झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजे हमारे सामने हैं. हेमंत सोरेन अब महागठबंधन केसीएम होंगे. भाजपा की रघुबर दास सरकार गिर गई है. नतीजे ये रहे - महागठबंधन(झामुमो+कांग्रेस+राजद) - 47 भाजपा - 25 झारखंड विकास मोर्चा - 3 आजसू - 2 अन्य - 3ये हैं वो पांच वजहें कि रघुबर दास की सरकार को दूसरा कार्यकाल नहीं मिला - 1.जल-जंगल-ज़मीन आदिवासी बहुल राज्य झारखंड में ये चुनाव असाधारण रूप से जल जंगल औरज़मीन की लड़ाई थी. आदिवासी समाज में डर पसर गया था कि उनकी ज़मीन खतरे में है.संथल परगनाज़ टेनेसी एक्ट और छोटानागपुर टेनेसी एक्ट (सीएनटी एक्ट) को लेकर खासीभ्रम की स्थिति रही. आदिवासियों की ज़मीनें आदिवासियों के बीच ही खरीदी बेची जासकती हैं. रघुबर दास सरकार ने भूमि अधिग्रहण में आने वाली दिक्कतों को देखते हुएइन्हें हाथ लगाने का सोचा ही था कि एक मैसेज सूबे में पसर गया - कि सरकारआदिवासियों की ज़मीन हथियाना चाहती है. रघुबर दास ये दाग अपने दामन से नहीं छुड़ापाए. आदिवासी कौन, ये सवाल झारखंड में बड़ा वज़न रखता है. रघुबर दास ने झारखंड में30 साल से रह रहे लोगों को मूल निवासी प्रमाणपत्र दिए. इसे भी आदिवासी पहचान परहमले की तरह देखा गया. 2. आजसू - दोस्त, दोस्त ना रहा महाराष्ट्र के बाद झारखंडमें भी भाजपा अपने सहयोगियों से मित्रवत व्यवहार कायम रखने में हार गई. आजसू काटूटना विधायकों के जाने की नज़र से देखा जाए तो बड़ा नुकसान नहीं था. लेकिन चूंकिआजसू के प्रत्याशी भाजपा के खिलाफ लड़ लिए, भाजपा की बढ़त ऐसे ही नीचे आ गई. अब बसज़रूरत थी झामुमो और महागठबंधन के थोड़ा बहुत प्रचार कर लेने की. जो कि हुआ भी. 3.हम क्या चाहते, बिजली-पानी पूरे झारखंड में पीने के पानी की भयंकर कमी है. रघुबरदास ज़िंदगी की इस न्यूनतम ज़रूरत को पूरा नहीं कर पाए. दास ने ये भी कहा था किचौबीस घंटे बिजली न मिली तो मैं वोट मांगने नहीं आउंगा. झारखंड ने पानी-बिजली केमामले में वादाखिलाफी बर्दाश्त नहीं की. 4. दर्दे दिल, दर्दे जिगर - बेरोज़गारीझारखंड में बेरोज़गारी चरम पर है. हर जगह युवाओं ने इसकी शिकायत की. जमशेदपुर मेंफैक्ट्रियां बंद पड़ रही हैं. दी लल्लनटॉप ग्राउंड रिपोर्ट करने के लिए सूबे मेंघूमा तो हमने युवाओं से जाना कि कैसे रघुबर दास अपने पांच सालों में सरकारीनौकरी वाली एक परीक्षा ढंग से पूरी नहीं करा पाए. 5. मैन ऑफ द मैच (नॉट) - रघुबरदास जी हां. दास एक वजह रहे. झारखंड में भाजपा ने रिस्क लिया था. आदिवासी राज्य मेंगैर आदिवासी मुख्यमंत्री. लेकिन वो देवेंद्र फडणवीस की तरह करिश्मा नहीं कर पाए.उनके मंत्री सरयू राय ने ही उनके कारनामों को चर्चा दी. सरयू राय विसल ब्लोअर रहे.चारा घोटाला, कोयला घोटाला और कई अन्य घोटालों का खुलासा उन्होंने किया. 2018 मेंसीएजी ने झारखंड में कंबल घोटाले का खुलासा किया. विधानसभा में सरयू राय ने सीबीआईजांच की मांग की थी. दिक्कतें बढ़ीं तो पीएम मोदी से गुहार लगाई. कहा कि उन्हेंमंत्री पद से मुक्त कर दिया जाए. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. वो पांच साल कैबिनेट मेंरहे. लेकिन टिकट नहीं दिया गया. तो राय जमशेदपुर पश्चिम से पूर्व आ गए और रघुवर दासके खिलाफ चुनाव मैदान में कूद गए. अदावत को खूब निभाया भी. जिस दिन सीएम रघुवर दाससे अपना नामांकन भरा था, उसी दिन सरयू राय ने भी नामांकन दाखिल किया. अब वो विजेताहैं. फिर एंटी इंकंबेंसी भी एक वजह थी. झारखंड ने कभी एक पूरा कार्यकाल नहीं देखाथा. इसीलिए पांच सालों की स्थिर सरकार से उम्मीदें चरम पर थीं, और जैसे जैसे वक्तबीतता गया, उम्मीद की जगह हताशा ने ले ली.--------------------------------------------------------------------------------वीडियो: झारखंड चुनाव: दुमका का निझर गांव पानी लाने के लिए लोगों को एक किलोमीटरचलना पड़ता है