The Lallantop
Advertisement

फिल्म रिव्यू- चंदू चैंपियन

Kartik Aaryan की Chandu Champion, पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर की कहानी के साथ न्याय कर पाती है या नहीं!

Advertisement
chandu champion, kartik aaryan,
'चंदू चैंपियन' नाम की स्पोर्ट्स बायोपिक फिल्म में कार्तिक आर्यन ने मुरलीकांत पेटकर नाम के रियल एथलीट का किरदार निभाया है.
pic
श्वेतांक
14 जून 2024 (Updated: 14 जून 2024, 14:20 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

फिल्म- चंदू चैंपियन 
डायरेक्टर- कबीर खान
राइटर्स- कबीर खान, सुमित अरोड़ा, सुदीप्तो सरकार 
एक्टर्स- कार्तिक आर्यन, विजय राज, भुवन अरोड़ा, यशपाल शर्मा, बृजेंद्र काला, राजपाल यादव, श्रेयस तलपड़े 
रेटिंग- 3.5 स्टार

***

मुरलीकांत राजाराम पेटकर के जीवन पर बायोग्राफिकल फिल्म बनी है. 'चंदू चैंपियन'. अब आप पूछेंगे कि मुरलीकांत पेटकर हैं कौन? इन्हीं सवालों की वजह से ये फिल्म बनी है. क्योंकि इंडिया के लिए पहला पैरालंपिक मेडल जीतने वाले एथलीट को कोई जानता ही नहीं है. और मैं यहां holier than thou नहीं बन रहा हूं. महाराष्ट्र के सांगली का एक बच्चा, जिसका एक ही सपना था. ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतना है. मगर उसे जान बचाने के लिए अपना गांव छोड़कर जाना पड़ता है. पहलवानी छोड़कर बॉक्सर बनना पड़ता है. 1965 के युद्ध में 9 गोलियां लगती हैं. एक गोली बॉडी से कभी निकल नहीं पाई. चल-फिर नहीं सकता है. परिवार ने घर ले जाने से मना कर दिया. मगर सपना अभी भी वही है. ओलंपिक में मेडल जीतना है. मुरलीकांत पेटकर की इसी कहानी पर 'चंदू चैंपियन' बनी है. ये फिल्म उनकी इस कहानी के साथ न्याय कर पाती है या नहीं, वो समझने के लिए नीचे चलते हैं.

"हमारी फिल्म का हीरो, स्टोरी है"

एक समय पर ये हिंदी सिनेमा में बड़ा प्रचलित मुहावरा हुआ करता था. जिन्होंने ये कहा, उन्होंने न कभी इस बारे में सोचा, न अमल किया. ये आप उनकी फिल्मों से पता कर सकते हैं. मगर ये बात आप 'चंदू चैंपियन' में पाते हैं. उन्होंने मुरलीकांत पेटकर की कहानी दिखाने के लिए हेरोइक रास्ता नहीं चुना है. क्योंकि उन्हें पता है कि उनकी कहानी ही फिल्म की हीरो है. जब तक आप एक कहानी पर फिल्म बना रहे हैं, यथार्थ बचा रहता है. जब आप कहानी को फिल्म बना देते हैं, तो वो कुछ और ही हो जाता है. किंवदंती सरीखा. कम यकीनी. इससे बच निकलना ही 'चंदू चैंपियन' की पहली जीत है.

'चंदू चैंपियन' को बेचा भले कार्तिक आर्यन के नाम पर जाए, मगर देखा कबीर खान की वजह से जाएगा. अपने क्राफ्ट पर उनकी पकड़ की वजह से. उनकी फिल्में आपके भीतर जो इमोशन पैदा करती हैं, वो सार्वभौमिक है. उनकी फिल्में देखने और समझने के लिए आपका सिर्फ इन्सान होना काफी है. 'चंदू चैंपियन' कोई असाधारण फिल्म नहीं है. न ही ऐसा कुछ जो हमने पहले न देखा हो. बावजूद इसके इसमें नयापन है. टेंप्लेट सिनेमा होते हुए भी कुछ अलग है. इसे इंडियन 'फॉरेस्ट गंप' कहा जा सकता है. या थोड़ा सा 'भाग मिल्खा भाग' से जोड़कर देखा जा सकता है. मगर ये तीसरे किस्म का सिनेमा है.

हालांकि कई मौकों पर फिल्म कलात्मक छूट भी लेती है. मसलन, एक सीन मुरली का किरदार कुश्ती लड़ रहा है. बीच-बीच में वो इनाम के तौर पर मिले पैसे भी देख रहा है. इस समय पर फिल्म रुक जाती है. ऐसा लगता है कि मुरली का अपोनेंट भी रुका हुआ है कि एक बार मुरली पैसे देख ले, उसके बाद लड़ाई कंटिन्यू करेंगे. हालांकि इसे सिनेमाई लिबर्टी मानकर आगे बढ़ जाया जाएगा. मगर ये एकाध सेकंड ही एक अच्छी फिल्म की प्रतिष्ठा में डेंट मारते हैं.

'चंदू चैंपियन' की सबसे बड़ी खामी खुद कार्तिक आर्यन लगते हैं. क्योंकि इंटरवल के बाद कुछ-एक सीन्स को छोड़ दें, तो पूरी फिल्म में कार्तिक का हाथ तंग लगता है. हर जगह सिर्फ उनके शारीरिक बदलाव की बात हो रही है. उन्होंने इस किरदार को कितना आत्मसात किया है, ये बात कहीं सुनने में नहीं आई. न ही फिल्म में देखने को मिली. कहने को इसे कार्तिक का सबसे अच्छा काम कहा जा सकता है. क्योंकि उन्होंने इस फिल्म में कमोबेश उतनी ही मेहनत की है, जितना उनके किरदार ने फिल्म में. ये वो फिल्म है, जो कार्तिक के भीतर के एक्टर को चैलेंज करती है. मगर ये चैलेंज उन्हें सिर्फ फिज़िकली नहीं, बल्कि ज़हनी तौर पर भी लेना चाहिए. हालांकि ऐसी फिल्मों का चुनाव करने के लिए कार्तिक को साधुवाद पहुंचना चाहिए.

फिल्म में मुरली के बचपन का किरदार एक चाइल्ड एक्टर ने प्ले किया है. जल्दबाज़ी में उस बच्चे का नाम पता नहीं चल सका. मगर आप उस बच्चे को थोड़ी देर और स्क्रीन पर देखना चाहते हैं. ये मेरे लिए बिल्कुल ही नए टाइप का एक्सपीरियंस था. अमूमन हम चाहते हैं कि जल्दी से हमारा नायक बड़ा हो जाए. ताकि हीरो स्क्रीन पर आए.  

'चंदू चैंपियन' में विजय राज ने टाइगर अली नाम के बॉक्सिंग कोच का रोल किया है. ये फिल्म का सबसे मज़ेदार किरदार है. मगर ये सिर्फ कॉमिक रिलीफ नहीं है. कहानी में इसका बहुत बड़ा योगदान है. छोटे रोल्स में ही सही अपने एक्टर्स को कैसे यूटिलाइज़ करना चाहिए, वो कबीर खान ने इस फिल्म में करके दिखाया है. क्योंकि जब आपके पास राजपाल यादव, बृजेंद्र काला, यशपाल शर्मा जैसे एक्टर्स हों, तो उन्हें आप यूं ही नहीं जाने दे सकते. बृजेंद्र काला का कैमियो जितना रोल होगा. मगर उतने में ही आप फिल्म पर उनका प्रभाव महसूस कर सकते हैं. 

आखिर में हमारे सामने वही यक्ष प्रश्न खड़ा होता है, जहां से हमने शुरुआत की थी. 'चंदू चैंपियन', पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर की कहानी के साथ न्याय कर पाती है या नहीं. इसका जवाब है- हां. आप इस फिल्म को देखकर इंस्पायर होते हैं. हैरान होते हैं. ये सोचकर कि ये कहानी अब तक आपको क्यों नहीं पता थी. कुढ़ते हैं, उस तिरस्कार पर जो मुरलीकांत पेटकर को 50 सालों तक सहना पड़ा. मगर आप सिनेमाघर से संतुष्ट निकलते हैं. सुंदर, दिल से बनाया हुआ सिनेमा. 

वीडियो: मूवी रिव्यू - लापता लेडीज़

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement