The Lallantop
Advertisement

हमारा सिनेमा विकलांगों को बहुत प्रॉब्लमैटिक तरीके से दिखाता रहा और हम देखते रहे, हंसते रहे

जानिए ऐसी फिल्मों के बारे में, जिन्होंने अपाहिज लोगों का जमकर मज़ाक उड़ाया. और कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में भी, जिनमें पर्याप्त संवेदनशीलता थी.

Advertisement
Kadar khan akshay tushar kapoor representation of disability in Indian Cinema
ऐसी फ़िल्में जो डिसेबिलिटी को उपहास के रूप में चित्रित करती हैं
pic
लल्लनटॉप
21 जुलाई 2023 (Updated: 21 जुलाई 2023, 18:38 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

समाज सिनेमा से और सिनेमा समाज से प्रभावित होता है. ऐसे में हम कह सकते हैं, समाज और फिल्में एक स्ट्रांग बॉन्ड साझा करते है. ऐसे में फिल्ममेकर की कुछ जिम्मेदारी भी बनती है. लेकिन कई मौकों पर वो इन जिम्मेदारियों को नहीं, बल्कि सिर्फ अपना फायदा देखते हैं. अक्सर फिल्मों में डिसेबिलिटी को ह्यूमर पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. ये मज़ाक केवल अपाहिज किरदार का नहीं, बल्कि समाज में रहने वाले हर उस व्यक्ति का है, जो डिसेबल्ड है. आइए अब कुछ फिल्मों और उदाहरण के जरिए हम इस तर्क को और मज़बूत करते हैं. पहले उन फिल्मों की ओर गाड़ी ले चलेंगे, जिनमें विकलांगों का मज़ाक उड़ाया गया. फिर उन फिल्मों का भी हिंट देंगे, जिनमें इस विषय को संजीदगी से ट्रीट किया गया.

1. 'गोलमाल' सीरीज

'गोलमाल' सीरीज की सभी फिल्मों में तुषार ने एक ऐसा किरदार निभाया है, जो बोल नहीं सकता. फिल्म में उसका काम है, सिर्फ आ...ऊ...ई... करके दर्शकों को हंसाना. फिल्म के दूसरे किरदार उसके बोल न पाने का मज़ाक उड़ाते हैं और इससे रोहित शेट्टी ह्यूमर पैदा करने की कोशिश करते हैं. 'गोलमाल' सीरीज की पहली किश्त में पति-पत्नी के दो और किरदार हैं. इन्हें परेश रावल और सुष्मिता मुख़र्जी ने निभाया है. ये ऐसे जोड़े की भूमिका में हैं, जो देख नहीं सकते. अनजाने में ही सही, पर फिल्म के मुख्य किरदार उनके घर में रहते हैं. उनके न देख सकने का फायदा उठाते हैं. 'गोलमाल रिटर्न्स' में रोहित शेट्टी ने कुछ ज़्यादा क्रिएटिविटी न दिखाते हुए एक ऐसा किरदार गढ़ दिया, जो हकलाता है. इसका रोल निभाया है श्रेयस तलपड़े ने. उनके हकलाने का फिल्म के दूसरे किरदार खूब मज़ाक उड़ाते हैं.

परेश रावल और सुष्मिता मुख़र्जी ‘गोलमाल’ में
2. हाउसफुल 3

इस स्टीरियोटाइप में साजिद-फरहाद की फिल्म, 'हाउसफुल 3' की भी भागीदारी है. इसके तीन मुख्य कलाकार डिसेबल्ड होने का नाटक करते हैं. इसमें पहला किरदार है सैंडी का. इसे अक्षय कुमार ने निभाया है. उसको स्प्लिट पर्सनैलिटी डिसऑर्डर होता है. दूसरा किरदार है रितेश देखमुख का निभाया हुआ, टेडी. ये देख नहीं सकता. अभिषेक बच्चन का निभाया कैरेक्टर बंटी बोल नहीं सकता. इसी का फ़ायदा उठाते हुए पूरी फिल्म में ह्यूमर पैदा करने का प्रयास हुआ है. फिल्म के ये किरदार कुछ दूसरे किरदारों के साथ छल करते हैं. वो डिसेबिलिटी का नाटक करते हुए कुछ अमीर लड़कियों से शादी करने की प्लानिंग करते है. इस फिल्म के अनुसार डिसेबिलिटी असामान्य हैं. अपाहिजों पर या तो दया की जानी चाहिए या उन पर हंसा जाना चाहिए. हालांकि सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात थी, जैकी श्रॉफ का किरदार. वो लगातार इस बात पर अड़ा रहता है कि उनकी लड़की तथाकथित 'सामान्य लड़कों' से शादी करे.

'हाउसफुल 3' में अक्षय और अभिषेक

3. मुझसे शादी करोगी

सलमान खान की फिल्म, 'मुझसे शादी करोगी. इसे डेविड धवन ने डायरेक्ट किया है. उन्होंने कादर खान के किरदार को डिसेबल्ड  दिखाया है. ख़ास बात ये है कि उनका कैरेक्टर हर दिन एक नई डिसेबिलिटी का शिकार हो जाता है. कहने का मतलब, उनकी जिंदगी का हर नया दिन, नई मुसीबत लेकर आता है. दरअसल होता ये है कि कादर खान का किरदार कभी देख नहीं पाता, कभी सुन नहीं पाता, कभी भूलने लगता है, कभी दिन में ही उसके लिए रात हो जाती है. है ना फनी चीज़. आपको ये फनी लग रहा है, इसलिए ही डेविड इसका इस्तेमाल अपनी फिल्म में फन एलिमेंट के तौर पर कर रहे हैं.

‘मुझसे शादी करोगी’ में सलमान और कादर खान
4. फिर हेरा फेरी

नीरज वोरा की फिल्म, 'फिर हेरा फेरी'. कॉमेडी विधा की बहुत ज़ोरदार पिक्चर, हम सबकी फेवरेट. लेकिन इस फिल्म में भी डायरेक्टर डिसेबिलिटी से हास्य उत्पन्न करने की कोशिश करते हैं. फिल्म में एक तोतला सेठ का किरदार है. इसे शरत सक्सेना ने निभाया है. अगर आपको याद हो तो, इसमें वो कहता है: '20 लात दे...' इसके जवाब में परेश रावल का किरदार कहता है: 'पीछे घूम तो दूं'. दरअसल तुतलाने के कारण ही फिल्म में तिवारी सेठ को तोतला सेठ कहा गया है. और वो अपने 20 लाख रुपए मांग रहा होता है. लेकिन हमें इस पूरे सीन में बहुत मज़ा आता है. यानी ये सीन देखते हुए एक तरह से हम भी डिसेबिलिटी का मज़ाक उड़ा रहे होते हैं.

'फिर हेरा फेरी' में तोतला सेठ

भारतीय सिनेमा में डिसेबिलिटी की ज़्यादातर उपमाएं सीमित और लापरवाह होती हैं. भारतीय फिल्म मेकर्स ने पारंपरिक रूप से ऐसी भूमिकाएं लिखी हैं, जहां डिसेबिलिटी को स्टीरियोटाइप के तौर पर दर्शाया जाता है. कहीं न कहीं फिल्मों में स्टीरियोटाइप्स का इस्तेमाल जनता के साथ बेहतर कनेक्ट के लिए भी किया जाता है. लेकिन कुछ ऐसी फ़िल्में भी हैं, जिनमें विकलांगता को संजीदगी और संवेदनशील ढंग से डील किया गया. पेश हैं कुछ उदाहरण.

'तारे ज़मीन पर' पर आमिर और दर्शील

आमिर खान की फिल्म है 'तारे ज़मीन पर'. इसे उन्होंने डायरेक्ट भी किया है. इस फिल्म से देश में डिस्लेक्सिया से जुड़ी रुढ़िवादी सोच को तोड़ने में मदद मिली. डिस्लेक्सिया एक लर्निंग डिसेबिलिटी है. इसमें पढ़ने, लिखने और स्पेलिंग याद करने में समस्या होती है. अक्षरों और शब्दों को पहचानने में भी कठिनाई होती है. खासकर एक जैसे दिखने वाले लेटर्स में बड़ा कन्फ्यूजन होता है. 'तारे ज़मीन पर' डिस्लेक्सिया से पीड़ित एक बच्चे की यात्रा है. उस लड़के की प्रतिभा को एक टीचर पहचानता है और उसे नॉर्मल लाइफ जीने में मदद करता है.

'हिचकी' में रानी मुखर्जी

सिद्धार्थ मल्होत्रा की 'हिचकी' भी एक अपवाद है. इसमें रानी मुखर्जी ने टॉरेट सिंड्रोम से पीड़ित एक महिला की भूमिका निभाई है. इसमें रानी का किरदार लगातार हिचकी जैसी तेज़ आवाज़ निकालता है. इसलिए उसका लोग मज़ाक उड़ाते हैं. पर सबसे अच्छी बात है, फिल्म उसका मज़ाक नहीं बनाती. उसे टॉरेट सिंड्रोम में ही स्वाभिमान के साथ जीना सिखाती है. ऐसी ही कई और फ़िल्में हैं. जैसे: अनुराग बासु की 'बर्फी' , सोनाली बोस की 'मार्गरीटा विद अ स्ट्रॉ', भंसाली की 'ब्लैक' और अनिरुद्ध रॉय की 'पिंक'. इन फिल्मों में डिसेबिलिटी को बड़ी संवेदनशीलता के साथ दिखाया गया है.

बहरहाल ये बॉलीवुड में दिखाए गए डिसेबल्ड कैरेक्टर्स पर हमारा नज़रिया था. आपका क्या नज़रिया है, कमेंट बॉक्स में बताइए.

(ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहीं चेतना प्रकाश ने की है)

वीडियो: तारीख: बड़ौदा का करोड़ों का ख़ज़ाना देश से बाहर कौन ले गया?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement