फिल्म रिव्यू- GOAT
कैसी है Thalapathy Vijay के करियर की सेकंड लास्ट फिल्म GOAT (The Greatest of All Time), ये रिव्यू पढ़कर जानिए.
फिल्म- GOAT (The Greatest of All Time)
डायरेक्टर- वेंकट प्रभु
एक्टर्स- थलपति विजय, स्नेहा, मोहन, जयराम, प्रभु देवा
रेटिंग- 2.5 स्टार
***Spoiler Ahead***
TVF ने कुछ सालों पहले सलमान खान पर एक स्पूफ वीडियो बनाया था. इसके माध्यम से उनके स्टारडम और कॉमर्शियल सिनेमा पर तंज कसा गया था. सलमान की फिल्म का डायरेक्टर हताश-निराश बैठा है कि भाई के सामने विलन किसे लिया जाए. क्योंकि सलमान इतने बड़े सुपरस्टार हैं (उस वक्त थे) कि उनके सामने कोई भी विलन बौना लगता है. वो अनेकों कोशिशों करता है. ढेरों जुगत लगाता है. मगर नतीजा सिफर. तभी उसके जेहन में एक तिलिस्मी आइडिया कौंधता है. गब्बर को सिर्फ एक आदमी हरा सकता है. खुद गब्बर!
इससे याद आया, तमिल फिल्मों के सुपरस्टार थलपति विजय की नई फिल्म आई है GOAT. यानी द ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम. ये फिल्म का टाइटल कम विजय को समर्पित टैग ज़्यादा लगता है. दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में आज भी एक्टर्स को देवताओं की तरह पूजा जाता है. उन्हें फूलों की मालाएं पहनाई जाती हैं. दूध से स्नानादि करवाया जाता है. मगर ये सब करना आम जनता को शोभा देता है. क्योंकि वो लोग फिल्ममेकिंग के प्रोसेस को करीब से नहीं जानते. बहुत सारे लोगों को आज भी ऐसा लगता है कि एक्टर्स जो स्क्रीन पर कर रहे हैं, वो वास्तव में वैसे ही हैं. मगर जब कोई फिल्ममेकर भी उन्हीं फैन्स की तरह से सोचने लगता है, तो सिनेमा नाम की विधा की गरिमा भंग होती है.
ख़ैर, हम GOAT की बात कर रहे थे. इस फिल्म में जॉसफ विजय उर्फ 'थलपति' ने गांधी नाम के एक एजेंट का रोल किया है. जो कि स्पेशल एंटी-टेररिज़्म स्क्वॉड (SATS) का हिस्सा है. फिल्म बिना समय गंवाए, ओपनिंग सीक्वेंस से ही अपना काम शुरू कर देती है. गांधी और उसकी टीम राजीव मेनन नाम के एक क्रिमिनल से लड़ रहे हैं. ज़ाहिर है कि इस सीन का अंत कैसे होना है. मेनन परिवार समेत मारा जाता है. मगर कई सालों बाद वो SATS की टीम से बदला लेने के लिए लौटता है. अपने बदले की आग में वो गांधी की फैमिली को भी इनवॉल्व कर लेता है. इसके बाद क्या होएगा, ये अक्खा पब्लिक को मालूम है!
फिल्म में घटने से पहले जब कहानी और उसका अंत सबको मालूम पड़ जाता है, तो उसे फिल्म का प्रेडिक्टेबल होना कहते हैं. इससे दर्शक के मन में एक भाव पैदा होता है, जिसे बोल-चाल की भाषा में नीरसता कहा जाता है. ऐसा नहीं है कि GOAT में एक अच्छी एक्शन-रिवेंज थ्रिलर बनने की गुंजाइश नहीं थी. मगर उसे विजय के फैन्स को लुभाने के एवज में कुर्बान कर दिया जाता है. मसलन, गांधी के बेटे जीवन का बचपन वाला हिस्सा. इसे अगर अच्छे से एक्सप्लोर किया जाता है, तो वो फिल्म को भावनात्मक रूप से मजबूत करती है. जिससे दर्शक जुड़ाव महसूस कर पाते. मगर उसे यूं ही ज़ाया कर दिया जाता है. दोबारा कहीं उसका ज़िक्र भी नहीं होता है. वो एक सब-प्लॉट का सब-प्लॉट बनकर रह जाता है.
कमोबेश यही चीज़ फिल्म के विलन मेनन के किरदार के साथ भी की जाती है. मेनन अपने परिवार की मौत का बदला लेना चाहता है. मगर उसने जैसे उस बदले को प्लान किया और जैसे अंजाम दिया, उसकी गंभीरता में जमीन-आसमान का फर्क है. मेनन को देखकर आपको कभी ऐसा नहीं लगता है कि ये आदमी इतना क्रूर हो सकता है. अमूमन हम फिल्मों में देखते हैं कि किरदारों को डीह्यूमनाइज़ किया जाता है. मगर उसके लिए पहले आपको उसे ह्यूमन मानना होगा. मगर ये फिल्म राजीव को कभी इतना क्रेडिट ही नहीं देती. और अंतत: उसे निरा बेवकूफ साबित कर दिया जाता है. इस किस्म की विरोधाभासी राइटिंग फिल्म की कलई खोलती चलती जाती है.
ये फिल्म पूरी तरह से थलपति विजय पर केंद्रित है. जिसे मेकर्स किसी भी और एक्टर के साथ शेयर नहीं करना चाहते. इस फिल्म में विजय ने पिता गांधी और बेटे जीवन का डबल रोल किया है. फिल्म का फर्स्ट हाफ सिर्फ गांधी और उसकी फैमिली के बारे में है. मेकर्स कहानी को स्थापित करने में ज़्यादा समय नहीं लेते. दूसरे हाफ से उम्मीदें जगती हैं. लगता है कि कुछ ऐसा देखेंगे, जो शायद पहले नहीं देखा. मगर इसके बाद फिल्म किसी और ही रास्ते चली जाती है. कभी कमल हासन को ट्रिब्यूट दिया जा रहा है. कहीं रजनीकांत का बैकग्राउंड म्यूज़िक इस्तेमाल हो रहा है. सूर्या की 'कंगुवा' की बात हो रही है. विजय, शाहरुख खान की तरह बाहें फैला रहे हैं. कभी विजय की पिछली फिल्में 'थुपाक्की' और 'बीस्ट' के कॉलबैक रेफरेंस आ रहे हैं. मगर क्लाइमैक्स में तो फिल्म हद ही कर देती है. अगर आप विजय के फैन हैं, तो सब आपको लुभावना लगेगा. मगर आप एक कायदे का सिनेमा देखने आए हैं, तो ये सारे भटकाव आपको थका देते हैं.
फैन सर्विस तब तक ठीक लगती है, जब तक वो फिल्म की कहानी और उसके फ्लो को प्रभावित न कर रही हो. मगर यहां तो कहानी ही नेपथ्य में चली जाती है. GOAT को वेंकट प्रभु ने डायरेक्ट किया है. जिन्होंने सुपरस्टार अजीत कुमार को लेकर 'मनकथा' नाम की ब्लॉकबस्टर फिल्म बनाई थी. ऐसा लगता है कि वेंकट खुद विजय के औरा और स्टारडम से इतने प्रभावित हैं कि वो अपने क्राफ्ट भूल गए हैं. वो बस किसी भी तरह से विजय के फैन्स को खुश करना चाहते हैं. इसकी एक वजह ये भी है कि GOAT विजय के करियर की सेकंड लास्ट फिल्म है. इसके बाद वो एक्टिंग छोड़कर फुल टाइम राजनीति में जाने वाले हैं. इसलिए विजय नाम का जो फेनोमेना है, उसे सेलीब्रेट किया जा रहा है.
GOAT में मात्र दो ऐसी चीज़ें हैं, जिसने सिनेमा गोइंग दर्शक के नाते मुझे आकर्षित किया. अव्वल, तो जीवन के किरदार में विजय की परफॉरमेंस. कई बार आप हैरान होते हैं कि स्टार होना, एक्टर होने पर इतना हावी हो जाता कि आप वही नहीं कर पाते, जो करने के लिए आप सिनेमा में आए थे. एक्टिंग. हालांकि अगर आप 'हीरो' होने का मोह त्याग दें, तो परफॉरमेंस का स्कोप अपने आप कई बिलांग ऊपर चला जाता है. ये आप GOAT में विजय के ही दोनों रोल्स को देखकर समझ सकते हैं. जीवन में एक सनकीपन है. वो साइकोटिक और नॉर्मल्सी के बीच कहीं फंसा हुआ है. उसका दोनों तरफ झूलना फिल्म की तमाम खामियों की भारपाई करने की कोशिश करता है. मगर वो नाकाफी साबित होती हैं.
दूसरी चीज़, जिसे देखकर मुझे मज़ा आया है, वो गाने से पहले उसके बारे में बताना. फिल्म के एक सीन में जीवन की प्रेमिका श्रीनिधी कहती है, 'तुमने इसीलिए मुझे बुलाया था.'. इसके जवाब में जीवन कहता है, 'नहीं. सॉन्ग के लिए.' उसके बाद गाना शुरू हो जाता है. इस तरह के क्वर्क्स ताज़गी भरते हैं. हालांकि अगर आप उस डायलॉग को सुनें या उस महिला किरदार के बारे में सोचें, तो ये बेहद सेक्सिस्ट बात है. कि उसे फिल्म में सिर्फ इसलिए रखा गया है, ताकि वो हीरो की प्रेमिका बन सके. और उसके साथ कुछ गाने फिल्म में रखे जा सकें.
शेष, GOAT एक बेहद ही औसत दर्जे की फिल्म है. अगर आप जॉसफ विजय को 'थलपति' बुलाते हैं, तो आप बेहिचक इसे देखने जाइए. आपको वो सब मिलेगा, जो आपको चाहिए. मगर आप एक अच्छा सिनेमा देखना चाहते हैं, तो ये फिल्म आपके लिए नहीं है. आप खीझ, निराशा और थकान के मिले-जुले भाव से सिनेमाघर से बाहर निकलेंगे. और विजय की आखिरी फिल्म का इंतज़ार करेंगे. ताकि उसके बाद आपको इस किस्म के अनुभवों से न गुज़रना पड़े.
वीडियो: दी सिनेमा शो: थलपति विजय की GOAT देखकर ट्विटर पर लोगों ने क्या कहा?