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यादव और कुर्मी के बाद बिहार की राजनीति में 'कुशवाहा काल' आने वाला है?

LokSabha Elections 2024 में NDA और INDIA गठबंधन की तरफ से कुशवाहा समाज के लोग चुनावी मैदान में उतारे गए हैं. 2019 लोकसभा चुनाव की तुलना में ये संख्या दोगुनी है. सवाल ये उठ रहा है कि नीतीश के करीबी माने जाने वाले कुशवाहा समुदाय को BJP-RJD और अन्य पार्टियां क्यों लुभाना चाहती है?

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Alok Mehta Samrat Chaudhary and Upendra Kushwaha
RJD और JDU ने तीन-तीन कुशवाहा उम्मीदवारों को टिकट दिया है. (फाइल फोटो: PTI/इंडिया टुडे)
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रवि सुमन
9 मई 2024 (Updated: 10 मई 2024, 06:43 IST)
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लोकसभा चुनाव 2024. बिहार के कुछ उम्मीदवारों के नाम पर गौर करते हैं. आलोक कुमार मेहता, राजाराम सिंह, संजय कुमार, अंशुल अभिजीत, उपेंद्र कुशवाहा… ऐसे 11 उम्मीदवार हैं जिनमें एक बात कॉमन हैं. ये सब कुशवाहा समाज से हैं और इन्हें NDA या INDIA गठबंधन ने चुनावी मैदान में उतारा है. पिछले लोकसभा चुनाव में ये संख्या 6 थी. अब सवाल उठता है कि 2019 और 2024 के चुनाव के बीच ऐसा क्या हुआ जो कुशवाहा उम्मीदवारों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई वो भी सिर्फ बड़े गठबंधन की. निर्दलीय और अन्य छोटे दलों को तो हमने गिना ही नहीं है. 

INDIA गठबंधन ने कुल 7 कुशवाहा को टिकट दिया है. इनमें राजद ने 3, मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) ने 1, CPI (M) ने 1, CPIML ने 1 और कांग्रेस ने 1 कुशवाहा उम्मीदवार उतारा है. 

महागठबंधन की ओर से कुशवाहा उम्मीदवार
1अभय कुमार सिंहराजदऔरंगाबाद
2श्रवण कुमार कुशवाहाराजदनवादा
3आलोक कुमार मेहताराजदउजियारपुर
4राजेश कुशवाहाVIPमोतिहारी
5संजय कुमारCPIMखगड़िया
6राजाराम सिंहCPIMLकाराकाट
7अंशुल अभिजीतकांग्रेसपटना साहिब

कांग्रेस ने पटना साहिब से अंशुल अभिजीत को टिकट दिया है. वो लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार के बेटे हैं. मीरा कुमार बाबू जगजीवन राम की बेटी हैं. वो दलित समाज से आती हैं लेकिन मीरा कुमार के पति मंजुल कुमार, कुशवाहा हैं.

वहीं NDA ने 4 ऐसे कैंडिडेट को टिकट दिया है जो कुशवाहा समाज से आते हैं. इनमें नीतीश कुमार की जदयू ने 3 कुशवाहा उम्मीदवारों को टिकट दिया है. राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा काराकाट से खुद चुनाव लड़ रहे हैं.

NDA की ओर से कुशवाहा कैंडिडेट
1सुनील कुमारजदयूवाल्मिकीनगर
2संतोष कुमारजदयूपूर्णिया
3विजया लक्ष्मीजदयूसीवान
4उपेंद्र कुशवाहाRLMकाराकाट

विजय लक्ष्मी माले के नेता रहे रमेश कुशवाहा की पत्नी हैं. कुशवाहा उम्मीदवारों को टिकट देने के मामले में राजद और जदयू बराबरी पर हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार में NDA और महागठबंधन की ओर से 6 कुशवाहा उम्मीदवार थे. इनमें बैद्यनाथ प्रसाद महतो, ब्रजेश कुमार कुशवाहा, उपेंद्र कुशवाहा, संतोष कुमार कुशवाहा, महाबली सिंह और उपेंद्र प्रसाद शामिल थे.

अब चुनावी गणित में कुशवाहा समाज की हिस्सेदारी को समझते हैं. ऐसी अवधारणा रही है कि बिहार में नीतीश कुमार कुशवाहा वोटर्स के चहेते हैं. और उनकी सियासत कुर्मी-कुशवाहा के गठजोड़ पर ही टिकी है. हालांकि वे खुद कुर्मी समुदाय से आते हैं. इस सियासी अंकगणित पर हम विस्तार से चर्चा आगे करेंगे. फिलहाल, मौजूदा टिकट बंटवारे पर आते हैं. इस बार लालू यादव की पार्टी राजद के साथ कई अन्य दलों ने भी कुशवाहा वोट में सेंध लगाने की कोशिश की है. कुल 11 कुशवाहा उम्मीदवार चुनावी मुकाबले में हैं. NDA और INDIA गठबंधन ने कुशवाहा समाज के लगभग 15 फीसदी उम्मीदवारों को टिकट दिया है. 

ये भी पढ़ें: बिहार में चुनाव जीतना है तो गठबंधन जरूरी या मजबूरी? आंकड़ों में समझ लीजिए

टिकट बंटवारे पर एन सिन्हा समाजिक शोध संस्थान के पूर्व निदेशक प्रोफेसर डीएम दिवाकर कहते हैं,

"ये जाति आधारित गणना की ही देन है कि अब सभी दलों को कुशवाहा समाज की अहमियत समझ आने लगी है. सभी दलों ने सोच समझकर इस बार कुशवाहा उम्मीदवारों की संख्या बढ़ाई है. अभी तो ये शुरुआत है. आगे और भी पिछड़ी जातियों से ऐसी मांग की जाएंगी. आगामी विधानसभा चुनाव में भी इसका असर दिखेगा."

उन्होंने आगे कहा,

“अभी तक तो उपेंद्र कुशवाहा ही कुशवाहा समाज के बड़े नेता थे. लेकिन इस जाति आधारित गणना के बाद और नेताओं को भी तैयार किया जा रहा है. जैसे अब सम्राट चौधरी भी आ गए हैं. इस रिपोर्ट ने बड़ा काम कर दिया है. अब जातियों के अनुपात के हिसाब से राजनीति में हिस्सेदारी की बात की जा रही है.” 

2 अक्टूबर 2023 को बिहार में जातिगत जनगणना की रिपोर्ट जारी हुई थी. रिपोर्ट में बिहार की आबादी लगभग 13 करोड़ बताई गई. इसमें पिछड़े वर्ग की आबादी 27 प्रतिशत बताई गई. पिछड़े वर्ग में कुल 30 जातियां हैं. पिछड़े वर्ग में सबसे ज्यादा आबादी यादव जाति की है. रिपोर्ट के मुताबिक 14.26 फीसदी यादव हैं. इसके बाद इस वर्ग में दूसरी सबसे बड़ी जाति की बात की जाए वो है कुशवाहा समाज. बिहार में लगभग 4.21 प्रतिशत आबादी कुशवाहा समाज की है. रिपोर्ट में इनकी संख्या करीब 55 लाख बताई गई है. 

लोकसभा चुनाव में कुशवाहा समाज को मिलने वाली तरजीह संभवतः इस रिपोर्ट का असर हो सकती है. ऐसा पहली बार हुआ है जब बिहार में बड़े राजनीतिक दलों ने इतनी बड़ी संख्या में कुशवाहा उम्मीदवारों को लोकसभा के चुनावी मैदान में उतारा है.

 इस चुनावी परिदृश्य पर हमने पटना यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक एनके चौधरी से भी बात की. इस विषय पर उन्होंने एक अलग दृष्टिकोण रेखांकित किया. चौधरी कहते हैं,

"मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि राजनीति में कुछ भी ऐसे ही नहीं होता. ये नीतीश कुमार को कमजोर करने के लिए किया गया है. नीतीश एक 'जाति आधारित नेता' रहे हैं. उन्होंने अपनी राजनीति में पहले कुशवाहा को साधा फिर EBC को और फिर सामान्य जातियों को. सामान्य जाति RJD और कांग्रेस के साथ नहीं थीं. राहुल गांधी और लालू यादव जिस तरह जातिगत जनगणना की बात कर रहे हैं, वो बीजेपी के साथ नीतीश को भी कमजोर करने के लिए है."

हालांकि, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कुमार इसपर अलग विचार रखते हैं. वो इसे सोची-समझी रणनीति नहीं मानते. वो कहते हैं,

“ये एक संयोग मात्र ही है. OBC की एक माइनर जाति पर दांव लगाने का मतलब समझ नहीं आता. OBC में और भी कई जातियां हैं. अगर ये सोची-समझी रणनीति होती तो जदयू और राजद के पास और भी जातियों के विकल्प थे जिनपर वो ध्यान दे सकते थे.”

बिहार में ‘कुशवाहा राजनीति’

कुर्मी और कुशवाहा समुदाय के समीकरण को बिहार की राजनीति में 'लव कुश' के नाम से जाना जाता है. लव, कुर्मी के लिए और कुश, कुशवाहा के लिए उपयोग किया जाता है. नीतीश की राजनीति में इस समीकरण का बड़ा योगदान रहा है. लालू यादव ने यादव-मुस्लिम और OBC समीकरण के जरिए सरकार बनाई. इसको देखकर लगभग तीन दशक पहले नीतीश कुमार ने कुर्मी और कुशवाहा समीकरण को साधना शुरू कर दिया. उन्होंने ‘लव कुश’ नाम से एक रैली की. पटना के गांधी मैदान में ये कुर्मी और कुशवाहा समुदाय की एक बड़ी रैली थी. लालू यादव के जातीय समीकरण के सामने उन्होंने खुद को इस समीकरण से स्थापित किया और बीजेपी की मदद से सत्ता पर काबिज हुए.

भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए किसी कुशवाहा कैंडिडेट को टिकट नहीं दिया है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि भाजपा उनको साधने की कोशिश नहीं कर रही. जनवरी 2024 में नीतीश कुमार ने राजद से गठबंधन तोड़ लिया. भाजपा और जदयू ने मिलकर बिहार में सरकार बनाई. उपमुख्यमंत्री बनाए गए- सम्राट चौधरी जो कुशवाहा समाज से हैं. नीतीश कुर्मी समाज से हैं. ऐसे में कहा गया कि बिहार में कुर्मी और कुशवाहा का समीकरण बनाया गया है. और इसका फायदा NDA गठबंधन को मिलेगा. नीतीश पहले से भी इस समीकरण को साधते रहे हैं और उन्हें फायदा भी मिलता रहा है. लेकिन भाजपा ने सम्राट चौधरी को पहले ही कुशवाहा नेता के तौर पर तैयार करना शुरू कर दिया था. वैसे बीजेपी के कुशवाहा प्रेम की पहली झलक तभी मिल गई थी जब पार्टी ने नीतीश से अलग होने के बाद उपेंद्र कुशवाहा को तुरंत ही अपने साथ कर लिया था.  

भाजपा ने मार्च 2023 में सम्राट चौधरी को बिहार का प्रदेश अध्यक्ष बनाया. तब नीतीश NDA के साथ नहीं थे. RJD के साथ सरकार चला रहे थे. एनके चौधरी बताते हैं,

"भाजपा ने पहले (2016 में) नित्यानंद राय को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर राजद के यादव वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश की थी. सफलता नहीं मिली. फिर सम्राट चौधरी के जरिए नीतीश कुमार के कुशवाहा वोट में सेंध लगाने की कोशिश की."

वर्तमान में सम्राट चौधरी और उपेंद्र कुशवाहा, नीतीश कुमार के साथ हैं. ऐसे में अब ये प्रयास RJD कर रही है. इसके पीछे की रणनीति बहुत साफ है. क्योंकि पार्टी को लगता है कि यादव और मुस्लिम वोट उसके साथ हर हाल में बने रहेंगे. ऐसे में सीट के जातीय समीकरण के हिसाब से उन उम्मीदवारों पर दांव चला जाए जो नए वोटर्स जोड़ते हों. यहीं दांव टिकट बंटवारे में नजर आ रहा है. 

बात अगर लोकसभा सीटों पर कुशवाहा समाज के असर की करें तो तीन से चार सीटें ऐसी हैं जहां एकजुट कुशवाहा समाज निर्णायक भूमिका निभा सकता है. इनमें सबसे पहला नाम काराकाट का ही आता है जहां से उपेंद्र कुशवाहा उम्मीदवार हैं. साथ ही बताया जाता है कि नवादा और उजियारपुर में भी कुशवाहा निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.

इसके अलावा बक्सर, सुपौल, होशियारपुर के कुछ इलाकों में कुशवाहा समाज की संख्या ठीक-ठीक बताई जाती है. हालांकि, यहां इन्हें निर्णायक नहीं कहा जा सकता है. इसकी वजह ये है कि पिछड़े वर्ग में कुशवाहा समाज की जनसंख्या भले ही दूसरे नंबर पर आती हो लेकिन इनकी आबादी स्कैटर्ड है यानी बिखरी हुई है. इसलिए बिहार की कई लोकसभा सीटों पर कुशवाहा समाज का असर है पर 'डिसाइसिव' नहीं.

Upendra Kushwaha बनाम Samrat Choudhary

फिलहाल, बिहार में कुशवाहा नेता के रूप में उपेंद्र कुशवाहा की पहचान है. भाजपा ने सम्राट चौधरी को कुशवाहा नेता के तौर पर आगे बढ़ाने की कोशिश की है. लेकिन दोनों को इसमें कितनी सफलता मिली है? एनके चौधरी कहते हैं,

“उपेंद्र कुशवाहा, ‘कुशवाहा के नेता’ हैं लेकिन ‘बड़े नेता’ नहीं हैं. बार-बार पाला बदलने की वजह से उनकी क्रेडिबिलिटी नहीं रह गई है. नीतीश कुमार ने भी पाला बदला है लेकिन उन्होंने सत्ता में रहते हुए ऐसा किया है. इसलिए वो सत्ता में बने हुए हैं. हालांकि, नीतीश की क्रेडिबिलिटी भी घटी है. उपेंद्र कुशवाहा की पहचान एक सीरियस नेता की नहीं रह गई है. इसके बावजूद भी फिलहाल बिहार में वही कुशवाहा के नेता हैं.”

उन्होंने आगे कहा,

“उपेंद्र कुशवाहा के सामने सम्राट चौधरी हैं लेकिन सम्राट चौधरी की पहचान एक ‘कुशवाहा नेता’ से ज्यादा एक ‘BJP नेता’ की है. वैसे ही राजद के आलोक मेहता (कुशवाहा) की पहचान भी एक कुशवाहा नेता की नहीं बल्कि एक ‘RJD नेता' की है. इसी तरह JDU के उमेश कुशवाहा भी हैं. उनके नाम में कुशवाहा लगा है लेकिन उनमें लीडरशीप वाली बात नहीं है.”

वहीं पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कुमार कहते हैं,

“पार्टी के संदर्भ में उपेंद्र कुशवाहा कमजोर रहे हैं लेकिन उनकी प्रोफाइल अच्छी बन गई है. केंद्रीय मंत्री रहे. कई बड़े पदों पर रहे. उनके सामने सम्राट चौधरी को बीजेपी ने भले ही बड़ा ओहदा दे दिया है लेकिन उनका प्रोफाइल उतना मजबूत नहीं है. उन्हें अपना प्रोफाइल बनाने में अभी समय लगेगा.”

मार्च 2004 से फरवरी 2005 तक वो बिहार विधानसभा में समता पार्टी के नेता और बिहार विधान सभा में विपक्ष के नेता थे. साल 2013 में उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश की पार्टी से इस्तीफा दे दिया और अपनी अलग पार्टी बनाई. पार्टी का नाम रखा- राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP). ये पहला मौका था जब बड़े स्तर पर उपेंद्र कुशवाहा और ‘कुशवाहा राजनीति’ पर लोगों की नजर पड़ी. 2014 में कुशवाहा की पार्टी ने 3 लोकसभा सीटें जीती और केंद्रीय मंत्री बने. फिर हुआ 2015 का विधानसभा चुनाव. जब दशकों बाद नीतीश-लालू साथ आए. एनडीए ने इस चुनाव में आरएलएसपी को 23 सीटें दीं, हालांकि वो जीती सिर्फ 2 पर. साल 2018 में उपेंद्र कुशवाहा ने केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. और खुद को NDA गठबंधन से अलग कर लिया. महागठबंधन के साथ चले गए. इसके बाद उपेंद्र कुशवाहा को एक झटका तब लगा जब उनके 2 विधायकों ने उनका साथ छोड़ दिया और JDU में चले गए. फिर उन्होंने अपनी पार्टी का विलय JDU में कर दिया. नीतीश ने जेडीयू राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया लेकिन बात बनी नहीं. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले उन्होंने फिर से खुद को नीतीश से अलग कर लिया. नई पार्टी बनाई लेकिन लोकसभा चुनाव में NDA के साथ गए तो नीतीश वहां पहले से ही थे.

ये वो सारे कीवर्ड्स थे जिनके ईर्दगिर्द कुशवाहा राजनीति की चर्चा चल रही है. ये कीवर्ड्स 4 जून को हेडलाइन्स बनेंगे या नहीं? ये तो जनता ही तय करेगी. लेकिन इतना तो तय है कि बिहार में कुशवाहा की राजनीति आगे भी जारी रहेगी. जो नीतीश कुमार के लव-कुश समीकरण को नुकसान पहुंचाने और BJP व RJD के लिए नए वोटबैंक की तलाश के रास्ते खोलेगी.

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