अमृतसर हादसे वाले ट्रेन ड्राइवर का नाम इम्तियाज़ अली है या मनोज मिश्रा?
या कुछ और?
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सोशल मीडिया की लानतों पर अब से पहले भी कई बार कहा-सुना जा चुका है. लाशों की राजनीति के लिए तो ये मंच बिल्कुल मुफीद साबित हुआ है. लेकिन इसका सबसे घिनौना रूप तब सामने आता है, जब कुछ लोग किसी समुदाय विशेष को टार्गेट करने के लिए झूठ की ढाई ईंट का महल खड़ा कर लेते हैं. अमृतसर की ट्रेजेडी के बाद भी ऐसा ही कुछ सामने आया. जिसे देखकर दुःख भी होता है, चिढ़ भी होती है और तरस भी आता है.
अमृतसर ट्रेन हादसे के तुरंत बाद ज़िम्मेदारी तय करने की राजनीति शुरू हो गई थी. मरने वालों की लाशें अभी पूरी तरह ट्रैक से हटाई भी नहीं गई थीं कि खेमों में बंटे लोग एक दूसरे की पार्टी को ज़िम्मेदार ठहराने लगे थे. इसे भी हमारे मुल्क की बदकिस्मती समझ के कबूल लिया लोगों ने. पर अब जो हो रहा है वो और भी ज़्यादा घटिया है. ट्रेन ड्राइवर का फ़र्ज़ी नाम उछालकर माहौल गंदा किया जा रहा है.
ऐसे हादसों को रोका जाने के लिए क्या होना चाहिए इसे छोड़कर बाकी सब चीज़ों पर चर्चा हो रही है.
एक काम कीजिए. फेसबुक पर 'अमृतसर ट्रेन ड्राइवर नाम' लिखकर सर्च कीजिए. कई सारी पोस्ट्स दिखाई पड़ जाएंगी जिनमें छाती ठोककर कहा जा रहा होगा कि ड्राइवर का नाम 'इम्तियाज़ अली' है. यानी की ड्राइवर मुसलमान है. और जब ड्राइवर मुसलमान है तो ज़ाहिर सी बात है जो हुआ वो दुर्भाग्यपूर्ण एक्सीडेंट नहीं, बल्कि हत्याकांड है. जानबूझकर मुसलमानों ने हिंदुओं को मार डाला है. कुल मिलाकर ये दुर्घटना नहीं साजिश है, जिहाद है, हिंदुओं पर हमला है.
देखिए ऐसी कुछ पोस्ट्स:
एक और,
ये तीसरा,
तीन सैम्पल काफी हैं ये सर्कस समझने के लिए. फेसबुक-ट्विटर पर भरमार है ऐसी पोस्ट्स की. जबकि ये बात जगविदित है कि उस ट्रेन ड्राइवर का नाम 'अरविंद कुमार' है. तमाम बड़े मीडिया संस्थानों ने ड्राइवर अरविंद कुमार की वो तहरीर छापी है जो उन्होंने अमृतसर स्टेशन पहुंचकर अपनी रिपोर्ट के तौर पर लिखी थी. जो शुरू ही उनके नाम से होती है. एक बार फिर पढ़ लीजिए.
बावजूद इसके नफरती लोग झूठ का जाल बुनने से बाज़ नहीं आ रहे. हमें हैरानी होती है ये सोचकर भी कि कहीं कोई ऐसा शख्स भी है जिसने मामले को ये गंदा मोड़ देने का सोचा. पहले एक मुस्लिम नाम सोचा. फिर उसे सुनियोजित तरीके से वायरल करवाया. हो सकता है ऐसा एक शख्स न होकर पूरी टीम हो. उनके अपने एजेंडे हों. जो भी हो लेकिन ये सब है बेहद बुरा. और खतरनाक भी. इससे इस मुश्किल दौर में भारत के दो प्रमुख धर्मों के बीच की खाई और भी चौड़ी होती है. यही लोग इस देश की खुशहाली के असली दुश्मन हैं.
कोई बड़ी बात नहीं कि अगर ड्राइवर के मुसलमान होने का स्टंट न चल पाए तो उसकी जाति खोजी जाने लगे. ताकि उस बहाने आरक्षण को गरियाया जा सके. ऐसा भी पहले हो चुका है. चाहे बनारस का पुल गिरने की घटना हो या कोलकाता का ब्रिज हादसा. लोग शोक मनाना छोड़कर ठेकदारों की, इंजीनियर्स की जाति तलाश रहे थे. और कह रहे थे कि आरक्षण ने ही ऐसी सिचुएशन को जन्म दिया है. अरविंद कुमार को इम्तियाज़ बनाने में नाकामी मिली तो जाति वाला पत्ता फेंटा जाने की संभावना पूरी-पूरी है. भले ही ऐसा न हो, लेकिन हुआ तो हमें कोई हैरानी नहीं होगी. लोग गिरने की ऐसी ऊंचाइयां छू चुके हैं कि कुछ भी मुमकिन है.
कोलकाता में पल गिरने पर लोग आरक्षण तक पहुंच गए थे.
ऐसा नहीं है कि मूर्खता का परनाला एक ही दिशा से बहता है. आरक्षण को बिना बात कोसने वालों का काउंटर भी मार्केट में आ गया है. वही ज़ुबान, वही तेवर, वही झूठ. कुछ लोग ड्राइवर का नाम मनोज मिश्रा बता रहे हैं. यानी कह रहे हैं कि ब्राह्मणों का किया धरा है. इनको भी कुछ लेना देना नहीं है कि ये लोग झूठ फैला रहे हैं. एक सैम्पल देख लीजिए आप लोग.
झूठ का काउंटर और बड़ा झूठ.
ये लोग जो करें से करें, आप इनके झांसे में न आइएगा. थोड़ा सा कॉमन सेंस लगाने भर से आप समझ जाएंगे कि जो आपको परोसा जा रहा है वो भरोसे लायक है या नहीं. याद रखिए, नफरत के इन सौदागरों की दुकान आपके ही भरोसे चलती है. आप इनका कचरा आगे फैलाने से मना कर देंगे तो इनका एजेंडा पहले की कदम पर ध्वस्त हो जाएगा. अब वक़्त आ गया है देशभक्ति के तमाम छोटे बड़े पैमानों में एक पैमाना और जोड़ा जाए. उन्हें बेहिचक देशप्रेमी माना जाए जो फेक न्यूज़ से न्यारे-न्यारे ही रहते हैं. जो न ऐसी ख़बरों पर यकीन करते हैं, न आगे फॉरवर्ड करते हैं.
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