The Lallantop
Advertisement

बेस्ट म्यूचुअल फंड खोज रहे हैं? इन तरीकों को आजमाने से होगी मोटी कमाई

सक्षम वेल्थ लिमिटेड के डायरेक्टर समीर रस्तोगी ने दी लल्लनटॉप को बताया कि निवेशकों को सबसे पहले ये मालूम होना चाहिए कि वो म्यूचुअल फंड(MF) में क्यों निवेश करना चाहते हैं. क्योंकि उसी आधार पर तय होता है कि आपको कौन सी स्कीम में पैसा लगाना है.

Advertisement
User will have to open a demant account to start investing in mutual fund.
म्यूचुअल फंड में ऑनलाइन निवेश करने के लिए डीमैट अकाउंट खुलवाना होगा. (तस्वीर साभार- Freepik)
pic
उपासना
4 जुलाई 2023 (Updated: 4 जुलाई 2023, 12:12 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

ऐसे कई लोग हैं जो हर साल म्यूचुअल फंड में निवेश शुरू करने की प्लानिंग करते हैं, लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी ऐसा कर नहीं पा रहे हैं. इसके पीछे एक बड़ी वजह है-आधी अधूरी समझ. लोग अच्छे म्यूचुअल फंड स्कीम की तलाश में इंटनेरट का सहारा लेते, लेकिन बड़े-बड़े टेक्निकल टर्म देखकर हाथ खड़े कर देते हैं. अगर आप भी इसी कैटेगरी में आते हैं तो कोई बात नहीं. हम आपको म्यूचुअल फंड में निवेश की एबीसीडी से लेकर बड़े-बड़े टर्म भी आसान भाषा में समझा देते हैं. सक्षम वेल्थ लिमिटेड के डायरेक्टर समीर रस्तोगी ने दी लल्लनटॉप को बताया कि लोगों को सबसे पहले ये मालूम होना चाहिए कि वे म्यूचुअल फंड (MF) में निवेश करना क्यों चाहते हैं. क्योंकि इसी आधार पर तय होता है कि आपके लिए कौन सी स्कीम बेहतर रहेगी. कई लोग फिक्स्ड डिपॉजिट का विकल्प ढूंढते हुए म्यूचुअल फंड पर पहुंचते हैं. कुछ लोग शेयर बाजार में निवेश करना चाहते हैं, लेकिन उनके पास समय नहीं होता कि रोज शेयरों में उतार चढ़ाव पर नजर रख सकें, ऐसे लोग भी MF में निवेश करते हैं. कुछ लोग टैक्स बचाने के साथ बेहतर रिटर्न भी चाहते हैं उनके लिए म्यूचुअल फंड अच्छा निवेश साधन हो सकते हैं.

कैसे काम करता है म्यूचुअल फंड?

म्यूचुअल फंड में आपके पैसे को इनवेस्ट करने और उससे रिटर्न कमाकर देने की जिम्मेदारी म्यूचुअल फंड हाउस की होती है. ये वो कंपनी होती है जो आपका निवेश मैनेज करती है. इसे असेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) कहते हैं. म्यूचुअल फंड में निवेश का सबसे बड़ा फायदा ये है कि आपका निवेश का काम अनुभवी फंड मैनेजर संभालते हैं. दूसरा फायदा ये कि MF सेबी के नियम और कानून के दायरे में आते हैं, इसलिए सुरक्षित भी माने जाते हैं.

म्यूचुअल फंड अन्य निवेश के इंस्ट्रूमेंट्स के मुकाबले कम रिस्की माना जाता है. क्योंकि MF में निवेशकों का पैसा किसी एक जगह न लगाये जाने की बजाय कई किस्मों के इंस्ट्रूमेंट में लगाया जाता है जैसे-शेयर, सरकारी बॉन्ड, कॉरपोरेट बॉन्ड, गोल्ड वगैरह. इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि अगर किसी एक जगह निवेश से अच्छा रिटर्न न मिल पाया तो अन्य इंस्ट्रूमेंट से इसकी भरपाई हो जाती है. इस तरह औसतन रिटर्न अच्छा रहता है. ये फायदा किसी अन्य निवेश साधन में नहीं मिलता.

MF स्कीम के निवेशक को अलॉट होती हैं यूनिट?

