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'डोल्लु' फिल्म को गलत कैटेगरी में नेशनल अवॉर्ड कैसे मिल गया?

विवाद ये है कि 'डोल्लु' को सिंक साउंड कैटेगरी में नेशनल अवॉर्ड मिला है. जबकि ये फिल्म स्टूडियो में डब हुई है.

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फिल्म 'डोल्लु' के दो अलग-अलग सीन्स.
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श्वेतांक
25 जुलाई 2022 (Updated: 28 जुलाई 2022, 11:16 IST)
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22 जुलाई को 68वें नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स की घोषणा की गई. सागर पुराणिक डायरेक्टेड फिल्म 'डोल्लु' को बेस्ट कन्नड़ा फिल्म और Best Location Sound Recordist (for sync sound films only) की कैटेगरी में राष्ट्रीय पुरस्कार मिले. पहला अवॉर्ड तो ठीक है. मगर बेस्ट लोकेशन साउंड रिकॉर्डिस्ट वाले अवॉर्ड को लेकर विवाद शुरू हो गया है.

'स्लमडॉग मिलियनेयर' के लिए ऑस्कर जीत चुके साउंड डिज़ाइनर रेसुल पूकुट्टी ने एक ट्वीट किया. इसमें उन्होंने इस अवॉर्ड को दिए जाने में हुई चूक की ओर ध्यान दिलाया. रेसुल लिखते हैं-

''जिस फिल्म ने सिंक साउंड रिकॉर्डिंग के लिए नेशनल अवॉर्ड जीता, वो सिंक साउंड वाली फिल्म नहीं है. वो एक डब्ड फिल्म है. फिल्म के साउंड डिज़ाइनर नितिन लुकोज़ ने इसकी पुष्टि की है.''

रेसुल पूकुट्टी के ट्वीट का स्क्रीनग्रैब.

रेसुल के इस ट्वीट को कोट करते हुए 'डोल्लु' के साउंड डिज़ाइनर नितिन लुकोज़ ने लिखा-

''मुझे नहीं पता कि नेशनल अवॉर्ड सेलेक्शन प्रक्रिया में पर्दे के पीछे क्या हुआ. मगर मुझे ऐसी ज्यूरी की जजमेंट पर तरस आ रहा है, जिन्हें डब्ड और सिंक साउंड वाली फिल्म के बीच फर्क भी नहीं पता. ये लोग खुद को इस सीन का एक्सपर्ट बताते हैं!'' 

‘डोल्लु’ के साउंडर डिज़ाइनर नितिन लुकोज़ के ट्वीट का स्क्रीनशॉट.

# सिंक साउंड फिल्म और डब्ड फिल्म में क्या फर्क होता है?

किसी सीन को शूट करते समय एक्टर्स अपने डायलॉग बोलते हैं. बगल में एक आदमी बड़े से डंडे में माइक पकड़े खड़ा रहता है. बड़ा डंडा इसलिए ताकि माइक को फ्रेम से बाहर रखा जा सके. ऑथेंटिसिटी बनाए रखने के लिए फाइनल फिल्म में यही आवाज़ इस्तेमाल कर ली जाती है. इसे सिंक साउंड वाली फिल्म कहेंगे. कई मौकों पर इसे लाइव रिकॉर्डेड भी कहा जाता है.

मगर आजकल सिंक साउंड वाली फिल्में लिमिटेड संख्या में बनने लगीं हैं. अब एक्टर्स शूटिंग के दौरान अपना डायलॉग बोल देते हैं. पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान एक साउंडप्रूफ स्टूडियो में एक्टर्स डायलॉग को अलग से रिकॉर्ड करते हैं. इसे स्टूडियो डब्ड फिल्म कहते हैं.

विवाद ये है कि 'डोल्लु' को सिंक साउंड कैटेगरी में नेशनल अवॉर्ड मिला है. जबकि रेसुल का कहना है वो फिल्म स्टूडियो में डब हुई है. 'डोल्लु' के साउंड डिज़ाइनर उनकी इस बात की तस्दीक भी कर रहे हैं.

फिल्म ‘डोल्लु’ का ऑफिशियल पोस्टर.

# किस बारे में हैं फिल्म 'डोल्लु'? 

'डोल्लु' एक ढोलकनुमा बाजा होता है. कर्नाटक में डोल्लु कुनिथा नाम का एक डांस फॉर्म है. इसमें ढेर सारे लोग मिलकर ढोलक बजाकर नाचते हैं. ये प्रथा लंबे समय से चली आ रही है. इसके पीछे एक मायथोलॉजिकल प्रसंग भी है. डोल्ला नाम के एक असुर सालों तक भगवान शिव की पूजा की. उसकी भक्ति से इंप्रेस होकर एक दिन शिव जी उसके सामने गए. डोल्ला को पूछा कि बताओ क्या वरदान मांगना चाहते हो. डोल्ला ने इमोशन में बहकर कुछ अलग ही मांग लिया. डोल्ला ने कहा कि वो शिव जी को लीलना चाहता है. ऑब्वियसली, शिव जी ने मना कर दिया.

शिव जी ने कहा कुछ दूसरा मांगो. डोल्ला ने बोला कि मुझे अमरत्व का वरदान दे दीजिए. शिव जी ने फिर से मना कर दिया. इस बात से नाराज़ होकर डोल्ला शिव जी को लील गया. शिव जी उसके मुंह में ही अपना आकार बड़ा करना शुरू किया. शिव जी ने अपना आकार इतना बड़ा कर लिया कि डोल्ला ब्लास्ट हो गया और वो बाहर आ गए. शिव जी ने डोल्ला की खाल से ढोलक बनाकर अपने भक्तों के एक ग्रुप 'हालु कुरूबा' को दे दिया. उसके बाद से हालु कुरूबा नाम के ट्राइब ने ये त्योहार मनाना शुरू कर दिया. जो कि अब तक चल रहा है.  

फिल्म ‘डोल्लु’ के एक सीन में परफॉर्म करता एक डोल्लु कुनिथा ग्रुप. 

खैर, अब फिल्म की बात. 'डोल्लु' की कहानी ऐसे ही एक डोल्लु कुनिथा ग्रुप के बारे में है, जो बिखर जाता है. क्योंकि उसे एक पुरानी प्रथा को फॉलो करने वाला ग्रुप माना जाने लगता है. डांस ग्रुप के बिखरने की वजह से उस साल वो डांस वाला इवेंट नहीं हो पाता. ऐसे में फिल्म का नायक इस डांस प्रथा को दोबारा शुरू करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देता है. ये फिल्म इसी बारे में बात करती है.

'डोल्लु' में बहुत सारे डांस परफॉरमेंस वाले सीक्वेंस भी है, जिसके लिए प्रोफेशनल लोगों की ज़रूरत थी. इसलिए फिल्म में एक्टर्स के साथ बहुत सारे डोल्लु कुनिथा परफॉर्मर्स ने भी काम किया.

# 'डोल्लु' के मेकर्स का इस झोल-झमाटे पर क्या कहना है?

नेशनल अवॉर्ड जीतने के बाद फिल्म के डायरेक्टर सागर पुराणिक ने इस गड़बड़झाले पर टाइम्स से बात की. इस बातचीत में सागर ने कहा-

''इस अवॉर्ड में ऑडियोग्राफर की एंट्री के लिए तीन सेग्मेंट में नॉमिनेशन ज़रूरी थे- लोकेशन साउंड रिकॉर्डिस्ट, साउंड इंजीनियर और री-रिकॉर्डिस्ट. उसी हिसाब से हमने अपने तीन इंजीनियरों को नॉमिनेट कर दिया. एंट्री फॉर्म में स्पेसिफिक तौर पर कहीं भी ये नहीं पूछा गया कि वो साउंडट्रैक सिंक है या डब्ड. इसलिए हमने नहीं बताया.''

जैसा कि हमने पहले बताया डबिंग महंगा प्रोसेस है. रिपोर्ट्स के मुताबिक 'डोल्लु' में ढोलक वाले जितने हिस्से थे, उनकी आवाज़ को डब करने में 15 लाख से ऊपर का खर्च आता. रीजनल फिल्मों का बजट वैसे भी ज़्यादा नहीं होता है. उसमें भी जब सब्जेक्ट थोड़ा हटकर होता है, तो फाइनेंस की समस्या आती है. इसलिए मेकर्स इन फिल्मों को कम से कम बजट में बनाते हैं. इसलिए डबिंग की बजाय फिल्म में सिंक साउंड का ही इस्तेमाल किया जाता है. खैर, 'डोल्लु' के डायरेक्टर सागर अपनी बात आगे बढ़ाते हए कहते हैं-

''हमें नहीं पता कि डायरेक्टोरेट ऑफ फिल्म फेस्टिवल्स, इंडिया (DFF, India) के लोगों ने क्या सोचकर Location sound recordist (for sync sound films only) का अवॉर्ड अनाउंस कर दिया. DFF को अवॉर्ड लिस्ट में इस क्लॉज़ के जोड़े जाने को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए. हमने कभी ये दावा नहीं किया कि हमारी फिल्म सिंक रिकॉर्डेड साउंडट्रैक है. ये तकनीकी गलती है. हमने इस मामले पर स्पष्टीकरण की मांग की है.''   

'डोल्लु' अवॉर्ड कॉन्ट्रोवर्सी पर नेशनल फिल्म अवॉर्ड ज्यूरी ने अब तक कुछ नहीं कहा है.

 

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