बीएड करने वाले नहीं बनेंगे प्राइमरी शिक्षक, SC के फैसले से दुखी छात्र क्या योजना बना रहे?
सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा ‘गुणवत्तापूर्ण’ भी होनी चाहिए, बीएड करने वालों के पास पढ़ाने के लिए पर्याप्त शैक्षणिक योग्यता नहीं है
देश में शिक्षक बनने के लिए अलग-अलग डिग्री हासिल करनी होती है. इनमें से दो डिग्रियां हैं B.Ed और BTC. पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर ये दोनों शब्द कीवर्ड की तरह तैर रहे हैं. खासकर B.Ed. लाखों ट्वीट्स किए जा चुके हैं. धरना देने की बात हो रही है. कारण है सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला. जिसमें कोर्ट ने कहा है कि B.Ed डिग्री धारक अब प्राइमरी शिक्षक नहीं बन सकेंगे. माने प्राइमरी शिक्षक (PRT) बनने के लिए तय योग्यता से B.Ed डिग्री धारकों को बाहर कर दिया गया है. पांचवीं कक्षा तक पढ़ाने के लिए अब सिर्फ BTC डिग्रीधारी ही एलिजिबल होंगे.
प्राथमिक शिक्षक और इससे B.Ed डिग्री करने वालों को बाहर किए जाने का पूरा मामला क्या है? इसमें नेशनल काउंसिल ऑफ टीचर्स एजुकेशन (NCTE) द्वारा जारी की गई अधिसूचना की चर्चा क्यों की जा रही है? सारा कुछ विस्तार से समझते हैं.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला11 अगस्त 2023. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने राजस्थान हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार और NCTE की अपील को खारिज कर दिया. लेकिन इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने NCTE द्वारा 28 जून, 2018 को जारी किए गए एक नोटिस को भी रद्द कर दिया. सारा बखेड़ा इसी बात पर खड़ा हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि भारतीय संविधान में आर्टिकल 21A के तहत प्राथमिक शिक्षा का मौलिक अधिकार दिया गया है. इसमें केवल ‘मुफ्त’ और ‘अनिवार्य’ शिक्षा शामिल नहीं है, बल्कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को दी जाने वाली ‘गुणवत्तापूर्ण’ शिक्षा भी शामिल है. कोर्ट ने B.Ed डिग्री धारकों के बारे में कहा,
NCTE की अधिसूचना में क्या था?"उनके पास प्राइमरी कक्षा के छात्रों को पढ़ाने के लिए पर्याप्त शैक्षणिक योग्यता नहीं है. इस वजह से वो प्राइमरी कक्षा के छात्रों को ‘गुणवत्तापूर्ण’ शिक्षा नहीं प्रदान कर पाएंगे."
प्राइमरी शिक्षक भर्ती से जुड़े इस मामले का एक सिरा साल 2018 में जारी की गई अधिसूचना से जुड़ा है. ये अधिसूचना NCTE द्वारा जारी की गई थी. NCTE पूरे देश में शिक्षकों के लिए योग्यता निर्धारित करती है. 28 जून, 2018 को जारी की गई NCTE की अधिसूचना में कहा गया था कि B.Ed डिग्री हासिल करने वाले छात्र प्राइमरी शिक्षक बनने के लिए एलिजिबल होंगे. इसके लिए उन्हें एक ब्रिज कोर्स करना होगा जो कि 6 महीने का होगा. उसके बाद वो प्राइमरी शिक्षक यानी कक्षा 1 से 5वीं तक के छात्रों को पढ़ाने वाले शिक्षक बन सकेंगे.
NCTE का ये आदेश जारी हुआ. उधर राजस्थान सरकार ने राजस्थान टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट (RTET) के लिए नोटिफिकेशन जारी किया. लेकिन RTET के नोटिफिकेशन के मुताबिक B.Ed डिग्री धारक परीक्षा के लिए एलिजिबल नहीं थे. माने B.Ed डिग्री वालों को परीक्षा से बाहर कर दिया गया था. राज्य सरकार के इस फैसले को राजस्थान हाई कोर्ट में चुनौती दे दी गई.
उधर एलिमेंट्री एजुकेशन में डिप्लोमा (D.El.ED) धारकों ने B.Ed डिग्री धारकों की भर्ती में शामिल किए जाने को भी चुनौती दे दी. D.El.ED डिप्लोमा प्राइमरी टीचर बनने के लिए इकलौती एलिजिबिलिटी थी. मामले में राजस्थान सरकार ने D.El.ED छात्रों का समर्थन किया. हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए 25 नवंबर, 2021 को NCTE की अधिसूचना को खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि B.Ed डिग्री धारक प्राइमरी टीचर की पोस्ट के लिए एलिजिबल नहीं होंगे.
सुप्रीम कोर्ट में क्या सुनवाई हुई?बीती 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए राजस्थान हाई कोर्ट के इसी फैसले को बरकरार रखा है. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने NCTE द्वारा साल 2018 में जारी की गई अधिसूचना को भी खारिज कर दिया है. सीनियर वकील पीएस पटवालिया और मीनाक्षी अरोड़ा ने कोर्ट में B.Ed कैंडिडेट्स का पक्ष रखा. कहा गया कि राजस्थान हाई कोर्ट इस बात पर विचार करने में विफल रहा कि ये अधिसूचना केंद्र सरकार के जारी करने के बाद NCTE द्वारा लिया गया एक नीतिगत निर्णय था.
वहीं डिप्लोमा धारकों और राजस्थान सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में वकील कपिल सिब्बल और मनीष सिंघवी ने पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि NCTE एक एक्सपर्ट बॉडी है. उसे इस मामले में स्वतंत्र निर्णय लेना था, न कि केवल केंद्र सरकार के नियमों का पालन करना.
मामले में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष रखा एएसजी ऐश्वर्या भाटिया और विक्रमजीत बनर्जी ने. कहा गया कि राजस्थान हाई कोर्ट का आदेश शिक्षा अधिकार अधिनियम और NCTE एक्ट के तहत दी गई केंद्र सरकार की शक्तियों की अनदेखी करते हुए पारित किया गया था.
आगे क्या?अब कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद लाखों छात्र अपने भविष्य की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं. उन्होंने प्राइमरी शिक्षक बनने के लिए CTET, यानी सेंट्रल टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट के लिए अप्लाई किया था. परीक्षा का एडमिट कार्ड 18 अगस्त को जारी होने वाला है. CBSE द्वारा आयोजित ये परीक्षा 20 अगस्त को देश के विभिन्न शहरों में आयोजित की जाएगी. लेकिन B.Ed डिग्री धारक कोर्ट के फैसले के बाद अब दुविधा में हैं कि एग्जाम दिया जाए या नहीं. सुप्रीम कोर्ट में मामले से जुड़ी याचिका दायर करने वाले देवेश कुमार ने दी लल्लनटॉप से बात करते हुए बताया,
“कोर्ट का ये फैसला लगभग तीन करोड़ B.Ed डिग्री धारकों से सीधा जुड़ा है. इसका खामियाजा छात्रों के साथ-साथ उनके परिवार वाले भी भुगत रहे हैं. ऐसे में छात्र क्या करेंगे ये भी समझ से परे है. छात्रों का इससे कुछ लेना-देना भी नहीं है, फिर भी उनका करियर दांव पर लगा है.”
बता दें कि CTET के तहत दो पेपर होते हैं. पेपर 1 उन उम्मीदवारों के लिए होता है जो प्राइमरी शिक्षक (कक्षा 1 से 5) बनने की चाह रखते हैं. वहीं CTET का पेपर 2 कक्षा 6 से 8 तक का शिक्षक बनने के लिए देना होता है. छात्र दोनों लेवल के लिए अप्लाई कर दोनों ही पेपर दे सकते हैं.
वहीं KVS यानी केंद्रीय विद्यालय संगठन द्वारा शिक्षकों की भर्ती के लिए परीक्षा का आयोजन पहले ही किया जा चुका है. उम्मीदवार इसके रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन अब KVS में भी B.Ed डिग्री धारकों को प्राइमरी टीचर के तौर पर नियुक्त नहीं मिलेगी. रिजल्ट आने के बाद पिक्चर और क्लियर हो जाएगी.
बात राज्यों की. प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती के लिए अलग-अलग राज्य अपने स्तर पर परीक्षा का आयोजन कराते हैं. जैसे बिहार में BPSC शिक्षकों की भर्ती के लिए अपने स्तर पर नोटिफिकेशन जारी करता है. अब राज्यों के स्तर पर प्राइमरी शिक्षक भर्ती के लिए B.Ed डिग्री धारकों की एलिजिबिलिटी राज्य द्वारा ही तय की जाएगी. देवेश ने आगे बताया,
धरने की तैयारी, अध्यादेश लाने की गुहार“कई राज्यों में पिछले पांच सालों में B.Ed डिग्री वालों को प्राइमरी शिक्षक के तौर पर नियुक्तियां दी गई हैं. कई राज्यों में नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है. वहीं कई राज्यों ने नियुक्ति करने की बात कही थी. अब इन सब भर्तियों का क्या होगा? क्या सरकार जिनको नियुक्ति दे चुकी, उन्हें हटाएगी? सरकार के फैसले के कारण लाखों लोग सीधे प्रभावित हो रहे हैं. सरकार को कोई भी फिक्र नहीं है.”
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से प्रभावित B.Ed डिग्री पूरी करने वाले छात्र पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगा रहे हैं. छात्रों ने ट्विटर कैंपेन चलाया. अब सड़क पर उतरने की तैयारी भी की जा रही है. कई राज्यों और कई शहरों में प्रदर्शन किए जा रहे हैं.
छात्रों का कहना है कि सरकार इस मामले से जुड़ा एक अध्यादेश लाए और B.Ed डिग्री वालों के साथ इंसाफ किया जाए. जिससे कि उन्हें प्राइमरी शिक्षक भर्ती के लिए पात्र माना जाए. कई छात्र तो अब सरकार की NEP 2020, यानी न्यू एजुकेशन पॉलिसी के तहत 4 साल के B.Ed कोर्स पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं.
दी लल्लनटॉप से बात करते हुए एक छात्र ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा,
“हमने तो सरकार की अधिसूचना का पालन किया था जो कि 5 साल पहले लाई गई थी. लेकिन अब कोर्ट ने उसे ही खारिज कर दिया है. सरकार को NEP के तहत लाए गए नियमों के बारे में अभी से सफाई दे देनी चाहिए. क्या होगा अगर पांच साल बाद सरकार फिर से ये कह देगी कि NEP के नियम भी अब लागू नहीं होंगे? छात्रों के साथ खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है?”
फिलहाल इस मामले में सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. अध्यादेश आता है या नहीं ये आगे चलकर देखने वाली बात होगी. B.Ed डिग्री वाले छात्रों के भविष्य को लेकर सरकार का जो भी मानना होगा, वो जानकारी सामने आने पर हम आपको बताएंगे.