मध्यप्रदेश चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस जो तिकड़में लड़ा रही क्या वे उसे जीत दिला पाएंगी?
कर्नाटक चुनाव में मिली जीत के बाद कांग्रेस पार्टी उत्साहित है. लेकिन उसकी रणनीति मध्यप्रदेश की सत्ता में वापसी करा पाएगी?
याद कीजिये तीन साल पहले हुए 'ऑपरेशन लोटस' को. 15 साल बाद मध्यप्रदेश की सत्ता में आई कांग्रेस को सरकार छोड़नी पड़ी. ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थित विधायकों की बगावत के बाद पार्टी के पास कोई चारा नहीं बचा. कमलनाथ ने ना चाहते हुए भी कुर्सी छोड़ी. इस बगावत की कहानी ज्यादा पुरानी नहीं हुई है. मध्यप्रदेश में कुछ महीने बाद ही फिर विधानसभा चुनाव होने हैं. अब उन्हीं बागी नेताओं में कुछ वापस आ रहे हैं. कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में वापसी की राह देख रही है. कर्नाटक चुनाव में मिली जीत के बाद पार्टी उत्साहित है. लेकिन सवाल ये है कि कांग्रेस किन नैरेटिव के जरिये सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है.
कर्नाटक वाला कैंपेन काम करेगा?मध्यप्रदेश की राजनीति में सबसे नया कैंपेन 'पोस्टर वॉर' के रूप में शुरू हुआ है. राज्य भर की सड़कों पर आजकल एक पोस्टर नजर आ रहा है. इस पर QR कोड के साथ सीएम शिवराज सिंह चौहान की तस्वीर है. साथ में लिखा है- "50% लाओ, PhonePe काम कराओ." इसी तरह का कैंपेन कर्नाटक में खूब चर्चित हुआ था. वहां कॉन्ट्रैक्टर्स ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर आरोप लगाया था कि राज्य सरकार हर काम के लिए 40 पर्सेंट कमीशन मांगती है. इस मुद्दे को कांग्रेस ने लपक लिया था. जगह-जगह 'PayCM' के पोस्टर चिपकाए गए. कांग्रेस ने '40 पर्सेंट सरकार' नाम की एक वेबसाइट लॉन्च कर दी थी. पूरे चुनाव के दौरान ये एक कीवर्ड बना रहा.
चुनावी विशेषज्ञों ने माना था कि ये कैंपेन कामयाब रहा. इसने नैरेटिव सेट करने का काम किया. अब इसी तरह की रणनीति कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में भी शुरू की है. पार्टी शिवराज सरकार पर 50 पर्सेंट कमीशन लेने का आरोप लगा रही है. दीवारों, दुकानों से लेकर ऑटोरिक्शा तक पर पोस्टर चिपकाए जा रहे हैं. मुख्यमंत्री कमलनाथ से जब मीडिया वालों ने इस कैंपेन पर सवाल किया तो उन्होंने BJP पर आरोप लगाया कि इसे शुरू किसने किया. कमलनाथ ने कहा कि BJP ने उनके पोस्टर लगाने के लिए थर्ड पार्टियों का इस्तेमाल किया.
दरअसल, शिवराज से पहले सड़कों पर कमलनाथ के भी पोस्टर दिखे थे. इसमें कमलनाथ की तस्वीर के साथ "करप्शन नाथ" लिखा हुआ था. पोस्टर में कमलनाथ के खिलाफ कई घोटालों के आरोप भी लगाए गए थे. मध्यप्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा दावा करते हैं,
आगे हिंदुत्व, पीछे हिंदुत्व"50 फीसदी कमीशन तो कम बता रहे हैं, महाकाल लोक में 80 परसेंट तक हुआ है. BJP ने इसकी शुरुआत की है तो इसे खत्म कांग्रेस करेगी."
पिछले कुछ चुनावों में जीत-हार के विश्लेषण का एक बड़ा कीवर्ड 'हिंदुत्व' रहा है. बिना इसके हिंदी पट्टी राज्यों में चुनावी विश्लेषण पूरे नहीं हो सकते. /s मामला भी ऐसा है. मध्यप्रदेश की राजनीति को जानने वाले कहते हैं कि चुनाव ‘हिंदुत्व बनाम हिंदुत्व’ हो गया है. कमलनाथ खुद के लिए दो पद लिखते हैं- एक तो मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, दूसरा 'हनुमान भक्त'. आजकल एक ऐसा पोस्टर नहीं दिखेगा, जिसमें कमलनाथ खुद को हनुमान भक्त बताने से चूक रहे हों. पार्टी के ट्विटर हैंडल पर जाने के बाद कांग्रेस के चुनावी मूड को समझने में मदद मिलती है.
6 जून को मध्यप्रदेश कांग्रेस ने एक ट्वीट किया था. इसमें 'हनुमान भक्त' कमलनाथ सरकार के दौरान धार्मिक कामों को गिनाया गया था. लिस्ट में महाकाल मंदिर का विकास, ओंकारेश्वर मंदिरों का विकास, राम वन गमन पथ, 1000 से ज्यादा गोशालाओं का निर्माण, सीता माता मंदिर निर्माण, हनुमान मंदिर निर्माण, हनुमान चालीसा आयोजन को शामिल किया गया था.
6 जून को ही भोपाल में एक कट्टर दक्षिणपंथी संगठन 'बजरंग सेना' का कांग्रेस में विलय हुआ था. खुद कमलनाथ ने हनुमान चालीसा पढ़ते हुए संगठन के कार्यकर्ताओं को पार्टी में शामिल करवाया. बजरंग सेना का दावा है कि वो 'हिंदू हित', गोरक्षा, गोशालाओं के निर्माण जैसे कामों में सक्रिय रही है. बजरंग सेना के अध्यक्ष रणबीर पटेरिया बजरंग दल में रह चुके हैं. इस संगठन को छोड़ने के बाद 2013 में उन्होंने बजरंग सेना बनाई थी.
हालांकि कांग्रेस के लिए पार्टी में कट्टर दक्षिणपंथी नेताओं को जगह देने की बात नई नहीं है. फरवरी 2021 में हिंदू महासभा के नेता बाबूलाल चौरसिया कांग्रेस में शामिल हुए थे. चौरसिया खुद को नाथूराम गोड्से का भक्त बताते थे. उन्होंने 'गोड्से का मंदिर' बनवाने के अभियान में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था.
उधर कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने भी राज्य में चुनावी अभियान शुरू कर दिया. 12 जून को प्रियंका गांधी जबलपुर पहुंची थीं. यहां उन्होंने नर्मदा आरती में हिस्सा लिया.
मध्यप्रदेश के 24 जिलों से गुजरने वाली नर्मदा सिर्फ नदी नहीं है, इसका राजनीति और धर्म दोनों में प्रतीकात्मक महत्व बहुत ज्यादा है. इसीलिए बांध निर्माण के कारण विस्थापित हुए लोगों और उनके मुआवजे का मुद्दा उठाना हो या धर्म की आड़ में राजनीतिक छवि बनानी-बिगाड़नी हो, नर्मदा का भावनात्मक इस्तेमाल होता रहा है. नर्मदा का जितना महत्व हिंदू धर्म में है, उतना ही चुनाव में हिंदू आइडेंडिटी की राजनीति के लिए भी है. इसलिए हर दल के नेता नर्मदा के नाम के साथ खुद को जोड़ते नजर आते हैं.
सवाल है कि क्या कांग्रेस चुनाव में असल मुद्दों को छोड़कर हिंदुत्व की राजनीति कर रही है? इस सवाल के जवाब में केके मिश्रा कहते हैं कि उनकी पार्टी सेक्युलर है, इसका मतलब ये तो नहीं कि पूजा-पाठ करने की फ्रेंचाइजी सिर्फ BJP के पास है. उनका कहना है कि कांग्रेस इसका प्रोपेगैंडा नहीं करती.
वहीं इंडिया टुडे मैगजीन के पत्रकार राहुल नोरोहना के मुताबिक,
BJP के असंतुष्टों को मिल रही जगह"बीजेपी जिस तरीके से कांग्रेस पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाती है, ये सब उसी के काउंटर में है. इससे कोर वोटर को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. ये उन वोटरों के लिए मायने रखता है जो फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि सरकार से नाराजगी के बाद भी किसको वोट करें. लेकिन कांग्रेस के "ज्यादा हिंदू" हो जाने से उसको कोई वोट नहीं मिलेगा."
जानकारों के मुताबिक टिकट बंटवारे को लेकर नेताओं को आभास हो रहा है कि टिकट काटे जाएंगे. कांग्रेस ने खुद कहा था कि बागियों को शामिल नहीं किया जाएगा. लेकिन कथनी और करनी में फर्क नजर आ रहा है. पार्टी बीजेपी से बगावत करने वालों को तो अपने पाले में ले ही रही है, उन नेताओं की वापसी भी स्वीकार कर रही है जो उसका साथ छोड़ गए थे.
चुनाव से पहले दल-बदल कोई नई चीज नहीं है. पिछले दिनों BJP के कई विधायक कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. मई में BJP के पूर्व मंत्री दीपक जोशी कांग्रेस में शामिल हो गए थे. दीपक राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे हैं. कैलाश जोशी जनसंघ के संस्थापकों में एक थे. मई में शुरू हुआ दल-बदल जून आते-आते बढ़ गया. ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के नेता भी कांग्रेस में वापस आने लगे.
14 जून को सिंधिया के करीबी बैजनाथ सिंह यादव कांग्रेस में शामिल हो गए. वो 2020 की बगावत के दौरान सिंधिया के साथ BJP में गए थे. उनके साथ शिवपुरी के 15 और जिला स्तर के BJP नेता कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेस में शामिल होने के लिए वे 700 कारों का काफिला लेकर भोपाल पहुंचे थे. बैजनाथ की वापसी के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव ने दावा किया था कि कई BJP नेता कांग्रेस में आएंगे. सिंधिया गुट के विधायक वापसी करेंगे और सिर्फ सिंधिया BJP में अकेले रह जाएंगे.
23 जून को कटनी से BJP के विधायक रहे ध्रुव प्रताप सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए. इस दौरान उन्होंने BJP अध्यक्ष वीडी शर्मा पर निशाना साधा. ध्रुव ने कहा कि वीडी शर्मा को बिना अनुभव के प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. उनके पास कार्यकर्ताओं से बात करने का समय नहीं है.
26 जून को सिंधिया के एक और करीबी राकेश कुमार गुप्ता कांग्रेस में वापस आ गए. राकेश शिवपुरी में BJP के जिला उपाध्यक्ष थे. राकेश गुप्ता के साथ उनके 2 हजार और समर्थक थे. उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से माफी भी मांगी और कहा कि कांग्रेस ने ही उन्हें नाम दिया.
कांग्रेस की इस रणनीति को लेकर राहुल नोरोहना कहते हैं कि इन नेताओं के जाने का प्रभाव तो पड़ेगा. उनके मुताबिक,
"सिंधिया के साथ उनसे जुड़े लोग बीजेपी में चले तो गए, लेकिन वहां जाकर पता चला कि महाराज (सिंधिया) उन्हें डील नहीं दिला पा रहे हैं. इसलिए वे अपनी मूल पार्टी में लौट रहे हैं. इसके अलावा अगर सरकार विरोधी हवा चल जाए तो नेता कूदते ही हैं."
क्या सिंधिया के साथ भी कांग्रेस कोई बातचीत कर रही है? इस पर केके मिश्रा कहते हैं,
हिमाचल और कर्नाटक की रणनीति"सिंधिया के साथ कोई बातचीत नहीं हो रही है. अगर वो आते हैं तो हमलोग खुद उनका विरोध करेंगे. अगर कार्यकर्ता आ रहे हैं तो हमें कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन जिन्होंने कीमत लेकर हमारी सरकार गिराई, उनको कार्यकर्ता ही स्वीकार नहीं करेंगे. राहुल गांधी ने इंदौर में (नवंबर 2022) खुद कहा था कि जो नेता पैसे लेकर गए, उन्हें किसी भी हाल में नहीं आने देंगे."
हिमाचल और दूसरे राज्यों की तरह कांग्रेस मध्यप्रदेश में पुरानी पेंशन योजना (OPS) लागू करने की घोषणा कर चुकी है. इसके काउंटर में शिवराज सिंह चौहान कुछ बोलने की स्थिति में लग नहीं रहे. कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा में भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश की. दिसंबर 2022 में सरकार को बोलना पड़ा कि OPS लागू करने की कोई योजना नहीं है.
लेकिन इस साल 22 मई को पार्टी ने पांच बड़े वादों की घोषणा की. इन वादों में 500 रुपए में गैस सिलेंडर, हर महिला को 1500 रुपये प्रति महीना, 100 यूनिट तक बिजली का बिल माफ और किसानों की कर्ज माफी के साथ OPS भी शामिल थी.
मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान खुद इस तरह की राजनीति के लिए जाने जाते हैं. वे महिलाओं के लिए कन्या विवाह से लेकर लाडली लक्ष्मी जैसी योजना ला चुके हैं. तो क्या कांग्रेस इन घोषणाओं से काउंटर दे पाएगी. इस सवाल पर मध्यप्रदेश के सीनियर पत्रकार और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दीपक तिवारी कहते हैं,
“मध्यप्रदेश में पॉपुलिस्ट राजनीति की शुरुआत तो शिवराज सिंह चौहान ने ही की थी. अब कांग्रेस ने एक कदम आगे जाकर वादे किए हैं. उन्होंने ऐसा कर दिया है कि आप हजार दे रहे हैं तो हम 1500 देंगे. इससे कांग्रेस को जरूर फायदा पहुंच सकता है.”
इस बारे में राहुल नोरोहना का कहना है कि इसका फायदा तो कांग्रेस को होगा. उनके मुताबिक चूंकि कांग्रेस सत्ता में नहीं है इसलिए बीजेपी के मुकाबले बढ़ाकर ऐसी घोषणाएं कर रही है. मध्यप्रदेश में ऐसी घोषणाओं की प्रतिस्पर्धा चल रही है.
नोरोहना कहते हैं,
कर्नाटक में जीत दिलाने वाले सुनील का कैंपेन"दोनों दल ये नहीं बता रहे हैं कि आप ये पैसे कहां से लाएंगे. कर्ज लेकर देंगे या टैक्स बढ़ाएंगे. शिवराज को फीडबैक आया कि कांग्रेस की 1500 रुपये वाली घोषणा से उनकी धार खत्म हो रही है. इसलिए उन्होंने 1000 से बढ़ाकर दो हजार और तीन हजार देने की बात कह दी."
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद एक नाम की खूब चर्चा हुई थी- सुनील कानुगोलू. चुनाव के बाद वे सीएम सिद्दारमैया के सलाहकार बन गए. कैबिनेट रैंक का दर्जा मिला. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सुनील कानुगोलू और प्रशांत किशोर ने BJP के लिए एक साथ काम किया था. कुछ समय बाद ही, प्रशांत किशोर BJP से अलग हो गए थे. लेकिन कानुगोलू ने BJP के साथ काम जारी रखा था.
प्रशांत किशोर से अलग होने के बाद सुनील ने चुनावी कैंपेंनिंग के लिए अपनी कंपनी शुरू की- माइंडशेयर एनालिटिक्स. जानकारों के मुताबिक, उन्हें भी प्रशांत किशोर की तरह इवेंट और मीडिया मैनेजमेंट में माहिर माना जाता है. कर्नाटक में सुनील की टीम ने राहुल गांधी को जो सर्वे सौंपा था, उसी के आधार पर टिकटों का बंटवारा हुआ था. अब मध्यप्रदेश में भी वही जिम्मेदारी मिली है.
कर्नाटक चुनाव के बाद ही कानुगोलू की टीम ने मध्यप्रदेश में चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी. केके मिश्रा के मुताबिक,
"उनकी टीम यहां आ चुकी है. वे हम लोगों से सीधे कॉन्टैक्ट में नहीं हैं. वे कमलनाथ जी को रिपोर्ट करते हैं. इसमें हमारा कोई रोल नहीं है. उनकी टीम रणनीति बना रही है. अभी तक उन्होंने हमसे कोई मदद नहीं मांगी है."
वहीं दीपक तिवारी मानते हैं कि मध्यप्रदेश में इस तरह की एजेंसी कितना काम कर पाएगी, इस पर अभी संशय है. क्योंकि उनकी भी सीमाएं होती हैं. आजकल हर राजनीतिक दल इस तरह की एजेंसियों की मदद ले रहे हैं. लेकिन असली चुनाव जनता के मुद्दे पर ही लड़े जाएंगे.
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