Angry Young Men - Series Review
कैसी है Salim Khan और Javed Akhtar के आइकॉनिक सिनेमा पर बनी सीरीज़ Angry Young Men?
Angry Young Men
Director: Namrata Rao
Rating: 4 Stars (****)
Salim-Javed. हिंदी सिनेमा के इतिहास की किताब इन दोनों नामों के बिना अधूरी है. Salim Khan और Javed Akhtar दो अलग दुनियाओं से मुंबई शहर में आए थे. एक राज्य. लेकिन शहर अलग. एक संघर्ष लेकिन सपने अलग. हालात दोनों को साथ लाया. मौका दिया कि ज़िंदगी के कड़वे, मीठे अनुभवों को कागज़ पर उतार सकें. सलीम-जावेद की जोड़ी एक बार लिखने बैठी तो फिर किसी के रोके नहीं रुकी. पेपर पर हिंदी, उर्दू में अपना पूरा गुस्सा उतार दिया. ये सिर्फ सलीम-जावेद का गुस्सा नहीं था, बल्कि उस पूरी पीढ़ी का गुस्सा था. ये वो पीढ़ी थी जिसके लिए आज़ाद भारत के सपने धुंधले होने लगे. उसी रोष के प्रतिनिधि के रूप में जन्म हुआ ‘एंग्री यंग मैन’ का.
सलीम-जावेद के बारे में बहुत कुछ लिखा और कहा जा चुका है. इसी कोशिश को आगे बढ़ाते हुए अब अमेज़न प्राइम वीडियो की सीरीज़ Angry Young Men आई है. इसे Namrata Rao ने डायरेक्ट किया है. इस डॉक्यू-सीरीज़ के लिए नम्रता और उनकी टीम ने सलीम-जावेद के करीबी लोगों से बात की. सलमान खान, फरहान अख्तर, ज़ोया अख्तर, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, हनी ईरानी और धर्मेन्द्र जैसी शख्सियतों ने अप, क्लोज़ और पर्सनल लेवल पर अपने अनुभव बयां किए. सलीम-जावेद खुद भी इस सीरीज़ का हिस्सा थे. उनके संघर्ष और बचपन पर इतनी बात हो चुकी है, उसके बावजूद उन्होंने कुछ ऐसे हिस्सों को छूआ जो आपके दिल में अंदर तक आकर चुभते हैं.
जावेद अख्तर बताते हैं कि एक समय उन्होंने बहुत तंगहाली में ज़िंदगी बिताई थी. उसके इतर आज वो बड़े होटल्स में जाते हैं, लोग उनका ध्यान रखते हैं. ये कहते हुए जावेद अख्तर का गला रुंध गया. उनकी आंखें नम होने लगी. वो कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि वो ये सब डिज़र्व करते हैं. उन्हें लगता है कि वो किसी और का हिस्सा खा रहे हैं. इस पॉइंट पर वो इंसान महान गीतकार, स्क्रीनप्ले राइटर या शायर नहीं है. वो ऐसा आदमी नहीं जिसके काम ने हिंदी सिनेमा का रुख हमेशा के लिए बदल दिया. वो बस एक वल्नरेबल इंसान है. ऐसा इंसान जो आज भी अपने बचपन से उपजे ट्रॉमा में जकड़ा हुआ है.
फिर हम उनके जोड़ीदार सलीम खान से मिलते हैं. हम देखते हैं कि कैसे ‘अंदाज़’ और ‘सीता गीता’ जैसी फिल्मों ने इस जोड़ी की नींव रखी. आगे चलकर ‘ज़ंजीर’, ‘दीवार’ और ‘शोले’ ने उसे पुख्ता किया, और इस कदर पुख्ता किया कि आज तक कोई हिला नहीं सका. ये दोनों लोग आसमान में थे, फिर ग्रैविटी और खराब काम उन्हें नीचे लेकर आया. इस वक्त को याद करते हुए सलीम खान कहते हैं कि नाकामयाबी से ज़्यादा कामयाबी ने लोगों को बर्बाद किया है. उनकी फिल्मों के डायलॉग्स की तरह ये बहुत नपी-तुली बात थी. जैसे इस एक वाक्य को कहते हुए उन्हें अपना कॉन्फिडेंस, अपना ऐरोगेंस, इंडस्ट्री वालों के ताने, सब याद आ रहे हों.
‘एंग्री यंग मेन’ की शुरुआत होती है सलीम-जावेद नाम के लैजेंड से. हम सुनते हैं कि कैसे उनके सिनेमा ने सब कुछ बदल दिया. कैसे उनका ओहदा स्टार्स के बराबर और कई बार उनसे भी ऊपर था. इस सीरीज़ की सबसे मज़बूत बात यही है कि ये सलीम-जावेद को हमेशा किसी शिखर पर नहीं रखती. उन्हें ज़मीन पर भी लेकर आती है, एकदम आई लेवल पर. ताकि हम उनकी खासियत, उनकी खामियां, उनकी गिल्ट, सभी से रूबरू हो पाएं. दोनों अपनी टूटी शादी पर बात करते हैं. अपने रिग्रेट्स को याद करते हैं. सलीम-जावेद के बारे में बहुत कुछ पढ़-सुन चुके लोगों को भी ये सीरीज़ ज़रूर देखनी चाहिए.
‘एल्विस’ और ‘द ग्रेट गैट्सबी’ जैसी फिल्में बना चुके Baz Luhrmann कहते हैं कि फिल्में नॉन-फिक्शन नहीं होती. अगर आप कोई डाक्यूमेंट्री बना रहे हैं, और आपने सोचा कि मुझे इस तरफ कैमरा रखना है, तब वो अपने आप फिक्शन बन जाती है, क्योंकि आपने तय कर लिया कि आप इस एक खास तरीके से फिल्म बनाना चाहते हैं. ‘एंग्री यंग मेन’ देखते हुए भी ये बात याद आती है. नम्रता ने कुछ हिस्सों को रोचक बनाने के लिए उन्हें ड्रामेटाइज़ किया है. इसी क्रम में आया अपबीट म्यूज़िक नेरेटिव पर से ध्यान भटकाता है. उसके अलावा आमिर खान और ऋतिक रोशन जैसे मेहमानों को अवॉइड किया जा सकता था. वो लोग सलीम-जावेद के सिनेमा के इम्पैक्ट के बारे में बात कर रहे थे. इसी काम के लिए कुछ स्कॉलर्स भी सीरीज़ का हिस्सा थे. ऐसा लगता है कि ऋतिक और आमिर को सिर्फ स्टार पावर वाले फैक्टर के लिए रखा गया.
खैर, सलीम-जावेद की कहानी और उनके सिनेमा की कहानी इतनी बड़ी है कि उसे तीन एपिसोड में समेटना विशालकाय काम था. उसके बावजूद नम्रता ने उनकी कहानी के कुछ ऐसे हिस्सों को दिखाया जिन पर ज़्यादा आंखों की छाप नहीं पड़ी थी. ‘एंग्री यंग मेन’ देखी जानी चाहिए. ये सलीम-जावेद के सिनेमा से परिचित होने की पहली सीढ़ी होनी चाहिए, आखिरी नहीं.
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