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मोदी सरकार ने 17 खरीफ फसलों का MSP बढ़ाया , किसान खुश हैं या नहीं ?

मोदी कैबिनेट ने 8 जून को फसल वर्ष 2022-23 के लिए खरीफ फसलों के लिए मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) 4 से लेकर 9 परसेंट बढ़ाने का ऐलान किया है.

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खेत में काम करते हुए किसान (फाइल फोटो)
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प्रदीप यादव
10 जून 2022 (Updated: 20 जून 2022, 20:44 IST)
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मोदी कैबिनेट ने बुधवार 8 जून को फसल वर्ष 2022-23  के लिए खरीफ फसलों के लिए मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) 4 से लेकर 9 परसेंट बढ़ाने का ऐलान किया है. लेकिन ज्यादातर किसान संगठन इस घोषणा से खुश नहीं आ रहे हैं. उनका कहना है कि एमएसपी में वृद्धि मौजूदा महंगाई के मुकाबले काफी कम है और जमीनी स्तर पर किसानों की इनकम पर कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है. शेतकारी किसान संगठन के नेता अनिल घनवत ने बिजनेस लाइन से कहा, एमएसपी में बढ़ोतरी से किसानों को कोई फायदा नहीं होने वाला है. उन्होंने कहा, “सरकार की तरफ से तय एमएसपी की तुलना में खाद, बीज और लेबर कास्ट बहुत ज्यादा बढ़ गई है. उन्होंने कहा, “किसान एमएसपी से नीचे उड़द, अरहर, मूंग बेच रहे हैं क्योंकि सरकार ने किसानों से ठीक से खरीद नहीं की है.

क्या है MSP?

अब सबसे पहले जानते हैं MSP किस चिड़िया का नाम ? एमएसपी का फुल फॉर्म होता है मिनिमम सपोर्ट प्राइस. इसके तहत केंद्र सरकार किसानों की फसलों की एक न्यूनतम कीमत तय करती है ताकि अगर बाजार में फसलों की कीमतें गिर जाएं तो किसानों के पास अपनी फसल सरकार के पास बेचने का विकल्प रहे. एक तरह से यह सरकारी भाव है. हालांकि यह तो होगी आदर्श वाली बात लेकिन अब समझते हैं कि किसानों का असली दर्द क्या है. सरकार एमएसपी तो तय कर देती है लेकिन कई बार किसानों को एमएसपी से कम कीमत पर भी अपनी फसल बेचनी पड़ती है. अगस्त 2014 में बनी शांता कुमार कमेटी के मुताबिक 6 परसेंट किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिल पाया है. इस मामले में कुछ राज्यों की हालत और भी बदतर है. बिहार में एमएसपी पर फसलों की खरीद नहीं की जाती है. बिहार सरकार प्राइमरी एग्रीकल्चर कॉपरेटिव सोसाइटीज यानी पैक्स के जरिये किसानों से अनाज खरीदती है. लेकिन किसानों की काफी समय से शिकायत रही है वहां पैक्स बहुत कम अनाज खरीदती है जिससे उन्हें औने-पौने दाम पर अपनी फसल बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

CACP की सिफारिश के बाद सरकार लेती है फैसला 

कृषि मंत्रालय के तहत काम करने वाले कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट्स एंड प्राइसेस यानी CACP की सिफारश पर सरकार फिलहाल हर साल 23 फसलों के लिए एमएसपी तय करती है. इन फसलों में 7 अनाज वाली फसलें हैं मसलन धान, गेहूं, बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी और जौ. 5 दलहन फसलें हैं जैसे चना, अरहर, मूंग, उड़द और मसूर. इसी तरह से तिलहन वाली फसलें सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी, तिल, काला तिल और कुसुम शामिल है. 4 कैश क्रॉप गन्ना, कपास, जूट, नारियल हैं. कैश क्रॉप का मतलब है कि किसान अपनी फसल को तुरंत बेचकर भी कैश प्राप्त कर सकते हैं. 

सोयाबीन का MSP 350 रुपये बढ़ा

आपको बता दें कि जुलाई से नया क्रॉप सीजन शुरू होने वाला है. इससे पहले सरकार ने खरीफ फसलों की एमएसपी बढ़ाने का ऐलान किया है. सरकार ने धान का एमएसपी 100 रुपये बढ़कर 2040 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है जबकि पहले 1940 रुपये प्रति क्विंटल था. मक्के का एमएसपी 92 रुपये बढ़कर 1962 रुपये कर दिया है जबकि इससे पहले मक्के का एमएसपी 1870 रुपये था.  वहीं, ज्वार का एमएसपी 2738 रुपये से बढ़कर 2970 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है. इस तरह से ज्वार के एमएसपी में 232 रुपये प्रति क्विटल की बढ़ोतरी हुई है. बाजरे का एमएसपी 2250 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2350 रुपये प्रति क्विटल किया गया है. तिलहन फसलों की बात करें तो सोयाबीन का सपोर्ट प्राइस 350 रुपये बढ़ाकर 4300 रुपये कर दिया गया है जबकि पहले एमएसपी 3950 रुपये प्रति क्विंटल था. इसी तरह से दालों के सरकारी भाव में भी इजाफा हुआ है. इस बार अरहर और उड़द के एमएसपी में 300-300 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है. अब अरहर और उड़द का  एमएसपी 6300 रुपये से बढ़कर 6600 रुपये हो गया है.

किसानों को नहीं भा रहा A2+FL वाला फार्मूला                                                        

एमएसपी को लेकर किसानों और सरकार के बीच शीत युद्ध की असली वजह क्या है. दरअसल, एमएसपी कैलुकेशन के लिए जो फार्मूला अख्तियार किया जा रहा है उसको लेकर किसानों को शुरू से ही ऐतराज रहा है. दरअसल, मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल में यह तय किया था कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए वह उत्पादन लागत से डेढ़ गुना फसल का दाम देगी. इसी के तहत मोदी सरकार ने पहली बार फसल वर्ष 2018-19 के लिए उत्पादन लागत से 50 फीसदी ज्यादा एमएसपी में वृद्धि की थी. यह एमएसपी तय करते समय सरकार अभी कॉस्ट A2+FL का फ़ॉर्मूला अपना रही है.  

A2 + FL फॉर्मूले में किसानों की जेब से लगी लागत के साथ उनके परिवार के सदस्यों का मेहनताना भी जोड़ा जाता है. यहां A2 का मतलब है आउट ऑफ पॉकेट एक्सपेंसेस यानी किसान की जेब से खर्च होने वाला पैसा मसलन बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूर को चुकाया गया पैसा, मशीनरी, सिंचाई और जमीन की लीज की लागत को शामिल किया जाता है. यहां यहां FL का मतलब फैमिली लेबर (FL) से है यानी A2+FL में किसान की जेब से खर्च की गई लागत के साथ परिवार के सदस्यों का भी मेहताना जोड़ा जाता है. लेकिन किसान संगठन चाहते हैं कि कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित कृषि आयोग के फार्मूले के हिसाब से एमएसपी तय की जानी चाहिए जोकि C2+50 पर आधारित है. अब C2 क्या है यह समझते हैं. C2 का यहां मतलब है कि टोटल कास्ट ऑफ क्रॉप. C2 व्यापक तरीके से किसानों की लागत निकालती है इसमें A2 की गणना के लिए उपयोग किए जाने वाले कारकों के अलावा, खेत पर काम करने वाले परिवार के सदस्यों की मेहनताना और लीज पर ली गई जमीन का किराया, अगर खुद की जमीन है तो उस पर ब्याज और जितनी भी तरह की अचल संपत्ति खेती करने में शामिल है उन सभी खर्चों को शामिल किया जाता है. इसके बाद इस पर 50 फीसदी मुनाफा की बात कही गई है.

सरकार पर महंगाई को काबू करने का दबाव 


अब आते हैं कि सरकार की मजबूरी पर है. सरकार पर महंगाई का जबरदस्त प्रेशर है. इसकी झलक आपको 8 जून को खत्म हुई मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक में भी देखने को मिल चुकी है. बढ़ती महंगाई को काबू में करने के लिए आरबीआई ने एक महीने के भीतर बैक टू बैक दो बार ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला किया है.  साथ ही केन्द्रीय बैंक को अपना उपभोक्ता महंगाई दर अनुमान भी रिवाइज कर 6.7 फीसदी करना पड़ा है. अप्रैल में थोक महंगाई बढ़कर 15.08 परसेंट हो गई, जो पिछले डेढ़ दशक में सबसे अधिक है. आपको बता दें कि गेहूं, खाद्य तेल और टमाटर की खुदरा कीमतों में पिछले एक साल में सबसे तेज उछाल देखा गया है. 

RBI ने रेपो रेट बढ़ाया 

उपभोक्ता मंत्रालय के अनुसार, गेहूं की खुदरा कीमतें एक साल पहले की तुलना में 13% से अधिक बढ़कर 30 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई हैं. इसके अलावा खाने का तेल खासतौर से पाम और सूरजमुखी के तेल की कीमतें पिछले एक साल में 16 फीसदी तक चढ़ी हैं. इसी तरह से सरसों तेल का भाव 7 फीसदी उछला है. चावल की कीमतों में लगभग 1.7% की बढ़ोतरी देखने को मिली है. टमाटर भी पिछले साल के मुकाबले 163 फीसदी उछल चुका है. रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बुधवार को कहा कि आने वाले दिनों में महंगाई बढ़ने का प्रेशर बना रहेगा.  बुधवार 8 जून को RBI ने रेपो रेट में 50 बेसिस प्वाइंट्स यानी 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी का ऐलान किया है. यह लगातार दूसरा महीना है जब आरबीआई ने रेपो रेट में बढ़ोतरी की है. आरबीआई के इस कदम से सभी तरह के कर्ज महंगे हो जाएंगे. रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को 4.40 परसेंट से बढ़ाकर 4.90 फीसदी कर दिया है. इससे पहले बढ़ती महंगाई पर लगाम कसने के लिए आरबीआई ने 4 मई को भी सबको चौंकाते हुए रेपो रेट में 40 बेसिस प्वाइंटकी बढ़ोतरी कर दी थी. 

वीडियो: तुर्की ने भारत के गेहूं को वापस लौटाया, क्या यह साजिश है?

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