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कटहल: मूवी रिव्यू

फिल्म के सोशल कमेंट्री में तीर की धार है. अच्छा व्यंग्य चुटीले अंदाज़ में कैसे परोसा जाए, इस पिक्चर से सीखने लायक है. कोई जबरदस्ती की लफ्फेबाजी नहीं. सीधे सिर्फ मुद्दे की बात.

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kathal movie review starring sanya malhotra rajpal yadav
फिल्म में राजपाल यादव ने बेहतरीन काम किया है
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अनुभव बाजपेयी
19 मई 2023 (Updated: 19 मई 2023, 14:12 IST)
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अनुज आपका छोटा भाई, कटहल, कटहल, कटहल. एक ऐसा फल, जिसने पूरे मोबा में मचा दी है हलचल. ये अपन नहीं कह रहे, नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म 'कटहल' में राजपाल यादव कहते हैं. इसके लिए हमने सान्या मल्होत्रा का इन्टरव्यू भी किया हैं. यहां देख सकते हैं.

फिलहाल हम बात करते हैं, इसके रिव्यू की. कैसी है 'कटहल', जिसने मोबा में मचा रखी है हलचल. कहानी सेट है मथुरा में. एमएलए साहब के दो अंकल हॉन्क ब्रीड के कटहल चोरी हो गए हैं. पूरी पुलिस फोर्स उन्हें ढूंढ़ रही है. पुलिस के पास तमाम महत्वपूर्ण काम हैं, पर माननीय से ज़्यादा महत्वपूर्ण भारतीय लोकतंत्र में कभी कुछ रहा है? ऐसी एक दो खबरें आपको याद भी आ रही होंगी, जिनमें किसी नेता के यहां से कुछ चोरी हुआ और पुलिस महकमा सब काम छोड़कर उसके पीछे लग गया. 'कटहल' ऐसी ही घटनाओं पर बनाई गई एक बारीक व्यंग्य फिल्म है.

सबसे अच्छी बात है, ये कालातीत पिक्चर है. माने समय-काल से परे. आप इसे आज से 20 साल बाद भी देखेंगे, तो भी इतना ही मज़ा देगी. इसमें आपको लेफ्ट-राइट की कोई बाइनरी नहीं मिलेगी, मिलेगा सिर्फ कमाल का सामाजिक-राजनैतिक व्यंग्य. पॉलिटिकल सटायर होने के बावजूद ये किसी विचारधारा की ओर नहीं झुकती, जो कि आजकल की फिल्मों के साथ कम ही होता है. अच्छा व्यंग्य चुटीले अंदाज़ में कैसे परोसा जाए, इस पिक्चर से सीखने लायक है. कोई जबरदस्ती की लफ्फेबाजी नहीं. सीधे सिर्फ मुद्दे पर बात.

महिमा के रोल में सान्या मल्होत्रा

इस फिल्म को ये पता है कि दर्शकों को पनवेल निकलना है. इसलिए बढ़िया रफ्तार से पिक्चर चलती भी है. ऐसा नहीं है कि माहौल बनाने में ही आधा घंटा ले लिया जाए. फिल्म में सिर्फ एक ओपनिंग सीन है, जिसके सहारे वो किरदारों का परिचय देती है और सीधे कटहल पर गिरती है.

फिल्म को लिखा है अशोक मिश्रा और यशोवर्धन मिश्रा ने. यशोवर्धन ने ही फिल्म डायरेक्ट भी की है. कहते हैं न कि बहुत महीन आदमी हो गुरु. ठीक ऐसे ही इस पिक्चर का स्क्रीनप्ले भी महीन है. एक सीन है, जिसमें माली पुलिस स्टेशन आता है. उसे बैठने को कहा जाता है, तो वो नीचे ही बैठ जाता है. समाज के निचले तबके की ट्रेनिंग ही ऐसी हो गई है कि वो सम्मान लेने से भी सकुचाता है. ऐसे ही एक सीन है, टीवी पर न्यूज चलने की. उसमें इतनी बारीकी है कि टीवी पर नीचे जो खबरों का सेक्शन होता है, उसमें भी व्यंग्य है. लिखकर आता है कि बैंक मैनेजर के अकाउंट से ही चोरों ने निकाल लिए 53 हज़ार. पीपल की पूजा करने पर हुई दलित महिलाओं की पिटाई. ऐसे ही पुलिसिया प्रेस कॉन्फ्रेंस का सीन है. इसमें कई सारे सटायर हैं. एक तो डीएसपी साहब अपने ही महकमे पर व्यंग्य करते हैं. दूसरा पकड़े गए बदमाश पर जो आरोप लगाए जा रहे होते हैं, उनकी संख्या में भी पुलिसिया तंत्र का प्रहसन है.

राजपाल यादव ने फिल्म में पत्रकार बने हैं

इसकी सोशल कमेंट्री में तीर की धार है. अमीर-गरीब, ऊंची जाति-नीची जाति इन सबके विभेद दिखाते हुए फिल्म अति नहीं करती. किसी एक पूरे तबके को उसका गुनहगार नहीं ठहराती. पर व्यंग्य बाण छोड़ने से पीछे भी नहीं हटती. कैसे खुद को समाज का स्वयंभू समझने वाला तबका अपनी जाति की अकड़ और घमंड अब भी साधे हुए है. फिल्म में खाली फोकट की डायलॉगबाजी नहीं है. स्थिति, स्थान और परिस्थितिजन्य संवाद हैं. एक दो बेहतरीन डायलॉग की बानगी पेश कर देता हूं. जैसे एक पुलिस अफसर कहता है: कहने को हम इंडियन पीनल कोड फॉलो करते हैं, लेकिन काम करना पड़ता है इंडियन पॉलिटिकल कोड के अधीन. पत्रकार बने राजपाल यादव कहते हैं: धक्का काहे मार रहे हो, चौथे खंभे को गिरा ही दोगे क्या?

मथुरा के आसपास की बोली बढ़िया पकड़ी है. वहां से नए तरह के मुहावरे और देशजता निकालकर अशोक मिश्रा और यशोवर्धन मिश्रा लाए हैं. इसका भी उदाहरण पेश कर देते हैं. ऐसे आप लोग मानते कहां हैं. विधायक जी कहते हैं: "जब तक कटहल नहीं मिलेंगे, इस घर से बाहर कोई पांव नहीं रखेगा, नहीं तो पांव काटके हॉकी खेलेंगे." इयरपोन को कनचोंगा कहा गया है. ऐसे और भी कई उद्धरण हो सकते हैं, पर कुछ आपके लिए भी छोड़ देते हैं.

फिल्म के अंत से पहले एक मेसी सीक्वेंस है. बहुत कमाल का कोरियोग्राफ किया गया है. उस सीन को खास बनाते हैं, रघुबीर यादव. वो थोड़ी देर के लिए सीन में आते हैं और सारा मजमा लूट ले जाते हैं. आप इमैजिन करिए रघुबीर यादव अपने दोनों हाथों में लोटा फंसाए जैकी चेन की तरह कराटे करने के लिए तैयार खड़े हैं. अद्भुत सीन है वो. सिर्फ 10 मिनट के लिए ही सही, पर रघुबीर यादव का आना मेरे लिए फिल्म की हाइलाइट है.

विधायक के रोल में विजय राज

सभी ऐक्टर्स ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है. उनकी तैयारी स्क्रीन पर दिखती नहीं. ये किसी भी अभिनेता के लिए सबसे बड़ा कॉम्प्लीमेंट हो सकता है. इंस्पेक्टर महिमा के रोल में सान्या मल्होत्रा हैं. वो हर एक पिक्चर के साथ अपनी काबिलियत साबित कर रही हैं. महिमा की देह-भाषा से लेकर बोली-भाषा तक उन्होंने खूब अच्छे से पकड़ी है. उनके चेसिंग सीक्वेंस भी अच्छे हैं. राजपाल यादव, इनके लिए जितना भी कहें कम हैं. किसी की स्क्रीन प्रेजेंस इतनी कमाल कैसे हो सकती है! पत्रकार के रोल में उन्होंने बहुत शानदार का काम किया है. डायलॉग डिलीवरी से लेकर उनके फेसियल एक्स्प्रेशन तक सब कमाल हैं. जब एक बहुत मेच्योर अभिनेता ऐसे रोल को करता है, तो वो छोटे किरदार को भी बहुत बड़ा बना देता है. विधायक बने विजय राज अपनी कॉमिक टाइमिंग से कहर ढाते हैं. एमएलए का किरदार निभाते हुए उनके अंदर एक सहजता है. दो और लोगों की बात होनी चाहिए. एक है अनंत जोशी, वो कॉन्स्टेबल बने हुए हैं. उन्होंने ना ज़्यादा ना कम, जो चाहिए था वो किया है. ऐसा ही काम है नेहा सराफ़ का, उनको और काम मिलना चाहिए. उन्होंने भी सुंदर काम किया है.

हमने तो अपना काम कर दिया. अब आपकी बारी. नेटफ्लिक्स पर 'कटहल' स्ट्रीम हो रही है. जल्दी से जाइए देख डालिए. बहुत क्लीन सोशियो-पॉलिटिकल सटायर देखने को मिलेगी.

वीडियो: आमिर, ऋतिक, नवाजुद्दीन और राजपाल यादव पर सान्या मल्होत्रा की बातें सुन मौज आ जाएगी

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