थलपति विजय यानी जोसफ विजय की अगली फिल्म 'मास्टर' रिलीज़ हो चुकी है. 'कैथी' फेमलोकेश कनगराज डायरेक्टेड इस फिल्म का हिंदी वर्ज़न 14 जनवरी से सिनेमाघरों में देखाजा सकेगा. मगर हमने 'पैरासाइट' वाले बॉन्ग जून हो की बात मानकर इस फिल्म के ओरिजिनलयानी तमिल वर्ज़न को सब-टाइटल्स के साथ थिएटर में देखा है. मास्टर देखने के बादहमें क्या लगा, ये बताने हम आपके सामने आ गए हैं. जिसे शास्त्रों में फिल्म रिव्यूकहा गया है.# 'मास्टर' की इतनी चर्चा क्यों हैं?सबसे बड़ा सवाल ये कि फिल्म मास्टर इतनी चर्चा में क्यों हैं? इसके पीछे दो-तीनवजहें हैं. पहली वजह ये कि विजय की पिछली फिल्में 'मरसल', 'सरकार' और 'बिगिल'दुनियाभर में खूब देखी गई हैं. खूब देखे जाने का सीधा कनेक्शन बॉक्स ऑफिस नंबर्स औरसुपरस्टारडम से है. विजय के फैंस उनकी फिल्मों की रिलीज़ को फेस्टिवल की तरहसेलीब्रेट करते हैं. दूसरी वजह ये कि जब 'मास्टर' की शूटिंग चल रही थी, तब इनकमटैक्स डिपार्टमेंट, विजय को फिल्म के सेट से उठाकर पूछताछ के लिए ले गया था. इसचीज़ ने मास्टर को एक्सट्रा माइलेज दी. अब आखिरी और सबसे ज़रूर वजह जान लीजिए.कोरोना वायरस और लॉकडाउन के बाद किसी सुपरस्टार की पैन-इंडिया लेवल पर रिलीज़ होनेवाली 'मास्टर' पहली फिल्म है. इस फिल्म पर सिर्फ दर्शकों की ही नहीं पूरे देश कीफिल्म इंडस्ट्री की निगाहें हैं. सबको ये जानना है कि पब्लिक अपने पसंदीदा स्टार कीफिल्म देखने के लिए वायरस और इन्फेक्शन वाले दौर में भी थिएटर में जाने को तैयार हैया नहीं. टिकट खिड़की पर 'मास्टर' की परफॉरमेंस ये तय करेगी कि हमें लंबे समय सेअटकी बड़ी फिल्में थिएटर्स में जल्द देखने को मिलेंगी या और इंतज़ार करना पड़ेगा.# मास्टर की कहानी क्या है?चलिए अब रिव्यू पर आते हैं. इसकी शुरुआत हम करेंगे 'मास्टर' की ब्रीफ कहानी के साथ.कुछ गुंडे लोग भवानी नाम के एक टीनएजर लड़के की फैमिली को मार देते हैं. भवानी कोफर्जी मामलों में फंसाकर रिफॉर्मेशन होम भेज दिया जाता है. वहां भी उसके साथ बुराबर्ताव होता है. उसे खाना नहीं दिया जाता. सोने नहीं दिया जाता. साथ ही नियमित तौरपर पीटा जाता. फाइनली वो एक दिन वहां से भाग निकलता है. मगर वो उसी रिफॉर्मेशन होमको अपना गढ़ और वहां रहने वालों को अपना शागिर्द बना लेता है. भवानी दिखावे के लिएतो मीट का बिज़नेस करता है मगर उसके हाथ तमाम गलत धंधों में हैं. खुद को इन जुर्मोंकी सज़ा से बचाने के लिए वो इन बच्चों को इस्तेमाल करता है.थलापति विजय हमेशा की तरह पूरे स्वैग में हैं. (फोटो-ट्रेलर)कट टु चेन्नई का एक कॉलेज. यहां JD नाम का प्रोफेसर है. दिन रात शराब के नशे मेंडूबा रहता है. और स्टाइल के साथ-साथ लोगों को भी मारता है. ज़ाहिर तौर पर वो ये सबकॉलेज और स्टुडेंट्स की बेहतरी के लिए करता है. कॉलेज मैनेजमेंट किसी तरह से उससेपीछा छुड़ाना चाहती है. मगर स्टुडेंट्स में उसका खूब भौकाल है. चेन ऑफ इवेंट्स केबाद JD को भवानी के गढ़ यानी रिफॉर्मेंशन होम में तीन महीने के लिए मास्टर बनाकरभेज दिया जाता है. वहां रहने वाले बच्चे भवानी के लिए जान भी देने को तैयार रहतेहैं. पहले तो JD इसे अपनी नौकरी से मिला ब्रेक मानकर एंजॉय करता है. मगर दो बच्चोंकी मौत उसके भीतर का मास्टर जगा देती है. अब कहानी ये है कि भवानी के ट्रेन्ड किएगुर्गों को JD कैसे उसके चंगुल से आज़ाद करवाता है. और उन्हें ये अहसास दिलाता हैकि भवानी अपने फायदे के लिए उनका इस्तेमाल कर रहा है.# विजय VS विजयफिल्म में मास्टर यानी JD का रोल किया है थलपति विजय ने. और भवानी के रोल में दिखाईदिए हैं विजय सेतुपति. बेसिकली ये फिल्म इसी क्लैश ऑफ टाइटन्स के बारे में है. विजयJD के कैरेक्टर में खूब सारा स्वैग और स्टाइल लेकर आते हैं. ये चीज़ उनकीपर्सनैलिटी पर खूब जंचती है. आपको सिनेमाघरों में तालियों और सीटी की आवाज़ सुनकरये बात आसानी से समझ आ जाएगी. मगर वो फिल्म के इमोशनल सीन्स मे बिलकुल डेप्थ नहींला पाते. कई बार तो उनकी आंखों से गिरते आंसू देखकर लगता है कि ये आदमी रो किस परबात पर रहा है. मगर तीन घंटे की फिल्म में हम इन कुछ सेकंड्स को आसानी सेनज़रअंदाज़ करके आगे बढ़ सकते हैं.दूसरी ओर भवानी के रोल में हैं विजय सेतुपति. भवानी के टीनएज वाला रोल महेंद्रन नेनिभाया है. महेंद्रन ने भवानी को बहुत गंभीर रखा था. मगर विजय के सीन में आते ही वोगंभीरता डाइल्यूट हो जाती है. सीरियसनेस है मगर उसे चेहरे पर दिखाने का लोड नहींलिया गया है. विजय, भवानी को कोल्ड ब्लडेड बना देते हैं. उन्हें देखकर आपको डर भीलगता है और मज़ा भी आता है. मगर आप इस बात से इन्कार नहीं कर पाएंगे कि ये विजयसेतुपति के निभाए सबसे कमज़ोर किरदारों में से है. बावजूद इसके फिल्म का सबसे बड़ाटेकअवे उनकी परफॉरमेंस ही है. आपको लगातार JD और भवानी के आमने-सामने आने काइंतज़ार रहता है. मगर ये चीज़ बिलकुल ही फिल्म के आखिरी हिस्से में होती है. औरबड़े ही कम समय के लिए. फिल्म खत्म होने के बाद आपको मलाल रह जाता है कि काश दोनोंविजय को एक साथ कुछ और सीन्स में देखने को मिलता.ये रोल विजय सेतुपति के कैलिबर से थोड़ा कमज़ोर ही है. (फोटो-ट्रेलर)बाकी फिल्म में मालविका मोहनन, एंड्रिया जेरेमी, शांतनु भाग्यराज और अर्जुन दासजैसे एक्टर्स भी नज़र आते हैं. मगर दिक्कत ये है कि ये एक्टर्स सिर्फ नज़र ही आतेहैं. फिल्म में इनके करने के लिए कुछ खास बचता नहीं है. सबसे ज़्यादा निराशा होतीहै फिल्म की लीडिंग लेडी मालविका को देखकर. वो फिल्म के चार-पांच गैर-ज़रूरी सीन्समें दिखाई देती हैं. अगर मास्टर से उनका किरदार निकाल दें, तो ये चीज़ फिल्म केफेवर में काम कर जाएगी. इससे फिल्म की लंबाई थोड़ी कम हो जाएगी.# काश ये फिल्म भी होती 'कुट्टी' स्टोरी!'मास्टर' जब शुरू होती है, तब से लेकर आखिर तक फिल्म में एक ट्यून बैकग्राउंड मेंचलता है. उसके लिरिक्स अंग्रेज़ी में है- दे कॉल मी मास्टर. वो सुपरफन ट्यून है. वोअकेली धुन विजय का पूरा पर्सोना कैरी करती है. मैं इसे लिखने से पहले वो धुन ढूंढरहा था. अलग से तो वो मुझे नहीं मिली, मगर वो गाना 'मास्टर' के टीज़र में सुना जासकता है. फिल्म का सबसे बुरा गाना है कुट्टी स्टोरी. वो गाना फिल्म में ऐसे समय परआता है, मानों डायरेक्टर के पास विज़ुअल्स खत्म हो गए हों. उस पूरे गाने में आपकोसेम विज़ुअल्स देखने को मिलते हैं. फिल्म में वो पहला मौका है, जब आप बोरियत महसूसकरते हैं. मगर दिक्कत ये है कि उस गाने के बारे में इतना कुछ सोचने के बाद जबस्क्रीन पर नज़र ले जाते हैं, तब भी वही गाना चल रहा होता है. 'मास्टर' का म्यूज़िकपॉपुलर कंपोज़र अनिरुद्ध रविचंद्र ने किया है. जब आप पूरी फिल्म खत्म कर लेते हैं,तब आपको लगता है कि काश ये फिल्म भी होती कुट्टी स्टोरी!# क्या रहा मास्टर को देखने का ओवरऑल एक्सपीरियंस?जब आप थिएटर से निकलने के बाद खुद से ये पूछेंगे कि आखिरी मास्टर कहना क्या चाहतीथी, तो उसका आपको पॉज़िटिव जवाब ही मिलेगा. एक आदमी है, जो नशे और एक गुंडे कीगिरफ्त में कैद बच्चों को मुक्त करना चाहता है. क्योंकि वो बच्चे उस गुंडे की शातिरपॉलिटिक्स के शिकार हैं. मगर ये सब करने में फिल्म के हीरो के सामने एक चैलेंज है.वो ये कि उसे ये सब डायलॉग्स के माध्यम से करना है. और प्रीची यानी ज्ञान बांटनेजैसा साउंड भी नहीं करना है. 'मास्टर' ये चीज़ कायदे से कर ले जाती है. दिक्कत बसये आती है कि ये फिल्म इतनी सी बात कहने के लिए ढेर सारा समय ले लेती है. मास्टर कापहला हाफ एंजॉएबल है. मगर दूसरा हिस्सा थोड़ा ढीला पड़ जाता है, जो ओवरऑल फिल्म काएक्सपीरियंस झिलाऊ बना देता है.'मास्टर' से इंडस्ट्री को उम्मीदें हैं कि वो लोगों को फिर से सिनेमाघरों तक खींचलायेंगी. (फोटो-ट्रेलर)# फिल्म से कुछ शिकायतें भी हैं, जिन्हें शॉर्ट में बताने की कोशिश करेंगे# हमारी पहली शिकायत है विजय सेतुपति को लेकर. जब आप विजय सेतुपति जैसे एक्टर कोअपनी फिल्म में कास्ट कर रहे हैं, तब वो रोल भी उनके प्रतिष्ठा और टैलेंट के अनुरूपहोना चाहिए. वरना वही होता है, जो इस फिल्म में विजय सेतुपति के साथ हुआ. वो तो भलाहो उस आदमी के एक्टिंग टैलेंट का, जो उन्होंने इसे भी मज़ेदार बना डाला है.# 'मास्टर' से हमारी दूसरी शिकायत है सीन्स कॉपी किए जाने का. फिल्म में दो ऐसेसीन्स हैं, जिन्हें देखकर आपको थलपति विजय की ही पिछली फिल्में याद आ जाएंगी. पहलासीन है इंटरवल से ठीक पहले होने वाला कबड्डी मैच. अगर आपने विजय की 2004 में आईफिल्म 'घिल्ली' देखी है, तो आपको ये समझने में देर नहीं लगेगी कि कैसे पुराने हिटसीन्स को कैश करने के लिए उन्हें सुपरस्टार्स की नई फिल्मों में जबरदस्ती ठूंस दियाजाता है. 'घिल्ली' जहां पूरी तरह से कबड्डी के ऊपर बेस्ड फिल्म थी, वहीं 'मास्टर'में कबड्डी मैच आउट ऑफ ब्लू आ जाता है. और कमाल की बात ये कि इस सीन में आपकोम्यूज़िक भी 'घिल्ली' वाला ही सुनाई देता है. 'मास्टर' में विजय की फिल्म 'थुपाकी'का भी बड़ा क्लीयर रेफरेंस देखने को मिलता है. 'थुपाकी' वही फिल्म है, जिससेप्रेरित होकर अक्षय कुमार की फिल्म 'हॉलीडे' बनी थी.कुल मिलाकर 'मास्टर' एक ऐसी फिल्म है, जिसे देखने के दौरान आपके पकते नहीं हैं मगरथक ज़रूर जाते हैं. किसी भी फिल्म को दो भागों में तोड़कर नहीं देखना चाहिए. ना हीवैसे बात की जानी चाहिए. मगर मास्टर को देखकर लगता है कि तीन घंटे के अंतराल मेंहमने दो अलग-अलग फिल्में देख डाली हैं. जिसमें से पहले वाली कतई एंटरटेनिंग थी औरदूसरी वाली थकाऊ.