इस हफ्ते दो वॉर फिल्में रिलीज़ हुई हैं. सिद्धार्थ मल्होत्रा की 'शेरशाह' और अजयदेवगन की 'भुज- द प्राइड ऑफ इंडिया'. 'शेरशाह' का रिव्यू आप यहां क्लिक करके पढ़सकतेहैं. और 'भुज- द प्राइड ऑफ इंडिया' के बारे में हम अभी बात करेंगे.फिल्म की कहानी1971 में ईस्ट और वेस्ट पाकिस्तान के बीच पंगा चल रहा था. पूर्वी पाकिस्तान वालोंका कहना था कि उन्हें परेशान किया जा रहा है. ऐसे में पूर्वी पाकिस्तान की मदद करनेके लिए इंडिया आगे आता है. इस बात से नाराज़ वेस्ट पाकिस्तान इंडिया पर हमला करदेता है. उनकी प्लानिंग ये थी कि इंडिया के कुछ इलाकों पर कब्जा करके उनके साथबारगेन किया जाए. कि तुम हमारा ईस्ट पाकिस्तान छोड़ दो, हम तुम्हारे इलाके छोड़देंगे. इस कोशिश में पाकिस्तानी एयरफोर्स इंडिया के तमाम एयरबेस पर बमबारी करनाशुरू कर देती है. इसमें सबसे ज़्यादा नुकसान होता है भुज एयरबेस का. जो कि इंडियाकी स्ट्रैटेजी के लिहाज़ से ज़रूरी बेस था. उसे ऑपरेशनल बनाए रखने की ज़िम्मेदारीथी स्कॉडरन लीडर विजय कार्निक की. मगर समस्या ये थी कि पाकिस्तान ने भुज को दूसरेहिस्सों से कनेक्ट करने वाले तमाम रास्ते बर्बाद कर दिए थे. इसलिए विजय की मदद केलिए जवान पहुंच नहीं पा रहे थे. ऐसे में विजय पास के गांव की महिलाओं को लेकरएयरस्ट्रिप की मरम्मत करते हैं और भुज एयरबेस को लैंडिंग के लायक बनाए रखते हैं.फिल्म के एक सीन में विजय कार्निक बने अजय देवगन.एक्टर्स की परफॉरमेंसफिल्म में विजय कार्निक का रोल किया है अजय देवगन ने. अजय गंभीर एक्टर माने जातेहैं. इसलिए उनके मुंह से निकली लाउड लाइनें भी सीरियस साउंड करती हैं. इसलिए फिल्मके काफी ओवर द टॉप होने के बावजूद वो विजय का किरदार बड़ी आसानी से निभा ले जातेहैं. क्योंकि वो ये चीज़ पहली बार नहीं कर रहे. उन्होंने बहुत सी फिल्मों में हीरोप्ले किया है. इस फिल्म में उन्हें सिर्फ रियल लाइफ हीरो प्ले करना था. उनकी पत्नीके रोल में प्रणीता सुभाष. पिछले दिनों उन्हें 'हंगामा 2' में देखा गया था. मैंआपको बताऊं, वो इस फिल्म के बमुश्किल पांच-छह सीन्स में दिखती हैं. मगर उनके मुंहसे एक शब्द आपको सुनने को नहीं मिलता. और ये बात मैं लिटरली कह रहा हूं. संजय दत्तने फिल्म में आर्मी स्काउट रंछोड़दास पगी का रोल किया है. मगर उनके इंट्रोडक्शन सेलेकर उनका पूरा कैरेक्टर हिला हुआ है. वो आदमी कुछ भी कह रहा है, कुछ भी कर रहा है.मगर वो किरदार जो कुछ भी कर रहा है, उस पर विश्वास नहीं आता. सोनाक्षी सिन्हा नेभुज एयरबेस के पास वाले गांव की एक पॉपुलर महिला का रोल किया है, जिसे इलाके मेंबड़े सम्मान से देखा जाता है. एयरस्ट्रिप की मरम्मत में विजय की मदद के लिए वहीगांव की महिलाओं को मनाती हैं. लेकिन सोनाक्षी का किरदार इतना डल, वन टोन और फनी हैकि क्या ही कहें. एमी विर्क और शरद केल्कर ये दो एक्टर्स ऐसे हैं, जिनके पास फिल्ममें करने के लिए ठीक-ठाक चीज़ें हैं. और ये दोनों ही अपने किरदारों सही से निभा लेजाते हैं. नोरा फतेही ने फिल्म में एक इंडियन जासूस का रोल किया है, जिसका नैरेटिवके हिसाब से कुछ खास तुक नहीं बनता.रंछोड़दास पगी के रोल में संजय दत्त.फिल्म की अच्छी बातेंये ऐसा सेग्मेंट है, जिसे लिखने में मुझसे सबसे ज़्यादा समय लगा. क्योंकि मुझे समझनहीं आया कि इसमें क्या लिखें. कोई चीज़ ऐसी नहीं होती, जिसमें कोई अच्छाई न हो.मगर 'भुज- द प्राइड ऑफ इंडिया' में आपके इस विचार को बदलकर रख देने की क्षमता है.खैर, फिल्म की सबसे चीज़ जो मुझे लगी वो थे इसके एरियल कॉम्बैट सीन्स. हवाई युद्धवाले सीन्स और सीक्वेंस कतई थ्रिलिंग हैं. मगर इन सीन्स में आपको दोयम दर्जे कावीएफएक्स का काम देखने को मिलता है. जो मज़ा किरकिरा कर देता है. 'भुज- द प्राइड ऑफइंडिया' के बारे में ये आसानी से कहा जा सकता है कि यहां जो है, सब हवा-हवाई है.मेटाफरीकली भी और लिटरली भी.वो एरियल कॉम्बैट सीन्स, जिनका हमने ऊपर ज़िक्र किया था.फिल्म की बुरी बातें'भुज' को देखते हुए मुझे एक चीज़ बड़ी अजीब लगी. कोई फिल्ममेकर किसी कहानी को कहनेके लिए इसलिए चुनता है क्योंकि उसे वो एंटरटेनिंग लगी होगी. जब आपको अपनी कहानी केएंटरटेनमेंट फैक्टर पर भरोसा है, तो उसमें ढेर सारे मसाले डालकर उसका स्वाद क्योंखराब करना. 'भुज' के केस में तो मेकर्स के पास बनी-बनाई फर्स्ट क्लास कहानी थी. बसउसे पूरी ईमानदारी के साथ परदे पर उतारना था. मगर इस कहानी में इतनी फिल्मी मिलावटहै कि कहानी कभी असली या यकीनी लग ही नहीं पाती. फिल्म वाले लोग आज कल 'स्टोरी इज़द किंग' और 'हमारी फिल्म की हीरो स्टोरी है' टाइप की बातें करते हैं. मगर इस बात कोसमझने या अमल में लाने को तैयार नहीं हैं.एयरस्ट्रिप की मरम्मत में विजय की मदद करने वाली सुंदरबेन के किरदार में सोनाक्षीसिन्हा.हर बात पर छाती ठोंककर देशभक्ति दिखाना ज़रूरी नहीं है. देशभक्ति चिल्ला-चिल्लाकरबताने वाली चीज़ नहीं है, वो आपकी नीयत और काम में नज़र आनी चाहिए. 'भुज' को मैंदेशभक्ति फिल्म नहीं मानूंगा. क्योंकि अगर ये फिल्म दुनिया में कोई भी देखेगा, उसेलगेगा कि इंडिया में लोग क्या ही पिक्चर बनाते हैं. एक असली और कमाल की स्टोरी कोढंग से परदे पर उतार भी नहीं पा रहे. तो क्या इससे इंडिया का मान बढ़ेगा?एक आदमी गोली-बंदूक और तमाम हथियारों से लैस आर्मी के सैकड़ों जवानों को सिर्फकुल्हाड़ी से मार देता है. जहां एयरस्ट्रिप मरम्मत का काम चोरी-छुपे करना था. ताकिपाकिस्तानी एयरफोर्स को पता न चले. मगर यहां एयरस्ट्रिप की मरम्मत फुल ढोल-नगाड़ेऔर नाच-गाने के साथ हो रही है. भजन-भोजन हो रहा है. फिल्म का हीरो हर दूसरी बात मेंअपने मराठी होने का ताव दे रहा है. एक तरफ युद्ध चल रहा है. लोगों की जानें जा रहीहै, तो दूसरी तरफ हर पांच मिनट के बाद सीनियर ऑफिसर से अपने जूनियर से पूछ रहा है-'अरे मेरे शेर की आंखों में उदासी.' समझ ही नहीं आ रहा कि हो क्या रहा है पिक्चरमें!फ्लाइट लेफ्टिनेंट विक्रम सिंह बाज के रोल में पंजाबी एक्टर और सिंगर एमी विर्क.ओवरऑल एक्सपीरियंस'भुज- द प्राइड ऑफ इंडिया' देखना मेरे लिए बहुत ही निराशाजनक अनुभव रहा. अगर हमदेशभक्ति के नाम पर बुरी फिल्में देखते और उसकी तारीफ करते रहेंगे, तो हमें वहीदिखाया जाता रहेगा. प्रोड्यूसर्स पैसे कमाते रहेंगे और जनता मानसिक रूप से दिवालियाहोती जाएगी. मैं चाहता हूं कि अधिक से अधिक लोग इस फिल्म को देखें और ये समझने कीकोशिश करें कि वॉर फिल्में कैसी नहीं होनी चाहिए. 'भुज द प्राइड ऑफ इंडिया' को आपडिज़्नी+हॉटस्टार पर स्ट्रीम कर सकते हैं.