मूवी रिव्यू - पठान
शाहरुख को फिज़िक्स और लॉजिक को दरकिनार करने वाला एक्शन करते देखकर मज़ा आता है.
अपने 30 साल के करियर में पहली बार शाहरुख खान ने फुल फ्लेज्ड एक्शन फिल्म की है. चार साल, एक महीना और चार दिन बाद शाहरुख की बड़े परदे पर वापसी हो रही है. ‘पठान’ को लेकर ऐसी बातें सुनने और पढ़ने में आ रही थी. शाहरुख का कमबैक और उनका पहली बार ऐसा एक्शन करना, इन पहलुओं को हटा दें तो ‘पठान’ कैसी फिल्म है. अच्छे और बुरे के बीच में झूलता है एक शब्द, औसत. ‘पठान’ एक औसत फिल्म है. न ही सदी की महानतम फिल्म, और न ही पूरी तरह खारिज कर देने वाली फिल्म.
शाहरुख को फिज़िक्स और लॉजिक को दरकिनार करने वाला एक्शन करते देखकर मज़ा आता है. फिर चाहे वो हेलिकॉप्टर के ब्लेड पर पैर रखकर नीचे उतरते हैं, या ट्रेन में लड़ाई करते हैं. ये ट्रेन वाला सीन सिंगल टेक में लिया गया, यानी कैमरा कट नहीं हुआ. आमतौर पर ज़्यादातर एक्शन सीन्स का ज़िम्मा स्टंट डबल्स पर आ जाता है. लेकिन इस सीन को देखकर लगता है कि शाहरुख ने वाकई एक्शन पर मेहनत की है. मैं उन्हें आगे भी एक्शन वाले अवतार में देखना चाहूंगा. बस वो अगली बार अपनी आवाज़ भारी कर के ना बोलें, जैसा उन्होंने ‘पठान’ और ‘रईस’ दोनों में किया. सिद्धार्थ आनंद ने ‘वॉर’ में क्लियर कर दिया था कि वो एक्शन के स्टाइल वाले पहलू में रुचि रखते हैं.
बंदूक हवा में उछल रही है तो आपका कैमरा उसके साथ चल रहा है. ‘मिशन इम्पॉसिबल’ और ‘फास्ट एंड फ्यूरीयस’ जैसी फिल्मों की याद आती है. सिद्धार्थ के एक्शन सीक्वेंस इन्जॉय करने का तरीका है कि आप हर चीज़ में लॉजिक न ढूंढे. सही और गलत के पार वाली दुनिया वाला हिसाब है. उधेड़बुन से दूर रहेंगे तो उनकी फिल्मों के एक्शन का भरपूर मज़ा ले पाएंगे. एक्शन में आप एक बार के लिए लॉजिक को परे रख देंगे. मास अपील का सवाल है, ये सब चलता है. लेकिन किरदारों का क्या, वहां लॉजिक में ढिलाई नहीं बरत सकते. फिल्म में कुछ प्लॉट पॉइंट दिखाए और उन्हें खुला ही छोड़ दिया. जैसे एक किरदार एक खास तरह से पेश आता है, और फिर थोड़ी देर बाद बिना किसी कारण हृदय परिवर्तन हो जाता है. फिल्म के अहम किरदारों के साथ तो आप ऐसा करने का रिस्क नहीं ही ले सकते.
‘पठान’ का स्क्रीनप्ले लिखा है श्रीधर राघवन ने. वो इससे पहले ‘वॉर’ और ‘खाकी’ जैसी फिल्में भी लिख चुके हैं. ‘अंधाधुन’ और ‘जॉनी गद्दार’ बनाने वाले श्रीराम राघवन उनके भाई हैं. फिल्म की कहानी खुलती है पठान के गायब होने से. इंडिया पर बड़ा खतरा मंडराने लगता है. उसी को टालने के लिए पठान को अपना वनवास खत्म कर वापस आना पड़ता है. इतना हम ट्रेलर में भी देखते हैं. फिल्म दिखाती है कि पठान गायब किस वजह से हुआ, और वो खतरा कौन है और किस वजह से वो इंडिया के लिए खतरा बना. फिल्म का पहला हाफ अपने मुख्य किरदारों की बैक स्टोरी दिखाता है. कई प्लॉट पॉइंट एक साथ जोड़ने की कोशिश की गई, जो एक पॉइंट के बाद कन्फ्यूजन पैदा करता है.
फिल्म के डायलॉग्स को लेकर भी लोग दो धड़ों में बंटेंगे. शाहरुख का किरदार एक महिला की तरफ देखकर कहता है, ‘रूबल्स नहीं बूबल्स’. मतलब 2023 में भी हम ऐसी कॉमेडी के भरोसे हैं, और वो भी शाहरुख जैसा सुपरस्टार. ये खटकता है. इतनी डेस्परेशन की क्या ज़रूरत थी. दूसरी तरफ आप पॉलिटिक्स और आज के माहौल को हाइलाइट करते हुए डायलॉग भी सुनते हैं. इन दोनों तरह के डायलॉग्स के बीच गहरी खाई है. फिल्म का पहला हाफ सेटअप में चला जाता है. असली माहौल बनाता है सेकंड हाफ. एक सलाह है. आप जब इंटरवल में वॉशरूम जाएं या पानी पीने जाएं, तो जल्दी अपनी सीट पर लौट आइएगा, क्योंकि सेकंड हाफ मिस नहीं होने देना है. खासतौर पर शुरुआत में आने वाला एक्शन सीन. मेरे लिए वो सीन और उसमें होने वाला कैमियो पूरी फिल्म का सबसे ताकतवर सीन था. ऐसा सीन, जिसकी चर्चा आप फिल्म खत्म होने के बाद तक करते हैं.
फिल्म में शाहरुख खान को एक्शन करते देखना एक्साइटिंग था. लेकिन ‘पठान’ सिर्फ शाहरुख खान की फिल्म नहीं. कहते हैं कि आपका हीरो तभी हीरो बनता है जब उसके सामने धूल चटाने वाला विलेन हो. जॉन अब्राहम वो विलेन बने हैं. जिम उनके किरदार का नाम है. यहां उनसे ऐक्टिंग के स्तर पर भारी काम नहीं करवाया गया, ये वो फिल्म ही नहीं. बल्कि उन्हें एक्शन स्टार के तौर पर तरीके से इस्तेमाल किया गया है. पठान जब भी जिम के सामने पड़ता है तो लगता है कि पठान के लिए समस्या होने वाली है. दीपिका का किरदार रुबाई एक ग्रे किरदार है, न पूरी तरह सही और न ही पूरी तरह गलत.
‘बेशरम रंग’ आने के बाद लोग ये कयास लगा रहे थे कि दीपिका को सिर्फ ग्लैमर ऐड करने के लिए रखा जाएगा. मगर ऐसा नहीं है. दीपिका ने कमाल एक्शन किया है. उनके किरदार को अच्छा-खासा स्क्रीन टाइम दिया गया. साथ ही वो कहानी में जोड़ने का ही काम करती हैं. डिम्पल कपाड़िया ‘पठान’ की सीनियर बनी हैं. उनके किरदार को भी कायदे का स्क्रीन टाइम दिया गया.
‘पठान’ का सबसे बड़ा सीन है एक कैमियो सीन. ये फिल्म के लिए अच्छी बात भी है और चिंताजनक भी. आपका सबसे यादगार सीन वो बना जिसमें दूसरा किरदार था. शाहरुख के एक्शन वाला पार्ट हटाकर ‘पठान’ को आम फिल्म की तरह देखिए. ये एक एवरेज फिल्म लगेगी. फिल्म के पास अपने कुछ मोमेंट्स हैं, जहां बाजाफाड़ टाइप मज़ा आएगा. हूटिंग करने का माहौल बनेगा. लेकिन फिर खामियों का कोटा भी उतना ही है. कुल मिलाकर न महानतम फिल्म और न ही खारिज करने वाला सिनेमा. ‘पठान’ देखी जा सकती है. कुछ हिस्सों में ऊब जाएंगे, लेकिन कुछ हिस्सों में आपके पैसे पूरी तरह वसूल हो जाएंगे.
वीडियो: पठान प्रमोशन के लिए शाहरुख खान,सलमान के शो बिग बॉस और कपिल शर्मा शो में इसलिए नहीं जाएंगे