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सरकारी बैंकों की ब्रांचेज और स्टॉफ की संख्या घटी, सरकार का क्या है प्लान ?

सरकारी बैंकों में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या में भी करीब 13 हजार की कमी दर्ज की गई है.

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बैंक (सांकेतिकत तस्वीर)
4 जुलाई 2022 (Updated: 4 जुलाई 2022, 18:20 IST)
Updated: 4 जुलाई 2022 18:20 IST
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देश में सरकारी बैंकों की संख्या तेजी से घट रही है. इस बारे में न्यूज एजेंसी IANS ने ऑल इंडिया बैंक इंप्लायीज एसोसिएशन (AIBEA) के हवाले से एक खबर छापी है. इस खबर के मुताबिक बीते वित्त वर्ष यानी 2021-22 में सरकारी बैंकों की कुल 2044 शाखाएं बंद हुई हैं. साथ ही सरकारी बैंकों में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या में भी करीब 13 हजार की कमी दर्ज की गई है. एसोसिशन के मुताबिक वित्त वर्ष 2021 के अंत में सरकारी बैंकों की शाखाओं की कुल संख्या 88 हजार 265 थीं लेकिन 2022 आते आते सरकारी बैंकों के शाखाओं की संख्या घटकर 86 हजार 221 रह गई है. वहीं, वित्त वर्ष 2020 में सरकारी बैंकों की शाखाओं की कुल संख्या 90 हजार 520 थी. आंकड़ों से साफ नजर आ रहा है कि देश में सरकारी बैंकों के शाखाओं में तेजी से कमी आ रही है.

सरकारी बैंकों के कर्मचारियों की संख्या भी घटी 

इसी तरह अगर सरकारी बैंकों में काम करने वाले कर्मचारियों की बात की जाये तो 2021 में सरकारी बैंकों में कर्मचारियों की संख्या 8 लाख 7 हजार 48 थी जो 2022 में घटकर 7 लाख 94 हजार 40 पर आ गई. बैंक एसोसिएशन के मुताबिक, जहां एक तरफ सरकारी बैंक की शाखाएं दनादन बंद हो रही हैं वहीं निजी बैंकों की शाखाओं की संख्या 2021 की तुलना में 2022 में 4,023 बढ़ी हैं. अब देश में प्राइवेट बैंकों की शाखाएं बढ़कर 34 हजार 342 हो गईं हैं. बैंकों की कम होती ब्रांचेज और स्टॉफ में कमी एक सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है या इसके पीछे कुछ और कहानी है. इसे समझते हैं. इकोनॉमिक टाइम्स की हाल ही में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक मोदी सरकार, सरकारी बैंकों से अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचने से जुड़ा नया बिल आगामी संसद सत्र में लाने की तैयारी कर रही है. इस बिल के पारित होने के बाद सरकार के पास इस बात की पूरी आजादी रहेगी कि वह सरकारी बैंकों में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचकर निकल ले. बैंकिंग कंपनी एक्ट 1970 में अभी जो कानून कायदे हैं उसके मुताबिक सरकार को सरकारी बैकों में अपनी कम से कम 51 फीसदी हिस्सेदारी रखनी जरूरी है. फिलहाल सरकारी बैंकों में 51 फीसदी हिस्सेदारी होने से सरकार का इन बैंकों पर पूरा नियंत्रण रहता है.

बड़ी संख्या में रिटायर हो रहे बैंक कर्मचारी 

ऑल इंडिया बैंक एंप्लायीज एसोसिएशन का कहना है कि 2020 में सरकारी बैंकों के विलय और बड़ी तादाद में कर्मचारियों के रिटायरमेंट के चलते बैंक की ब्रांचेज और स्टॉफ में कमी आई है. आल इंडिया बैंकर्स एसोसिशन के जनरल सेक्रेटरी सी.एच. वेंकटचलम ने न्यूज एजेंसी IANS से कहा, '' सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए वित्त वर्ष 2021 तक का समय काफी बुरा रहा क्योंकि इस दौरान तक सरकार बैंकों का फंसा हुआ कर्ज यानी NPA काफी ज्यादा था. सबसे ज्यादा एनपीए कारपोरेट सेक्टर का देखने को मिला. हालांकि, उनका कहना है कि सरकारी बैंकों के लिए बुरा दौर खत्म हो गया है. सरकारी बैंक अब काफी बढ़िया आर्थिक स्थिति में पहुंच रहे हैं.

दो सरकारी बैंकों के निजीकरण का मिल चुका है संकेत

रिपोर्ट के अनुसार, 21 सरकारी बैंकों ने वित्त वर्ष 2021 में डिपॉजिट और एडवांस मिलाकर 181. 40 लाख करोड़ रुपये का कुल कारोबार किया. वहीं, वित्त वर्ष 2021 में 166.08 लाख करोड़ रुपये कुल कारोबार था. इसके अलावा वित्त वर्ष 2021 में सरकारी बैंकों का नेट प्रॉफिट दोगुने से भी ज्यादा बढ़कर 689.79 अरब रुपये पर पहुंच गया जबकि वित्त वर्ष 2021 में नेट प्रॉफिट 331.77 अरब रुपये था. पिछले साल बजट में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि सरकार दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण करेगी. सूत्रों के मुताबिक इसमें सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक शामिल हैं.  वहीं, आईडीबीआई बैंक (IDBI) के निजीकरण की प्रक्रिया पहले से ही चल रही है. उम्मीद है कि सरकार अगले महीने के अंत तक आईडीबीआई बैंक के लिए बोलियां मंगाएगी. 

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