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नर से नारायण बनने की अलख जगाने वाले आज़ाद मन के 20 डायलॉग्स

पढ़िए मानव को महामानव बनाने वाले 20 फ़िल्मी डायलॉग्स. जो सिर्फ़ तन की नहीं, मन की आज़ादी की बात करते हैं.

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जीवन जीने का नाम है
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अनुभव बाजपेयी
15 अगस्त 2022 (Updated: 16 अगस्त 2022, 12:42 IST)
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''कौन आज़ाद हुआ?
किसके माथे से ग़ुलामी की सियाही छूटी,
मेरे सीने में अभी दर्द है महकूमी का
मादर-ए-हिन्द के चेहरे पे उदासी है वही''

सरदार जाफ़री की मशहूर नज़्म की ये पंक्तियां मादर-ए-हिन्द के चेहरे पर जिस उदासी की बात करती हैं, वो क्या है? वो ग़रीबी की उदासी है. समाज में कील की तरह ठुके जातिवाद का दंभ है. धार्मिक कट्टरता का सियासी राग है. प्रेम न कर पाने की कुंठा है. पिता के दबाव में अपना करियर चुन लेने की झुंझलाहट है. इस आज़ाद देश के ग़ुलाम समाज की परछाई है. या स्वतंत्र तन में परतंत्र मन की अकुलाहट है.

हमें एक आज़ादी 15 अगस्त 1947 को मिली. एक आज़ादी तब मिली, जब भारत ने लोकतंत्र की अवधारणा को औपचारिक रूप से स्वीकारा. क्या इन दो मौकों पर हम आज़ाद हो गए? हम असल में तब आज़ाद होंगे, जब समाज के अंतिम व्यक्ति को रहने, खाने, जीने और पढ़ने की संवैधानिक नहीं बल्कि सामाजिक स्वतंत्रता भी मिले. हमने असल आज़ादी की ओर पहला क़दम तब बढ़ाया, जब किसी सुदूर इलाके की किसी अनपढ़ मां की बेटी पहली बार स्कूल गई. जब नीची जाति के समझे जाने वाले शख्स ने मुखिया के ख़िलाफ़ विद्रोह छेड़ दिया. जब किसी लड़की ने गांव में पहली बार प्रेम विवाह किया. जब पतियों ने पत्नियों की रसोई पर अधिकार स्थापित कर लिया. मज़हब पीछे रहा और मानवता आगे आ गई. घर के बच्चों ने अपना करियर ख़ुद चुना. हमने दूसरे की गाली का जवाब मुस्कान से दिया. ये समझ विकसित हुई कि बाहरी आज़ादी से कहीं बड़ी अपने भीतर की आज़ादी है. जब सिर्फ़ तन नहीं, मन भी आज़ाद हुए. हममें उड़ान भरने की ताकत आई. वाहिद प्रेमी कहते हैं:

आज़ाद तो बरसों से हैं अरबाब-ए-गुलिस्ताँ
आई न मगर ताक़त-ए-परवाज़ अभी तक

पढ़िए इसी 'ताक़त-ए-परवाज़ का इंजेक्शन' लगाने वाले 20 डायलॉग्स. जो सिर्फ़ तन की नहीं, मन की आज़ादी की बात करते हैं. 

1.
मंथन

'हां लड़ेंगे'. इस छोटी-सी बात में ख़ुद के बल पर खड़े रहने की ताक़त है. ये विद्रोह का स्वर है. उस सामाजिक ग़ुलामी के विरुद्ध, जिसने सैकड़ों सालों तक ग़रीब को और ग़रीब, अमीर को और अमीर बनाया. ये रसूखदारों के सामने (छोटे समझे जाने वाले व्यक्ति का) अपनी मूछों को ताव देने का साहस है. उस महान लोकतंत्र की नींव का पत्त्थर है, जो प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार देता है.

2.
 
मीरा

स्वतंत्रता का कैनवास बहुत बड़ा है. उस पर हर तरह की आज़ादी को पेंट किया जा सकता है. उसी में से एक है, प्रेम करने की आज़ादी. मीरा उसी आज़ाद प्रेम की कलाकृति है. जो प्रेम को रोग नहीं, भक्ति मानती है. जो अकबर से भी तोहफ़ा ले सकती है. उसके कृष्ण भौगोलिक नहीं, मानसिक आज़ादी की बात करते हैं. प्रेम करने की बात करते हैं. उसके हृदय में बैठे ईश्वर के लिए पूरा विश्व एक देश है. इस संवाद में मीरा ग्लोबल विलेज की परिकल्पना की ओर इशारा करती है. 'वसुधैव कुटुम्बकम' की अगवानी करती है. उसका मानना है, हमारा खून का रिश्ता भले न हो, पर खून बनाने वाले का रिश्ता ज़रूर है.

3.
मुन्ना भाई एमबीबीएस

ये संवाद और मुन्ना का जेस्चर नर से नारायण बनने की कुंजी है. ये सीक्वेंस प्रेम की उस अवधारणा का फिल्मांकन है, जो नि:स्वार्थ है, सफ़ाई करने वाले को सबके बराबर लाकर खड़ा करती है. गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं: सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो यानी जो मुन्ना के अंदर ईश्वर, वही मक़सूद के अंदर भी है. फिर वो छोटा कैसे है? कोई अपने काम से छोटा नहीं हो जाता. किसी के गुस्से को प्रेम से जीता जा सकता है. गुस्सा कितना भी हो कैसा भी हो, प्रेम के आगे सदा बौना ही रहेगा. मुन्ना भाई एमबीबीएस का ये सीक्वेंस बराबरी और प्रेम की आज़ादी का मखमली बिछौना है.

4. 
शिप ऑफ़ थिसीयस

लचीलेपन का नाम आज़ादी है. लोकतंत्र भी इसी लचीलेपन का नाम है. भारत जैसे वैविध्यपूर्ण देश में एक सिरा खींचना है, तो दूसरा सिरा ढीला छोड़ना पड़ेगा. धर्म भी स्वीकार्यता और अनुकूलन सिखाता है. कुछ भी हल करने का कोई एक फिक्स फंडा नहीं है. खासकर यदि उसमें मानव की भावनाएं जुड़ी हों. अपनी पत्थर सरीखी ठोस सोच में तरलता लाना भी आज़ादी है.

5. 
आवारा

'मेरे पास कुछ नहीं तुम्हें देने के लिए, सिर्फ़ प्यार दे सकता हूं', इसी क्षण मानव आज़ाद हो जाता है. ये संवाद आज़ाद प्रेम को एक क़दम और आगे लेकर जाता है. सिर्फ़ मानव से नहीं, बल्कि जानवर से भी प्रेम करो. ये ख़याल अपने आप में मुकम्मल है. मानस क्रांति का एक सिरा इस संवाद से होकर भी गुज़रता है. ऐसी सात्विक क्रांति हमें शांत और परिपूर्ण बनाती है. मानव को महामानव बनाने की अलख जगाती है.

6.
नया दौर

मशीनीकरण सैकड़ों रोज़गार लील गया. फिर भी कोई नहीं चाहता कि आगे बढ़ता हुआ देश रुक जाए. मगर ये भी उचित नहीं कि सरपट दौड़ रहे देश में करोड़ों नागरिक पीछे छूट जाएं. सभी को काम और दो वक़्त की रोटी नसीब हो. एक देश के लिए इससे बड़ी आज़ादी कोई नहीं है कि उसका कोई नागरिक भूखा न सोए. उसकी मूलभूत सुविधाएं पूरी हों. ऐसा न हो कि एक धड़ा आगे निकल जाए और दूसरा बहुत पीछे छूट जाए. ये आज़ादी नहीं, छल है.

7.
आंखों-देखी

इस संवाद में इंसानी दिमाग आज़ाद हो रहा है. उसमें रीजनिंग और साइंटिफिक टेम्परामेंट डेवलप हो रहा है. हर चीज़ को सवाल करने की समझ पैदा हुई है. ये डायलॉग मानव के जिज्ञासु बने रहने को बेहद सरल और सहज ढंग से प्रॉसेस करता है. संजय मिश्रा का किरदार इस अतार्किक समाज में तार्किक आज़ादी की तख्ती उठाए घूम रहा है.

8.
सास बहू अचार प्राइवेट लिमिटेड

‘अकेली स्त्री क्या करेगी?’ ये संवाद इस सामाजिक पिछड़ेपन को धता बताते हुए आगे निकल जाता है. अगर 'स्त्री' फ़िल्म के डायलॉग को सकारात्मक ढंग से इस्तेमाल करें, तो वो स्त्री है कुछ भी कर सकती है. उसे उड़ना आता है. उसे गिरकर उठना और उठकर दौड़ना आता है, वो भी बिना किसी सहारे के. सबसे ख़ास बात, उड़ान भरने के लिए उसे समाज की इज़ाजत की ज़रूरत नहीं. वो भी इस मुल्क़ में समान हक़ रखती है. इस संवाद का दूसरा मर्म निकलता है कि जब आपके साथ कोई नहीं है, तब भी आप अपने साथ हैं. हमें मानव मन को तमाम तरह की कमजोरियों से आज़ाद करना है.

9. 
रंग दे बसंती

‘डर के आगे जीत है.’ इस डर से पार पाना और उसके आगे वो कर पाना जो सही है, सबसे कठिन काम है. इस कठिनाई के हर्डल को पार करके सबसे आगे नहीं, सबके साथ दौड़ना ही आज़ादी है. भयमुक्त मानव ख़ुद के साथ दूसरों के डर को भी सोख लेता है. डर की ढाल को सिर्फ़ अंतरात्मा की तलवार ही भेद सकती है.

10. 
स्वदेस

मर्द और औरत के कंधे से कंधा मिलाकर चलने की स्वतंत्रता. पति-पत्नी सहयोग की भावना से साथ रहें, ना कि सेवा की. स्त्री अपनी इच्छाओं का बलिदान क्यों दे? पुरुष भी क्यों ही दे? दोनों एक-दूसरे की आगे बढ़ने में मदद करें. क्या किसी गाड़ी का एक पहिया ज़्यादा तकलीफ़ उठाता है. दोनों पहिए समान भार वहन करते हैं. यही बराबरी है. यही प्रेम है. यही आज़ादी है.

11.
स्वदेस

एक फिल्म के तौर पर 'स्वदेस' इंट्रोस्पेक्शन और सेल्फ रियलाइजेशन का नाम है. मेलाराम का ये संवाद उसी का नमूना भर है. अमेरिका जाने की बात करने वाला मेलाराम भारत में रहना चाहता है क्योंकि वो ब्रेनड्रेन से आज़ादी की महत्ता को समझ चुका है. उसमें अपनी चौखट को रौशन करने की चाह है. ये संवाद उलझी सोच के सुलझने का नायाब उदाहरण है.

12.
डोर

'दिल कभी बोलना बंद नहीं करता'. जिस दिन बंद कर देता है, मानव मर जाता है. उसके भीतर की चेतना मर जाती है. मन हमेशा बोलता है, कुछ न कुछ कहता है, बस सुनना आना चाहिए. मानव प्रवृत्ति से ही विद्रोही है, उसे अपने ख़यालों को उड़ने की आज़ादी देनी है. मन को किसी भी ग़लत का अस्वीकार करने की प्रैक्टिस करवानी है.

13.
अस्तित्व

 'अस्तित्व' का ये संवाद पुरुष और स्त्री की सेक्सुअल बराबरी की बात करता है. उनकी इच्छाओं की एकरूपता की बात करता है. महिलाएं भी अपनी इच्छाओं को प्रकट करने के लिए आज़ाद हैं, जितना कि पुरुष. तबु यहां एक सवाल उठाती हैं: क्या मर्द का मन, औरत के मन से अलग होता है? क्या मर्द और औरत दोनों मानव का मन नहीं रखते? किसी के अधिकार उसे मर्द या औरत समझकर नहीं इंसान समझकर दिए जाने चाहिए. स्त्री-पुरुष से आगे बढ़कर इंसानी हक़ और आज़ादी की बात होनी चाहिए.

14.
अपूर संसार

जीवन जीने का नाम है. सुख और दुःख दोनों मानव में ही निहित हैं. बात सिर्फ़ इतनी है कि वो किस पक्ष को उभारना चाहता है. सुख की तरफ़ भागना यानी शांति और सच्चाई की तरफ़ भागना. सच्चाई की ओर भागना यानी आदमी से इंसान बनने के क्रम की पहली सीढ़ी चढ़ना. यही सीढ़ी जीवन है और जीवन को घसीटा नहीं जिया जाना चाहिए. मन का उन्मुक्त गगन में उड़ान भरना ही जीवन का सार है.  

15.
बजरंगी भाईजान

मौलाना, बजरंगी से पहले अल्लाह हाफिज़ करता है. बजरंगी सकुचाता है. तो मौलाना उससे हाथ उठाकर कहता है, ‘जय श्री राम.’ यही आज़ादी है. धर्म से ऊपर उठकर गले लगाने की आज़ादी. दूसरे के धर्म का सम्मान करके, उसे प्रेम देने की आज़ादी. इस संवाद में मानव आज़ादी के चरमोत्कर्ष पर पहुंचता है. जहां उसके मन में अपने धर्म के प्रति आस्था है, दूसरे धर्म के प्रति सम्मान.

16.
पीके

पीके का ये डायलॉग भी धार्मिक आज़ादी की बात करता है. धर्म मानव का बनाया एक सिस्टम है. कोई जन्म से धर्म का ठप्पा लेकर पैदा नहीं होता. उसे आज़ादी है, चाहे किसी धर्म को माने या न माने. धर्म उस पर थोपा नहीं जा सकता. वो आस्था का विषय है. और आस्था भीतर से संचारित होती है, बाहर से भरी नहीं जा सकती. फ़िलहाल ईश्वर को रक्षा की नहीं, मानवता को रक्षा की ज़रूरत है.

17.
गाइड

जब इंसान सब तरफ़ से ऊब जाता है. थक जाता है. उसे कोई रास्ता नहीं दिखता. शांति की खोज उसे आध्यात्म की ओर खींच लाती है. हालांकि ये कोई जादू की पुड़िया नहीं जिसे खाते ही शांति मिल जाएगी. ये एक लम्बी प्रक्रिया है, जो सबसे पहले अहंकार को मारती है, फिर मानव को इच्छाओं से मुक्त कर देती है. इच्छा और अहंकार से मुक्त मानव इस संसार का सबसे आज़ाद प्राणी है.

18.
पार

मालिक कोई भगवान नहीं है. उसे भी क़ानून मानने पड़ेंगे. हमें अधिकार है अपनी बात मनवाने का, अपने हक़ की बात करने का. हम लड़ेंगे. काम पर जाना बंद कर देंगे. सत्याग्रह करेंगे. सत्याग्रह में बड़ी ताक़त होती है. इसने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया. 'पार' फ़िल्म का ये संवाद कामगारों की आज़ादी की बात करता है.

19.
लगान

ये मानसिक चेतना उत्पन्न करने वाला संवाद है. किसी भी चुनौती को स्वीकार करके अपनी आज़ादी हथियाने का साहस है. किसी भी हालत में हार न मानने का जज़्बा है. ये अन्न आन्दोलन है. राइट टू फ़ूड और राइट टू लाइफ की लड़ाई है. यहां क्रिकेट आज़ादी का टूल है.

20.
गांधी

गांधी मजबूरी का नहीं, मजबूती का नाम है. वो भौतिक नहीं अपितु आंतरिक युद्ध की बात करता है. सारे युद्ध हृदय में लड़े जाने चाहिए. सच्ची आज़ादी है, इर्ष्या से ऊपर उठना, ख़ुद में मौजूद क्षमा के गुण को और अधिक रिफाइन करना. प्रेम करना. समानुभूति और सहनशीलता को मानवीय धर्म समझना. 

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