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जिन्हें लगता है कि अब अच्छे गाने नहीं लिखे जाते, वो इस साल आए ये 13 गाने सुन लें

मन को नाचने पर मजबूर करने वाले 2022 के 13 तराने. गुलज़ार, वरुण ग्रोवर और राज शेखर जैसे गीतकारों ने लिखे हैं बोल.

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ये गुलज़ार ही लिख सकते हैं
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अनुभव बाजपेयी
21 दिसंबर 2022 (Updated: 21 दिसंबर 2022, 13:51 IST)
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अच्छा संगीत कैसा हो सकता है? किस संगीत को दूसरे से बेहतर कहा जाए. सबकी अपनी पसंद है. सबके अच्छे होने के अलग पैमाने हैं. मेरे लिए म्यूजिक वही अच्छा है जो शांत करे, तन और मन दोनों को. जिसके लिए समय निकालने का मन हो. जिसे बैठकर आराम से सुना जा सके. संगीत सुनते समय शरीर के साथ मन भी नाचे. आत्मा नृत्य करे. जब आत्मा नाचती है तो सारे दुःख भुला देती है. कल्पना कीजिए, आप आराम से बैठे हैं और आपका मन नाच रहा है. किसी टेक्नोलॉजी में नहीं, सिर्फ़ गानों में ये ताक़त होती है. आज हम ऐसे ही गानों की बात करने वाले हैं, जिन्होंने हमारे मन को 2022 में नाचने पर मजबूर कर दिया.

1) फर्श पे खड़े : मोनिका, ओ माई डार्लिंग
वरुण ग्रोवर ने इसे लिखा है

पिछले एक दशक में वरुण ग्रोवर ने लिरिसिस्ट के तौर पर एक विश्वस्त पहचान बनाई है. जनता का उन पर भरोसा मजबूत हुआ है. वरुण ने लिखा है, तो कुछ अलग और अच्छा लिखा होगा. ऐसा ही एक गाना उन्होंने 'मोनिका, ओ माई डार्लिंग' में लिखा. ‘फर्श पे खड़े’. फ़िल्म में ये ऐसी सिचुएशन में आता है, जहां हीरो एक के बाद एक मुसीबतों में फंसता जा रहा है. 'मोनिका, ओ माई डार्लिंग' में अचिंत के रेट्रो फ़ील से सजे म्यूजिक को खूब पसंद किया गया. ये गाना भी उसी महक से सना हुआ है. इसमें चार चांद लगाती है, सांगिक सेन की आवाज़. ऐसा लगता है कोई सेवंटीज़ या एटीज़ का सिंगर गा रहा है, एकदम साफ़-मोटी-गोल आवाज़.

यहां सुनें: फर्श पे खड़े

2) रोक ले: जुग-जुग जियो
ये गाना लिखा है ध्रुव योगी ने

इस साल रील्स में एक गाना खूब चला: 'कोई उमरां दा साथ निभाके जे एकदम हथ छड दे'. अद्भुत गाना. इतना सुंदर गाना मैंने हाल-फिलहाल में नहीं सुना. सिमरन कौर ने क्या कमाल गाया है! हालांकि म्यूजिक तनिष्क बागची का है. उनके रीक्रिएशन के लिए आप उन्हें कोस सकते हैं. पर ये गाना उन्होंने शानदार बनाया है. इसे लिखा है ध्रुव योगी ने. अद्भुत दर्द है सिमरन की आवाज़ में. उनकी आवाज़ का टेक्सचर रेशमा से मेल खाता है. सिमरन के कई गाने यूट्यूब पर पड़े हैं. पर ज़्यादातर एग्रेसिव हैं, कुछ ही स्लो हैं. उनकी आवाज़ में एक रेंज है. उन्हें और इमोशनल गाने करने चाहिए. जब 'रोक ले' गाने में 'किसे राणी बनौणा...' वाली लाइन आती है. जैसे दिल बैठ जाता है. आवाज़ का दर्द सीने में उतर जाता है. बहुत ही ज़्यादा कमाल. पर गाना बहुत छोटा है, ये दुःख है.

यहां सुनें: रोक ले 

3) तेरे हवाले : लाल सिंह चड्ढा
इसे अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखा है

'लाल सिंह चड्ढा' का तेरे हवाले जब अरिजीत सिंह गाना शुरू करते हैं, 'हॉलीडे' फ़िल्म का 'अश्क ना हो' की याद ताज़ा हो जाती है. एकदम मखमल-सा गाना. जैसे कोई झीना कपड़ा, जिसके आरपार देखा जा सकता हो. शिल्पा राव जब अपनी भीगी आवाज़ में 'मैं हूं दीवारें, छत है पिया तू...' गाती हैं, उनकी आवाज़ में समर्पण दिखता है. प्रीतम ने गाने में हल्की-हल्की तबले की थापें बहुत सुंदर तरीके से इस्तेमाल की हैं. तिस पर अमिताभ भट्टाचार्य के बोल. नए विचार नहीं, फिर भी नए से लगते हैं.

