GI टैग वाली इन मिठाइयों में से आप ने कितने का स्वाद चखा है?
फेमस जगहों के लड्डू, पेड़े, रसगुल्ले को मिल चुका है GI टैग.
झारखंड का देवघर शहर. हिंदुओं का अहम तीर्थस्थल 'बाबाधाम या वैद्यनाथ मंदिर' यहां है. देवघर मंदिरों का शहर कहलाता है. इसके लिए जाना भी जाता है. लेकिन इसके अलावा एक और वजह से लोग इसे पहचानते हैं, वो वजह है यहां का पेड़ा. बाबाधाम के प्रसाद के तौर पर देवघर का पेड़ा बड़ा फेमस है. इसे GI टैग मिल सकता है. इसके लिए प्रयास शुरू हो गए हैं.
क्या होता है GI टैग?
पूरा नाम- जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग. (Geographical Indicator). हिंदी में- भौगोलिक संकेत टैग.
ये टैग ऐसे प्रोडक्ट्स को मिलता है, जिनकी अपनी एक अलग भौगोलिक पहचान हो. एक निश्चित भौगोलिक उत्पत्ति हो. और उस निश्चित इलाके से आने की वजह से उनमें कुछ खास विशेषता या गुण हों. ऐसे प्रोडक्ट्स को GI टैग मिलता है.
GI की आधिकारिक साइट पर एक लिस्ट डली है, जिसके मुताबिक, 300 से ज्यादा प्रोडक्ट्स को इंडिया में GI टैग दिया जा चुका है. इनमें खेती, हैंडीक्राफ्ट, खाने का सामान और अन्य खास प्रोडक्ट शामिल हैं. देवघर के पेड़े को टैग कब मिलेगा, कुछ पता नहीं, तब तक ये जान लें कि अभी तक कुल 18 खाने के सामान को ये टैग मिल चुका है. ये रही उनकी लिस्ट-
1. धारवाड़ पेड़ा
कर्नाटक का बड़ा फेमस पेड़ा है.धारवाड़ ज़िले पर इसका नाम पड़ा है. इतिहास 175 बरस पुराना है. 'ठाकुर पेड़ा डॉट कॉम' के मुताबिक, 19वीं सदी की शुरुआत में एक ठाकुर परिवार उत्तर प्रदेश के उन्नाव से धारवाड़ शिफ्ट हुआ था. परिवार ने पैसे कमाने के लिए पेड़ा बनाना शुरू किया. देखते ही देखते ये भयंकर फेमस हो गया. शुरुआत में लोगों ने इसे 'ठाकुर पेड़े' के नाम से जाना. फिर इसका नाम 'लाइन बाज़ार पेड़ा' पड़ा, क्योंकि इसी स्ट्रीट में पेड़े की दुकान थी. थोड़ा और समय बीतने के बाद शहर के नाम पर पेड़े का नाम पड़ गया.
इसे अप्रैल 2008 से मार्च 2009 के बीच GI टैग मिला.2. तिरुपति लड्डू
आंध्र प्रदेश के तिरुपति के फेमस तिरुमाला मंदिर में ये लड्डू प्रसाद के तौर पर दिया जाता है. मंदिर जितना फेमस और पुराना है, लड्डू भी उतना फेमस और पुराना है. 'द क्विंट' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त 1715 से ये लड्डू मंदिर में प्रसाद के तौर पर दिया जा रहा है. लड्डू मंदिर के अंदर ही बनता है. वहीं दिल्ली और कुछ राज्यों की राजधानियों में भी खास मौकों पर ये लडडू बनाया जाता है.
इसे अप्रैल 2009-मार्च 2010 के बीच GI टैग दिया गया.3. बिकानेरी भुजिया
राजस्थान का बिकानेर शहर इसी भुजिया के लिए फेमस है. 1877 में, महाराजा श्री दुंगर सिंह के शासन में पहली बार ये भुजिया बनाया गया था. तब से आज तक ये बीकानेर की पहचान बना हुआ है. ये एक तरह का क्रिस्पी और चटपटा नाश्ता जैसा है. बेसन से इसे बनाया जाता है. इन डेढ़ सौ साल में इसकी कई फ्लेवर ने भी जन्म लिया, लेकिन कोशिश यही रही कि बेसिक नेचर न खोए. बीते कई बरसों में कइयों ने इसकी कॉपी करने की भी कोशिश की, लेकिन GI टैग मिलने के बाद बीकानेरी भुजिया की असल पहचान बच गई.
इसे सितंबर 2010 में GI टैग मिला था.4. हैदराबादी हलीम
हलीम बेसिकली अरबी पकवान है. ये एक तरह से मीट, मसूर की दाल और गेहूं का खिचड़ीनुमा मिश्रण है. निज़ाम शासन के दौरान हलीम को हैदराबाद में लाया गया, फिर समय के हिसाब से थोड़ा भारतीयनुमा बदलाव हुआ. और तैयार हुआ हैदराबादी हलीम. 19वीं सदी के दौरान ये हैदराबाद के लोगों के बीच में बहुत पॉपुलर हुआ था. शादी हो या कोई भी पार्टी, ज्यादातर हलीम के बिना पूरी नहीं होती.
इस डिश को 2010 में GI टैग मिला था.5. जयनागरेर मोआ
पश्चिम बंगाल की मौसमी मिठाई है. खजूर के गुड़ और कनकचुर चावल से बनती है. ज्यादातर ठंड में. क्योंकि खजूर गुड़ और कनकचुर चावल ठंड में ही मिलते हैं. इस मिठाई की पैदाइश पश्चिम बंगाल के जयनगर शहर से हुई थी. और अब ये राज्य के हर हिस्सों में बनती है.
साल 2015 में इसे GI टैग मिला था.6. रतलामी सेव
मध्य प्रदेश के रतलाम से इस सेव की पैदाइश मानी जाती है. इंदौर, उज्जैन में भी काफी पॉपुलर है. बेसन में हल्दी, मिर्च जैसे कुछ मसाले डालकर इसे बनाया जाता है. तेल में डीप फ्राई किया जाता है. साइज़ में ये सेव काफी मोटे होते हैं. कई जगहों पर इस सेव की सब्ज़ी भी बनती है. मध्य प्रदेश के लगभग हर चाट-गुपचुप-भेल पुरी की ठेलिया पर ये आपको दिख जाएगा.
इसे 2014-15 में GI टैग दिया गया.7. बंदार लड्डू
आंध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले के माचिलिपटनम इलाके का ये लड्डू पूरे देश में फेमस है. 'द हिंदू' के मुताबिक, वहां करीब 250 परिवार इन लड्डुओं को बनाने का बिज़नेस करते हैं. बंगाल बेसन, गुड़ की चाशनी और घी इस लड्डू को बनाने की बुनियादी सामग्री है. करीब 150 बरस पुराना इतिहास है इन लड्डुओं का. 1857 में राजस्थान के राजपूत माचिलिपटनम आए थे, स्थानीय लोगों ने उनसे ये लड्डू बनाने का तरीका सीखा था.
मई 2017 में बंदार लड्डुओं को GI टैग मिला.8. बर्धमान सीताभोग
पश्चिम बंगाल के बर्धमान का फेमस मीठा है. दिखने में सफेद पके चावल या सेवई की तरह लगती है. बनती छेने, चावल के आटे और शक्कर की चाशनी से है. बनने के बाद इसमें छोटे-छोटे गुलाब जामुन एड कर दिए जाते हैं. इतिहास की बात करें तो सीताभोग को पहली बार 19वीं सदी में बनाया गया था. उसके बाद जब लॉर्ड कर्ज़न ने 20वीं सदी में इसे खाया, तो पूरे इंडिया में इस मिठाई की तारीफ हुई.
इसे 2017 में GI टैग मिला.9. वर्धमान मिहिदाना
ये भी बर्धमान की फेमस मिठाई है. छोटे-छोटे दानों की मीठी बूंदी होती है, उसमें साथ में या तो छोटे-छोटे गुलाब जामुन डाल दिए जाते हैं, या फिर किशमिश. ये बेसन और शक्कर की चाशनी से बनाए जाते हैं. सीताभोग और मिहिदाना, दोनों को एक ही व्यक्ति ने बनाया है. और इसे भी 20वीं सदी में तब देशभर में पहचान मिली, जब लॉर्ड कर्ज़न ने इसे चखा.
GI टैग मिला साल 2017 में.10. बांग्लार रसगुल्ला और ओडिशा रसगुल्ला
दोनों राज्य दावा करते हैं कि रसगुल्ला उनके यहां सबसे पहले बनाया गया. पहले तो जान लें कि ये छेने की मिठाई है, चाशनी में डूबी होती है. खाने में बड़ी स्वाद लगती है.
बांग्लार रसगुल्ला की कहानी- बांग्लार यानी बंगाल. बंगाल का कहना है कि ये रसगुल्ला उनके यहां 19वीं सदी में पहली बार बनाया गया. दो थ्योरी चलती है, पहली ये कि इसे नोबिन चंद्र दास ने पहली बार बनाया. दूसरी ये कि बनाया किसी और ने लेकिन पॉपुलर किया नोबिन ने.
ओडिशा रसगुल्ला की कहानी- ओडिशा का कहना है कि उनके यहां 12वीं सदी से रसगुल्ला बनाया जा रहा है. फेमस मंदिर जगन्नाथ पुरी में. जहां रथ यात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ अपनी रूठी हुई पत्नी देवी लक्ष्मी को मनाने के लिए उन्हें रसगुल्ला खिलाते हैं.
दोनों राज्यों में रसगुल्ला की पैदाइश को लेकर काफी लंबे समय तक झगड़ा चला. दोनों ने GI टैग के लिए अप्लाई किया. 2017 में बांग्लार रसगुल्ला को ये टैग मिला. 2019 में ओडिशा रसगुल्ला को मिला. ये कहते हुए दोनों को दिया गया कि दोनों रसगुल्लों में रंग, स्वाद, टेक्सचर चाशनी में अंतर है.11. कड़कनाथ ब्लैक चिकन मीट
मध्य प्रदेश के झाबुआ के काले मुर्गे, जिन्हें कड़कनाथ कहते हैं. उनका मीट भी बड़ा फेमस है. मुर्गों की ये वैरायटी काफी खास है और कम जगहों पर ही मिलती है. झाबुआ में कई सौ साल पहले से कड़कनाथ मुर्गे पाए जाते हैं. 90 के दशक में कड़कनाथ मुर्गे लुप्त से हो गए थे. उनका वज़न नहीं बढ़ता था और जल्दी मर जाते थे. इन्हें बचाने के लिए सरकार ने सर्वे कराया, तो पता चला कि मुर्गों को ठीक से खाना और टीकाकरण ठीक से नहीं मिल रहा. उसके बाद उन्हें बचाने के लिए सरकार ने काफी मेहनत की. कृषि विज्ञान केंद्र में मुर्गों के चूज़ों और मुर्गियों को पालना शुरू किया गया. टीके लगाए गए, जीने के लिए सभी ज़रूरी सुविधाएं दी गईं, उसके बाद अब झाबुआ के ये कड़कनाथ मुर्गे चिकन मीट की दुनिया में राज कर रहे हैं.
GI टैग के लिए छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के कड़कनाथ मुर्गे भी रेस में थे, लेकिन अगस्त 2018 में झाबुआ वाले जीते.12. सिलाओ खाजा
बिहार के नालंदा की सिलाओ सिटी. यहां का खाजा तो भई पूछिए मत, हर जगह इसकी बात होती है. मैदा से इसे बनाया जाता है. दिखता पेटिज़ की तरह है. वैसे सिलाओ का मीठा खाजा फेमस है, लेकिन वहां नमकीन भी मिलता है. TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटिश आर्कियोलॉजिस्ट जे.डी. बेगलार 1872-73 के दौरान सिलाओ गए थे, जहां उन्होंने मीठा खाजा चखा था. उन्होंने फिर लिखा था कि ये खाजा राजा विक्रमादित्य के ज़माने से बनाया जा रहा है. राजा विक्रमादित्य का ज़माना 102 BC वाला था. वहीं ये भी कहा जाता है कि भगवान बुद्ध जब राजगीर से नालंदा जा रहे थे, तो सिलाओ के गुज़रते वक्त उन्हें खाजा ऑफर किया गया था. यानी इस मिठाई की पैदाइश का ठीक-ठाक समय तो पता नहीं है, लेकिन इतना पता है कि भयंकर पुरानी है.
इसे दिसंबर 2018 में GI टैग मिला.13. पलानी पंचामित्रम
तमिलनाडु के दिंदिगुल ज़िले में पलानी नाम की एक जगह है. यहां धन्दयुतपनी (Dhandayuthapani) स्वामी मंदिर बड़ा फेमस है. यहां प्रसाद के तौर पर जो पंचामृत दिया जाता है, वही पलानी पंचामित्रम है. ये न केवल मंदिर में मिलता है, बल्कि पूरे पलानी सिटी के लोग इसे बनाते हैं. सदियों से इसे बनाया जा रहा है. केला, गुड़, गाय का घी, शहद और इलायची, इन पांच तत्वों से इसे बनाते हैं. इसमें खजूर भी बाद में शामिल किया जाता है.
पलानी पंचामित्रम को अगस्त 2019 में GI टैग मिला.14. श्रीविलिपुथुर पालकोवा
तमिलनाडु के विरुधुनगर ज़िले में श्रीविलिपुथुर सिटी है. यहीं की मिठाई 'पालकोवा' बड़ी फेमस है. सिटी के नाम पर ही. गाय के दूध और चीनी से इसे बनाया जाता है. दूध को बहुत-बहुत देर तक उबाला जाता है, जब तक कि वो एक पेस्ट की तरह न बन जाए. TOI की रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा कहा जाता है कि पालकोवा बनाने की रेसिपी नॉर्थ इंडिया से श्रीविलिपुथुर पहुंची थी, लेकिन श्रीविलिपुथुर में मिलने वाला दूध थोड़ा ज्यादा मीठा था, इस वजह से वहां का पालकोवा ज्यादा फेमस हुआ.
इसे सितंबर 2019 में GI टैग मिला.15. कोविलपट्टी कडलई मिठाई
तमिलनाडु के तूतूकुड़ी ज़िले की सिटी कोविलपट्टी. यहां की कडलई मिठाई बड़ी फेमस है, वैसे तो कोविलपट्टी के आस-पास वाले इलाकों में भी इसे बनाया जाता है, लेकिन ज्यादा नाम कोविलपट्टी कडलई का है. गुड़ और मूंगफली का इस्तेमाल करके इसे बनाया जाता है. 'द हिंदू' की रिपोर्ट के मुताबिक, कई दशकों से इसे बनाया जा रहा है. पहले खजूर के गुड़ का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन आज़ादी के कुछ समय पहले से गन्ने का गुड़ इस्तेमाल किया जाने लगा. वैसे और जगहों पर, खासतौर पर उत्तर भारत में इस मिठाई को मूंगपट्टी या गुड़पट्टी कहा जाता है.
इसे अप्रैल 2020 में GI टैग मिला.दो इटली वाले मेहमान
इन सबके अलावा दो इटेलियन डिश को भी GI टैग दिया गया है. एक है- प्रोशूटो दी पार्मा (Prosciutto di Parma). दूसरा है- असियागो (Asiago).
प्रोशूटो दी पार्मा- इटली के पार्मा शहर में बनने वाला फेमस हैम है. हैम यानी सुअर के पैर के हिस्से वाला मांस.
असियागो- इटली में बनने वाला खास चीज़ है. गाय के दूध से ये बनता है. वक्त के साथ इसका टेक्स्टर भी बदलता रहता है. तो ये हो गए 18 खाने वाले सामान, जिन्हें GI टैग मिला हुआ है.इसे भी पढ़ें- किसी खास प्रॉडक्ट को मिलने वाला GI Tag क्या होता है, इसका फायदा क्या है?
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