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ओपनहाइमर: एक साइंटिस्ट के अपराधबोध के बहाने परमाणु हथियारों की रेस को एड्रेस करने वाली फिल्म

हाल ही में रिलीज़ हुई क्रिस्टोफ़र नोलन की फ़िल्म ओपनहाइमर एक ऐसे ही वैज्ञानिक की कहानी है, जिसे उसके मुल्क ने पहले हीरो और फिर विलन बनाया.

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गरिमा बुधानी
1 अगस्त 2023 (Updated: 1 अगस्त 2023, 18:35 IST)
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(ये आर्टिकल लल्लनटॉप के मित्र उमेश पंत ने लिखा है. उमेश पंत उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़‍िले के गंगोलीहाट नाम के छोटे-से क़स्बे में पले-बढ़े हैं. फ़िलवक़्त मुकाम दिल्ली. जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से मास कम्यूनिकेशन में मास्टर्स. यात्रा-वृत्तान्त ‘इनरलाइन पास’ और 'दूर दुर्गम दुरुस्त' के लेखक हैं. करियर की शुरुआत मुम्बई जाकर बालाजी टेलीफ़िल्म्स में बतौर एसोसिएट राइटर की. फिर मुम्बई में गीतकार और पटकथा लेखक नीलेश मिसरा से जुडक़र उनके मशहूर क़‍िस्सागोई के कार्यक्रम के लिए कई कहानियां लिखीं. ग्रामीण अख़बार ‘गांव कनेक्शन’ में पत्रकार भी रहे हैं.  रेडियो के लिए फ़िल्म और गाने भी लिख चुके हैं. हिन्दी के तमाम अख़बारों में यात्राओं और समसामयिक विषयों से जुड़े लेख और यात्राओं पर कॉलम लिखते रहे हैं. ‘यात्राकार’ (www.yatrakaar.com) नाम से चर्चित ट्रैवल ब्लॉग भी चलाते हैं. उत्तराखंड में फिल्माई गई एक फीचर फिल्म के लिए बतौर असोसिएट डायरेक्टर और लिरिक्स राइटर काम चुके हैं. फिल्म अभी रिलीज़ के इंतज़ार में है.)


हिरोशिमा और नागासाकी में अमेरिका ने जब पहली बार परमाणु बम विस्फोट किया तो दुनिया दहल गई. उस विस्फोट ने साबित कर दिया कि मनुष्य का दिमाग किस हद तक विध्वंसक हो सकता है. ऐसा विस्फोट जो एक झटके में विश्व को विनाश की दहलीज़ पर ला खड़ा कर सकता है. 6 अगस्त 1945 की सुबह इस विस्फोट ने तय कर दिया कि मनुष्य एक बटन दबाकर पलक झपकते ही लाखों जानें लील सकता है.

हाल ही में रिलीज़ हुई क्रिस्टोफ़र नोलन की फ़िल्म ओपनहाइमर एक ऐसे वैज्ञानिक की कहानी है, जिसने इसी एटम बम का ईजाद किया. दूसरे विश्वयुद्ध में उसके विध्वंस को देखा और इस ईजाद की वजह से अपने निजी जीवन में कई परेशानियों का सामना किया, जिनमें मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी शामिल रही.

फिल्म 'ओपनहाइमर' के एक सीन में किलियन मर्फी.

बेहतरीन निर्देशक क्रिस्टोफ़र नोलन की यह फ़िल्म भौतिक वैज्ञानिक जे रॉबर्ट ओपनहाइमर की जीवनी ‘अमेरिकन प्रोमेथियस द ट्रायम्फ़ एंड ट्रेजेडी ऑफ जे रॉबर्ट ओपनहाइमर’ पर आधारित है. पुलित्ज़र पुरस्कार से सम्मानित इस किताब को काई बर्ड और मार्टी सर्विन ने साथ मिलकर लिखा था. नोलन की फ़िल्म ‘मेमेंटों’ की तरह ही ओपनहाइमर एक नॉन लीनियर फ़िल्म है जहां मैनहैटन प्रोजेक्ट की शुरुआत से लेकर एटमी धमाके के बाद 1954 में ओपनहाइमर पर बैठी सुरक्षा जांच समिति की कार्रवाई तक की कहानी समयक्रम को तोड़ते हुए बताई जाती है.

किताब के नाम में शामिल ‘प्रोमेथियस’ दरअसल एक ग्रीक मिथकीय किरदार है, जिसे ज्ञान-विज्ञान का देवता माना जाता है. कहा जाता है कि उन्होंने ओलंपियन देवताओं की अवहेलना करके उनसे आग चुराई और उसे मानव सभ्यता के विकास के लिए दे दिया. इसी वजह से उन्हें दंडित किया गया. कमोबेश यही कहानी ओपनहाइमर की भी है.

कहने को यह फ़िल्म अमेरिका के लॉस अलामौस में हुए एक वैज्ञानिक प्रयोग और उसके परिणामों से उपजे व्यक्तिगत और राजनैतिक द्वन्द्व की कहानी है. लेकिन गहराई से देखने पर महसूस होता है कि क्रिस्टोफ़र नोलन ने फ़िल्म में मानव व्यवहार की कई परतें अपनी जटिलताओं के साथ उधेड़कर रख दी हैं.

ओपनहाइमर की जीवनी के लेखक एक साक्षात्कार में बताते हैं कि ओपनहाइमर एक जीनियस होने के साथ एक जटिल इंसान भी थे. एक तरफ़ उनकी कम्यूनिस्ट विचारधारा में दिलचस्पी थी तो दूसरी तरफ वो संस्कृत में लिखे भारतीय आध्यात्मिक साहित्य के प्रति भी आकृष्ट रहे. खासकर भगवद गीता की पढ़ाई करने के लिए उन्होंने बर्कले यूनिवर्सिटी के संस्कृत अध्यापक से संस्कृत सीखनी शुरू की. फ़िल्म के एक दृश्य में ओपनहाइमर की प्रेमिका जीन टैटलॉक एक किताब के बारे में पूछती है, जिसपर संस्कृत के कुछ श्लोक लिखे होते हैं. ओपनहाइमर बताते हैं कि ये भगवद गीता है. जीन उसे पढ़कर सुनाने को कहती है. इसी दृश्य में दोनों आपस में अंतरंग संबंध बनाते भी देखे जा सकते हैं, जिसे लेकर भारत में कई लोग फ़िल्म का विरोध भी कर रहे हैं.

एटम बम बनाने के प्रयोग पर हामी भरने के पीछे की वजह यह रही कि ओपनहाइमर के दिमाग में यह बात घर कर गई कि जर्मन भौतिक वैज्ञानिक एटम बम बनाने की तरकीब हिटलर तक पहुंचा देंगे और हिटलर उसे विश्वयुद्ध जीतने के लिए इस्तेमाल करेगा और उसका फासीवाद दुनिया को तबाह कर देगा.

ओपनहाइमर जर्मनी में यहूदी शरणार्थियों की मदद करने के लिए बाकायदा पैसे भी भेजते रहे थे. वहीं शादीशुदा होने के बावजूद उन्होंने विवाहेत्तर संबंध बनाने से गुरेज नहीं किया. इसलिए उनकी पारिवारिक ज़िंदगी भी सीधी-सपाट नहीं रही.

किलियन मर्फी फ़िल्म में ओपनहाइमर के किरदार को बखूबी निभाते हैं. फ़िल्म ओपनहाइमर के इन सब विरोधाभासों से गुज़रती है लेकिन सबसे बड़ा विरोधाभास एटम बम बनाने को लेकर ही खड़ा होता है. 1945 में लौस अलामौस नाम की जगह पर वैज्ञानिकों के बीच एटम बम बनाने का काम पूरा करने को लेकर चर्चा हुई.

लॉस अलामौस वो जगह थी, जो बाकायदा एक निर्जन जगह पर एटम बम के परीक्षण और उन्हें बनाने वाले वैज्ञानिकों और उनके परिवारों के रहने के लिए बसाई गई थी. मैनहैटन प्रोजेक्ट के तहत ये वैज्ञानिक 1942 से 1946 तक यहां एटम बम बनाने को लेकर शोध और अनुसंधान करते रहे. इस प्रोजेक्ट का निर्देशन मेजर जनरल लेज़ली ग्रोव्स ने किया और ओपनहाइमर लॉस अलामौस लेबोरेटरी के डाइरेक्टर के तौर पर इस प्रोजेक्ट से जुड़े.

प्रोजेक्ट के तहत देश के बेहतरीन वैज्ञानिकों को परमाणु हथियार बनाने की तैयारी के काम में लगाया गया. एनरिको फर्मी और रिचर्ड फेनमेन जैसे नामी वैज्ञानिकों के साथ ही यहां एक लाख से भी ज़्यादा कर्मचारी फैक्ट्री और कंस्ट्रक्शन वर्क जैसे कामों के लिए नियुक्त किये गए. प्रोजेक्ट का मुख्य मकसद दुनिया का पहला परमाणु हथियार बनाकर दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी को हराना था लेकिन 1945 में जर्मनी की हार और हिटलर की मौत के बाद भी यह परीक्षण जारी रहा. इसी वजह से कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि अब इस मेहनत का कोई मतलब नहीं रह गया है.

लेकिन वो ओपनहाइमर ही थे, जिन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि आने वाले समय में बड़े एटमी हमलों को रोकना है तो यह एटमी हथियार उन्हें बनाना ही होगा. ताकि एक युद्ध का भय आने वाले युद्धों को रोक सके. फ़िल्म में एक जगह वो कहते हैं – “उन्हें तब तक इससे डर नहीं लगेगा, जब तक वो इसे समझ नहीं लेते. और वो इसे तब तक नहीं समझ पाएंगे जब तक वो इसका इस्तेमाल नहीं कर लेते”. परमाणु बम के सफल परीक्षण का यह क्षण इतना निर्णायक रहा कि इसने आने वाले युद्धों के स्वरूप को बदलकर रख दिया. इस पूरे काल को परमाणु युग की संज्ञा मिल गई.

फिल्म के एक सीन में रॉबर्ट और किलियन.

लेकिन बाद के वर्षों में हिरोशिमा और नागासाकी के हमलों के दुष्परिणाम दुनिया की नज़र में आए, लाखों लोग इस त्रासद हमले में भस्म हो गए, और इसके ज़ख्म कई दशकों तक हरे रहे. यह देखने के बाद ओपनहाइमर ऐसे हथियारों के प्रयोग से बचने की सिफारिश करने लगे. यहां तक कि वो दुनिया के लिए आर्म्स कंट्रोल रिजीम बनाने की खुलकर पैरवी करने लगे. उन्होंने हाइड्रोजन बम बनाने का भी विरोध किया.

उनके इन्हीं विचारों के चलते तत्कालीन अमेरिकी सत्ता के बीच उनके विरोध के स्वर गूंजने लगे. देश के लिए उनकी निष्ठा पर शक किया जाने लगा और बाकायदा उनके खिलाफ जांच करते हुए उन्हें सिक्योरिटी क्लियरेन्स देने तक से मना कर दिया गया. इसे बाद में मकार्थी विच हंट का क्लासिक केस माना गया.

फ़िल्म में एक जगह ओपनहाइमर अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रूमन से मिलते हैं. ट्रूमन एटमी हमले जैसी बड़ी उपलब्धि के बाद ओपनहाइमर की प्रतिक्रिया जानना चाहते हैं, तो वो कहते हैं “मेरे हाथ खून से रंगे हुए हैं’. यह जवाब ट्रूमन को बिल्कुल पसंद नहीं आता. वो अपनी नाराज़गी जताते हुए कहते हैं “यह बात किसी को याद नहीं रहेगी कि बम किसने बनाया. बल्कि लोग यह याद रखेंगे कि बम किसने गिराया, इसलिए उन्हें इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है.“

यह दृश्य एक तरफ ओपनहाइमर के अपराधबोध को दिखाता है, तो दूसरी तरफ वह सत्ता पर बैठे लोगों के घमंड को भी दिखाता है कि किस तरह एक जीनियस की सफलता दरअसल उनके लिए देश की उपलब्धि नहीं है बल्कि इसका इस्तेमाल वो अपने फायदे के लिए करना चाहते हैं. अगर उस उपलब्धि की सफलता का श्रेय उन्हें न मिले, तो वो तिलमिला जाते हैं. यही वजह है कि इस संक्षिप्त मुलाकात को बीच ही में रोकने के बाद ट्रूमन अपने सहायक से कहते हैं “इस क्राई बेबी को दुबारा मेरे सामने मत लाना”.

यही नहीं एक देश जिस उपलब्धि पर गर्व कर रहा हो, उस उपलब्धि का जनक रहा जीनियस जब उस उपलब्धि की हानियां गिनाने लगता है, दुनिया को उसके दुष्परिणामों के लिए आगाह करने लगता है तो सत्ता उससे किस हद तक नाराज़ हो जाती है, यह भी फ़िल्म में बखूबी दिखाया गया है. ओपनहाइमर के एटम बम और हाइड्रोजन बम जैसे घातक हथियारों के भविष्य में इस्तेमाल का मुखर विरोध करने के बाद तत्कालीन सत्ता ने उनके साथ जो किया, उसे बाद के दौर में मकार्थी विच हंट का नाम दिया गया.

यहां मकार्थी विच हंट को समझना जरूरी है.

दरअसल यूएस सीनेटर जोसेफ़ आर मकार्थी ने अपने कार्यकाल के दौरान 1950 में 205 अधिकारियों की एक लिस्ट जारी की. अमेरिका के सरकारी विभागों के ये सभी कर्मचारी कम्यूनिस्ट पार्टी के कार्ड धारक थे. मकार्थी ने सशस्त्र सेनाओं में कम्यूनिस्ट विचारधारा के लोगों की तथाकथित ‘घुसपैठ’ पर कार्रवाई के लिए समिति बनाकर सुनवाई की और उन लोगों पर जांच बैठाई. मकार्थी की प्रवृत्ति में जो बातें शामिल रही वो थी – बिना खास सबूतों के लोगों की निष्ठा पर सवाल उठाने की राजनैतिक प्रवृत्ति और राजनैतिक विरोधियों के दमन की मंशा से जांच के अनुचित तरीकों का इस्तेमाल करना. आज के दौर में वैश्विक राजनीति को देखें तो यह प्रवृत्ति साफ़ देखने को मिलती है. चाहे भारत हो या अमेरिका अपने विरोधियों के लिए सरकारें मकार्थी विच हंट में लिप्त देखी जा सकती हैं.

ओपनहाइमर के खिलाफ जांच समिति के रूप में एक कंगारू कोर्ट बैठाया गया. जापान पर एटमी हमले और विश्वयुद्ध में विजय के बाद पूरा देश जिस जीनियस वैज्ञानिक का सम्मान करते नहीं थक रहा था, टाइम मैगजीन में जिसकी ‘फादर ऑफ दी एटम बम’ नाम से कवर स्टोरी छप रही थी, उसे बाद के वर्षों में बाकायदा देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया जाने लगा.

यहां किताब के लेखक के हवाले से एक रोचक तथ्य यह भी है कि अमेरिका में ओपनहाइमर की बेइज्जती होने के बाद, जब उन्हें सवालों के घेरे में खड़ा किया जा रहा था, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हे भारत की नागरिकता देने का प्रस्ताव दिया लेकिन उस देशप्रेमी वैज्ञानिक ने इस न्योते पर कभी ध्यान नहीं दिया.

ओपनहाइमर में अमेरिका द्वारा किये गए पहले एटमी ईजाद और हमले के बहाने नोलन कई मसलों पर बात करते हैं. फ़िल्म के समयक्रम में आगे-पीछे और उलझे हुए होने की वजह से पहली बार में कई बार ये जरूरी मसले नज़रअंदाज हो जाने का खतरा भी रहता है. इसलिए तीन घंटे लंबी यह फ़िल्म आपका गहरा ध्यान मांगती है. और अगर आप ध्यान से देखेंगे तो फ़िल्म कई ऐसे विषयों को छूती है, जो मौजूदा समय में कई ज़्यादा प्रासंगिक हो गए हैं.

मौजूदा दौर में दुनियाभर में बुद्धिजीवियों या इंटलेक्चुअल्स के प्रति एक विरोध का भाव पैदा किया जा रहा है. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की चुनावी यात्रा हो या भारतीय राजनीति का मौजूदा दौर, हमने देखा है कि बुद्धिजीवियों के प्रति घृणा का माहौल बानाया जाता रहा है. ओपनहाइमर इस मसले पर बात करती है और यह बताने की कोशिश करती है कि किसी विचारधारा के बारे में पढ़ना, उसके बारे में एक सोच बनाना और उस विचारधारा के सिपाही के तौर पर काम करना दो अलग मसले हैं. ओपनहाइमर पर चल रही जांच में इस बात पर उनकी पत्नी इस बारे में इतने बढ़िया तर्क रखती है कि कमिटी का मेम्बर सकपका जाता है.

वहीं फ़िल्म अमेरिका में रह रहे और सरकारी ओहदों पर काम कर रहे यहूदियों के प्रति अमेरिकियों के व्यवहार के बहाने एंटी सीमेटीज़म जैसे मसले पर भी बात करती है. देश के लिए सबकुछ न्यौछावर कर देने के बावजूद एक खास विचारधारा के समर्थक होने और एक खास धर्म का होने की वजह से ओपनहाइमर जैसे देश के लिए समर्पित व्यक्ति की देशभक्ति को शक के दायरे में रखा गया. मौजूदा दौर में भारतीय मुसलमानों के साथ हो रहे व्यवहार की तुलना इससे की जा सकती है.

सत्ता में बैठे लोगों की हनक और घमंड की बानगी भी फ़िल्म में देखने को मिलती है. मसलन फ़िल्म में सयुक्त राज्य परमाणु ऊर्जा आयोग के सदस्य लुईस स्ट्रॉस (रॉबर्ट डाउनी जूनियर) का किरदार ले लें या अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमन, दोनों ही खुद को महत्व दिए जाने को लेकर आतुर दिखते हैं.

फ़िल्म ओपनहाइमर के अपराधबोध के बहाने उसके किरदार की कई परतों को खोलती है. मसलन जब अपने बच्चे की देखभाल के लिए उसे अपने दोस्त हकून के पास ले जाता है वो कहता है कि वो एक ‘स्वार्थी घटिया आदमी है’ लेकिन हकून कहता है – ‘स्वार्थी घटिया आदमी ये नहीं जानता कि वो स्वार्थी  घटिया है’.

ओपनहाइमर जानते थे कि एटमी हथियार के चेन रिएक्शन से जो त्रासदी होगी उससे दुनिया उबर नहीं पाएगी. लॉस अलामौस में चल रहे प्रयोग के बीच कमांडिंग ऑफिसर लेज़ली ग्रोव्स (मैट डेमन), ओपनहाइमर से पूछते हैं कि एटम बम के दुनिया को पूरी तरह से नष्ट कर देने की कितनी संभावनाएं हैं, तो ओपन हाइमर का जवाब होता है ‘नीयर ज़ीरो’ यानी बहुत कम. इसपर ग्रोव्स कहते हैं कि ‘यह संभावना अगर शून्य हो तो अच्छा रहेगा.‘

जापान में हथियार के सफल प्रयोग के बाद जब देश गर्व से फूला नहीं समा रहा था, युवा प्रतिभाओं की जगमागाती आँखों, गर्व से भरे चेहरों को देखते हुए ओपनहाइमर अपने सम्मान समारोह में शामिल होते हैं. भाषण देते हुए इस जश्न के बीच ओपनहाइमर को रहस्यमय तरीके से उन चेहरों में जले-कटे चेहरे नज़र आने लगते हैं. मानो उनपर ऐटमी हथियार का इस्तेमाल के बाद होने वाले असर नज़र आने लगे हों. तालियों की आवाज़ भयावह धमाकों की आवाज में तब्दील हो जाती है. जश्न का मौका ओपनहाइमर के लिए अपराधबोध का पीड़ादायक क्षण बन जाता है. इस दृश्य से नोलन यह संदेश देते मालूम होते हैं कि ऐसी कोई भी चीज़ जिसमें मनुष्य का विनाश निहित हो, आपको आंतरिक खुशी नहीं दे सकती. सामूहिक रूप से जिन्हें हम उपलब्धि मान बैठते हैं, कई बार वही क्षण मानवता की हार के क्षण होते हैं.

हालांकि एटमी हथियारों के प्रयोग पर पाबंदी को नीतियों में शामिल न करवा पाने को लेकर ओपनहाइमर की आलोचना भी होती है. एटमी हथियारों के दुरुपयोग को लेकर मुखर होने के बावजूद कई निर्णायक मौकों पर ओपनहाइमर की चुप्पी पर भी आलोचक सवाल खड़े करते हैं.

नोलन की फ़िल्म एक असाधारण प्रतिभाशाली शख्सियत की व्यावसायिक और निजी ज़िंदगी के विरोधाभासों पर भी बात करती है. ओपनहाइमर एक जीनियस थे, उन्होंने देश के लिए बहुत कुछ किया लेकिन अपने परिवार के प्रति उनकी निष्ठा भी सवालों के घेरे में रही. उन्हें वूमनाइज़र तक कहा गया.

फ़िल्म में ओपनहाइमर की पत्नी किटी (एमिली ब्लंट) का किरदार भी बहुत शानदार है. किटी या कैथरीन खुद एक बायोलॉजिस्ट थी. ओपनहाइमर पर जांच समिति बैठने के बाद ओपनहाइमर अपने साथियों के साथ कयास लगा रहे होते हैं कि इसके पीछे किसका हाथ हो सकता है. कैथरीन बताती हैं कि यह कारनामा लुईस स्ट्रॉस का होगा. क्योंकि “छह साल पहले तुमने उसे किसी बात पर सबके सामने बेइज्जत किया था और जो लोग प्रतिशोध की भावना रखते हैं, वो कभी भूलते नहीं. वो बस सही मौके का इंतज़ार करते हैं.“

बावजूद इसके कि ओपनहाइमर शादी के बावजूद दूसरी महिलाओं से प्रेम करते रहे, वो बच्चे की जिम्मेदारी नहीं संभालते, वो उनकी पत्नी कैथरीन ही थी जो जांच समिति को ओपनहाइमर के पक्ष में अपने जवाबों से निरुत्तरित कर देती हैं.

ओपनहाइमर का तकनीकी पक्ष बेहद शानदार है. नॉन लीनियर होने के बावजूद फ़िल्म कभी बोझिल नहीं होती. फ़िल्म का पहला हाफ थोड़ा धीमा ज़रूर लगता है लेकिन इंटरवल के बाद फ़िल्म फिर से गति पकड़ लेती है. एटमी विस्फोट के निर्णायक क्षणों में सन्नाटे का जो इस्तेमाल किया गया है वह बेहद असरदार है.

हालांकी क्रिस्टोफ़र नोलन की फ़िल्म इतनी आसानी से सबके पल्ले नहीं पड़ती. मसलन फ़िल्म को देखने के बाद सिनेमा हॉल बाहर लौटे एक युवा ने फुसफुसाते हुए अपने दोस्त से कहा – "फ़िल्म तो बहुत अच्छी लगी. अब घर जा के समझेंगे कि इसका मतलब क्या था”.

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