The Lallantop
Advertisement

रामपुर तिराहा कांड: उत्तर प्रदेश का 1984 और 2002, जिसकी कोई बात नहीं करता

जब पुलिस ने निहत्थे लोगों का कत्ल और रेप किया.

Advertisement
Img The Lallantop
pic
अनिमेष
13 फ़रवरी 2017 (Updated: 12 फ़रवरी 2017, 04:53 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

हिंदुस्तान की सियासत में ईवन नंबर्स (सम संख्याओं) का बड़ा महत्व है. 1984, 1992 और 2002 जैसी संख्याओं का ज़िक्र किए बिना कोई भी सियासी बहस पूरी नहीं हो पाती. इसी सिरीज़ में एक और संख्या है 1994 का उत्तर प्रदेश का मुज़फ्फरनगर तिराहा कांड. 2 अक्टूबर को घटी इस घटना ने पूरे प्रदेश को दहला दिया था. पुलिस की गोलियों से लोग मारे गए, औरतों के साथ बलात्कार हुआ. कहा गया कि कुछ लाशों को खेत में दबा दिया गया. मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जनता के विलेन बन गए. इससे कुछ ही हफ्ते पहले मुलायम सिंह यादव पहाड़ के लोगों की मांग पर कह चुके थे,

"मैं उनकी परवाह क्यों करूं, कौन सा उन्होंने मुझे वोट दिया था."

अगले दिन का अखबार
अगले दिन का अखबार. सोर्स- मेरापहाड़.कॉम



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिथौरागढ़ की रैली में कांग्रेस पर रामपुर तिराहा कांड के दोषियों की गोद में बैठने का इल्ज़ाम लगाया है. रामपुर तिराहा कांड में कोर्ट में कोई दोषी नहीं साबित हुआ. हां, इसकी बात करते-करते कांग्रेस और भाजपा दोनोें ने उत्तराखंड में अपने-अपने मुख्यमंत्री बनवा लिए. आप भी पढ़िए कि देश की राजनीति को हिला देने वाला कांड क्या था.

बात उससे पहले की

1990 में मंडल कमीशन ने देश की युवा पीढ़ी को तनाव में डाला. सरकारी नौकरी किसको मिलेगी, किसको नहीं, इसको लेकर तमाम बातें हिंदुस्तान की फिज़ा में तैर रहीं थी. उस समय अपनी अलग पार्टी स्थापित कर रहे मुलायम सिंह यादव अपने ओबीसी वोट बैंक को लुभाने के लिए ओबीसी रिज़र्वेशन को हर हाल में लागू करने के पक्ष में थे.
मंडल के आने से पहले ही 1989 में उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों के लिए 15 प्रतिशत रिज़र्वेशन लागू किया गया था. मंडल की घोषणा के बाद ये सीमा बढ़ा कर 27 प्रतिशत कर दी गई. इस आरक्षण ने यूपी के पहाड़ी लोगों में उत्तराखंड की मांग को तेज़ कर दिया. उन्हें लग रहा था कि इस रिज़र्वेशन के चलते उनकी नौकरियों पर मैदानी इलाकों के लोग कब्ज़ा कर लेंगे.
अलग उत्तराखंड की मांग कर रहे आंदोलनकारियों ने 2 अक्टूबर 1994 को दिल्ली में प्रदर्शन करना तय किया. इनको रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने मुज़फ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर पुलिस और पीएसी की पूरी छावनी बना कर नाकेबंदी कर दी.
आंदोलन की तस्वीर
आंदोलन की एक तस्वीर

चश्मदीद की ज़ुबानी
हमने उस समय रामपुर तिराहे में आंदोलनकारियों की ओर से मौजूद नेगी जी (पूरे नाम में क्या रखा है) से बात की, आगे की कहानी उनके आंखों देखे हादसे का वर्णन है.
''सबको लग रहा था कि हमारी नौकरियों पर बाहरवाले आकर कब्ज़ा कर लेंगे. गढ़वाली तो फौज और पुलिस में भर्ती होना जानता है. वो भी छिन जाएगा तो बचेगा क्या. उस समय देश के आर्मी जनरल पहाड़ से थे. फौज से ही आए भुवनचंद्र खंडूरी ने लोगों को इकट्ठा किया, और भी नेता थे जिन्होंने भरोसा दिलवाया कि अलग राज्य के बिना पहाड़वालों का कोई गुज़ारा नहीं.
दो सौ से ज़्यादा बसें रामपुर तिराहे पर पहुंचीं. जितने जवान वर्दी में मौजूद थे, उससे कहीं ज़्यादा लोग उनकी तरफ से सादे कपड़ो में मौजूद थे. लोग फौज से छुट्टी लेकर आए थे, ट्रेड यूनियनों के पूरे जत्थे आए थे. महिलाएं साथ में थीं. जब आगे जाने से रोका गया तो पब्लिक भड़की और पत्थरबाजी शुरू हुई. दूसरी तरफ से लाठीचार्ज हुआ और गोलियां चलीं. महिलाओं के साथ जो अभद्रता आप सोच सकते हैं, वो सब हुई. हमारी माताएं-बहनें उस भीड़ में थीं, तो इससे ज्यादा कुछ न बुलवाइये.
रात में पुलिस उस तरफ जाने वाली गाड़ियों पर गोलियां और लाठियां बरसा रही थी. गाड़ियां जला दी गईं. वहां के लोगों ने हमारी मदद की, रहने को जगह और खाना दिया. मुज़फ्फरनगर के लोग अगर मदद नहीं करते तो मरने वालों की गिनती और ज़्यादा होती.''
प्रदर्शन करती औरतें.
प्रदर्शन करती औरतें. सोर्स- उत्तराखंड.और्ग

हत्याएं और बलात्कार हुए, पर किए किसी ने नहीं!

# एफआईआर दर्ज हुई कि आंदोलनकारियों ने दुकानें और गाड़ियां जला दीं. जिसके बाद वहां मौजूद अधिकारियों को फायरिंग का आदेश देना पड़ा. 6 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई.
# 1995 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर सीबीआई जांच का आदेश दिया. 28 पुलिसवालों पर बलात्कार, डकैती, महिलाओं से बदसलूकी, हिंसा और महिलाओं के साथ सार्वजनिक रूप से अभद्रता के केस दर्ज हुए.
# मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने रिटायर्ड जस्टिस ज़हीर हसन से इसकी जांच करवाई. जांच में कहा गया कि मौके की नज़ाकत को देखते हुए बल प्रयोग किया, जो बिल्कुल सही था. ‘रबर बुलेट’ फायर किए गए, जिससे अनावश्यक रूप से कुछ प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई.
# 200o में उत्तराखंड एक अलग राज्य बन गया, लोगों को लगा कि इसके बाद राज्य की सरकार दोषी पुलिसवालों पर सख्ती से कार्रवाई करेगी.
# 2003 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 1994 के मुज़फ्फरनगर डीएम अनंत कुमार सिंह को नामजद किया. जनता पर गोली चलाने का दोषी मानते हुए एक पुलिसवाले को सात साल और दो पुलिसवालों को दो साल की सज़ा सुनाई.
# 2007 में सीबीआई कोर्ट ने एसपी राजेंद्रपाल सिंह को बरी कर दिया. सिंह को उत्तर प्रदेश सरकार का पूरा सहयोग मिला.
# 2007 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूरी रामपुर तिराहा गए. वहां घोषणा की, सभी पेंडिंग केस पूरी शिद्दत से लड़े जाएंगे. इस घोषणा के बाद कुछ खास बदलाव हुआ हो, इसकी कोई जानकारी पब्लिक में तो उपलब्ध नहीं है.
क्या असर रहा इस हादसे का
नेगी जी के ही शब्दों में,
''खंडूरी, बहुगुणा और रावत सब इस कांड का नाम लेकर मुख्यमंत्री बन गए. 15 साल में 8 मुख्यमंत्री देख-देख कर उत्तराखंड 20 साल और पीछे चला गया. जितने पुलिस वाले दोषी थे, उन्हें सज़ा तो दूर उल्टा प्रमोशन दिए गए. बीजेपी राज्य बनाने का श्रेय ले लेती है आरोपी डीएम को एनडीए की सरकार ने ही निजी सचिव बनाया. एसपी से लेकर हवलदार का कुछ नहीं बिगड़ा. ऊपर से आंदोलनकारियों में से कई को अभी तक शहीद का दर्जा नहीं मिला है. पुरानी पीढ़ी अभी भी गुस्सा है. नए लोगों के लिए तो ये एक बोरिंग रस्म अदायगी बनकर रह गई है. अभी भी सुकून की बात ये है कि सपा उत्तराखंड में कोई ज़मीन नहीं बना पाई. मुलायम का लड़का उनसे समझदार लगता है, ऊपर से उसने इन लोगों को भी राजनीति से रिटायर कर दिया.''
राजनीति फिल्म में एक डायलॉग है,

"राजनीति में मुर्दों को बचा के रखा जाता है, ताकि समय आने पर उनका इस्तेमाल किया जा सके." 



घटना के समय रामपुर तिराहा. सोर्स- देवभूमिमीडिया.कॉम

रामपुर का तिराहा कांड भी उत्तराखंड की सियासत का एक ऐसा मुर्दा बन चुका है, जिसका ज़िक्र अगली बार तब होगा जब उत्तर प्रदेश की बड़ी पार्टियां उत्तराखंड में अपने पैर फैलाने की कोशिश करेंगी.


ये भी पढ़ें :

मुलायम अपने लड़के से हार गए, मैं इन 4 वजहों से खुश हूं

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement