बहुत सी जद्दोजहद के बाद आखिरकार वरुण धवन-सारा अली ख़ान की 'कुली नंबर 1' रिलीज़ होही गई. अरसे से बनकर तैयार ये फिल्म महामारी के फेर में ऐसी अटकी कि रिलीज़ होना हीटास्क बन गया था. फिर एक के बाद एक विवाद भी उठ खड़े हुए. अब जाकर कहीं फिल्म कोदर्शकों के रूबरू होने का मौक़ा मिला है. इतना इंतज़ार करवाकर आई ये फिल्म क्यादर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतर पाएगी? मुश्किल है. आइए डिटेल में जानते हैं.ये तो खैर सभी को पता है कि ये फिल्म 1995 में आई गोविंदा-करिश्मा की इसी नाम कीहिट फिल्म का रीमेक है. ऊपर से वरुण धवन गोविंदा की कॉपी बनने का प्रयास लंबे अरसेसे कर रहे हैं. ऐसे में तुलनाएं होना लाज़मी है. और तुलनाओं के हर पैमाने पर येफिल्म गोविंदा वाली फिल्म से उन्नीस ही साबित होती है. यहां मेरी एक निजी राय भीरजिस्टर कर लीजिए. पुरानी वाली 'कुली नंबर 1' भी कोई महान फिल्म नहीं थी. स्क्रिप्टके मामले में उसमें भी बहुत झोल था. लेकिन उस फिल्म को काबिले-कबूल बनाया थागोविंदा-कादर ख़ान-करिश्मा और सदाशिव अमरापुरकर की शानदार परफॉरमेंसेस ने. नई वाली'कुली नंबर 1' इस मामले में बुरी तरह फेल है. हम पूर्वाग्रह से भरकर ज़्यादा तल्ख़ नभी हों, तो भी कहना पड़ेगा कि कई बार तो ये फिल्म एकदम अझेल हो जाती है.गोविंदा की 'कुली नंबर 1' से इसकी तुलना होकर रहनी है.# कहानी वही, ट्रीटमेंट सतही कहानी क्या है! एक अमीर आदमी है जेफ्री रोज़ारियो. दो बेटियों, सारा और अंजू कापिता. अपनी बेटियों की शादी अपने से कहीं ज़्यादा अमीर आदमी से करना चाहता है. इतनाअमीर कि सब्जी लेने भी जाए, तो प्राइवेट जेट से. ऐसे में किसी मिडल क्लास वाले लड़केका रिश्ता लेकर आए पंडित जय किशन को बुरी तरह अपमानित करता है. पंडित जी कसम खातेहैं कि इसको सबक सिखाकर रहूंगा. कहानी में एंट्री होती है राजू कुली की. पंडित जीसे स्टेशन पर टकराता है और पंडित जी ठान लेते हैं कि इसी को रोज़ारियो का दामादबनवाएंगे. अब इस टास्क को अंजाम तक पहुंचाने के लिए जो अतार्किक उठापटक होती है,वही सवा दो घंटे की फिल्म की सूरत आपके सामने आती है.'कुली नंबर 1' एक चीखती हुई फिल्म है. यहां सब कुछ लाउड है. संवाद अदायगी से लेकरअदाकारी तक सब. सेट्स ले लेकर लोकेशंस तक सब कुछ आर्टिफिशियल लगता है. पहली बार जबपंडित जी राजू से मिलते हैं, उस वक्त का एक संवाद मुलाहिज़ा फरमाइए...पंडित जी कहते हैं, "इस लड़की का नाम सारा है".राजू का चहकता हुआ जवाब आता है, "हां तो अपने को कौन सा आधा चाहिए, अपने को भी साराही चाहिए".ऐसे सर धुनने लायक डायलॉग्स की भरमार है. जो हंसी पैदा करने की जगह चिढ़ पैदा करतेहैं. फरहाद सामजी के लिखे संवाद फनी किसी सूरत नहीं लगते. बल्कि उनमें हाउसफुलफ्रेंचाइज़ी का पूरा-पूरा इफेक्ट नज़र आता है.# लाउडस्पीकर एक्टिंग एक्टिंग के फ्रंट पर एक बात की तारीफ़ करनी होगी. कंसिस्टेंसी की. सबने एक समान खराबकाम किया है. वरुण धवन बहुत लाउड हैं. तेज़ रफ़्तार से संवाद बोलने का गोविंदा कास्टाइल जब वरुण कॉपी करते हैं, तो बहुत ही ख़राब लगते हैं. गोविंदा पर जो नैचुरलीअच्छा लगता था, वरुण पर ओढ़ा हुआ (या शायद डेविड धवन का थोपा हुआ) लगता है. इकलौताडांस का फ्रंट ही है, जहां वरुण ठीक-ठाक निभा ले जाते हैं.वरुण का सारा फोकस गोविंदा की नकल करने पर लगा रहता है. (फोटो - 'कुली नंबर 1'ट्रेलर)सारा अली ख़ान भी निराश करती हैं. हालांकि उनके लिए स्क्रिप्ट में ज़्यादा स्कोप थाही नहीं. स्कोप था परेश रावल के लिए. पर उनके कद का अभिनेता भी लचर स्क्रिप्ट केचलते मात खा गया. कादर ख़ान के जूतों में पैर फंसाने का उनका प्रयास बेहद कमज़ोर रहगया. जावेद जाफरी अच्छे एक्टर हैं, लेकिन सदाशिव अमरापुरकर के निभाए शादीराम घरजोडेकी बात ही अलग थी. अगर कोई फिल्म में लाउड नहीं लगता, तो वो हैं राजू के दोस्त दीपकका रोल करने वाले साहिल वैद. जबकि इस तरह के किरदारों से लाउड होना ज़्यादा अपेक्षितहोता है. ये भी एक आयरनी ही रही, खैर.एक सीन में सारा अली ख़ान वरुण को फनी कहकर चली जाती है. वरुण धवन बार-बार दोहरातेहैं, 'आई एम फनी, आई एम फनी'. जैसे खुद को ही विश्वास न हो रहा हो. उनके इस इमोशनसे तमाम दर्शक सहमत हो जाते हैं. उन्हें भी विश्वास नहीं होता कि ही इज़ फनी.# गानों की दुर्गति गानों पर आते हैं. जो नए हैं वो याद रखे जाने लायक नहीं है और जो पुरानी फिल्म सेउठाए हैं, उनके साथ भयानक ट्रीटमेंट किया गया है. 'हुस्न है सुहाना' और 'मिर्ची लगीतो' दोनों ही गाने बर्बाद करने की हद तक बिगाड़ दिए गए हैं. 'मिर्ची लगी तो' गानेमें ऑटो ट्यून के बाद कुमार शानू और अलका याग्निक की आवाज़ जैसी लग रही है, उसेसुनने के बाद उन दोनों को केस ठोक देना चाहिए.डेविड धवन का डायरेक्शन एक ज़माने में कॉमेडी फिल्मों की सफलता की गारंटी हुआ करताथा. अब उसका चार्म हवा हो गया है. वो अपनी ही बनाई खीर में गरम मसाले डालकर परोसरहे हैं. ज़ाहिर है ज़ायके का बेड़ा गर्क होना ही था. फिल्म को चमकीली बनाने के चक्करमें वो बेसिक्स के साथ बहुत बड़ा कम्प्रोमाइज़ करते नज़र आते हैं और नतीजा एक अधकचरेप्रॉडक्ट के रूप में सामने आता है. ये कुछ-कुछ ऐसा ही है कि अपग्रेड होने के बादआपका गैज़ेट बेकार हो जाए.फिल्म के सहायक किरदार भी फिल्म की कोई मदद नहीं करते. (फोटो - 'कुली नंबर 1'ट्रेलर)फिल्म के कुछ सीन आपत्तिजनक भी हैं. जो भोंडी कॉमेडी के नाम पर खपा दिए गए हैं.2020 की किसी फिल्म में ट्रांसजेंडर्स का मज़ाक उड़ाया जाए, किसी के हकलाने कोटार्गेट किया जाए तो ये दर्शकों का दुर्भाग्य ही है. ये रीमेक न होकर कोई ओरिजिनलफ़िल्म होती, तब भी इतना ही निराश करती.2020 आपदाओं और निराशाओं का साल रहा है. 'कुली नंबर 1' का नाम भी उसी लिस्ट में जोड़लीजिए.