Caught Out : डॉक्यूमेंट्री रिव्यू
Caught Out भारतीय क्रिकेट में हुए बड़े मैच-फिक्सिंग स्कैंडल की कहानी है.
मैच फिक्सिंग के आरोपों से घिरे कपिल देव गुस्से से तमतमाते हुए प्रेस कांफ्रेंस में कहते हैं
‘Who’s Prabhakar? Does he have guts to face me?’
ये बात है 1997 की. मनोज प्रभाकर ने कपिल देव पर एक आरोप लगाया. आरोप था खराब प्रदर्शन के लिए 25 लाख रुपए ऑफर करने का. और ये रुपए कपिल ने 1994 में हुए सिंगर कप टूर्नामेंट के दौरान ऑफर किए थे. ये उस दौर की बात है जब क्रिकेट में मैच फिक्सिंग की खबरें आम थीं.
इस पर Caught Out: Crime. Corruption. Cricket नाम से एक डॉक्यूमेंट्री आई है. ये 17 मार्च से नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है. इसमें कुछ पत्रकार और उस वक़्त के बड़े अधिकारियों की नज़र से मैच फिक्सिंग स्कैंडल की परतों को एक-एक कर सामने लाने की कोशिश की गई है. डॉक्यूमेंट्री की डायरेक्टर हैं सुप्रिया सोबती गुप्ता. जो बीबीसी, अल ज़जीरा और न्यूज़ एशिया चैनल में बतौर पत्रकार काम कर चुकी हैं. इसे प्रोड्यूस किया है MOW Productions और Passion Pictures ने. इससे पहले ऑस्कर जीत चुकी कुछ मूवीज जैसे, “One Day in September”, “Searching for Sugar Man” और “The Lost Thing” को भी Passion Pictures ने ही प्रोड्यूस किया था.
Caught Out में क्या है ख़ास?डॉक्यूमेंट्री शुरू होती है क्रिकेट के मैदान से. आउटलुक के पत्रकार अनिरुद्ध बहल (आगे जाकर इन्होंने ही ‘तहलका’ की शुरुआत की थी), बताते हैं कि कैसे उनकी नज़र सट्टेबाजी के इस खेल पर पड़ी. इसमें कई पत्रकार भी शामिल थे. वो मैदान से फोन पर मैच की जानकारियां किसी के साथ साझा करते रहते थे. वहीं से अनिरुद्ध ने इस खेल की तह तक जाने का फैसला किया. जैसे-जैसे कहानी आगे बढती है, एक के बाद एक हैरान कर देने वाले खुलासे होते हैं. कई बड़े खिलाड़ियों के नाम सामने आते हैं. कई और पत्रकार, अधिकारी भी अपना अनुभव साझा करते हैं. डॉक्यूमेंट्री में उस वक़्त की प्रेस कांफ्रेंस और स्टिंग ऑपरेशन भी दिखाए गए हैं. इसके अलावा इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट कैसे ऑपरेट करते हैं, ये भी इस डॉक्यूमेंट्री का एक रोचक हिस्सा है.
डॉक्यूमेंट्री के एक हिस्से में विस्तार से बताया गया है कि सट्टेबाज़ कैसे ऑपरेट करते हैं? यहां हम में से कई लोगों को सट्टेबाजों की इस दुनिया के बारे में कुछ नया जानने को मिलेगा. इसे बेहद रोचक ढंग से दिखाने की कोशिश की गई है. इसके अलावा कैसे ये केस छोटे सट्टेबाजों से लेकर बड़े खिलाड़ियों तक पहुंचता है और कैसे यह इन्वेस्टिगेशन अनिरुद्ध बहल से शुरू होकर सीबीआई तक पहुंचती है? ये सब जानने के लिए आपको डॉक्यूमेंट्री देखनी पड़ेगी. फिलहाल बात करते हैं इसके टेक्निकल आस्पेक्ट पर.
Caught Out की कहानी धीरे-धीरे आगे बढती है. आपको पता भी नहीं चलेगा कि कैसे देखते ही देखते मैच फिक्सिंग का यह केस इंटरनेशनल बन जाता है. डॉक्यूमेंट्री में कई सारी बातें ऐसी हैं जो पहले से ही पब्लिक डोमेन में हैं. ज्यादा कुछ नया देखने को नहीं मिलता है. इस कमी को पूरा करने का काम किया है बैकग्राउंड म्यूजिक और बेहतरीन एडिटिंग ने. किसी भी डॉक्यूमेंट्री में एडिटिंग बेहद ज़रूरी चीज़ होती है. फिल्म की एडिटिंग और बैकग्राउंड म्यूजिक आपको फिल्म के साथ आखिर तक बांधे रखता है. आखिर में यह डॉक्यूमेंट्री कई सारे सवाल छोड़ जाती है. ये और भी रोचक और बेहतर हो सकती थी अगर खिलाड़ियों का नज़रिया भी जानने को मिल पाता. जैसा कि डॉक्यूमेंट्री में बताया भी गया है कि मेकर्स ने खिलाड़ियों तक पहुंचने की कोशिश की थी. लेकिन वो इसके बारे में बात करने के लिए उन्हें तैयार नहीं कर पाए.
कई जगह आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. अगर आप क्रिकेट फैन हैं तो गुस्सा भी आएगा और दुःख भी होगा. लेकिन बहुत कुछ जानने को भी मिलेगा. ओवरआल डॉक्यूमेंट्री देखने लायक है.
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