हिंदी सिनेमा भले ही ढर्रे से चिपका दिखाई दे रहा हो, लेकिन रीजनल भाषाओं में बहुतबढ़िया काम हो रहा है. मराठी सिनेमा तो इस मामले में जैसे मशाल लेकर आगे चल रहा है.फ़िल्में कैसी होनी चाहिए इसका ट्यूटोरियल हिंदी वालों को मराठी फिल्मकारों से लेनाचाहिए. पिछले दशक भर में नेशनल अवॉर्ड जीतने वाली फिल्मों की लिस्ट पर नज़र भर मारलीजिए. ज़्यादातर फ़िल्में मराठी की दिखाई देंगी. मराठी सिनेमा को समर्पित इससीरीज़ 'चला चित्रपट बघू या' (चलो फ़िल्में देखें) में हम आपका परिचय कुछ बेहतरीनमराठी फिल्मों से कराएंगे. वर्ल्ड सिनेमा के प्रशंसकों को अंग्रेज़ी से थोड़ा ध्यानहटाकर इस सीरीज में आने वाली मराठी फ़िल्में खोज-खोजकर देखनी चाहिए... --------------------------------------------------------------------------------अभी कुछ दिन पहले तेलुगु एक्ट्रेस श्री रेड्डी ने प्रोटेस्ट के तौर पर बीच सड़क परअपने कपड़े उतारे थे. पूरी तेलुगु इंडस्ट्री हिल गई थी. उस इंसिडेंट पर बहुत कुछलिखा जा चुका है. हम उसपर बात न करके इस बात पर फोकस करेंगे कि नग्नता कैसे हमारेसमाज में टैबू सब्जेक्ट है. छुप-छुप के पॉर्न देखने में अग्रणी हमारे मुल्क कोनग्नता का ज़िक्र भर असहज कर देता है. इसी असहजता को एड्रेस करती है डायरेक्टर रविजाधव की नई मराठी फिल्म 'न्यूड'.कलाकार जब नग्नता दिखाता है तो वो ज़्यादातर प्रतीकात्मक ही होती है. उसे शरीर काआकार नहीं बल्कि निराकार सौंदर्य दिखाना होता है. जो ये समझ पाते हैं वो कलाकृतियोंका आनंद लेते हैं, जिनके पल्ले नहीं पड़ता वो तस्वीर फाड़ने पर उतारू हो जाते हैं.निजी क्षणों में न्यूडिटी को खोज-खोज कर देखने वाला समाज सार्वजनिक जीवन में नग्नतासे छिटका ही रहता है. इन दो ध्रुवों के बीच की दुनिया है 'न्यूड'. नग्न पेंटिंग्सके लिए मॉडलिंग करती दो महिलाओं के जीवन में झांकने का छोटा सा झरोखा.फिल्म का पोस्टर.'न्यूड' कहानी है यमुना की. अपने पति की बेवफाई से तंग आकर और घरेलू हिंसा का लगभगहर भारतीय महिला के हिस्से आने वाला दंश सह कर वो घर छोड़ के निकली है. अपने इकलौतेबेटे लहान्या के साथ. मिशन सिर्फ एक. बेटे को पढ़ाना है. अगला पड़ाव मुंबई है.चंद्राक्का के पास, जो रिश्ते में यमुना की मौसी लगती है. मुंबई के स्लम एरिया केकिसी डिब्बेनुमा कमरे से संघर्ष की दूसरी पारी शुरू होती है. रोज़गार पाने कीजद्दोजहद में लगी यमुना पर एक दिन अचानक ये राज़ खुलता है कि चंद्राक्का कुछ 'ग़लत'काम करती है. चित्रकारों के आगे कपड़े उतार कर पोज़ करती है. पहला भाव घृणा का होताहै. फिर चिढ़ का. गुस्से का.आवेश में यमुना चंद्राक्का को ज़लील करने पर उतारू हो जाती है. वार्तालाप बहस सेशुरू होकर यमुना के लिए पैसे कमाने के एक अवसर के रूप में ख़त्म होता है. युवाचित्रकारों के लिए, कॉलेज के सेफ माहौल में न्यूड पोज़ देकर अच्छी खासी आमदनी की जासकती है. ये पैसा काम आएगा लहान्या को पढ़ाने में. वो इकलौती ख्वाहिश, जिसने यमुनाको पति की भयानक क्रूरता के बाद भी मरने नहीं दिया था. यूं मिलती है 'सर जे जेस्कूल ऑफ़ आर्ट' के छात्रों को एक और न्यूड पोज़ करने वाली मॉडल.यहां से फिल्म बहुत से मुद्दों को छूते हुए आगे बढ़ती है. बच्चों की परवरिश से लेकरन्यूड आर्टिस्टों से जुड़े मिथकों तक. संस्कृति रक्षकों के दोगलेपन से लेकर एक मांकी असहायता तक. और ये सबकुछ बिना लेक्चर दिए. किसी एक सीन में भी कोई आपको पाठ नहींपढ़ाता. कई जगह तो फिल्म बिना संवादों के भी काम चला लेती है. फिल्म बस कहानी कह रहीहै, मैसेज आपको खुद ढूंढना है.'न्यूड' गांव के साफ़ तालाब से शहर के गंदे समंदर की यात्रा भी है.पिछले कुछ सालों में आई मराठी की चुनिंदा बेहतरीन फिल्मों की तरह ही 'न्यूड' भीअपने एक्टर्स के समर्थ अभिनय के दम पर ही टिकी नज़र आती है. गिने-चुने चार कलाकारमिलकर बेहद आसानी से फिल्म अपने कंधों पर ढो लेते हैं. ख़ास तौर से कल्याणी मुले औरछाया कदम.यमुना के किरदार में कल्याणी मुले (मराठी में मुळे लिखा जाता है) पूरी तरह फिट हैं.फिल्म शुरू होने के कुछ ही मिनटों के अंदर उनकी अभिनय क्षमता का सशक्त सबूत आपकेसामने होता है. यमुना का पति उसके कंगन लेकर अपनी प्रेमिका को दे चुका है. गुस्सेमें भरी यमुना उसके घर के आगे तमाशा करने पहुंची है. उसकी चीख-पुकार सुनकर पति बाहरआता है. उसके आक्रोश का अपने स्टाइल में जवाब देता है. उसके मुंह पर थूक कर. गुटखेसे भरा थूक यमुना के पूरे चेहरे को लिथड़ा डालता है. आप माहौल की तल्खी से आशंकित हैकि अभी यमुना की हिंसक प्रतिक्रया आती ही होगी. लेकिन होता है बिल्कुल उल्टा.अपमान की ये एक्स्ट्रीम घटना यमुना को शांति से भर देती है. यूं जैसे उसके अंदर कोईतत्काल मर गया हो. बिना एक शब्द बोले वो खुद को घसीटती हुई लौट पड़ती है. एक दर्शकके तौर पर आप भी पहचान लेते हैं कि यही वो लम्हा है जब बर्दाश्त की आखिरी सीमा कोछू लिया गया है. इस एक सीन में कल्याणी मुळे ने अभिनय का एवरेस्ट छू लिया. वो शॉक,वो हताशा, वो चिढ़, वो ग्लानी सबकुछ चंद सेकंडों में उनके चेहरे पर आ गुज़रता है.इसी तरह पहली बार मॉडलिंग के लिए कपड़े उतारते वक़्त भी कल्याणी सटीक हावभाव व्यक्तकरने में पूरी तरह सफल हैं. झिझक के साथ-साथ कोई गंदा काम करने की भावना यमुना कोरोकती है. लेकिन वहीं रखी एक मां-बेटे की पेंटिंग उसकी तमाम हिचकिचाहट को हवा मेंउड़ा देती है. अगले ही पल कपड़े पैरों में पड़े होते हैं और एक नई, कॉंफिडेंट यमुना कासफ़र शुरू होता है. जो आर्ट की दुनिया से अनभिज्ञ है लेकिन सहयोग के लिए तत्पर.चंद्राक्का ने एक बार उसे बताया था कि जो पेंटिंग्स बनाई जा रही हैं, वो 'गैलरी'में लगती हैं. एक दिन वो किसी घर में कामवाली का काम कर रही होती है. गैलरी मेंझाडू लगाने को कहा जाने पर मासूमियत से पूछती है, "गैलरी में तस्वीरें नहीं हैं?"कल्याणी इस रोल के लिए सटीक चुनाव हैं.यमुना का तमाम संघर्ष अपने बेटे की पढ़ाई के इर्द-गिर्द है. उसकी चित्रकारिता मेंदिलचस्पी देखकर वो उसे मुंबई से दूर औरंगाबाद पढ़ने भेजती है. एक वजह ये भी है किमुंबई में पढ़ते-पढ़ते कहीं उस कॉलेज तक न पहुंच जाए, जहां उसकी मां कपड़े उतारती है.एक भावुक पल में वो चंद्राक्का से कहती है, "वो पढ़-लिख गया तो मेरी नंगी तस्वीरेंदेखने के बावजूद मेरी पूजा करेगा. नहीं तो चप्पल से मारेगा."इसी उम्मीद और आशंका से भरे जीवन का भार उठाकर चलती रहती है यमुना. कल्याणी मुळे नेयमुना को ज़िंदा कर दिया दिया है परदे पर.यमुना के जितनी ही याद रहती हैं चंद्राक्का. छाया कदम ने चंद्राक्का के किरदार मेंजान फूंक दी है. पान चबाती बेफिक्र चंद्राक्का यमुना को मुंबई जैसे बेरहम शहर मेंजीने के गुर सिखाती है. कहती है कि सामने वाले पर हावी होकर ही इस शहर में जिया जासकता है. एक सीन याद आता है. चंद्राक्का यमुना के माथे पर लाल टीका लगाती है. टीकेपर उंगली रखकर कहती है, "मर्दों की नज़र औरतों की छाती पर से ऊपर उठती ही नहीं. उसेवहां से उठाकर यहां रोकना है." 'फैन्ड्री' और 'सैराट' में शानदार भूमिकाओं के बादछाया कदम एक बार फिर प्रभावित करती है. जब लहान्या अपनी मां की बात मानकर औरंगाबादजाने से इंकार कर रहा होता है, तो चंद्राक्का का उसपर टूट पड़ना उसके किरदार कीसशक्तता का सर्टिफिकेट है.छाया कदम.लहान्या के किरदार में मदन देवधर भी बढ़िया काम कर गए हैं. अपनी मां के काम की भनकपाया बच्चा जो न सिर्फ उससे नफरत करता है बल्कि बदला लेने का उसका अपना अलग स्टाइलहै. ज़्यादा, और ज़्यादा पैसे ऐंठना. अपनी अंदरूनी छटपटाहट को वो परदे पर कामयाबी सेदिखा पाते हैं. ओम भुतकर सरप्राइज़ पैकेज हैं. वो चित्रकार जो यमुना के न्यूड पोज़देने से लाभान्वित हुआ है. जिसे यमुना की चिंता भी रहती है. ओम भुतकर 'सुखन' नामकग़ज़ल गायकी का प्रोग्राम करने के लिए मशहूर हैं. जिन्होंने उनका वो प्रोग्राम देखाहै वो इस फिल्म में उन्हें देखकर चौंक जाएंगे. सुखन के मंच पर ऊर्जा से भरे हुएलगते ओम यहां पर धीर-गंभीर और ठहराव भरे हैं. उनका ये किरदार उनकी एक्टिंग स्किल्सका उम्दा नमूना है. मशहूर पेंटर एम.एफ.हुसैन की तर्ज का एक रोल नसीर साहब के हिस्सेभी आया है. वो अपनी मुख़्तसर सी हाज़िरी में भी छाप छोड़ जाते हैं. फिल्म के फ्लो मेंअड़चन बने बगैर.'न्यूड' आजीविका के लिए कपड़े उतारने वाली मॉडल्स के जीवन में बस थोड़ा सा झांकती हैऔर दर्शकों को असहज कर जाती है. ये थोड़ा सा झांकना इस फिल्म की कमज़ोरी भी मानी जासकती है. इसमें उस कालिख को छुआ तक नहीं गया है जो ऐसी मॉडल्स के बेशुमार शोषण कीदास्तां कहती है. या शायद ये जानबूझकर किया गया हो. लेखक-डायरेक्टर को ही पता होगा.हां एक मामले में फिल्म बहुत ईमानदार है. ये संघर्ष को सुखांत तक पहुंचाने की ज़िदनहीं करती. उलट ये बताती है कि हर स्ट्रगल की फेयरीटेल एंडिंग नहीं होती. बरसतेपानी में समंदर की तरफ बढ़ती यमुना न सिर्फ भावनात्मक रूप से हाई-पॉइंट है बल्किविजुअली भी बेहद सशक्त दृश्य है.फिल्म का क्लाइमेक्स पावरफुल है. ये आपको आंदोलित कर देगा. इसे देखते वक्त आपकोयमुना की फिल्म में पहले कही गई पंक्तियां याद आएंगी. जब न्यूड मॉडल्स की कमी सेजूझते युवा चित्रकारों के लिए कपड़े उतारते वक्त उसने कहा था, "पढ़ाई नहीं रुकनीचाहिए, न मेरे बेटे की, न इनकी." वही बेटा एक आर्ट गैलरी में लगी अपनी मां कीपेंटिंग देख रहा है. उसकी प्रतिक्रिया बता कर हम आपसे उस अनुभूति से खुद गुज़रने कासुख नहीं छीनेंगे. खुद अनुभव कीजिएगा. फिल्म देखकर.देखिए न्यूड मूवी का लल्लनटॉप वीडियो रिव्यू:https://www.youtube.com/watch?v=ID_WyDCjVjc&t=1sफिल्म का ट्रेलर:https://www.youtube.com/watch?v=tDUZe55N1UU--------------------------------------------------------------------------------'चला चित्रपट बघूया' सीरीज़ में कुछ अन्य फिल्मों पर तबसरा यहां पढ़िए:सेक्स एजुकेशन पर इससे सहज, सुंदर फिल्म भारत में शायद ही कोई और हो!क्या दलित महिला के साथ हमबिस्तर होते वक़्त छुआछूत छुट्टी पर चला जाता है?जोगवा: वो मराठी फिल्म जो विचलित भी करती है और हिम्मत भी देती है