हिंदुस्तान की सियासत में ईवन नंबर्स (सम संख्याओं) का बड़ा महत्व है. 1984, 1992और 2002 जैसी संख्याओं का ज़िक्र किए बिना कोई भी सियासी बहस पूरी नहीं हो पाती.इसी सिरीज़ में एक और संख्या है 1994 का उत्तर प्रदेश का मुज़फ्फरनगर तिराहा कांड.2 अक्टूबर को घटी इस घटना ने पूरे प्रदेश को दहला दिया था. पुलिस की गोलियों से लोगमारे गए, औरतों के साथ बलात्कार हुआ. कहा गया कि कुछ लाशों को खेत में दबा दियागया. मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जनता के विलेन बन गए. इससे कुछ ही हफ्ते पहलेमुलायम सिंह यादव पहाड़ के लोगों की मांग पर कह चुके थे,"मैं उनकी परवाह क्यों करूं, कौन सा उन्होंने मुझे वोट दिया था."अगले दिन का अखबार. सोर्स- मेरापहाड़.कॉम--------------------------------------------------------------------------------प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिथौरागढ़ की रैली में कांग्रेस पर रामपुर तिराहाकांड के दोषियों की गोद में बैठने का इल्ज़ाम लगाया है. रामपुर तिराहा कांड मेंकोर्ट में कोई दोषी नहीं साबित हुआ. हां, इसकी बात करते-करते कांग्रेस और भाजपादोनोें ने उत्तराखंड में अपने-अपने मुख्यमंत्री बनवा लिए. आप भी पढ़िए कि देश कीराजनीति को हिला देने वाला कांड क्या था.बात उससे पहले की1990 में मंडल कमीशन ने देश की युवा पीढ़ी को तनाव में डाला. सरकारी नौकरी किसकोमिलेगी, किसको नहीं, इसको लेकर तमाम बातें हिंदुस्तान की फिज़ा में तैर रहीं थी. उससमय अपनी अलग पार्टी स्थापित कर रहे मुलायम सिंह यादव अपने ओबीसी वोट बैंक कोलुभाने के लिए ओबीसी रिज़र्वेशन को हर हाल में लागू करने के पक्ष में थे.मंडल के आने से पहले ही 1989 में उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों के लिए 15प्रतिशत रिज़र्वेशन लागू किया गया था. मंडल की घोषणा के बाद ये सीमा बढ़ा कर 27प्रतिशत कर दी गई. इस आरक्षण ने यूपी के पहाड़ी लोगों में उत्तराखंड की मांग कोतेज़ कर दिया. उन्हें लग रहा था कि इस रिज़र्वेशन के चलते उनकी नौकरियों पर मैदानीइलाकों के लोग कब्ज़ा कर लेंगे.अलग उत्तराखंड की मांग कर रहे आंदोलनकारियों ने 2 अक्टूबर 1994 को दिल्ली मेंप्रदर्शन करना तय किया. इनको रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने मुज़फ्फरनगर के रामपुरतिराहे पर पुलिस और पीएसी की पूरी छावनी बना कर नाकेबंदी कर दी.आंदोलन की एक तस्वीरचश्मदीद की ज़ुबानीहमने उस समय रामपुर तिराहे में आंदोलनकारियों की ओर से मौजूद नेगी जी (पूरे नाम मेंक्या रखा है) से बात की, आगे की कहानी उनके आंखों देखे हादसे का वर्णन है. ''सबकोलग रहा था कि हमारी नौकरियों पर बाहरवाले आकर कब्ज़ा कर लेंगे. गढ़वाली तो फौज औरपुलिस में भर्ती होना जानता है. वो भी छिन जाएगा तो बचेगा क्या. उस समय देश केआर्मी जनरल पहाड़ से थे. फौज से ही आए भुवनचंद्र खंडूरी ने लोगों को इकट्ठा किया,और भी नेता थे जिन्होंने भरोसा दिलवाया कि अलग राज्य के बिना पहाड़वालों का कोईगुज़ारा नहीं.दो सौ से ज़्यादा बसें रामपुर तिराहे पर पहुंचीं. जितने जवान वर्दी में मौजूद थे,उससे कहीं ज़्यादा लोग उनकी तरफ से सादे कपड़ो में मौजूद थे. लोग फौज से छुट्टीलेकर आए थे, ट्रेड यूनियनों के पूरे जत्थे आए थे. महिलाएं साथ में थीं. जब आगे जानेसे रोका गया तो पब्लिक भड़की और पत्थरबाजी शुरू हुई. दूसरी तरफ से लाठीचार्ज हुआ औरगोलियां चलीं. महिलाओं के साथ जो अभद्रता आप सोच सकते हैं, वो सब हुई. हमारीमाताएं-बहनें उस भीड़ में थीं, तो इससे ज्यादा कुछ न बुलवाइये.रात में पुलिस उस तरफ जाने वाली गाड़ियों पर गोलियां और लाठियां बरसा रही थी.गाड़ियां जला दी गईं. वहां के लोगों ने हमारी मदद की, रहने को जगह और खाना दिया.मुज़फ्फरनगर के लोग अगर मदद नहीं करते तो मरने वालों की गिनती और ज़्यादा होती.''प्रदर्शन करती औरतें. सोर्स- उत्तराखंड.और्गहत्याएं और बलात्कार हुए, पर किए किसी ने नहीं!# एफआईआर दर्ज हुई कि आंदोलनकारियों ने दुकानें और गाड़ियां जला दीं. जिसके बादवहां मौजूद अधिकारियों को फायरिंग का आदेश देना पड़ा. 6 लोगों की मौके पर ही मौत होगई.# 1995 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर सीबीआई जांच का आदेश दिया. 28 पुलिसवालोंपर बलात्कार, डकैती, महिलाओं से बदसलूकी, हिंसा और महिलाओं के साथ सार्वजनिक रूप सेअभद्रता के केस दर्ज हुए.# मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने रिटायर्ड जस्टिस ज़हीर हसन से इसकी जांच करवाई.जांच में कहा गया कि मौके की नज़ाकत को देखते हुए बल प्रयोग किया, जो बिल्कुल सहीथा. ‘रबर बुलेट’ फायर किए गए, जिससे अनावश्यक रूप से कुछ प्रदर्शनकारियों की मौत होगई.# 200o में उत्तराखंड एक अलग राज्य बन गया, लोगों को लगा कि इसके बाद राज्य कीसरकार दोषी पुलिसवालों पर सख्ती से कार्रवाई करेगी.# 2003 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 1994 के मुज़फ्फरनगर डीएम अनंत कुमार सिंह कोनामजद किया. जनता पर गोली चलाने का दोषी मानते हुए एक पुलिसवाले को सात साल औरदो पुलिसवालों को दो साल की सज़ा सुनाई.# 2007 में सीबीआई कोर्ट ने एसपी राजेंद्रपाल सिंह को बरी कर दिया. सिंह को उत्तरप्रदेश सरकार का पूरा सहयोग मिला.# 2007 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूरी रामपुर तिराहा गए. वहांघोषणा की, सभी पेंडिंग केस पूरी शिद्दत से लड़े जाएंगे. इस घोषणा के बाद कुछ खासबदलाव हुआ हो, इसकी कोई जानकारी पब्लिक में तो उपलब्ध नहीं है.क्या असर रहा इस हादसे कानेगी जी के ही शब्दों में, ''खंडूरी, बहुगुणा और रावत सब इस कांड का नाम लेकरमुख्यमंत्री बन गए. 15 साल में 8 मुख्यमंत्री देख-देख कर उत्तराखंड 20 साल और पीछेचला गया. जितने पुलिस वाले दोषी थे, उन्हें सज़ा तो दूर उल्टा प्रमोशन दिए गए.बीजेपी राज्य बनाने का श्रेय ले लेती है आरोपी डीएम को एनडीए की सरकार ने ही निजीसचिव बनाया. एसपी से लेकर हवलदार का कुछ नहीं बिगड़ा. ऊपर से आंदोलनकारियों में सेकई को अभी तक शहीद का दर्जा नहीं मिला है. पुरानी पीढ़ी अभी भी गुस्सा है. नए लोगोंके लिए तो ये एक बोरिंग रस्म अदायगी बनकर रह गई है. अभी भी सुकून की बात ये है किसपा उत्तराखंड में कोई ज़मीन नहीं बना पाई. मुलायम का लड़का उनसे समझदार लगता है,ऊपर से उसने इन लोगों को भी राजनीति से रिटायर कर दिया.'' राजनीति फिल्म में एकडायलॉग है,"राजनीति में मुर्दों को बचा के रखा जाता है, ताकि समय आने पर उनका इस्तेमाल कियाजा सके." घटना के समय रामपुर तिराहा. सोर्स- देवभूमिमीडिया.कॉमरामपुर का तिराहा कांड भी उत्तराखंड की सियासत का एक ऐसा मुर्दा बन चुका है, जिसकाज़िक्र अगली बार तब होगा जब उत्तर प्रदेश की बड़ी पार्टियां उत्तराखंड में अपने पैरफैलाने की कोशिश करेंगी.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़ें :मुलायम अपने लड़के से हार गए, मैं इन 4 वजहों से खुश हूं