जैसे कंपनी के शेयर होते हैं वैसे ही म्यूचुअल फंड हाउस की यूनिट होती है. MF में पैसा लगाने वाले निवेशकों को मूलतः फंड हाउस में हिस्सेदारी मिलती है. यूनिट के जरिए निवेशक को उन सभी सिक्योरिटीज का फायदा मिलता है जिनमें MF हाउस ने पैसे लगाए हैं. इसे उदाहरण से समझते हैं. X नाम के म्यूचुअल फंड हाउस ने एक कंपनी A में 20%, कंपनी B में 15%, कंपनी C में 10%, कंपनी D में 25% और डेट इंस्ट्रूमेंट में 30% निवेश किया हुआ है. मान लेते हैं आपने इस फंड हाउस की एक यूनिट खरीदी. तो आपके पास भी इन सभी सिक्योरिटीज में उसी अनुपात में हिस्सेदारी होगी. एक यूनिट की कीमत नेट असेट वैल्यू (NAV) कहलाती है. NAV की कीमत हर रोज तय होती है. उदाहरण के तौर पर अगर किसी फंड की NAV 100 रुपये है तो इस फंड में 1,000 रुपये लगाने पर निवेशक के हिस्से में 10 यूनिट आएंगे.

सहूलियत के लिए ये वाली स्कीम

म्यूचुअल फंड में पैसे जब चाहें तब लगाने और निकालने की सुविधा चाहते हैं तो ओपन एंडेड स्कीम(Open ended scheme) में निवेश करें. वहीं, क्लोज्ड एंडेड स्कीम (Closed ended scheme) में निवेशक सिर्फ एक बार ही निवेश कर सकते हैं. साथ ही पैसे भी तभी निकाल सकते हैं जब स्कीम की मैच्योरिटी पीरियड पूरा होगा.

कौन सा असेट पसंद है

इक्विटी म्यूचुअल फंड- इस फंड में निवेशकों का पैसा शेयरों में लगाया जाता है. इक्विटी एमएफ स्कीम के तहत छोटी कंपनियां, मझली कंपनियां, बड़ी कंपनियां, मल्टी कैप, इंटरनेशनल फंड, इंडेक्स फंड का ऑप्शन मिलता है.

डेट म्यूचुअल फंड- इस तरह के फंड में निवेशकों का पैसा अलग-अलग किस्म के बॉन्ड में लगाया जाता है. इसमें कॉरपोरेट से लेकर सरकारी बॉन्ड शामिल होते हैं.

हाइब्रिड म्यूचुअल फंड- अगर शेयर और बॉन्ड दोनों में निवेश करना चाहते हैं तो हाइब्रिड म्यूचुअल फंड में पैसे लगा सकते हैं.

गोल्ड फंड-  अगर सोना में पैसा लगाना पसंद है तो गोल्ड फंड में चुन सकते हैं. ये फंड गोल्ड से जुड़ी सभी तरह के वित्तीय साधनों में निवेश करते हैं.

एकमुश्त या टुकड़ों में करें निवेश

जो निवेशक एकमुश्त पैसे लगाना चाहते हैं वो लंपसम तरीका चुन सकते हैं. उदाहरण के तौर पर अगर आपके पास एक लाख रुपये हैं तो अपनी पसंद की स्कीम चुनें और उसमें 1 लाख रुपये लगा सकते हैं. अगर टुकड़ों-टुकड़ों में पैसे लगाना चाहते हैं तो SIP यानी सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान भी चुन सकते हैं. मान लेते हैं आपके पास इकट्ठे 1 लाख रुपये नहीं हैं, लेकिन हर महीने 10,000 रुपये निवेश के लिए दे सकते हैं. ऐसे में आप 10,000 रुपये की SIP का विकल्प चुन सकते हैं. हर महीने, दो महीने पर, तिमाही आधार पर जितने अंतराल पर आप निवेश करने में सक्षम हो उसे चुन लें.

वित्तीय सलाहकार की मदद क्यों जरूरी है?

समीर रस्तोगी ने कहा कि वैसे तो निवेश की प्रक्रिया शुरू करने के लिए  एडवाइजर की सलाह लेनी चाहिए. ये रजिस्टर्ड इनवेस्टमेंट एडवाइजर (RIA) से जाने जाते हैं. लेकिन आजकल लोग फाइनेंस इंफ्लुएंसर पर भरोसा करते हैं. उनके विडियो सुनते हैं. गौर करने वाली बात ये है कि इनका खुद उस स्कीम में खुद कोई निवेश नहीं होता. इसलिए इन्फ्लुएंसर की बजाय एडवाइजर्स या  म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर पर भरोसा कर सकते हैं. एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) की वेबसाइट पर आपके इलाके में मौजूद RIA की लिस्ट मिल जाएगी.

ऑनलाइन इनवेस्टमेंट का तरीका

म्यूचुअल फंड में ऑनलाइन निवेश करने के लिए डीमैट अकाउंट खुलवाना होगा. सीधे असेट मैनेजमेंट कंपनी के स्कीम में निवेश करना चाहते हैं उसकी वेबसाइट या ऐप में खाता खुलवाकर निवेश शुरू कर सकते हैं. दूसरा तरीका है- म्यूचुअल फंड इनवेस्टमेंट सर्विस देने वाले ऐप्स के जरिए. यहां आपको एक नहीं लगभग सभी म्यूचुअल फंड हाउस की स्कीमें एक ही जगह मिल जाएंगी. ये तय करें कि कितने वक्त के लिए निवेश करना चाहते हैं जैसे कि लॉन्ग टर्म या शॉर्ट टर्म. 3 साल तक के लिए निवेश करना चाह रहे हैं तो शार्ट टर्म स्कीम चुनें जबकि 3-5 साल तक के लिए पैसे लगा सकते हैं तो मिडियम टर्म स्कीम में निवेश बेहतर माना जाता है. इसी तरह से 5 साल या उससे अधिक समय के लिए पैसे लगा सकते हैं तो लॉन्ग टर्म स्कीम का चुनाव करें. 

दो तरह की स्कीमें हैं उपलब्ध

एक ही प्लान में आपको डायरेक्ट और रेग्युलेर म्यूचुअल फंड दो विकल्प मिलेंगे. जब आप सीधे फंड हाउस से उसकी NAV यूनिट खरीदते हैं तो यह डायरेक्ट म्यूचुअल फंड कहलाएगा. अगर आप किसी ब्रोकर या एजेंट के जरिए वही स्कीम खरीदेंगे तो यह रेगुलर  म्यूचुअल फंड की कैटेगरी में आएगा. डायरेक्ट म्यूचुअल फंड स्कीम का रिटर्न रेगुलर के मुकाबले ज्यादा होता है क्योंकि इसमें किसी तरह की कमीशन फीस नहीं चुकानी पड़ती है. हर असेट मैनेजमेंट कंपनी और ब्रोकरेज फर्म का कमीशन एक्सपेंस अलग-अलग होता है. यह 1-1.25 फीसदी के आसपास होता है.

कैसे चुनें बेस्ट स्कीम

अपना रिस्क प्रोफाइल तय कीजिए. मतलब कितना रिस्क ले सकते हैं. हर म्यूचुअल फंड के आगे उसका रिस्क मीटर मिल जाएगा. जैसे-  हाईब्रिड फंड, मल्टी कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप फंड ज्यादा रिस्की माने जाते हैं. औसत जोखिम लेना चाहते हैं तो मल्टी कैप फंड और बैलेंस्ड एडवांटेज फंड देख सकते हैं. बिल्कुल रिस्क नहीं लेना चाहते तो लार्ज कैप फंड, गिल्ट फंड, लिक्विट फंड में पैसे लगा सकते हैं. अब ये तय करिए कि किस तरह के असेट का फायदा लेना चाहते हैं. जैसे कि गोल्ड, बॉन्ड या शेयर या सभी में थोड़ा-थोड़ा. जो स्कीम आपकी पसंद के असेट में निवेश करती हो उन कुछ स्कीमों को शॉर्ट लिस्ट कर लें.

कब पड़ेगी पैसे की जरूरत

आपको इस बात का अंदाजा होना चाहिए कि आपको इन पैसों की जरूरत कब पड़ सकती है. जैसे कि अगर हाल फिलहाल में पैसों की जरूरत पड़ सकती है तो इक्विटी फंड स्कीमों से दूर रहें. क्योंकि इक्विटी वाली स्कीमें कम समय से अच्छी रिटर्न नहीं देती. इक्विटी स्कीम एक या उससे ज्यादा साल टिके रहने पर ही अच्छा रिटर्न देती हैं. अगर कम समय के लिए पैसे लगाना चाहते हैं तो लिक्विड फंड पर विचार कर सकते हैं.

