उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजों से मुसलमानों के लिए के हाथ कुछ अच्छा भी लगा है.ऐसी तस्वीर सामने आ रही है जिससे ज़ाहिर हो रहा है कि मुसलमान अपने मौलानाओं की नहींसुनते. और ये अच्छी बात है. कई सारे मुस्लिम मौलानाओं की बसपा के पक्ष में वोट करनेकी अपील को यूपी के मुसलमानों ने रद्दी की टोकरी दिखा दी. दिल्ली की जामा मस्ज़िद केशाही इमाम मौलाना अहमद बुखारी, शिया धर्मगुरु कल्बे जव्वाद और कई सारे मुस्लिमसंगठनों के उलेमाओं और धर्मगुरुओं ने मुसलमानों से कहा था कि वो बसपा को वोट दें.बसपा का सूपड़ा साफ़ हो गया है इन चुनावों में. रामपुर, सहारनपुर, मुरादाबाद, अमरोहा,बरेली, आजमगढ़, मऊ, शाहजहांपुर, शामली, मुज़फ्फरनगर, मेरठ और अलीगढ़ जैसे जिलों मेंमुस्लिम आबादी ज़्यादा है. यहां की कुल 77 सीटों में से सिर्फ 5 सीटों पर ही बसपाजीत पाई है. रामपुर में करीब 52 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, मगर यहां की पांच में सेएक भी सीट पर बसपा नहीं जीत सकी. पार्टी का यही हाल सहारनपुर और मुरादाबाद में भीरहा. सहारनपुर की सातों और मुरादाबाद की सभी नौ सीटों पर बसपा साफ हो गई. मुरादाबादमें ज्यादातर सीटों पर वह तीसरे नंबर पर रही. अमरोहा में भी बसपा चार में से एक भीसीट नहीं जीत सकी और यहां भी वह ज़्यादातर तीसरे स्थान पर ही रही. बरेली की नौ सीटोंमें से सभी में बसपा को करारी हार का सामना करना पड़ा. शाहजहांपुर की सभी छह सीटोंपर बसपा तीसरे स्थान पर रही. यहां तक कि देवबंद जैसी ख़ालिस मुस्लिम सीट पर भी बसपाके पक्ष में मौलानाओं की अपील का किसी ने नोटिस नहीं लिया. अब मौलाना लोग कह रहेहैं कि मायावती के अहंकार, उनके द्वारा धर्मगुरुओं की उपेक्षा और भाजपा की मुस्लिमवोटों को बांटने की सफल कोशिश की वजह से ये सब हुआ.कल्बे जव्वादचाहे जिस वजह से हुआ लेकिन इससे एक सबक तो हासिल हुआ. ये मौलाना बिरादरी तमाममुस्लिम समाज को अपने अहाते में बंधी भेड़ों का रेवड़ समझते हैं. जब चाहेंगे, जहांचाहेंगे हांक देंगे. अगर इनके किसी फरमान को मुसलमानों ने नकारा है तो ये एक अच्छीचीज़ मानी जानी चाहिए. भाजपा के ध्रुवीकरण पर चीखते इन कौम के स्वघोषित रहनुमाओं कोकिसी पार्टी विशेष के लिए की गई अपनी अपील में ध्रुवीकरण नहीं दिखता. मुसलमानों कासबसे ज़्यादा नुकसान इन्हीं लोगों ने किया है. कल्बे जव्वाद हो या इमाम बुखारी, इनकीभूमिका महज़ दिशा-निर्देश देने तक ही सीमित है. ये करो, ये ना करो का फतवा जारी करके लोग अपने फ़र्ज़ को पूरा हुआ मान लेते हैं. इनमें से कोई उस कौम की बेहतरी के लिएउंगली भी नहीं हिलाता जिसके रहनुमा होने का इनका दावा है. इनको ख़ारिज किया जानाबहुत ज़रूरी है. मुस्लिम धर्मगुरु हो या नेता, भाजपा का, हिंदुत्व का डर दिखा-दिखाकर ये लोग उन तमाम जिम्मेदारियों से बच निकलते हैं जिनपर ध्यान देना ज़्यादा ज़रूरीहै. कोई मौलवी तारेक फ़तेह के सर पर इनाम घोषित कर देता है, तो कोई कमलेश तिवारी कीजान का प्यासा है. तालीम, रोज़गार जैसी बातों पर कुछ कहने-सुनने-करने की मोहलत किसीके पास नहीं. मुसलमानों को चाहिए कि वो आंख बंद कर के इनके पीछे चलना हमेशा के लिएबंद कर दें. इन चुनावों के नतीजे कम से कम ये तो दिखा ही रहे हैं कि यूपी केमुसलमानों ने ऐसा ही किया है. और कोई भी बदलाव छोटा नहीं होता.--------------------------------------------------------------------------------ये भी पढ़िए:सत्ता किसी की भी हो इस शख्स़ ने किसी के आगे सरेंडर नहीं कियाचुनाव के बाद और होली से पहले अखिलेश यादव के लिए 11 शेरजिस नेता ने मायावती को गाली दी थी, जीतते ही बीजेपी ने उसे पार्टी में शामिल करलियाअखिलेश यादव के वो मंत्री, जिनके इस चुनाव में धुर्रे उड़ गएहारने के बाद भी मजेदार जवाब दे गए अखिलेश यादवबीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे नेताजी को तो लहर भी नहीं बचा सकी