यहां सुनें: तेरे हवाले

4) मन की मछरिया- निर्मल पाठक की घर वापसी
इसे डॉक्टर सागर ने लिखा है

परदेस से लौटकर आए नायक के मन की मछरिया तड़प रही है. जैसे कृष्ण के लिए गोपियां अपनी तड़प बयान कर रही हों. नायक की भावनाओं को डॉक्टर सागर ने बहुत सुंदर बोल दिए हैं. शब्द चयन कितना सुंदर है. 'पनघट पे कुइयां का पानी छलक जाए, घूंघट में रूपवा की रानी फिसल जाए'.  इस गाने को बहुत स्लो और शास्त्रीय बनाया जा सकता था. पर रोहित शर्मा ने मॉडर्न रॉक के इन्सट्रूमेंट्स इस्तेमाल किए हैं. खूब सुंदर.

यहां सुनें: मन की मछरिया

5) मन अटक गया - बधाई दो
इसे लिखा है वरुण ग्रोवर ने

एक और वरुण ग्रोवर का लिखा गाना हमारी लिस्ट में है. एक चालू उक्ति को उठाकर उन्होंने गाने में पिरोया है, ' ये मन अटक गया है, कुछ चटक गया है'. इस गाने के लिरिक्स में एक तरह की नॉस्टैल्जिक वेदना है. वरुण ने अपने बिम्बों के ज़रिए गाने में यादों का एक संसार रचा है. अमित त्रिवेदी का म्यूजिक तो क्या कहने. उनके बारे में कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है. अरिजित सिंह और रूपाली मोघे ने गाया भी उतना ही सुंदर है, जितना अच्छा अमित ने बनाया है.

यहां सुनें: मन अटक गया है

6) जोगन- गुड लक जेरी
इसे लिखा है राजशेखर ने

इस दौर के नए गीतकारों एक और गीतकार बेहद भरोसेमंद लिरिक्स लिख रहा है. वो हैं राज शेखर. ‘तनु वेड्स मनु’, ‘करीब-करीब सिंगल’, ‘तुम्बाड’ समेत कई फिल्मों में उन्होंने अच्छे और नए गाने लिखे हैं. 'जोगन' में उन्होंने कितने अलहदा प्रयोग किए हैं. जैसे: 'रात बिलौटे सी ताक में बैठी है'. इस अपबीट सॉन्ग में रैप भी है और इसका फिल्मांकन ऐसा है जैसे कोई नाटक देख रहे हों. रोमी ने ऐज यूजुअल अच्छा गाया है. उनके साथ रूपाली जग्गा, निकिता गांधी ने भी बढ़िया निभाया है. पराग छाबड़ा का म्यूजिक भी एक नंबर है.

यहां सुनें: जोगन

7) वक़्त के जंगल में - दोबारा
इसे लिखा है हुसैन हैदरी ने

हुसैन हैदरी मूल रूप से कवि हैं. ये उनके गानों में भी दिखता है. जैसे अनुराग कश्यप की फिल्म 'दोबारा' में लेयर्स हैं, वैसे ही 'वक़्त के जंगल' गाने में भी परतें हैं. साथ ही इसमें एक तरह की ध्वन्यात्मकता है. गौरव चटर्जी की कम्पोजिशन में भी तापसी के मन की छटपटाहट है. ऐसा लगता है कि तापसी का शरीर वहीं है, पर म्यूजिक के अंदर दिमाग भाग रहा है. गाया अरमान मलिक ने है. बहुत सुंदर गीत. 

यहां सुनें: वक़्त के जंगल में

8) ऐसे क्यूं - मिसमैच्ड
इसे राज शेखर ने लिखा है

राज शेखर का एक और गाना हमारी लिस्ट का हिस्सा है. नेटफ्लिक्स की सीरीज़ 'मिसमैच्ड' का गाना 'ऐसे क्यूं'. ये गाना दो ऐसे लोगों की बात करता है, जो एक दूसरे के क़रीब आ रहे हैं. पर अपनी फीलिंग्स जाहिर नहीं कर पा रहे हैं. इसकी लिखाई थोड़ी गद्यात्मक है. म्यूजिक अनुराग साइकिया ने दिया है. उन्होंने बहुत सारे इन्स्ट्रूमेंट इस्तेमाल नहीं किए हैं. बस गिटार, कीबोर्ड के साथ एकाध और इन्स्ट्रूमेंट. इससे गाना सूदिंग लगता है. अनुराग साइकिया ने ही इसे रेखा भारद्वाज के साथ मिलकर आवाज़ दी है. रेखा भारद्वाज जब इसे खुले गले के साथ गाती हैं, मज़ा आ जाता है. 