परफॉर्मेंस का रिकॉर्ड देख लें

बीते सालों में फंड का परफॉर्मेंस कैसा रहा है ये जरूर देख लें. परफॉर्मेंस देखने के लिए एक लंबा टाइम रेंज तय करें. इससे ये तय हो जाता है कि किस फंड ने अच्छा मार्केट वाला समय  देखा है और बुरा समय भी. इस तरह आपको जो रिटर्न दिखेगा वो औसत रिटर्न होगा. अगर फंड ने तीन या पांच या सात या 10 सालों में अपना रिटर्न का रिकॉर्ड नहीं तोड़ा है तो बेहतर है कि किसी स्कीम पर विचार करें. फंड की परफॉर्मेंस देखते हुए स्कीम के अलावा उसके फंड मैनेजर और फंड मैनेजर टीम की परफॉर्मेंस भी जरूर देखें. ये सभी जानकारी ऐप पर ही मिल जाएगी. ये जरूर सुनिश्चित कर लें कि मैनेजर और टीम दोनों के पास एक लंबे समय तक काम करने का अनुभव है.

एक्सपेंस रेशियो जितना कम उतना बेहतर

आपके निवेश का कामकाज देखने के बदले म्यूचुअल फंड हाउस कुछ फीस भी लेते हैं. इसे एक्सपेंस रेशियो कहते हैं. आमतौर पर ये फंड मैनेजर की फीस होती है, जिसकी जिम्मेदारी निवेशकों को अच्छा रिटर्न दिलाने की होती है. बतौर निवेशक आपकी प्राथमिकता ये होनी चाहिए कि कम एक्सपेंस रेशियो वाले स्कीम को चुनें. जिस फंड हाउस के पास मैनेज करने के लिए ज्यादा पैसे होंगे उनका एक्सपेंस रेशियो आपको अक्सर कम दिखेगा.

एंट्री और एक्जिट लोड भी देना पड़ता है

स्कीम में पैसे लगाने पर फंड हाउस निवेशकों से एक फीस वसूलते हैं जिसे एंट्री फीस कहा जाता है. हालांकि, ज्यादातर फंड हाउस एंट्री चार्ज बंद चुके हैं. स्कीम बंद करने पर भी निवेशक को एक फीस देनी होती है जिसे एक्जिट लोड कहते हैं. एक्जिट लोड उसे ही देना पड़ता है जो निवेशक मैच्योरिटी पीरियड से पहले या कुछ ही महीने पैसे लगाकर निवेश बंद कर देते हैं. निवेशकों को म्यूचुअल फंड बंद करने से रोकना ही इस एक्जिट लोड का मकसद होता है. कोशिश करनी चाहिए कि उन्हीं स्कीम को चुनें जिसमें जीरो या कम से कम एंट्री और एक्जिट लोड हो.

टैक्स का हिसाब किताब भी बैठा लें

निवेश पर हुए मुनाफे के बदले निवेशकों को कैपिटल गेन टैक्स देना होता है. इक्विटी फंड के मामले में जितने समय तक आपने स्कीम में निवेश किया है उसी के हिसाब से टैक्स लगता है. अगर एक साल या उससे ज्यादा समय के लिए पैसे लगाए हैं और उससे एक लाख या उससे ज्यादा का फायदा कमाया है तो आयकर कानून के तहत 10 फीसदी टैक्स देना होगा. 12 महीने से कम समय के निवेश पर कमाया गया प्रॉफिट शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन कहलाता है. इस पर 15 फीसदी टैक्स देना पड़ता है. डेट फंड के मामले में टैक्स महंगाई को देखते हुए गिना जाता है. डेट फंड के लिए 36 महीने या उससे अधिक के निवेश को लॉन्ग टर्म और 36 महीने से कम समय के लिए किए गए निवेश को शॉर्ट टर्म गिना जाता है.

वीडियो: खर्चा पानी: फ्रैंकलिन टेम्पलेटन म्यूचुअल फंड में पैसा लगाने वाले लोग क्या करें?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement