The Lallantop
Advertisement

फिल्म रिव्यू : 12th फेल

कुछ मौकों पर 12th Fail ओवर ड्रामैटाइज हो जाती है. लेकिन विधु विनोद चोपड़ा ने हाथ लगाया है, तो ट्रीटमेंट अच्छा हो गया है. फिल्म इमोशंस की गठरी है. इसे विक्रांत मैसी के लिए देखा जाना चाहिए.

Advertisement
12th fail movie review
विक्रांत मेसी ने फिल्म में कमाल काम किया है
pic
अनुभव बाजपेयी
27 अक्तूबर 2023 (Published: 16:14 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

हाल ही में विधु विनोद चोपड़ा की कुछ पुरानी फिल्में सिनेमाघरों में लगी थीं. 'परिंदा' और '1942 अ लव स्टोरी' हमने भी देखी. ये वैसी फिल्में थीं, जिनमें रियल और कमर्शियल सिनेमा की लाइन ब्लर होती है. इन्हें देखते हुए लगा अगर इसे फॉर्मूला फिल्ममेकिंग कहते हैं, तो ऐसी और फिल्में बननी चाहिए. बहरहाल इस फैनडम से खुद को अलग रखते हुए, उनकी हालिया रिलीज 12th Fail देख डाली है. बताते हैं कैसी है?

फिल्म अनुराग पाठक की किताब 'ट्वेल्थ फेल' पर आधारित है. और ये किताब सच्ची घटनाओं पर आधारित है. मनोज कुमार शर्मा के चम्बल के एक गांव से निकलकर आईपीएस बनने की कहानी. इस बीच उनके क्या संघर्ष रहे, कैसे एक लड़का जो आईपीएस का आई भी नहीं जानता था, बिना पैसों के दिल्ली आता है. यूपीएससी एग्ज़ाम में झंडे गाड़ता है. इन सबमें उसका साथ देती है गर्लफ्रेंड श्रद्धा और उसका प्रेम. ये फिल्म इस मिथक को तोड़ती है कि प्रेम पथ से विचलित करता है. कई बार, इन्फैक्ट ज़्यादातर बार, प्रेम पथ से विचलित हो रहे व्यक्ति को संतुलन देता है.

विधु विनोद चोपड़ा की फिल्मों को आप देखेंगे, तो उनकी स्टोरीटेलिंग के साथ-साथ सिनेमैटोग्राफी में भी कुछ अलग बात होती है. 'ट्वेल्थ फेल' भी कोई अपवाद नहीं है. फिल्म में चम्बल वाले दृश्यों को रंगराजन रामबद्रन ने कई-कई मौकों पर बहुत अच्छे ढंग से फिल्माया है. डॉक्यूमेंट्री स्टाइल में वो हैंडहेल्ड कैमरा लेकर भागे हैं. इसके अलावा एक-दो शॉट को स्पेशल मेंशन अवॉर्ड देना चाहूंगा. एक जगह मनोज अपनी जुगाड़ वाली गाड़ी में जा रहा होता है. ड्रोन कैमरा उसके साथ-साथ चल रहा होता है. अचानक उसके सामने एक गाड़ी आ जाती है. ऐसे में कोई कट नहीं आता, कैमरा पीछे होता जाता है और एकदम टाइट फ्रेम वाइड ऐंगल बन जाता है. कोई नया प्रयोग नहीं है, लेकिन सुंदर तो है ही. ऐसे ही एक छाते के अंदर से पीओवी शॉट है. हालांकि मनोज के दिल्ली आने के बाद कैमरा वर्क और सिनेमैटोग्राफी बहुत साधारण हो जाती है. उसकी रॉनेस खत्म हो जाती है. अच्छा कैमरावर्क वो होता है, जिसमें नंगी आंखों से जो आप देख सकते हैं, हूबहू वैसा ही स्क्रीन पर दिखे. दिल्ली वाले सीन्स में ये मिसिंग है.

बहरहाल अब आते हैं स्टोरीटेलिंग पर. ऐसी हमने कई कहानियां देखी हैं. मुखर्जी नगर के संघर्षों को देखते हुए कुछ-कुछ मौकों पर टीवीएफ 'एस्पिरेंट्स' याद आएगा. इसमें आपको एक संदीप भैया जैसा किरदार भी मिलेगा, जो सबकी मदद करता है. कहने का मतलब है, यूपीएससी एस्पिरेंट्स की लाइफ कमोबेश एक-सी होती है. इस फिल्म में भी उसी तरह की लाइफ दिखती है. लेकिन विधु विनोद चोपड़ा ने हाथ लगाया है, तो ट्रीटमेंट अच्छा हो गया है. कुछ-कुछ सीन बहुत ज़्यादा इमोशनल बन पड़े हैं. फिल्म देखते हुए लग रहा था कि मैं फिजूल में भावुक हो रहा हूं. लेकिन सिनेमाघर में बैठा एक बड़ा ग्रुप, जो पहले हंस रहा था कई सीन्स में अचानक रोने लगा. यहीं पर डायरेक्टर जीत गया. उसने दर्शकों को फिल्म के साथ जोड़ लिया. एक सीन है जहां मनोज आटा चक्की के अंदर काम कर रहा है. उसके पिता उससे मिलने आते हैं. इस सीन में साइलेंस का इस्तेमाल बहुत शानदार किया गया है. चक्की की घरघराहट अचानक से बंद होती है. मनोज के पापा खुद को हारा हुआ महसूस करते हैं. अब अपनी ईमानदारी छोड़कर वो भी कालाबाजारी करेंगे. वो कहते हैं: 

‘हम जैसे लोग कभी जीत नहीं पाएंगे’

इस पर मनोज कहता है: 

'लेकिन हार भी तो नहीं मानेंगे'. 

ऐसे ही कई इमोशनल सीन्स फिल्म में हैं. कुलमिलाकर ये पूरी फिल्म इमोशंस की गठरी है. विधु वनोद चोपड़ा साउन्ड का इस्तेमाल भी बहुत अच्छा करते हैं. एक इंटरव्यू में जैकी श्रॉफ ने उनके सीन ट्रांजेक्शंस के लिए साउन्ड कट इस्तेमाल करने की बात कही थी. इस पिक्चर में भी एकाध जगह ये दिखता है. पहला तो जब मनोज का भाई दुनाली से फायर करता है या फिर पटाखे की आवाज़ हो. चोपड़ा की फिल्म के हर सीन में कोई न कोई आसपास की तीखी आवाज़ आती रहेगी. लेकिन ये तीखापन भी माहौल में घुल रहा होगा. जैसे कुत्ते की आवाज़ हो, घड़ी की टिकटिक या फिर ऑटो चलने की आवाज़. ये बतौर दर्शक हमारे सिनेमैटिक एक्सपीरियंस को बहुत रिच बनाता है.

ये भी पढ़ें: एस्पिरेंट्स सीज़न 2 - सीरीज़ रिव्यू

मनोज के रोल में विक्रांत मैसी ने फोड़ा है. टॉप क्लास परफॉरमेंस है. एकदम वैसा काम, जैसा विकी कौशल ने 'सरदार उधम' में किया था. उनके भविष्य में बहुत रोशनी होने वाली है. मनोज वाले किरदार की तरह ही उनकी ऐक्टिंग का चंबलकाल खत्म होकर अब दिल्लीकाल शुरू होने वाला है. शुरू से लेकर अंत तक जैसे-जैसे मनोज में बदलाव आया, उनकी बॉडी लैंग्वेज में भी दिखता है. उनकी अभिनय कुशलता का उदाहरण देने के लिए किसी एक सीन को मेंशन करना बेमानी होगी. उन्होंने फिल्म के हरेक सीन में कमाल काम किया है. मनोज की गर्लफ्रेंड श्रद्धा के रोल में हैं मेधा शंकर. उन्होंने उम्मीद के मुताबिक काम किया है. बहुत ज़्यादा कोई लीक से हटकर काम नहीं है. मनोज के यूपीएससी सीनियर के रोल में अंशुमान पुष्कर का काम भी अच्छा है. इससे पहले हमने उन्हें 'ग्रहण' में देखा था. 'कटहल' वाले अनंतविजय जोशी का काम भी सधा हुआ है. ऐक्टिंग फ्रंट पर फिल्म कमाल है. यहां तक कि दृष्टि आईएएस वाले विकास दिव्यकीर्ति ने भी सही ऐक्टिंग की है. 

कुछ मौकों पर फिल्म ओवर ड्रामैटाइज हो जाती है. लगता नहीं कि ये सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म है. खासकर इंटरव्यू वाले हिस्से में ऐसा मुझे महसूस हुआ. बहरहाल फिल्म देखने लायक है. विक्रांत मैसी के लिए तो ज़रूर ही देखनी चाहिए. 

वीडियो: एस्पिरेंट्स सीज़न 2 - सीरीज़ रिव्यू

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement