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कहानी ऐक्टर अरुण बाली की, जिन्होंने दिलीप कुमार के सामने कांपते हुए 20 टेक देकर फिल्म ख़राब की

अरुण बाली उन रेयर कलाकारों में से रहे, जिनका अपनी आखिरी फिल्म के रिलीज़ वाले दिन देहांत हुआ.

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कायम चूर्ण वाले ऐड में और आमिर के साथ पीके में अरुण बाली
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अनुभव बाजपेयी
7 अक्तूबर 2022 (Updated: 7 अक्तूबर 2022, 16:35 IST)
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एपीजे अब्दुल कलाम लेक्चर दे रहे थे. उसी दौरान उन्हें हार्ट अटैक आया और वो दुनिया छोड़कर चले गए. कैसा संयोग है कि काम करते-करते वो इस दुनिया से गए. ऐसा ही कुछ संयोग बना एक्टर अरुण बाली के साथ. अज़ब इत्तफ़ाक है कि शुक्रवार, 7 अक्टूबर, 2022 के दिन उनकी फ़िल्म 'गुडबाय' रिलीज़ हुई और इसी दिन उनका निधन हो गया. उन्हें कुछ महीने पहले मुंबई के हीरानंदानी हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया था. वो लंबे समय से Myasthenia Gravis नाम की एक न्यूरोमस्कुलर बीमारी से जूझ रहे थे.  

अरुण बाली का आज निधन हो गया
रंगमंच से शुरू हुआ ऐक्टिंग का सफ़र

23 दिसंबर 1942 को जन्मे अरुण बाली ने कभी नहीं सोचा था कि ऐक्टिंग में भी हाथ आजमाएंगे. वो सिंगर थे. पर बड़े भाई योगेंद्र बाली पहले से ही एक अच्छे कलाकार थे. वो भी किसी तरह अभिनय की ओर मुड़ गए. 1961-62 के आसपास अरुण एक ओपेरा कर रहे थे 'सोनी महिवाल'. चूंकि जो किरदार अरुण कर रहे थे, सोनी के हसबैन्ड का, उसमें बुलंद आवाज़ चाहिए थी और उनकी आवाज़ तो शुरू से ही बुलंद थी. वो गायन में भी पारंगत थे. 6 महीने तक रिहर्सल हुई. फिर कहा गया, आ जाओ स्टेज पर. अब ऐक्टिंग करो. अरुण का ये पहला बड़ा काम था. वो स्टेज पर ऐक्टिंग के लिए गए, घबराहट में उनके पैर कांपने लगे. सामने बहुत सारी लड़कियां थीं, वो उनके सामने नर्वस हो गए. डायलॉग भूल गए. सुर ऑफ हो गए. डायरेक्टर ने डांटना शुरू किया. अरुण को बुरा लग गया. अगले दिन से उन्होंने जाना ही बंद कर दिया. उन्हें लगा कि थिएटर उनके बस की बात नहीं है.

चूंकि वो शाम में थिएटर करते थे. अब थिएटर हो गया बंद, तो वो जल्दी घर पहुंच जाया करते थे. उनके भाई ने एक दिन पूछ लिया कि आजकल बड़ी जल्दी घर आ जाते हो. अरुण ने पूरी बात बताई. बड़े भाई ने उन्हें समझाया कि कोई तुम्हें गुण दे रहा है, कुछ सिखा रहा है. वो आपको भरी महफ़िल में जूते भी मार रहा है, तो भी उसे सहो. अरुण ने बात मानी. फिर राम अवतार शर्मा और सलीमा रज़ा के पास पहुंचे. दोनों ने उन्हें जो कुछ सिखाया, वही वो ताउम्र करते चले आए. अरुण कहते हैं कि राम अवतार शर्मा और सलीमा रज़ा ने जो सिखाया, मैं वही अपने पूरे करियर निभाता रहा. 'सोनी महिवाल' ओपेरा करने के बाद उनका कॉन्फिडेंस ऐसा बढ़ा कि उस दौर में दिल्ली में हुए नौ ओपेरा में से अरुण ने आठ में काम किया.

अमिताभ बच्चन के साथ अरुण बाली दोनों ने गुडबाय में साथ काम किया है 
ऋषिकेश मुखर्जी ने एक सीटिंग में देख डाला उनका सीरियल ‘नीम का पेड़’

थिएटर में उन्होंने खूब काम किया. फिर मौका आया टेलीविजन में काम करने का. फ़िल्ममेकर लेख टंडन के सीरियल ‘दूसरा केवल’ से अरुण ने टीवी में काम करना शुरू किया. इस में शाहरुख खान भी थे. उसके बाद राही मासूम रज़ा के लिए 'नीम का पेड़' में काम किया. इसमें उनके साथ पंकज कपूर लीड रोल में थे. अरुण ने कुछ काम ऋषिकेश मुखर्जी के साथ भी किया. जब उन्हें पता चला कि अरुण बाली 'नीम का पेड़' में काम कर रहे हैं, उन्होंने अरुण से इस सीरियल की कैसेट लाने को कहा. अरुण ने छब्बीस एपिसोड की कैसेट लाकर उन्हें दी. और ऋषिकेश मुखर्जी ने एक सिटिंग में सारे एपिसोड देख डाले. फिर उनकी कॉपी बनाकर अपने पास भी रखी. जब पहली बार अरुण ऋषिकेश से मिलने गए तो उन्होंने कहा: अरे तू कहां था, मैं तो तुझे बहुत दिनों से ढूंढ़ रहा था.

थ्री इडियट्स में अरुण बाली
दिलीप साहब की डायरेक्टर के तौर पर बनी इकलौती फ़िल्म ‘कलिंगा’ में भी किया काम

दिलीप कुमार ने अपने जीवन में सिर्फ़ एक फ़िल्म डायरेक्ट की, 'कलिंगा'. इसमें जैकी श्रॉफ, अमजद खान और शिल्पा शिरोडकर मुख्य भूमिकाओं में थे. पर कुछ ऐसा हुआ कि 90 प्रतिशत बनने के बाद फ़िल्म बंद हो गई. इस फ़िल्म में अरुण बाली ने भी काम किया था. जब उन्हें पता चला कि दिलीप साहब कोई फ़िल्म बना रहे हैं, वो उनके पास काम मांगने पहुंचे. दिलीप साहब ने कहा, कोई रोल तो नहीं है. बैठो चाय पियो. थोड़ी देर बाद बोले, अच्छा एक छोटा रोल करोगे. अरुण को तो काम चाहिए था, उन्होंने हां कर दी. फिर आगे जाकर दिलीप कुमार ने उन्हें एक बड़ा रोल ऑफर कर दिया. जो वो पहले किसी और को देने का वादा कर चुके थे. अरुण ने यही कहा कि आप तो ये रोल किसी और को कमिट कर चुके हैं. दिलीप साहब ने कहा, फ़िल्म में कमिटमेंट जैसा कुछ नहीं होता. सबकुछ सूटेबलिटी होती है. अब ये रोल तुम करोगे.

दिलीप कुमार के साथ काम करने को लेकर अरुण बहुत नर्वस थे. ज़बान लड़खड़ा रही थी, पैर कांप रहे थे, पसीने छूट रहे थे. दिलीप कुमार ने ऐक्शन बोला, अरुण बाली ने जल्दी-जल्दी डायलॉग डिलीवर कर दिया. वो एक इंटरव्यू में कहते हैं, डायलॉग डिलीवरी इतनी फास्ट पेस में थी कि मुझे लगा जैसे मैंने उल्टी कर दी हो. अरुण एक और टेक लेना चाहते थे. पर उन्हें दिलीप साहब से ये कहते हुए डर भी लग रहा था. क्योंकि वो फ़िल्म रील का ज़माना था. जितनी बार टेक होते थे, उतनी बार फ़िल्म खराब हो जाती थी. डरते-घबराते अरुण दिलीप साहब के पास पहुंचे. उनसे दोबारा टेक करने की गुजारिश की. दिलीप साहब मान गए. पर टेक होते गए, ढंग की परफ़ॉर्मेंस निकलकर नहीं आ रही थी. अंत में 20 टेक के बाद वो शॉट फाइनल हुआ. अरुण कहते हैं, हर सीन के बाद मैं सहम जाता था कि अब दिलीप कुमार मुझे फटकार लगाएंगे. पर हर नए टेक के बाद वो कहते:  बेटा तू चिंता ना कर, जब तक तुझे संतुष्टि न मिले टेक करता रह. हमें लोगों को तेरा बेस्ट काम देना है.

टेलीविजन सीरियल्स में अरुण बाली
काफ़ी देर से शुरू हुआ स्क्रीन का सफ़र

अरुण 1961-62 के आसपास से ही दिल्ली में थिएटर करने लगे थे. पर कैमरे के सामने उनका पदार्पण बहुत देर से हुआ. 1989 में 'दूसरा केवल' सीरियल किया. उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 'चाणक्य' सीरियल में उनके काम को खूब पसंद किया. इसे डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने बनाया था. जब वो 'सम्राट पृथ्वीराज' बना रहे थे. उनसे अरुण ने कहा था कि अब तुम 'चाणक्य' जैसा कुछ नहीं लिख पाओगे. अरुण का मानना था कि उसका लेखन कुछ ऐसा है कि द्विवेदी जी इसे खुद पढ़ें तो उन्हें लगेगा कि ये मैंने ही लिखा है क्या? उन्होंने इसके बाद ‘स्वाभिमान’, 'कुमकुम' समेत दो दर्जन से ज़्यादा टीवी सीरियल्स में काम किया. उन्होंने बहुत से टीवीसी में भी काम किया. आपको उनके शायद कोई और ऐड न याद हों, पर कायमचूर्ण वाले ऋषि के रूप में अरुण आपको ज़रूर याद होंगे. 1991 में आई 'सौगंध' से उनका बड़े परदे पर डेब्यू हुआ. फिर 40 से ज़्यादा फिल्मों में काम किया. 'हे राम' में उनके रोल सोहरावर्दी को खूब सराहा गया. वो कई बड़ी फिल्मों जैसे: 'राजू बन गया जेंटलमैन', 'फूल और अंगारे', 'सत्या', 'लगे रहो मुन्नाभाई', '3 इडियट्स', 'पीके', और 'लाल सिंह चड्ढा' में नज़र आए. उनकी आखिरी फ़िल्म 'गुडबाय' रही, जो 7 अक्टूबर को रिलीज़ हुई. उसी दिन, जिस दिन वो हम सबको 'गुडबाय' करके चले गये.

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