एयर कंडीशनर अब कोई विलासिता की वस्तु तो रहे नहीं. कभी कोठी-बंगले और पांच सितारा होटल की पहचान रहा ये प्रोडक्ट आज हर जगह लगा होता है. अरे-अरे क्या कहा! एसी में भी नहीं सो पा रहे. उल्टा रात भर ठंड में ठिठुरते हैं, बिजली बिल चौगुना आ रहा, सो अलग. ऊपर से स्किन रूखी हो रही है और दिन में चिड़चिड़ भी हो रही है. समझ रहे हम आपका दुख. काश आपने बात सुनी होती.
18 डिग्री पर AC चलाकर आप मौज नहीं बहुत सारा कूंडा कर रहे हैं!
बात एयर कंडीशनर बनाने वाली कंपनियों से लेकर बिजली सप्लाई करने वाली कंपनियों की. जो बुक्का फाड़कर कहती हैं कि भईया AC को 18-20 डिग्री (Why you should keep the AC at 24C) पर चलाना बंद करो. 24 पर चलाओ और शरीर के साथ बिजली बचाओ. पूरा साइंस और गणित बताते.

बात एयर कंडीशनर बनाने वाली कंपनियों से लेकर बिजली सप्लाई करने वाली कंपनियों की. जो बुक्का फाड़कर कहती हैं कि भईया AC को 18-20 डिग्री (Why you should keep the AC at 24C) पर चलाना बंद करो. 24 पर चलाओ और शरीर के साथ बिजली बचाओ. पूरा साइंस और गणित बताते.
शरीर का साइंससाइंस की बात करेंगे, मगर जब बात हो रही है तो दूर तलक होकर आते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि एयर कंडीशनर का आविष्कार इंसानों के लिए हुआ ही नहीं था. 1902 में Willis Carrier ने इसका आविष्कार न्यूयॉर्क में उनकी प्रिंटिंग प्रेस में ह्यूमिडिटी से निपटने के लिए किया था. वातावरण में मौजूद नमी की वजह से पेपर खराब होता था और स्याही भी देर से सूखती थी.
एयर कंडीशनर से निकलने वाली ठंडी हवा ने इस मुश्किल को खत्म कर दिया. ठंडी हवा नमी को सोख लेती थी… ठंडी हवा नमी को सोख लेती थी. दोबारा गलती से नहीं, जानबूझकर लिखा. वजह आगे बताते हैं, लेकिन पहले शरीर की सुध लेते हैं.
जनाब हमारा जो शरीर है, उसके तापमान को झेलने की एक सीमा है. हमारे शरीर का औसत तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है. बॉडी 23 डिग्री से 39 डिग्री तक का तापमान आसानी से झेल जाती है. मतलब 39 से ऊपर हुआ तो गर्मी का अहसास बढ़ जाता है और 23 से नीचे आया तो ठंड का पता चलता है. क्योंकि आप तो 20 या उससे कम पर चलाने की आदत पाले हुए हैं तो इस तापमान पर शरीर Hypothermic रिएक्शन देता है. बॉडी बेचारी चिंता में आ जाती है और खुद को सिकोड़ने लगती है.

ये शरीर का नेचुरल प्रोसेस है. अगर घर में पालतू जानवर हैं तो गौर कीजिएगा. वो भी तापमान कम होने पर शरीर सिकोड़ने लगते हैं. तो बात ऐसी है कि 23 डिग्री से नीचे आना तो सेहत के लिए अच्छा ही नहीं. ऊपर से ठंडी हवा नमी को सोख लेती थी. जिसकी वजह से स्किन बहुत ज्यादा ड्राई हो जाती है. हवा में नमी नहीं होना भी कोई अच्छी बात नहीं.
शरीर का साइंस समझ लिया, अब पॉकेट की बात.
ज्यादा ठंडी मतलब ज्यादा खर्चाअब जो आप 18-20-22 डिग्री पर खेल रहे तो जाहिर सी बात है कि AC पर प्रेशर बढ़ रहा होगा. यही प्रेशर बिजली के मीटर पर फटता है. गणित के हिसाब से देखें तो अगर बिजली का खर्च 10 रुपये प्रति यूनिट है और आप 18 डिग्री पर 8 घंटे AC चलाते हैं तो हर घंटे 1.5 यूनिट लगेगी. एक रात की 12 यूनिट माने 120 रुपये. महीने के हुए 3600 रुपये.
अब जो आप 24 डिग्री पर सेटल हो गए तो हर घंटे 1 यूनिट का मीटर घूमेगा. 8 घंटे की आठ यूनिट माने रात भर के 80 रुपये. महीने के हो गए 2400 रुपये. नॉर्मल गणित में भी 50 फीसदी की बचत. 1200 के हिसाब से साल के 18 हजार बचेंगे. दिल्ली सरकार तो 24 हजार मानकर चलती है.
ये गणित सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं है. Bureau of Energy Efficiency (BEE) कितनी बार ये अपील कर चुका है कि भईया 24 डिग्री पर मान जाओ. अरबों रुपये की बिजली बचेगी. अगर 50 फीसदी यूजर भी ऐसा कर लें तो साल भर में 10 हजार करोड़ की बचत हो सकती है. थोड़ा भला पर्यावरण का भी हो जाएगा.
8 घंटे 18 डिग्री मतलब 10 किलो कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) हवा में. सोचकर देखिए. कुछ डिग्री बढ़ा लेने से शरीर सही रहेगा, पॉकेट भारी रहेगी और हवा हल्की.
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