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तीन चौटाला और एक कांग्रेसी - किसके हिस्से आएगा हिसार?

जाट बाहुल्य हिसार सीट पर 1952 से अब तक हुए सारे लोक सभा चुनावों में कभी भी कोई महिला सांसद नहीं चुनी गई है. क्या इतिहास बदलने जा रहा है?

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दो बहुओं, उनके चाचा ससुर और जेपी की लड़ाई में कौन जीतेगा?
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दीपक तैनगुरिया
21 मई 2024 (Published: 24:19 IST)
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भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल एक इंटरव्यू दे रहे थे. उस वक़्त वे राजनीति से लगभग रिटायर हो चुके थे. लगभग इसलिए क्योंकि भारत में राजनीति से कोई पूरा रिटायर कभी नहीं होता. उन दिनों राजीव शुक्ला भी पत्रकार हुआ करते थे. राजीव ने देवीलाल से पूछा,

“आपके दोनों बेटों, रणजीत और ओमप्रकाश के बीच लड़ाई क्यों रहती है?”

देवीलाल का अपना अंदाज़ था. सीधा कह देते थे. फिर जिसे चाहे जैसा लगे. अपने डोंगा (हरियाणा में सहारे वाली बेंत को डोंगा कहते हैं) पर उंगलियां फिराते हुए बोले,

“अब आप मुझसे ये भी पूछोगे कि वीपी सिंह और अर्जुन सिंह की लड़ाई क्यों रहती है? ये लड़ाई तो रहती है राज के काम के लिए. दोनों पॉलिटिक्स में हैं. दोनों मुख्यमंत्री बनना चाह रहे हैं. इसका इलाज ना आपके पास है ना मेरे पास. इसका इलाज यही है कि एक की मानो दूसरे को छोड़ो.”

हरियाणा जानता है कि देवीलाल ने ओमप्रकाश चौटाला की मानी. ऐसी मानी कि महम हत्याकांड के बाद वीपी सिंह ने ओमप्रकाश का सीएम पद से इस्तीफा तो लिखवा दिया, लेकिन महज 51 दिनों के बाद बेटा ओपी मुख्यमंत्री की गद्दी पर काबिज हुआ. ओमप्रकाश इस पद पर सिर्फ 5 दिन रहे, ये दूसरी बात है. अब देवीलाल के गुज़र जाने के दो दशक बाद उनके 79 बरस के बेटे, रणजीत सिंह चौटाला अपनी राजनैतिक हैसियत मनवाने के लिए मैदान में हैं. ये मैदान सजा है हरियाणा की बागड़ बेल्ट की हिसार सीट पर. और रणजीत के सामने हैं, उनकी दो बहुएं - नैना चौटाला और सुनैना चौटाला.

नैना चौटाला, चौधरी देवीलाल के सबसे बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला की बहू हैं. और जजपा (जननायक जनता पार्टी) के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. वहीं सुनैना ताऊ देवीलाल के दूसरे बेटे प्रताप सिंह चौटाला की बहू हैं. और इनेलो (इंडियन नेशनल लोक दल) की प्रत्याशी हैं. वहीं, रणजीत सिंह चौटाला, ताऊ देवीलाल के तीसरे बेटे हैं. और भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं. गौरतलब है कि दोनों बहुएं और उनके चाचा ससुर अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ रहे हैं. जाट बाहुल्य हिसार सीट पर 1952 से अब तक हुए सारे लोक सभा चुनावों में कभी भी कोई महिला सांसद नहीं चुनी गई है. हिसार समेत हरियाणा की सभी दस सीटों पर छठे चरण में 25 मई को वोटिंग होनी है.

पहली बार आमने-सामने नहीं आया है चौटाला परिवार 

ताऊ देवीलाल के दोनों बेटे, एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं. 24 साल पहले, सन 2000 में इन्हीं रणजीत चौटाला ने कांग्रेस की टिकट पर ओमप्रकाश चौटाला के सामने रोरी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था. हालांकि, रणजीत तब बाईस हजार से ज्यादा वोटों से हार गए थे. इसके बाद ऐसा मौका नौ साल बाद आया, जब सुनैना के पति, रवि चौटाला ने 2009 विधानसभा चुनावों में नैना के पति, अजय चौटाला के खिलाफ डबवाली सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था. उस चुनाव में अजय को विजय मिली थी. रवि, तीसरे नम्बर पर रहे थे.

नैना चौटाला, हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री, दुष्यंत चौटाला की मां हैं. और सूबे के पांच बार के सीएम रहे ओमप्रकाश चौटाला की बहू हैं. 2019 में वे बाढड़ा सीट से विधायक बनीं. इससे पहले 2014 में वे डबवाली सीट से विधायक थीं. राजनीति में अपनी एंट्री को लेकर वे कहती हैं, 

"मैं तो एक गृहणी थीं. मैं राजनीति में केवल इसलिए शामिल हुई क्योंकि मेरे पति, अजय चौटाला को जूनियर बेसिक टीचर्स की भर्ती में हुए घोटाले के लिए दोषी ठहराया गया और जनवरी 2013 में 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई." 

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, नैना अपनी लोकसभा के गांवों में “हरी चुनरी चौपाल” कार्यक्रम का आयोजन कर रही हैं. इस कार्यक्रम में मंच के वक्ता से लेकर सामने बैठी श्रोता तक सिर्फ महिलाएं शामिल होती हैं. महिलाएं ही इस पूरे कार्यक्रम को आयोजित करती हैं. चुनावी बिसात की चौसर पर नैना कौनसे पासे चल रही हैं. ये समझने के लिए हमने बात की हरियाणा तक से जुड़े पत्रकार राहुल यादव से. उन्होंने कहा,

नैना खुद को हिसार की बेटी के रूप में प्रोजेक्ट कर रहीं हैं. वे बार-बार कहती हैं कि किसी भी राज्य के असली हकों की रक्षा क्षेत्रीय पार्टियां ही करती हैं. अगर चुनी गईं तो हम ही ज्यादा मजबूती से आपके मुद्दों को उठा पाएंगे. क्योंकि, हम पर राष्ट्रीय पार्टी की लाइन फ़ॉलो करने का दबाव नहीं रहेगा.”

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नलवा हल्के में वोटरों को संबोधित करतीं नैना चौटाला. (तस्वीर- एक्स) 

वहीं, सुनैना का लोकसभा या विधानसभा स्तर का यह पहला चुनाव है. इससे पहले वे 1994 में हिसार के फ़तेह चंद महिला महाविद्यालय की अध्यक्ष चुनी गई थीं. मई 2018 में इनेलो के महासचिव अभय चौटाला ने उन्हें इनेलो की महिला विंग का सचिव नियुक्त किया था. फैमिली फाईट का जिक्र आने पर सुनैना ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, 

“ये परिवार की लड़ाई नहीं है, बल्कि विचारधारा की लड़ाई है. रणजीत जी बीजेपी से जुड़े हुए हैं. वहीं, नैना जी हाल ही में बीजेपी के साथ गठबंधन में थीं. मैं देवीलाल जी की विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती हूं."

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हिसार के किरमारा गांव में वोटरों को संबोधित करतीं, सुनैना चौटाला. (तस्वीर-एक्स)

सुनैना अपनी पहली चुनावी लड़ाई को कैसे लड़ रहीं हैं, इस पर राहुल यादव कहते हैं,

सुनैना बार-बार ये कहती हैं कि ये पहली महिला सांसद चुनने का मौका है.  इसके अलावा सुनैना बार-बार ये याद दिला रही हैं कि उनकी पार्टी के महासचिव अभय सिंह चौटाला ने किसान कानूनों के विरोध में एलनाबाद सीट से इस्तीफा दे दिया था.  इस मुद्दे को लेकर इनेलो किसानों के पास जा रही है. 

वहीं, रणजीत चौटाला 2019 के विधानसभा चुनावों में रानियां सीट से निर्दलीय विधायक चुनकर आए थे. इससे पहले वे कांग्रेस से जुड़े हुए थे. कहानी है कि कांग्रेस से टिकट नहीं मिल रहा था, इसलिए पार्टी छोड़ दी. काउंटिंग के दौरान ही उन्होंने भाजपा को समर्थन देने का एलान कर दिया था. खट्टर सरकार में वे कैबिनेट मिनिस्टर थे. पोर्टफोलियो था- जेल मंत्रालय और ऊर्जा मंत्रालय. इसके बाद 25 मार्च को उन्होंने भाजपा जॉइन कर ली, और विधायकी से इस्तीफा दे दिया. उसी दिन भाजपा ने उन्हें हिसार लोकसभा का टिकट थमा दिया. रणजीत इससे पहले 1998 में हिसार लोकसभा सीट चुनाव लड़ चुके हैं. इस चुनाव में वे चौथे नम्बर पर रहे थे. 

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रणजीत सिंह चौटाला. (साभार- एक्स)

उनकी चुनावी रणनीति के बारे में राहुल यादव कहते हैं, 

रणजीत चौटाला की शुरूआती ऊर्जा तो कैप्टन अभिमन्यु और कुलदीप बिश्नोई को मनाने में खर्च हुई, जो यहां से भाजपा की टिकट के दावेदार थे. अब हालांकि लग रहा है कि कैप्टन तो मान ही गए हैं. रणजीत, राष्ट्रीय मुद्दों पर इस चुनाव को लड़ रहे हैं. वे पहली बार भाजपा में आए हैं. जैसे ही उनसे कोई किसानी के मुद्दों या बेरोजगारी को लेकर सवाल करता है, वे तुरंत कह देते हैं कि तब तो वे भाजपा का हिस्सा थे ही नहीं. 

वे नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रहे हैं. धारा 370, राम मंदिर, रोड ट्रांसपोर्ट जैसे मुद्दे. वे अमित शाह के साथ अपनी नजदीकियों का बड़ा जिक्र करते हैं, क्योंकि लोक सभा चुनाव से पहले सिरसा में जब रैली हुई थी तो अमित शाह, रणजीत के घर आए थे. जबकि उस वक्त रणजीत भाजपा में भी नहीं थे. वे कांग्रेस के जय प्रकाश की दबंग छवि को दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. अपनी सभाओं में वे बार-बार कहते हैं कि ये तो ग्रीन ब्रिगेड के सरगना थे. 

हालांकि रणजीत, नैना और सुनैना पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं. बस इतना कहते हैं कि ये तो क्षेत्रीय दल हैं, जिनका अब कोई वजूद नहीं रह गया है. रणजीत, कांग्रेस में फूट होने का भी दावा कर रहे हैं, हाल ही में उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेता कुमारी शैलजा, हिसार से चंद्रमोहन बिश्नोई को टिकट दिलाना चाहती थीं. लेकिन, टिकट मिला है, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के ख़ास, जय प्रकाश को. इसलिए अब एंटी भूपेन्द्र हुड्डा ग्रुप उनका साथ दे रहा है.

हिसार लोकसभा की कहानी

हिसार से 2014 में दुष्यंत चौटाला ने इनेलो के टिकट पर चुनाव जीता था. वे 16वीं लोक सभा के सबसे कम उम्र के सांसद थे. तब उनकी उम्र मात्र 26 साल 1 महीना थी. इसी वजह से लिम्का बुक ऑफ़ दी वर्ल्ड रिकॉर्डस में भी उनका नाम शामिल हुआ था. 2019 में उन्होंने दोबारा हिसार लोक सभा सीट से जजपा के प्रत्याशी के तौर पर पर्चा भरा, लेकिन इस बार बुरी तरह हारे. चुनाव जीता, भाजपा के ब्रजेन्द्र सिंह ने. हालांकि, इस बार एक ट्विस्ट और आया है. ब्रजेन्द्र सिंह ने 10 मार्च 2024 को भाजपा छोड़ कांग्रेस जॉइन कर ली. उस वक्त राजनीतिक हलकों में चर्चा चली कि टिकट कटने की आशंका के चलते उन्होंने पार्टी बदली है. इसके बाद 8 अप्रैल 2024 को उनके माता-पिता, चौधरी बीरेंद्र सिंह और प्रेम लता ने बीजेपी छोड़ दी. और अगले ही दिन, 9 अप्रैल को पति-पत्नी कांग्रेस में शामिल हो गए. बीरेंद्र सिंह मोदी सरकार में मंत्री रह चुके हैं. वहीं प्रेम लता, 2014 में उचांना कलां से विधायक रह चुकी हैं.

