.अगला टास्क है तमाशा के लिए एक बाई खोजना. बाई मतलब लीड डांसर. अपने दायरे में हरएक संभावित महिला से पूछने और उनसे गालियां, मार खाने के बावजूद बाई का कोई इंतज़ामनहीं हो पाया. आखिरकार पांडोबा के ही कनेक्शंस काम आते हैं. उसकी एक पुरानी परिचितहै यमुनाबाई. यमुना की बेटी नैना कुछ शर्तों के साथ हामी भर देती है.नैना तो तैयार हो गई लेकिन दिल्ली अभी दूर है. तमाशा का एक और ज़रूरी हिस्सा मिसिंगहै. इस मंडली को एक नाच्या की तलाश है.नाच्या मतलब वो आदमी जो औरतों की तरह हावभाव करके दर्शकों का मनोरंजन करता है. जोहोता तो पुरुष है, लेकिन जिसकी देहबोली के एक-एक ज़र्रे से औरत झलकती है. बहुततलाशने के बावजूद ऐसा कोई कलाकार नहीं मिलता. नैना की शर्त है कि नाच्या नहीं तोतमाशा नहीं.नैना.अपने सपने को यूं अंतिम स्टेज पर आकर बिखरते देखना गुणा को मंज़ूर नहीं है. जब कुछनहीं हो पाता तो गुणा एक क्रांतिकारी फैसला ले लेता है. खुद नाच्या बनने का.हट्टे-कट्टे पहलवान गुणा के सामने ये एक बड़ी चुनौती है. न सिर्फ शारीरिक तौर पर येचैलेंज है, बल्कि उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी दांव पर है.लोग नाच्या को सम्मान की नज़रों से नहीं देखते. किन्नर, नपुंसक, हिजड़ा जैसे शब्दोंसे नवाज़ते हैं. गुणा के आगे अपमान के इस दरिया को पार कर जाने की चुनौती है. उसे नसिर्फ ये ज़हर पीना है बल्कि एक मुकाम भी हासिल करना है. गुणा इसमें किस हद तककामयाब होता है और इस सफ़र में उसे क्या-क्या खोना पड़ता है इसी की कहानी है 'नटरंग'.नाच्या.नाच्या के जीवन से लिपटी वेदना का आपको एहसास हो इसलिए थोड़ा सा डायवर्ट करके कुछ औरसुनाता हूं. कुछ दिन पहले मैं यूं ही, तमाशा पर कुछ पढ़ने के इरादे से इंटरनेट परभटक रहा था. इस भटकन में मेरे हाथ एक इंटरव्यू लगा. मशहूर मराठी अभिनेता गणपत पाटीलका इंटरव्यू. गणपत पाटील वो अभिनेता थे जिन्होंने दर्जनों मराठी फिल्मों में नाच्याका रोल किया. जब तक वो एक्टिंग करते रहे, इस रोल के लिए उनके अलावा किसी और के बारेमें शायद कभी सोचा ही नहीं गया. इतने परफेक्शन से वो ये रोल निभाते थे. तो उसइंटरव्यू में गणपत पाटील अपने जीवन का एक किस्सा सुना रहे थे. और सुनाते वक़्तफूट-फूटकर रो रहे थे.उनकी बेटी के लिए रिश्ता आया था. जैसे ही रिश्तेवालों को पता चला कि ये गणपत पाटीलकी बेटी है उनके सुर बदल गए. उन्होंने कहा, "ऐसे आदमी की कोई औलाद हो भी कैसे सकतीहै? ये जनाना सा आदमी कोई संतान पैदा कर ही नहीं सकता. ज़रूर इसकी बीवी ने कहीं मुंहकाला किया होगा. इनकी तो कोई इज्ज़त नहीं है लेकिन हमारी तो है. हमारा काम इनके जैसातालियां पीटने का नहीं है." गणपत पाटील बता रहे थे कि हर ताने के साथ उनकी पत्नीटूटती-बिखरती जा रही थी. उनके अभिनय की कीमत उनके बीवी-बच्चों ने चुकाई. उनका हमेशामज़ाक बनता रहा. इतना कहकर गणपत पाटील फिर से रोने लगे थे. बड़ा ही दिल दुखाने वालाइंटरव्यू था वो.गणपत पाटिल.बहरहाल, फिल्म पर लौटते हैं. 2005 में, एक अवॉर्ड सेरेमनी में गणपत पाटील को लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया गया. उसी से प्रेरणा लेकर डायरेक्टर रवि जाधव ने येफिल्म बनाई. फिल्म मराठी लेखक आनंद यादव के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है.एक्टिंग की बात की जाए तो अतुल कुलकर्णी इस फिल्म में कोहिनूर की तरह चमकते हैं. एकपहाड़ जैसे पहलवान से एक जनाना किरदार तक का उनका सफ़र एफर्टलेस लगता है. ये फ्रेम दरफ्रेम नज़र आता है कि अतुल कुलकर्णी ने इस रोल के लिए बहुत मेहनत की है. इसी कानतीजा है कि उनकी एक्टिंग आंखें चौंधियां देती है.अतुल कुलकर्णी.तमाशा की लीड डांसर के तौर पर सोनाली कुलकर्णी परफेक्ट हैं. किशोर कदम के बारे मेंतो कहना ही क्या! इस आदमी को कोई भी रोल दे दो, उसका सोना कर डालता है. उनका निभायापांडोबा अद्भुत है. गुणा की बीवी के रोल में विभावरी देशपांडे जब-जब भी स्क्रीन परआती हैं, प्रभावित कर जाती हैं.बाकी के कलाकार भी अपने रोल में फिट हैं. डायरेक्टर रवि जाधव तमाशा कलाकारों कीज़िंदगियों में उतरने में कामयाब रहे हैं. सिनेमा के परदे पर तमाशा मंडली का ऐसासच्चा और भरोसे लायक चित्रण बहुत कम देखने को मिलता है.इस फिल्म के संगीत का ज़िक्र किए बगैर गुज़र जाना अन्याय होगा. 'मला जाऊ द्या ना घरी'लावणी तो अद्भुत बन पड़ी है. इसे सुनते वक़्त लगता है आप किसी तमाशा के फड़ में हीबैठे हो. यही बात 'अप्सरा आली' गीत के लिए भी कही जा सकती है.अप्सरा आली....'खेळ मांडला' इस अल्बम का सबसे शानदार गीत है. गुरु ठाकुर के अप्रतिम शब्दों कोअजय-अतुल ने बेहद असरदार धुन में बांधा है. रोंगटे खड़े हो जाते हैं.'नटरंग' फिल्म नहीं करिश्मा है. थर्ड जेंडर के प्रति हमारे समाज की क्रूरता का आईनाहै. कहानी है उस शख्स की जिसने कला के लिए कदम-कदम पर ज़लील होना बर्दाश्त कर लिया.अपमान का घूंट पिया. लेकिन अपना हौसला न टूटने दिया. कला का परचम ऐसे ही लोगों कीवजह से बुलंद है. मिस न करिएगा इस फिल्म को.--------------------------------------------------------------------------------चला चित्रपट बघूया' सीरीज़ में कुछ अन्य फिल्मों पर तबसरा यहां पढ़िए:न्यूड: पेंटिंग के लिए कपड़े उतारकर पोज़ करने वाली मॉडल की कहानीसेक्स एजुकेशन पर इससे सहज, सुंदर फिल्म भारत में शायद ही कोई और हो!क्या दलित महिला के साथ हमबिस्तर होते वक़्त छुआछूत छुट्टी पर चला जाता है?जोगवा: वो मराठी फिल्म जो विचलित भी करती है और हिम्मत भी देती है'देवराई' मूवी का लल्लनटॉप रिव्यू: