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'तंगलान': KGF की असली कहानी, जब अंग्रेज़ों ने लालच में आकर सोने का रंग लाल कर दिया

जब Pa Ranjith ने Yash की KGF की वजह से अपनी फिल्म पर काम रोक दिया था. फिर उन्होंने KGF के दोनों पार्ट देखे, और उन्हें एहसास हुआ कि वो एकदम कहानी दिखाने जा रहे हैं.

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'तंगलान' 15 अगस्त 2024 को सिनेमाघरों में रिलीज़ होने वाली है.
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यमन
11 जुलाई 2024 (Published: 18:44 IST)
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14 अगस्त 1947 की रात. भारत आज़ादी से चंद पलों की दूरी पर था. पहले प्रधानमंत्री Jawaharlal Nehru अपने फेमस Tryst With Destiny वाले स्पीच से देश को संबोधित करने जा रहे हैं. पूरे देश में खुशी की लहर थी. नया भारत कैसा होगा, उसके सपने बुने जा रहे थे. नई दिल्ली से कोसों दूर कर्नाटक के एक इलाके में इस खबर से कोई असर नहीं पड़ने वाला था. कर्नाटक की कोलार गोल्ड फील्ड्स में काम करने वाले मजदूरों के लिए 15 अगस्त की सुबह कोई नई रोशनी लेकर नहीं आने वाली थी. 

पी ऐबल नाम के एक रिटायर्ड स्कूल टीचर बताते हैं कि देश को भले ही 1947 में आज़ादी मिल गई, मगर 1956 तक कोलार गोल्ड फील्ड्स यानी KGF अंग्रेज़ों के अंतर्गत रही. 1956 में जाकर इस खदान का राष्ट्रीयकरण हुआ. मगर KGF का इतिहास उससे भी बहुत साल पुराना है. Yash और Prashanth Neel वाली KGF में आपने जो भी देखा, उसका वास्तविकता से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था. KGF की असली कहानी में बहुत सारा सोना था, लालच था, मरे हुए चूहे थे, हाथ से खोदा हुआ सोना था, ऐसा सोना जो ज़मीन से ऊपर आया तो उसका रंग लाल हो चुका था. ये उस KGF की कहानी है जिसे 121 साल तक खोदा गया, और बदले में 800 टन सोना निकाला. वो सोना जिसके पीछे भारत के मजदूरों ने खून-पसीना बहाया, लेकिन इस देश को कभी उस सोने की शक्ल देखना नसीब नहीं हुआ. 

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साल 1896 में कोलार गोल्ड फील्ड्स के अंग्रेज़ अधिकारियों की फोटो. 

साल 1880 में जॉन टेलर एंड कंपनी नाम की एक ब्रिटिश माइनिंग कंपनी ने KGF में व्यवस्थित माइनिंग शुरू की. उस कंपनी ने मैसूर के महाराज से कोलार की ज़मीन लीज़ पर ली और वहां माइनिंग करना शुरू किया. हालांकि पढ़ने को मिलता है कि 2000 साल पहले से वो ज़मीन सोना उगल रही है, और स्थानीय लोग उसे अपने हाथों से खोदकर निकाल भी रहे थे. साल 1871 में ब्रिटिश आर्मी के एक रिटायर्ड फौजी ने बैंगलोर कंटोनमेंट को अपना घर बना लिया. नाम था माइकल फिट्जजेराल्ड लैवेल. रिटायरमेंट के दिन आराम से बीत रहे थे. माइकल को पढ़ने का शौक था. एक दिन साल 1804 का एशियाटिक जर्नल हाथ लगा. उसमें छपे एक आर्टिकल ने माइकल के हाथ में उनका सबसे बड़ा मकसद सौंप दिया. आगे माइकल दुनिया की सबसे गहरी सोने की खदान यानी KGF के जनक बने. 

माइकल ने लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन की एक रिपोर्ट पढ़ी. वहां कोलार में सोने की खदान होने की संभावना जताई गई थी. वॉरेन ने सुना था कि चोल साम्राज्य के दौरान लोग अपने हाथों से सोना खोदकर निकालते थे. ऐसी अफवाहों से उत्साहित होकर वॉरेन ने घोषणा कर डाली. जो भी उस ज़मीन से सोना निकालकर दिखाएगा, उसे इनाम दिया जाएगा. जल्द ही गांव वाले बैल-गाड़ियों में मिट्टी भरकर वॉरेन के पास पहुंच गए. उन्होंने उस मिट्टी को धोया और वॉरेन के सामने सोने के पाउडर के निशान थे. बताया जाता है कि साल 1804 से 1860 के बीच कोलार में सोना खोजने के लिए कई स्टडी की गई. लेकिन कोई फायदा नहीं निकला. साल 1871 में माइकल के हाथ यही रिपोर्ट लगी थी. 

उन्होंने दो साल तक उस इलाके में रिसर्च की. साल 1873 में माइकल ने सरकार से माइनिंग की लीज़ मांगी. सरकार का कहना था कि वो उन्हें कोयले की माइनिंग का लाइसेंस दे सकती है. चूंकि कोलार में सोने का कोई निशान नहीं, इसलिए सोने की माइनिंग का लाइसेंस नहीं मिल सकता. जवाब में माइकल ने लंबी-चौड़ी चिट्ठी लिखी. उनका कहना था कि उन्हें बस लाइसेंस चाहिए. वो अपने तरीके से सोने की खोज करेंगे. वो भी बिना किसी सरकारी खर्च के. अगर सोना मिला तो वो ब्रिटिश सरकार के काम आएगा, वरना ना मिलने पर सरकार का कोई नुकसान नहीं होगा. 02 फरवरी 1875 को माइकल लैवेल को 20 साल के लिए कोलार में माइनिंग करने का लाइसेंस मिला. साल 1880 में माइकल के हाथ से बागडोर जॉन टेलर के पास गई. माइनिंग के क्षेत्र में वो कंपनी आधुनिकता लेकर आई. उनके आने के बाद कोलार गोल्ड फील्ड्स के सुनहरे दौर का उदय हुआ. हालांकि ऐसा वहां रहने वाले लोगों के लिए नहीं कहा जा सकता. 

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KGF माइन के अंदर की एक तस्वीर.
 

माइनिंग शुरू होने से पहले आदिवासी समाज के गांव कोलार से सटे हुए थे. अंग्रेज़ों के आने से पहले वो लोग अपने पारंपरिक ढंग से ज़मीन से सोना खोदते, उसे बेचते और अपने परिवार का गुज़ारा किया करते. अंग्रेज़ अपने हाथ से एक ग्राम सोना भी फिसलने देना नहीं चाहते थे. ऊपर से क्रिमिनल ट्राइब्स ऐक्ट भी लागू हो चुका था. अपने पेपर Dangerous Labour: Crime, Work and Punishment in Kolar Gold Fields, 1890-1946 में जानकी नायर लिखती हैं कि अंग्रेज़ों ने इस ऐक्ट को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया. आदिवासी लोगों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया. सरकार सिर्फ सोने खोदने और बेचने वालों को ही नहीं पकड़ रही थी. बल्कि उनके परिवार के लोगों को भी जेल में डाला गया. उनका विस्थापन किया गया.

माइन में तमिलनाडु और पड़ोसी राज्यों से मजदूरों को लाया गया. वहां एंग्लो-इंडियन मजदूर भी काम कर रहे थे. लेकिन भारतीय मजदूरों के साथ भेदभाव किया जाता. जानकी अपने पेपर में लिखती हैं कि दिन का काम खत्म होने के बाद हयार भारतीय मजदूर की चेकिंग की जाती थी. जबकि दूसरे कर्मचारियों के साथ ऐसा रवैया नहीं होता था. ब्रिटिशर्स ने कोलार को ‘लिटिल इंग्लैंड’ बना दिया. वहां का मौसम भी अंग्रेज़ अधिकारियों को जम गया था. साल 1902 में कोलार में इंडिया का पहला पावर प्लांट बनाया गया. जहां एक तरफ आज भी पूरे देश में लगातार बिजली नहीं पहुंची है, ऐसे में उस समय कोलार में लगातार बिजली आती थी. लेकिन ये सारे सुख-साधन सिर्फ अंग्रेज़ अधिकारियों के लिए थे. 

भारतीय मजदूरों को खतरनाक माइन में 55 डिग्री के तापमान पर काम करना पड़ता. छप्पर के घर बनाकर परिवारों को रहना पड़ता. खाने में चूहे मुंह मारते रहते. कहा जाता है कि उस दौरान मजदूर एक साल में करीब 50,000 चूहों को मार डालते थे. मजदूरों के लिए आगे का समय इससे भी विषम होने वाला था. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य को आर्थिक मज़बूती की ज़रूरत थी. सोने का दाम आसमान छू रहा था. ऐसे में सरकार ने KGF के मज़दूरों का भत्ता कम कर दिया. साथ ही ज़्यादा सोने का उत्पादन करने का दबाव डाला. नतीजतन अपनी जान जोखिम में डालकर मजदूर काम करने लगे. इस दौरान खान में कई मजदूरों की मौत हुई. दुख की बात ये है कि KGF की कहानी या उससे जुड़ा साहित्य आपको आसानी से पढ़ने को नहीं मिलेगा. इसकी वजह है कि उस दौरान ब्रिटिश सरकार का सेंसरशिप को लेकर कड़ा रुख था. 

साल 1956 में ब्रिटिश KGF छोड़कर चले गए. उसके बाद भारतीय सरकार ने कुछ साल तक वहां काम किया. सोने की गुणवत्ता गिरने लगी. दूसरी ओर ज़्यादा आगे तक माइनिंग करना भी मुश्किल होता जा रहा था. ऐसे में साल 2001 में कोलार गोल्ड फील्ड्स को बंद कर दिया गया. KGF की इसी कहानी से प्रेरणा लेकर पा रंजीत ने ‘तंगलान’ नाम की फिल्म बनाई. हाल ही में फिल्म का ट्रेलर भी आया है. ट्रेलर में दिखाया गया कि एक अंग्रेज़ अधिकारी कोलार में सोना खोजने के लिए आया है. चियां विक्रम ने एक आदिवासी का रोल किया है. उसका मानना है कि सिर्फ वही सोना निकालने में अंग्रेज़ अफसर की मदद कर सकता है. आगे सोने तक पहुंचने का सफर शुरू होता है. ‘तंगलान’ में दिखाया गया कि उनका सामना आरती नाम की महिला से होता है. दिखाया जाता है कि उसके पास मायावी शक्तियां हैं. वो किसी भी तरह उन्हें सोने की खुदाई करने से रोकती है. मुमकिन है कि फिल्म में दिखाया जाएगा कि कैसे अंग्रेज़ों ने अपने लालच के लिए वहां के लोगों की दुर्दशा कर दी. हालांकि ट्रेलर में इसकी झलक भी मिलती है. 

वैराइटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक पा रंजीत कई साल पहले इस कहानी पर फिल्म बनान चाहते थे. फिर उन्होंने यश की फिल्म KGF के बारे में पता चला. उन्होंने अपनी फिल्म को होल्ड पर डाल दिया. KGF की दोनों फिल्में आई. पा रंजीत ने उन्हें देखा. एहसास हुआ कि वो KGF पर बिल्कुल अलग कहानी दिखाने जा रहे हैं. चियां विक्रम और मालविका मोहनन जैसे एक्टरस को कास्ट किया गया. करीब 100 करोड़ रुपये के बजट में बनी ‘तंगलान’ तैयार हो चुकी है. 15 अगस्त 2024 को इसे सिनेमाघरों में रिलीज़ किया जाएगा. पा रंजीत की ये फिल्म अक्षय कुमार की ‘खेल खेल में’ और जॉन अब्राहम की ‘वेदा’ से भिड़ेगी.                         
                    
 

वीडियो: फिल्म रिव्यू: कैसी है चियां विक्रम स्टारर फिल्म 'कोबरा'?

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