ब्रजेन्द्र सिंह ने जब भाजपा छोड़ी थी. तो सम्भावना जताई जा रही थी कि अब वे कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं. लेकिन, कांग्रेस ने ब्रजेन्द्र की जगह टिकट थमा दिया, जय प्रकाश को. उनका पॉलिटिकल प्रोफाइल भी काफी पुराना है. वे तीन बार हिसार सीट से अलग-अलग पार्टियों के सिम्बल पर सांसद रह चुके हैं. 1989 में जनता दल की टिकट पर, 1996 में बंसी लाल की हरियाणा विकास पार्टी की टिकट पर, और 2004 में कांग्रेस की टिकट पर. जय प्रकाश, सन 2000 में बरवाला विधान सभा से विधायक भी चुने गए थे. वहीं 2014 में उन्होंने कैथल की कालायत सीट से निर्दलीय के तौर पर विधायकी का चुनाव जीता था. इसी सीट पर वे 2019 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव हार गए थे.

जयप्रकाश

देवीलाल से उनका रिश्ता काफी पुराना है. कितना, इसे इन दो उदाहरणों से समझिए. 1989 की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार में जब ताऊ देवीलाल प्रधानमंत्री का पद ठुकराकर उपप्रधानमंत्री बने थे, तो उनकी ही सिफारिश पर जय प्रकाश को पेट्रोलियम मंत्रालय का केन्द्रीय राज्यमंत्री बनाया गया था. दूसरा है जय प्रकाश का ग्रीन ब्रिगेड से जुड़े होना. ग्रीन ब्रिगेड दरअसल युवाओं का एक जत्था था, जो हरी टीशर्ट पहनकर मोटरसाइकिल पर चुनाव प्रचार करता था. जब 1988 में वीपी सिंह ने इलाहाबाद से चुनाव लड़ा था, तो ताऊ देवीलाल ने ये जिम्मेदारी जय प्रकाश को दी थी. 1988 का चुनाव, उपचुनाव था. क्योंकि 84 में सहानुभूति लहर पर सवार होकर इलाहाबाद से सांसद बने थे अमिताभ बच्चन. जिन्होंने माखनलाल फोतेदार और राजीव गांधी के कहने पर 1987 में इस्तीफा दे दिया था. चौटाला परिवार की लड़ाई के त्रिभुज को चतुर्भुज में बदलने वाले जय प्रकाश की राजनैतिक यूएसपी क्या है. इस पर पत्रकार राहुल यादव कहते हैं,

“जयप्रकाश किसानों के मुद्दों पर चुनाव लड़ रहे हैं कि भाजपा ने MSP नहीं दिया, अपनी सभाओं में किसान आन्दोलन के वक्त गई 750 किसानों की मौतों का जिक्र करते हैं. जयप्रकाश, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के आदमी हैं, और उनके साथ अपनी नजदीकियों को प्रोजेक्ट भी करते हैं. वे हिसार लोकसभा में बतौर सांसद किये गए अपने काम भी गिनाते हैं. जेपी, नैना और सुनैना को कोई खतरा नहीं मानते, इसलिए उन पर ज्यादा टिप्पणियां भी नहीं कर रहे हैं. इसके अलावा जेपी अपनी और देवीलाल की नजदीकियों का भी जिक्र करते हैं कि मैं ही उनका असली वारिस हूं.”

राहुल अंत में जोड़ते हैं, 

"चारों उम्मीदवारों में एक बात कॉमन है कि चारों ही ताऊ देवीलाल की लीगेसी पर अपना दावा ठोंक रहे हैं.”  

वापस उस सवाल पर लौटें कि ब्रजेन्द्र सिंह का टिकट कटा क्यों. तो इसे लेकर हमने हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार रवीन्द्र सिंह से बात की. उन्होंने कहा,

“ऐसा हो ही नहीं सकता कि बीरेन्द्र सिंह बेटे के लिए टिकट मांगें, और कांग्रेस मना कर दे. इस परिवार का पूरा फोकस अब आगामी विधानसभा चुनावों पर है. इसलिए टिकट न मिलने पर जो कुछ मायूसी दिखती है, वो सिर्फ समर्थकों के लिए है.”  

हिसार लोक सभा सीट पर 9.52 लाख पुरूष वोटर हैं, वहीं 8.32 लाख फीमेल वोटर हैं. इस सीट पर 24 प्रतिशत मतदाता अनुसूचित जाति के हैं, वहीं लगभग 54 प्रतिशत मतदाता सामान्य वर्ग से आते हैं. अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटर्स का हिस्सा लगभग 21 प्रतिशत है. इस सीट पर एक तिहाई वोट जाटों का है. रणजीत, नैना, सुनैना और जय प्रकाश, ये चारों उम्मीदवार जाट समुदाय से ही आते हैं. 

चारों उम्मीदवारों का यूएसपी क्या है, वे किन मुद्दों पर वोट मांग रहे हैं, ये जानने के लिए हमने हरियाणा के सीनियर पत्रकार धर्मेन्द्र कंवरी से बात की. उन्होंने कहा,

“इस समय हिसार लोकसभा पूरे हरियाणा की सबसे बड़ी गुत्थी बनी हुई है. यहां हार-जीत का अंतर सिर्फ 50,000 वोटों के बीच रह सकता है. हिसार में शहरी वोटर लगभग 40% है. गांव का वोटर 60% है. शहरी वोटर में, रणजीत की अच्छी पकड़ है, वहीं गांवों में जेपी ज्यादा पॉपुलर हैं. लेकिन, गांवों में लोकल मुद्दे, जातिगत समीकरण और उम्मीदवार की पॉपुलैरिटी जैसी बहुत सी चीजें प्रभाव डालेंगी. नैना चौटाला के लिए मुश्किलें हैं, क्योंकि किसान आंदोलन के वक्त जजपा, बीजेपी के साथ सरकार में थी. सुनैना का ये पहला चुनाव है तो उन्हें वोटरों तक पहुंच बनाने के लिए ही मशक्कत करनी पड़ रही है.”

ताऊ देवीलाल

हमने ताऊ देवीलाल के किस्से से बात शुरू की थी, उन्हीं का एक किस्सा सुनाकर अंत करते हैं, साल 1978. जगह, दिल्ली का हरियाणा भवन. मुख्यमंत्री खाना खाकर दोपहर की नींद ले रहे थे. सोकर उठे तो बेडरूम के बाहर एक सीनियर आईएएस अधिकारी इन्तजार कर रहे थे. इस अधिकारी का मुख्यमंत्री के साथ पुराना इतिहास रहा था. जिसे वे मुंह पर बोल चुके थे, तुझमें बड़ी अकड़ है. अधिकारी ने सीएम साहब को देखा, खड़े हुए और हाथ जोड़कर बोले - मैंने सुना है, आप मुझे सस्पेंड करवाने वाले हैं. 

ताऊ देवीलाल ने तुर्शी से जवाब दिया, 

"और क्या तुझे नहीं तो क्या बंसीलाल को सस्पेंड करवाऊंगा.  घंटाघर तो तूने ही गिरवाया है न.'' 

अधिकारी ने जवाब दिया, मैंने तो सरकार के हुक्म का पालन किया है. ये हरियाणा भवन भी तो सरकार ने बनाया है. आप मुझसे कहो इसे गिरवा दो, मैं कल ही बुलडोजर लेकर आ जाऊंगा. आप कहो इसे सात मंजिल का कर दो, मैं कल ही ईंट-मजदूर लेकर आ जाऊंगा. 

मुख्यमंत्री ने कहा, बात तो तुम्हारी ठीक है, तुमने कमीशन के सामने भी यही कहा था. ठीक है, तुम्हें बरी कर देते हैं. इस तरह ताऊ देवीलाल ने तर्क को तरजीह दी और अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. 

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