चुनाव से जस्ट पहले CM क्यों बदलती है BJP, 'अंदर की बात' पता चल गई है
चुनाव से ठीक पहले भाजपा Gujarat, Uttarakhand और Karnataka में मुख्यमंत्री बदल चुकी है. अब ऐसा ही Haryana में भी हुआ है. भाजपा को मुख्यमंत्री बदलने के फैसलों से हासिल क्या होता है?
अगले कुछ दिनों में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) की तारीखों का एलान हो जाएगा. उसके बाद अप्रैल-मई तक लोकसभा का चुनाव और नई सरकार का गठन हो सकता है. अगले 6 महीने में हरियाणा में विधानसभा का भी चुनाव होना है. लेकिन उसके ठीक पहले 12 मार्च को हरियाणा की राजनीति में एक बड़ा फेरबदल हुआ. भाजपा ने राज्य का मुख्यमंत्री बदल दिया. मनोहर लाल खट्टर ने इस्तीफा दे दिया. उनकी जगह मुख्यमंत्री बने- नायब सिंह सैनी. सैनी हरियाणा की राजनीति में भले ही एक चर्चित चेहरा रहे हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें इतना नहीं जाना जाता रहा है.
सैनी इकलौते ऐसे नेता नहीं हैं जिन्हें चुनाव के ठीक पहले मुख्यमंत्री बनाया गया है. और ना ही हरियाणा ऐसा इकलौता राज्य है जहां BJP ने चुनाव के ठीक पहले इस तरह का बदलाव किया हो. ऐसा गुजरात, उत्तराखंड और कर्नाटक में भी हो चुका है. आखिर BJP को मुख्यमंत्री बदलने के फैसलों से हासिल क्या होता है?
इस पर इंडिया टुडे के वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई बताते हैं,
"चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलने से भाजपा को मिक्स्ड रिजल्ट मिले हैं. पार्टी ने उत्तराखंड और गुजरात में CM बदला तो यश मिला. लेकिन कर्नाटक में ऐसा नहीं हुआ. वहीं हिमाचल प्रदेश में CM नहीं बदला तो नुकसान हो गया."
उन्होंने आगे कहा,
"हर राज्य में स्थिति अलग होती है. इसलिए अलग-अलग फैसले लेने पड़ते हैं."
इंडिया टुडे के वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु मिश्रा ने बताया,
हरियाणा में क्यों हुआ बदलाव?"मुख्यमंत्री बदलने से भाजपा को चुनाव में कई बार फायदा हुआ है. पार्टी ये निर्णय नेताओं पर मिले फीडबैक के बाद लेती है."
राजदीप सरदेसाई ने हरियाणा के संदर्भ में कहा,
"हरियाणा में विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री बदला गया है. लोकसभा का चुनाव तो वो PM मोदी के चेहरे पर ही लड़ रहे हैं. भाजपा कोई भी फैसला सोच-समझ कर लेती है. उनके पास वीकली और मंथली रिपोर्ट्स जाती हैं. वो पोल्स करवाते हैं. ऐसे में उन्हें लोगों की नाराजगी और थकावट दिखी होगी. इसलिए एक नया OBC चेहरा लाया गया है."
लंबे समय से हरियाणा की राजनीति को कवर कर रहे इंडिया टुडे के पत्रकार सतेंद्र चौहान बताते हैं,
“पहले किसान आंदोलन और फिर पहलवानों का प्रदर्शन.. इन दोनों विवादों ने जाट समाज को बीजेपी से लगभग पूरी तरह दूर कर ही दिया है. यहां जाट समाज के लोग कहते हैं कि हम नोटा दबा देंगे लेकिन बीजेपी को वोट नहीं देंगे."
इस कारण से भी भाजपा का भरोसा खट्टर पर से कम हुआ होगा.
अब BJP के चुनावी दांव-पेंच और आंकड़ों पर गौर करते हैं.
Uttarakhand में 2 बार बदला CM2017 का उत्तराखंड विधानसभा चुनाव. राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. मुख्यमंत्री थे हरीश रावत. भाजपा ने रावत की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. चुनाव में इसको मुद्दा बनाया गया. 70 विधानसभा सीट वाले राज्य में 69 सीटों पर ही चुनाव हुए थे. कारण था कि कर्णप्रयाग में BSP उम्मीदवार कुलदीप सिंह कनवासी की असमय मृत्यु हो गई थी. यहां बाद में चुनाव हुआ और इस सीट पर भाजपा को जीत मिली. इस तरह उस साल भाजपा को राज्य में 57 सीट मिलीं. यानी कि बहुमत से काफी ज्यादा. भाजपा उत्तराखंड की सिंगल लारजेस्ट पार्टी बनी.
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भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया- त्रिवेंद्र सिंह रावत को. कायदे से रावत का कार्यकाल खत्म होना था 2022 में. लेकिन 2021 आते-आते पार्टी के कुछ विधायक रावत के खिलाफ हो गए. उन्होंने भाजपा आलाकमान से रावत की शिकायत की. शिकायत की रावत उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते. कुछ ने दावा किया कि रावत की पब्लिक इमेज बहुत ज्यादा इंप्रेसिव नहीं रही.
2022 में चुनाव होना था. इसलिए भाजपा ने रिस्क ना लेते हुए 9 मार्च 2021 को त्रिवेंद्र सिंह रावत से इस्तीफा ले लिया. लेकिन बात यहीं नहीं रूकी.
उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री बनाए गए- तीरथ सिंह रावत. लेकिन कितने दिनों के लिए- 4 महीने से भी कम समय के लिए. भाजपा ने जो दांव तीरथ सिंह पर खेला वो सफल होता हुआ नहीं दिखा. कहा गया कि तीरथ सिंह जनता पर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए.
तीरथ सिंह रावत पौडी गढ़वाल से सांसद थे. उन्होंने 10 मार्च 2021 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. भारत के संविधान के अनुसार, उन्हें पद पर बने रहने के लिए शपथ लेने के छह महीने के भीतर यानी 10 सितंबर 2021 से पहले राज्य के विधानसभा का सदस्य बनना था. ऐसा नहीं हुआ और 10 सितंबर के पहले ही 4 जुलाई 2021 को उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
भाजपा ने अबकी बार दांव खेला- पुष्कर सिंह धामी पर. भाजपा का ये प्रयोग सफल साबित हुआ. 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को फिर से जीत मिली. हालांकि, इस बार पिछली बार के मुकाबले सीटें कम मिलीं. फिर भी 47 सीटों के साथ भाजपा बहुमत में आई. और फिर से मुख्यमंत्री बनाए गए- पुष्कर सिंह धामी.
चुनाव के ठीक पहले मुख्यमंत्री बदलना और मुख्यमंत्री के लिए सही चेहरे की खोज करना, इस प्रयोग में उत्तराखंड में भाजपा को सफलता मिली.
गुजरात में भी दो इस्तीफेPM नरेंद्र मोदी ने लगभग 12 साल गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहने के बाद 22 मई 2014 को इस्तीफा दे दिया. कारण तो पता ही होगा. उन्होंने लोकसभा का चुनाव जीत लिया था और प्रधानमंत्री बनने वाले थे. इसके बाद भाजपा ने गुजरात की कमान सौंपी आनंदीबेन पटेल को. अगर सब ठीक चलता तो पटेल के पास 2017 तक का कार्यकाल था. लेकिन 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव के लगभग 1 साल पहले ही उनसे इस्तीफा ले लिया गया.
उन्होंने अपने इस्तीफे में अपनी बढ़ती उम्र का हवाला दिया. लेकिन कई और सवाल भी उठे. कहा गया कि पटेल आरक्षण आंदोलन के कारण राज्य में हलचल थी. इसके कारण आनंदीबेन दबाव में थीं. भूमि घोटालों में भी उनके परिवार के सदस्यों पर मिलीभगत का आरोप लगा. बताया जाता है कि वो इन मामलों को संभाल नहीं पाईं. जिसके कारण पार्टी के भीतर पटेल वोट बैंक और दलितों के समर्थन को खोने की आशंका बढ़ गई. फिर भाजपा ने एक नए चेहरे को गुजरात की बागडोर संभालने का मौका दिया.
चुनाव से पहले 7 अगस्त 2016 को मुख्यमंत्री बनाए गए- विजय रुपानी. 2017 के चुनाव में भाजपा को जीत मिली. 182 विधानसभा सीटों मेंं से भाजपा को 99 सीटों पर जीत मिली. यानी कि बहुमत. विजय रुपानी को फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया. लेकिन फिर से आगामी चुनाव से पहले एक और ट्विस्ट आया.
विजय रुपानी का कार्यकाल खत्म होना था- दिसंबर 2022 में. लेकिन भाजपा ने फिर से एक बार वही दांव खेला. 2022 के चुनाव से ठीक पहले सितंबर 2021 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया. कारण क्या बताया गया? क्या इस बार भी कारण कोई आरोप या राजनीतिक रूप से कम प्रभावशाली दिखना था?
रुपानी के इस्तीफे की कई वजहें बताई गईं. कहा गया कि कोविड-19 महामारी के दौरान वो एक ‘नॉन परफॉर्मर CM’ साबित हुए. कहा गया कि कोविड के समय गुजरात की जो स्थिति बनी, रुपानी उसे अच्छे से मैनेज नहीं कर पाए. इसके कारण लोगों में गलत मैसेज गया. ये भी कहा गया कि उनकी और बीजेपी गुजरात अध्यक्ष सीआर पाटिल के बीच बन नहीं रही थी. चर्चा इस बात की भी हुई कि विजय रुपानी की गुजरात के नौकरशाहों पर पकड़ खत्म हो रही थी. एक कारण ये भी बताया गया कि 2017 में विजय रुपानी के नेतृत्व में पार्टी 100 का आंकड़ा पार नहीं कर पाई, इससे पार्टी आलाकमान बहुत ज्यादा खुश नहीं थी.
बहरहाल 2022 के चुनाव के पहले गुजरात के नए CM बनाए गए- भूपेंद्र पटेल. और यहां भी मुख्यमंत्री बदलने के बाद भाजपा को जीत मिली. गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा को 182 में से 156 सीटों पर जीत मिली. मतलब कि बंपर बहुमत. इस तरह गुजरात में भाजपा ने चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदला और पार्टी को जीत मिली.
Karnataka में काम नहीं बनासाल 2021 में कर्नाटक के तत्कालीन CM बीएस येदियुरप्पा ने इस्तीफा दे दिया. चुनाव से लगभग डेढ़ साल पहले भाजपा ने ये बड़ा फैसला लिया. इस्तीफा देने के बाद उन्होंने कहा था कि लोगों का सरकार से भरोसा उठ गया है.
इसके बाद कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बने- बसवराज बोम्मई. 2023 में राज्य में चुनाव हुआ. नतीजा क्या निकला? 2018 में BJP को 224 में से 104 सीटों पर जीत मिली. लेकिन इस बार मामला फंस गया. राज्य में इस बार मुख्यमंत्री हटाने और किसी और नेता को आगे लाना काम नहीं आया. 2023 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को मात्र 66 सीटों पर जीत मिली. कांग्रेस को राज्य में 135 सीटों पर जीत मिली. और कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनाया- सिद्दारमैया को.
इन राज्यों में के इन पैटर्न्स को देखें तो चुनाव से पहले भाजपा ने यहां प्रभावशाली चेहेरे की खोज में मुख्यमंत्री बदला है. कर्नाटक को छोड़ दें तो ऐसा करने से पार्टी को उत्तराखंड और गुजरात में फायदा हुआ है.
अक्टूबर 2024 में हरियाणा में विधानसभा का चुनाव होना है. चुनाव से 6 महीने पहले यहां भी नया मुख्यमंत्री बनाया गया है. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को करनाल से लोकसभा का टिकट दिया गया है. अब देखना है कि हरियाणा में भाजपा को इस फैसले से कैसा रिजल्ट मिलता है.
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