आज एक ऐसे इंसान का जन्मदिन है, जिसको भारत की राजनीति में बहुत कुछ बदलने का श्रेयप्राप्त है. भारत में बसे एक देश उत्तर प्रदेश की राजनीति बदलने का श्रेय प्राप्तहै. किसानों की बातों को कागजों और पॉलिसी से उठाकर नेतागिरी में बदलने का श्रेयप्राप्त है. आज चौधरी चरण सिंह की बरसी है.भारत के पांचवें प्रधानमंत्री. गाजियाबाद जिले के हापुड़ में जन्म हुआ था चरण सिंहका. 23 दिसंबर 1902 को. ये ऐसा परिवेश था जिसमें किसानों की समस्यायें जरा सी आंखघुमाने पर दिख जातीं. ना चाहते हुए भी एक इंसान के मन में इसकी रेख खिंच जाती.गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिंडन नदी के किनारे ही बनाया नमकचरण सिंह ने आगरा विश्वविद्यालय से लॉ में डिग्री ली. 1928 में गाजियाबाद में वकालतकरने लगे. उसी वक्त अपने समाज के लोगों की समस्याओं को गौर से देखने लगे. ये वोवक्त था जब देश में गांधी का कहा चलता था. जनता उनके पीछे-पीछे चलती थी. तो 1929में लाहौर में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य का ऐलान किया. नेहरू कांग्रेस के सबसेबड़े नेता के रूप में उभरे. चरण सिंह ने इस से प्रभावित होकर गाजियाबाद मेंकांग्रेस कमिटी का गठन किया. 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ. अब गाजियाबादमें समंदर तो था नहीं. तो चरण सिंह हिंडन नदी के किनारे पहुंच गये. नमक बनाने. जेलहो गई. 6 महीने तक. वापसी के बाद चरण सिंह बिल्कुल ही स्वतंत्रता आंदोलन में आ गये.1937 में चुनाव हुए. बागपत से चरण सिंह विधान सभा के लिए चुने गये. विधानसभा में एकबिल पेश किया. किसानों की फसल से संबंधित. ये उस वक्त का क्रांतिकारी बिल था.क्योंकि ब्रिटिश सरकार ने भारतीय किसानों को ही सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई थी.मुगलिया टैक्स सिस्टम को हटाकर बेहद क्रूर सिस्टम लाया था अंग्रेजी सरकार ने. भारतमें इसकी वजह से गरीबी बहुत फैल गई थी. किसानों को लगता था कि अब कुछ नहीं हो सकता.पर 1937 की कांग्रेस सरकार ने अप्रत्याशित रूप से एक नई जान फूंक दी किसानों में.कांग्रेस के चुनाव लड़ने को लेकर लोगों ने बड़ी आपत्ति जताई थी. कि ब्रिटिश सरकारकी बात मान रहे हैं. पर किसानों पर ध्यान और दंगों को लेकर कड़ा रुख कांग्रेस कीउपलब्धि रही 1937 की सरकार बनने के बाद. साथ ही भविष्य के लिए ग्राउंड तैयार हुआ.1928 में किसान के मुकदमों के फैसले करवाकर उनको आपस में लड़ने के बजाय आपसी बातचीतद्वारा सुलझाने की कोशिश शुरू की. 1939 में कर्जा माफी विधेयक पास करवाकर किसानोंके खेतों की नीलामी रुकवाई. 1939 में ही किसान के बच्चों को सरकारी नौकरियों में 50फीसदी आरक्षण दिलाने की कोशिश की, पर इसमें सफलता नहीं मिल पाई. 1939 में किसानोंको टैक्स बढ़ाने और बेदखली से मुक्ति दिलाने के लिए जमीन उपयोग का बिल तैयार किया.1940 में कांग्रेस बड़ी उहापोह में थी कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ें किनहीं. छोटे स्तर पर व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरूआत हुई. चरण सिंह इसमें भी शामिलहुए. जेल गये. फिर छूटे. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में चरण सिंह को फिर मौका मिला.अंडरग्राउंड हो गये. एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया. पुलिस का आदेश था किदेखते ही गोली मार दी जाए. पर चरण सिंह सभा कर के हर जगह से निकल जाते. अंत मेंगिरफ्तार हो गये. डेढ़ साल की सजा हुई. जेल में ही उन्होंने किताब लिखी. शिष्टाचार.कांग्रेस में रहते हुए नेहरू के विरोधी रहे, फिर पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाईयूपी मेंआजादी के बाद भारत में सोवियत रूस की तर्ज पर आर्थिक नीतियां लगाई गईं. पर कई लोगोंका कहना था कि इंडिया में ये चलेगा नहीं. ये धड़ा कहता था कि किसानों को जमीन कामालिकाना हक देने से ही बात बनेगी. चरण सिंह भी इन्हीं में से थे. नेहरू का विरोधकरने वाले नेताओं में थे ये लोग. उस वक्त नेहरू का विरोध करना ही बड़ी बात थी.राजनैतिक करियर पर असर पड़ता. पर इन लोगों ने अपनी बात कहनी शुरू कर दी थी.मधु लिमये और राम मनोहर लोहिया समेत उस वक्त के बड़े नेताचरण सिंह चुनाव लड़ना शुरू किये. कांग्रेस से ही. 1952, 1962 और 1967 की विधानसभामें जीते. गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी रहे. रेवेन्यू,लॉ, इनफॉर्मेशन, हेल्थ कई मिनिस्ट्री में भी रहे. संपूर्णानंद और चंद्रभानु गुप्ताकी सरकार में भी मंत्री रहे.1967 में चरण सिंह ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी. भारतीय क्रांति दल नाम से अपनीपार्टी बना ली. राम मनोहर लोहिया का हाथ था इनके ऊपर. चुनाव हुए. उत्तर प्रदेश मेंपहली बार कांग्रेस हारी. चरण सिंह मुख्यमंत्री बने. 1967 और 1970 में. 1952 में हीउत्तर प्रदेश में जमींदारी प्रथा खत्म हुई. लेखपाल का पद बना था. जमीन के मामलेदेखने के लिए. अब ये करप्ट पोस्ट मानी जाती है. पर इरादे थे जमींदारी खत्म करकिसानों की मदद करना. अपने मुख्यमंत्री काल में चरण सिंह ने एक मेजर डिसीजन लेतेहुए खाद पर से सेल्स टैक्स हटा लिया. सीलिंग से मिली जमीन बांटने की कोशिश कीकिसानों में. पर उत्तर प्रदेश में ये सफल नहीं हो पाया. इसकी कई वजहें थीं. पर हमये कह सकते हैं कि हमारे नेताओं ने सही वक्त पर सही डिसीजन नहीं लिया.चरण सिंह की रैलीफिर वो प्रधानमंत्री बने जिसे कभी संसद में बोलने का मौका नहीं मिलाउसके बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बन चुकी थीं. देश में माहौल गड़बड़ हो गया था.1975 में इंदिरा ने विवादास्पद डिसीजन लिया. इमर्जेंसी लगा दी. चरण सिंह भी जेल मेंडाल दिये गये. जेल में विरोधी पक्ष लामबंद हो गया. 1977 में चुनाव हुए लोकसभा के.इंदिरा हारीं. बुरी तरह. और देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने मिलकरसरकार बनाई. उस वक्त ये सोचना असंभव लगता था. जनता पार्टी की सरकार बनी. मोरार जीदेसाई प्रधानमंत्री बने. चरण सिंह इस सरकार में उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री रहे.परिवार के साथ चौधरी चरण सिंहपर जनता पार्टी में कलह हो गई. ढेर जोगी मठ के उजाड़. मोरार जी की सरकार गिर गई.बाद में कांग्रेस के ही सपोर्ट से चरण सिंह प्रधानमंत्री बने. 28 जुलाई 1979 को. 20अगस्त तक का टाइम दिया गया था बहुमत साबित करने के लिए. इंदिरा ने 19 अगस्त कोसमर्थन वापस ले लिया. सरकार गिर गई. संसद का बगैर एक दिन सामना किये चरण सिंह कोरिजाइन करना पड़ा. कहते हैं कि अगर इस प्रधानमंत्री ने बोला होता संसद में, तोकिसानों की कहानी कुछ और होती.प्रधानमंत्री रहते हुए चरण सिंह कोई फैसला नहीं ले पाये थे. पर वित्त मंत्री रहतेहुए खाद और डीजल के दामों को कंट्रोल किया. खेती की मशीनों पर टैक्स कम किया.नाबार्ड की स्थापना उसी वक्त हुई थी.किसान नेता कहने से चरण सिंह की छवि माडर्न नेताओं की सी नहीं बनती. पर चरण सिंह कोअंग्रेजी बखूबी आती थी. उन्होंने ‘अबॉलिशन ऑफ़ ज़मींदारी’और ‘इंडियाज पॉवर्टी एण्डइट्स सोल्यूशंस’ किताबें भी लिखीं. 29 मई 1987 को चरण सिंह का निधन हो गया.मुलायम सिंह यादव चरण सिंह की ही लीगेसी से आए नेता हैं. चरण सिंह के बेटे अजितसिंह राष्ट्रीय लोक दल पार्टी चलाते हैं. उनके बेटे जयंत चौधरी भी मैदान में आ गयेहैं.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ें:राहुल गांधी और भाजपा की सोशल मीडिया टीम के बीच ये ट्वीटबाज़ी पढ़ने लायक हैयूपी की कैराना लोकसभा की कहानी, जिस 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