बीजेपी संग गठबंधन, विरासत संभाल पाने में महबूबा मुफ्ती की नाकामी... इन 5 वजहों ने PDP को औंधे मुंह गिराया
Mehbooba Mufti की पार्टी PDP की एक ऐसी इमेज बनी कि वो कभी भी BJP के साथ जा सकती है. या कि PDP सरकार बनाने के लिए अपनी विचारधारा के साथ भी समझौता कर सकती है. दूसरे दलों ने इस इमेज को अच्छे से भुनाया. नतीजा ये निकाला कि PDP मुंह के बल गिर गई.
जानकार बताते हैं कि राजनीति में किसी का अंत नहींं होता. लेकिन कुछ वक्त के लिए ‘किनारा’ जरूर लग सकता है. जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में ऐसा ही हुआ है महबूबा मुफ्ती की पार्टी के साथ. चुनाव में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा. मसलन कि पार्टी की कर्ता-धर्ता महबूबा मुफ्ती (Mehbooba Mufti) की बेटी इल्तिजा मुफ्ती भी चुनाव हार गईं. सीटों के मामले में तो पार्टी ने दम तोड़ा ही, वोट शेयर के मामले में भी PDP काफी पीछे रह गई.
PDP और BJP का गठबंधनबिना किसी गठबंधन के सहारे, PDP अकेले ही इस चुनावी मुकाबले में उतरी थी. गठबंधन से याद आता है, साल 2015. जब राज्य में विचारधाराओं से विपरित जाकर भाजपा और PDP ने गठबंधन किया. और ये गठबंधन जम्मू-कश्मीर की जनता के जेहन में बस गया. नतीजतन मुख्यधारा की ये पार्टी मुंह के बल गिर गई. 5 अगस्त, 2019 को राज्य से आर्टिकल 370 को हटाया गया था. जम्मू-कश्मीर की आवाम इस बात को भी नहीं भूल पाई. लोगों ने इस बात के लिए रिस्क नहीं लिया कि कहीं सरकार बना पाने की स्थिति में PDP फिर से BJP के साथ ना चली जाए. चुनावी अभियान के दौरान दिखा कि यहां के लोग BJP के खिलाफ वोट करना चाहते हैं, खासकर कश्मीर घाटी में.
ये भी पढ़ें: आतंकी अफजल गुरु के भाई को नहीं मिला सपोर्ट, बुरी तरह हार, NOTA से भी पीछे
Mufti Mohammad Sayeed बने मुख्यमंत्रीजब BJP और PDP का गठबंधन हुआ था, तब से ही PDP के खिलाफ माहौल बनना शुरू हुआ. हालांकि, ये एकमात्र कारण नहीं है. कुछ कारण इस गठबंधन के टाइमलाइन में भी है. एक नजर उस टाइमलाइन पर डालते हैं.
- 2014 के लोकसभा चुनाव में BJP की बड़ी जीत हुई और केंद्र में उनकी मजबूत सरकार बनीं. इसके बाद जम्मू-कश्मीर का चुनाव हुआ.
- 28 दिसंबर, 2014 को जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे आए. PDP को 28, BJP को 25, नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) को 15 और कांग्रेस को 12 सीटों पर जीत मिली. चुनाव कुल 87 सीटों पर कराए गए थे. जाहिर है आवाम ने स्पष्ट बहुमत नहीं दिया. लिहाजा यहां ‘गर्वनर रूल’ लगा दिया गया.
- करीब दो महीनों की बातचीत के बाद BJP और PDP का गठबंधन हुआ. 1 मार्च, 2015 को PDP के तब के अध्यक्ष मुफ्ती मोहम्मद सईद ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
- 7 जनवरी, 2016 को बीमारी के कारण नई दिल्ली स्थित AIIMS में मोहम्मद सईद की मृत्यु हो गई.
जाहिर है मुफ्ती मोहम्मद सईद के जाने से पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ. लेकिन इस चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि PDP अब तक उस नुकसान की भरपाई नहीं कर पाई है. उनकी मौत के बाद पार्टी की कमान उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती के हाथों में गई. और जानकार बताते हैं कि मुफ्ती इस जिम्मेवारी को ठीक से संभाल नहीं पाईं. पार्टी को मजबूत करने के साथ-साथ उनके सामने जम्मू-कश्मीर की जनता का आक्रोश भी था. उन्हें लोगों को BJP के साथ गठबंधन का जवाब देना था. इस नाराजगी में कुछ योगदान इस बात का भी रहा कि विचारधारा को दरकिनार करके किए गए इस गठबंधन को भी महबूबा ठीक से चला नहीं पाईं. हुआ यूं कि मुफ्ती मोहम्मद सईद की मौत के बाद BJP के साथ PDP की बात नहीं बनी. और वहांं फिर से ‘गवर्नर रूल’ लगा दिया गया.
ये भी पढ़ें: जम्मू-कश्मीर चुनाव में AAP, BSP को इतने वोट नहीं मिले जितने NOTA दब गए
गठबंधन स्थिर नहीं रहा- गठबंधन में एकमत ना होने की वजह से 8 जनवरी, 2016 को यहां फिर से ‘गवर्नर रूल’ लगाया गया.
- 22 मार्च, 2016 को दिल्ली में महबूबा मुफ्ती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. इसके बाद गठबंधन पर बात बनी.
- 4 अप्रैल, 2016 को महबूबा मुफ्ती ने जम्मू-कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. जाहिर है BJP की मदद से.
- 8 जुलाई, 2018 को दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के कोकरनाग इलाके में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकी बुरहान वानी मारा गया.
- बुरहान वानी की हत्या को लेकर PDP-BJP में मतभेद हुआ क्योंकि इसके बाद हिंसक प्रदर्शन हुए और 85 से अधिक लोगों की मौत हो गई. ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई गई.
- मुफ्ती ने 2003 के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान की गई एक घोषणा का हवाला दिया. और उस घोषणा की तर्ज पर रमजान मे ‘संघर्ष विराम’ की मांग की. BJP नेता कविंदर गुप्ता तब के उपमुख्यमंत्री थे, उन्होंने इस मांग का विरोध किया.
- इसके बाद का समय गठबंधन के लिए अच्छा नहीं रहा. 18 जून, 2018 को BJP ने अपने सभी नेताओं को दिल्ली बुलाया. और गठबंधन से अपना समर्थन वापस लेने की घोषणा की. 20 जून, 2018 को महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.
इस टाइमलाइन से स्पष्ट है कि PDP ने कई बार BJP से बातचीत की. हर बार शर्तों के अनुसार, सरकार बनाई गई. इससे PDP की एक ऐसी इमेज बनी कि वो कभी भी BJP के साथ जा सकती है. या कि PDP सरकार बनाने के लिए अपनी विचारधारा के साथ भी समझौता कर सकती है. इसके बाद कई बड़े नेताओं ने PDP का साथ छोड़ दिया. हालांकि, महबूबा मुफ्ती ने इस इमेज को बदलने का प्रयास किया. जम्मू-कश्मीर के लोगों को ध्यान में रखते हुए कई बयान भी दिए. लेकिन उनके चुनाव अभियान में उस धार की कमी दिखी, जिसकी उन्हें जरूरत थी.
ये भी पढ़ें: हरियाणा में जो हुआ सबने देखा, J&K के नतीजे तो खुद कांग्रेस भी देखना नहीं चाहेगी
PDP की इमेज ऐसी बनी थी कि चुनाव के नतीजों के पहले जब एग्जिट पोल्स जारी किए गए, तब अधिकतर में PDP के गिरते प्रदर्शन की भविष्यवाणी कर दी गई थी. हालांकि, इस बार के एग्जिट पोल्स बहुत ज्यादा सटीक साबित नहीं हुए. लेकिन अधिकतर में कहा गया था कि PDP बहुत बेहतर नहीं कर रही है.
National Conference ने हथियार बनायादूसरे दलों ने इस बात को बढ़िया से भुनाया. उन्होंने PDP के खिलाफ उनके इस इमेज को हथियार बनाया. और प्रचार किया कि ये कभी भी BJP के साथ जा सकते हैं. घाटी में ये काम भी आया. BJP को भले ही यहां सबसे अधिक वोट शेयर (25.64%) मिला हो, लेकिन ओवरऑल रिजल्ट से कम से कम इतना स्पष्ट है कि घाटी के वोटर्स भाजपा को बहुमत से दूर रखना चाहते थे. नतीजा ये निकला कि उन्होंने PDP को भी ऐसा कोई मौका देना ठीक नहीं समझा, जिसमें वो BJP की मदद करने की स्थिति में आ सके.
Congress के साथ से बनी NC की इमेजदूसरी तरफ इसका फायदा नेशनल कॉन्फ्रेंस को हुआ. NC ने शुरुआत से ही कम से कम ये मैसेज दिया कि वो किसी भी हाल में भाजपा के साथ नहीं जाएंगे. इस संदेश को ठोस मजबूती देने के लिए उन्होंने कांग्रेस का सहयोग लेना उचित समझा. हालांंकि, जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का बहुत बढ़िया प्रदर्शन नहीं रहा. लेकिन उनके साथ से NC को अपनी इमेज बनाए रखने में मदद मिली. जाहिर है, INDIA गठबंधन में शामिल होने से PDP को भी अपनी पुरानी इमेज बदलने में मदद मिलती. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. नतीजा सामने है. 2014 में 28 सीटें जीतने वाली PDP मात्र 3 सीटों पर सिमट गई है.
ये भी पढ़ें: कुलगाम में खड़ा रहेगा वामपंथ का किला, मोहम्मद यूसुफ तारिगामी फिर जीते
अभी की स्थिति के अनुसार, मुफ्ती परिवार का कोई भी सदस्य सदन में नहीं होगा. उनकी बेटी श्रीगुफवारा-बिजबेहरा सीट से पहली बार चुनाव लड़ीं. 9770 वोटों से हार गईं. चुनाव के अंतिम परिणाम आने से पहले ही उन्होंने अपनी हार मान ली थी. और एक भावुक सोशल मीडिया पोस्ट किया था. NC के बशीर अहमद शाह वीरी को 33299 वोटों के साथ इस सीट से जीत मिली.
Mehbooba Mufti ने हार नहीं मानीइस चुनाव में हार के बाद मुफ्ती ने कहा,
"ये उतार-चढ़ाव किसी भी पार्टी की राजनीतिक यात्रा का हिस्सा होते हैं. लेकिन PDP के पास एक विजन और एजेंडा है, और इससे हमें उम्मीद के साथ आगे बढ़ने में मदद मिलेगी."
इस बयान से महबूबा मुफ्ती ने इतना तो स्पष्ट कर दिया है कि ये उनकी राजनीति का अंत नहीं है. हालांकि, उनके सामने जम्मू-कश्मीर के वोटर्स का भरोसा जीतने और पार्टी का साथ छोड़ चुके पुराने नेताओं को साथ लाने की चुनौती बरकरार है.
ये भी पढ़ें: नौशेरा सीट पर रविंद्र रैना की हार, NC उम्मीदवार ने BJP प्रदेश अध्यक्ष को हराया
Jammu Kashmir Election का रिजल्टकुल 90 सीटों पर चुनाव कराए गए थे. 42 सीटों पर NC, 29 सीटों पर BJP, 6 सीटों पर कांग्रेस, 3 सीट पर PDP, 1 सीट पर JKPC, 1 सीट पर CPI(M), 1 सीट पर AAP और 7 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों को जीत मिली.
वोट शेयर के मामले में भाजपा को जम्मू-कश्मीर में सफलता मिली है. उन्हें सबसे ज्यादा 25.64 परसेंट वोट मिले हैं. वहीं NC को 23.43 प्रतिशत और PDP को मात्र 8.87 परसेंट वोट मिले हैं. पिछले चुनाव में PDP को 22.9 प्रतिशत वोट मिले थे.
आगे क्या करेगी PDP?NC और कांग्रेस INDIA गठबंधन का हिस्सा हैं. लिहाजा दोनों के पास 48 सीटें हैं. सरकार बनाने के लिए 46 सीटों की जरूरत है. इस तरह NC-कांग्रेस के पास साधारण बहुमत है. चुनाव के नतीजों के पहले NC के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने PDP के साथ गठबंधन की संभावना जताई थी. उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. और उन्होंने उम्मीद जताई कि इससे कांग्रेस को भी कोई दिक्कत नहीं होगी. हालांकि, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ने इस पर सफाई दी. और कहा कि इस पर कोई बातचीत नहीं हुई है और अटकलों को जोर ना दिया जाए. उन्होंने मैसेज दिया था कि इलेक्शन रिजल्ट के बाद इस पर बात की जा सकती है.
वीडियो: इस कश्मीरी लड़के की बातें सुनकर आप भी तारीफ कर देंगे