मूवी रिव्यू - मर्डर मुबारक
Murder Mubarak के एक सीन में एक अमीर महिला कहती है कि गरीब लोगों को तो जवानी में ही मर जाना चाहिए. इस एक लाइन से क्लियर हो जाता है कि फिल्म क्या कहना चाहती है.
Murder Mubarak
Director: Homi Adajania
Cast: Pankaj Tripathi, Sara Ali Khan, Vijay Varma, Karishma Kapoor
Rating: 2.5 Stars
साल 2019 में Knives Out नाम की एक हॉलीवुड फिल्म आई थी. एक बड़े घर में मर्डर हो जाता है. जांच के लिए वहां डिटेक्टिव आता है. शक के घेरे में कई सारे अमीर लोग हैं. जब होमी अदजानिया की फिल्म ‘मर्डर मुबारक’ का ट्रेलर आया था, तब बहुत लोगों ने लिखा कि इससे ‘नाइव्स आउट’ जैसी वाइब आ रही है. नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई ‘मर्डर मुबारक’ अनुजा चौहान की किताब Club You To Death पर आधारित है. फिल्म की कास्ट में भयंकर रेंज है. पंकज त्रिपाठी, विजय वर्मा, सारा अली खान, डिम्पल कपाड़िया, संजय कपूर, करिश्मा कपूर और टिस्का चोपड़ा जैसे नाम शामिल हैं.
कहानी खुलती है रॉयल डेल्ही क्लब से. ये अमीर लोगों का क्लब है. बॉन्ग जून हो ने अपनी फिल्म ‘पैरासाइट’ में दिखाया कि दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं. पहले जो बारिश होने पर ये सोचते हैं कि आसमान साफ हो गया. दूसरे जो इस चिंता में डूबे रहते हैं कि बारिश ने उनका कितना नुकसान किया. दिल्ली वाले क्लब में ये पहली कैटेगरी के लोग आते हैं. ये वो लोग हैं जो किसानों की माली हालत पर कहने के लिए बात कर लेंगे, लेकिन वास्तविकता से हज़ारों मील की दूरी बनाकर चलेंगे. अपने बनाए बुलबुले में रहकर ये लोग खुश हैं. खैर एक दिन क्लब में जिम ट्रेनर की लाश मिलती है. सच का पता लगाने के लिए ACP भवानी पहुंचते हैं. क्लब में मौजूद लोगों से पूछताछ शुरू होती है.
ये सभी अपने आप में अनोखे कैरेक्टर हैं – एक महाराजा है जो सिर्फ 20 रुपए की बख्शिश देता है. एक उम्रदराज महिला जो अजीब से बुत बनाती है. एक सी-ग्रेड फिल्मों की बी-ग्रेड एक्ट्रेस है. एक ऐसी महिला है जो हंसकर ये कहती है कि गरीब लोगों को जवानी में ही मर जाना चाहिए. मुद्दे की बात ये है कि सभी के पास उस जिम ट्रेनर से दुश्मनी होने की वजह है. ऐसे में किसने और क्यों उसका मर्डर किया, यही फिल्म की कहानी है.
फिल्म एक बहुत सॉलिड कास्ट को एक छत के नीचे लेकर आई. लेकिन उनके साथ इंसाफ नहीं कर सकी. ACP भवानी बने पंकज त्रिपाठी बेसिकली अपना ही रोल कर रहे थे. उन्हें देखकर लगेगा कि ये अवतार पहले भी देखा है. बस उनके किरदार की बोली में ‘हम्म’ एक नया जुड़ाव था. सारा अली खान को भी देखकर यही महसूस होता है कि यहां उनके पास भी कुछ नया ऑफर करने को नहीं था. उन्हें भी इस तरह से आप पहले देख चुके हैं. विजय वर्मा का काम ठीक लगता है, कुछ अद्भुत किस्म का नहीं. लीक से अलग जाकर खड़े होते हैं करिश्मा कपूर, संजय कपूर और डिम्पल कपाड़िया. करिश्मा को देखकर लगता है कि वो ऐसी एक्ट्रेस जो अपने स्टारडम के बबल से बाहर आने को तैयार नहीं. फिल्मी ढंग से कुछ बोलती है और फिर कहती है कि ये तो मेरी फिल्म का डायलॉग था. उनकी आम बोली भी इस लहजे से बची नहीं रह पाती.
डिम्पल कपाड़िया को देखना फन था. इस हमाम में हर कोई कुछ-न-कुछ होने का ढोंग कर रहा है. डिम्पल का किरदार भी उन्हीं में से एक है. बाकी संजय कपूर ने अपने करियर को तगड़े ढंग से रिवैम्प किया है. कुछ महीने पहले आई ‘मेरी क्रिसमस’ में भी उनका काम नोटिस में आया था. ‘मर्डर मुबारक’ में भी यही हुआ है. वो ऐसे महाराजा बने हैं जो अपनी हकीकत को परदे में रखने के लिए हर तरह के जतन कर रहा है. जब वो राजा होते हैं, तो लगता है कि ये आदमी किसी राजघराने से ही है. फिर जब आप सच देखते हो तो उसके लिए बुरा भी लगता है. उन्होंने ऐसा काम किया है. राइटिंग ने एक्टर्स को जितना दिया, उतना वो डिलिवर कर पाते हैं. बस राइटिंग फिल्म को बांधकर नहीं रख पाती.
सस्पेंस फिल्म में हर किरदार, हर बारीक डिटेल का कुछ मतलब है. बस ऐसे ही कुछ भी नहीं रखा जाता. ‘मर्डर मुबारक’ आपको कई सारे किरदारों से मिलवाती है. लेकिन उनमें से कई लोगों को आप कभी जान ही नहीं पाते. बाकी किरदारों के चक्कर में उनकी कहानी दबी ही रह जाती है. फिल्म में जितने किरदार है, उस हिसाब से इसे एक सीरीज़ होना चाहिए था. बाकी फिल्म के फॉर्मैट में मेकर्स तय नहीं कर पाए कि किस किरदार को कितना स्पेस दिया जाना चाहिए. विजय और सारा के किरदारों के रोमांस को ज़रूरत से ज़्यादा स्क्रीनटाइम दिया गया. इसे कम किया जा सकता था.
‘मर्डर मुबारक’ बहुत हद तक प्रेडिक्टेबल फिल्म थी. फिल्म के जिन पॉइंट्स को शॉक वैल्यू की तरह ट्रीट किए जाने का प्लान था, वो पहले ही उभरकर सामने आ जाते हैं. कुछ मौकों पर फिल्म आपका ध्यान ज़रूर खींचकर रखती है. लेकिन ये सिर्फ चुनिंदा पल ही बनकर रह जाते हैं. बाकी फिल्म के ह्यूमर की भी बात की जानी ज़रूरी है. फिल्म में ऐसा ह्यूमर है जिस पर आपकी हंसी नहीं छूट पड़ेगी. बस उसकी आइरनी पर एक हल्की मुस्कान आएगी. फिल्म में एक सीन है जहां एक किरदार कहता है कि नवंबर में भी बारिश हो रही है. इस पर उसकी बुजुर्ग मां कहती है, Global Warning. वो उन्हें सही करने के इरादे से कहता है कि Warning नहीं वो Warming होता है. इस पर वो कहती है, Global Warning ही तो है. फिल्म ऐसी लाइन्स से भरी हुई है, ‘जैसे मेरे क्लब में मर्डर अलाउड नहीं है’. फिल्म हम और वो जैसे गंभीर सब्जेक्ट पर अपनी मर्डर मिस्ट्री खड़ी करने की कोशिश करती है, लेकिन उस कोशिश में कामयाब नहीं होती.
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