यहां सुनें: ऐसे क्यूं

9) फेरो न नजरिया-क़ला
इसे लिखा है कौसर मुनीर ने

'फेरो ना नजर से नजरिया'. यहां नजर और नजरिया दोनों नुक्तारहित हैं. ठीक ऐसे ही ये गाना है. संभ्रांतता से रहित देसीपना समेटे हुए. कला का पूरा एल्बम ही खालिस लोक और पुरानापन समेटे हुए है. इस गाने को सुनकर पहली नज़र में लगता है, विरह में डूबी प्रेमिका अपने प्रेमी के लिए गा रही है. जबकि यहां एक बेटी अपनी मां से कह रही है, मेरी उपेक्षा ना करो बस मुझसे बात करो, मुझे आपसे कोई अपेक्षा नहीं है. कौसर मुनीर ने बहुत ही सुंदर लिखा है. अमित त्रिवेदी ने आजकल आग लगा रखी है. वो हर गाने को स्पेशल बना देते हैं. इसमें हारमोनियम का प्रयोग मुझे निजी तौर पर बहुत अच्छा लगा. सिरीशा भगवतुला ने विरह में डूबकर गाया है. उन्हें सुनकर लगता है, जैसे उनकी आवाज़ मन के किसी दर्दीले कोने से आ रही हो.

यहां सुनें: फेरो न नजरिया

10) जब सैयां - गंगूबाई काठियावाड़ी 
इसे लिखा है AM Turaz ने

एक समय था कि श्रेया घोषाल बॉलीवुड की अरिजित सिंह थीं. हर फ़िल्म में उनका एक गाना ज़रूर होता था. इस बरस उन्होंने 'गंगूबाई काठियावाड़ी' में 'जब सैयां' गाया है. उनकी आवाज़ की पाकीज़गी बेहद अलहदा है. गाने की शास्त्रीयता बचाए रखते हुए इमोशन डालना कोई श्रेया से सीखे. संजय लीला भंसाली ने संगीत दिया है और लिखा है A M Turaz ने.

यहां सुनें: जब सैयां

11) बादल से दोस्ती - झुंड
इसे लिखा है अमिताभ भट्टाचार्य ने

'बादल से दोस्ती' एक ऐसा गाना, जो उन बच्चों को ललकार रहा है जो साधनविहीन हैं. निराश हैं. शस्त्र त्याग चुके हैं. जैसे अर्जुन से श्रीकृष्ण कहते हैं: क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप, वैसे ही इस गाने में अमिताभ भट्टाचार्य कहते हैं: 'सपनों की खिदमत में कोशिश तो कर पहले , गागर भी छलकेगी बूंदें तो भर पहले'. विचारों के घनत्व और जोश से भरे लिरिक्स को म्यूजिक में बांधा है अजय-अतुल ने, गाया है Sid Sriram ने. उनकी आवाज़ सोनू निगम जैसी लगती है. इस गाने की बेस्ट बात है कि ये जोशीला होने के बावजूद लाउड नहीं, कर्णप्रिय है.  

यहां सुनें: बादल से दोस्ती

12) खामखा - कौन प्रवीण तांबे
इसे लिखा है शकील आज़मी ने

'कौन प्रवीण तांबे' का खामखा हमारी लिस्ट का एक और अनुराग साइकिया का कम्पोज्ड सॉन्ग है. ये भी जोश भरने वाला, शरीर में खून का दौड़ान तेज़ करने वाला सॉन्ग है. विवेक हरिहरन ने अपनी आवाज़ से इसमें ओज भरा है. 'हौसले कम ना कर खामखा'. शकील आज़मी के लिखे बोल बहुत नए नहीं हैं. पर गाने की सिचुएशन के साथ न्याय करते हैं. उन्होंने अपनी शायरी का अनुभव इसमें बाखूबी इस्तेमाल किया है.

यहां सुनें: खामखा

13) धूप पानी बहने दे - शेरदिल: दी पीलीभीत सागा
इसे लिखा है गुलज़ार ने

अपने समय के सबसे बड़े गीतगारों में से एक गुलज़ार जब लिखते हैं, मन मचल उठता है. क्या ही सुंदर प्राकृतिक गाना लिखा है, 'धूप पानी बहने दे'. ऐसा गाना गुलज़ार के अलावा कौन लिख सकता है! गुलज़ार के साथ केके का अनूठा संयोग जब हो जाए, तो शब्द कम पड़ जाएंगे कि गाना कैसा हो सकता है! ये केके का गाया आखिरी गाना है. हालांकि इसमें केके के साथ ऋतुराज ने भी गाया है. शांतनु मोइत्रा ने बढ़िया बनाया भी है. 

यहां सुनें: धूप पानी बहने दे

वीडियो: मूवी रिव्यू: लंबी होने के बाद भी अपना पॉइंट नहीं भूलती 'कौन प्रवीण तांबे'

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