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हेडफोन में L और R का मतलब सिर्फ लेफ्ट-राइट नहीं होता, इसके पीछे पूरी साइंस है, समझ लीजिये

लेफ्ट वाले को लेफ्ट में ही क्यों पहनना है, राइट वाले में क्यों नहीं?

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लेफ्ट और राइट का चक्कर क्या है

एक साइज, एक शेप और काम भी एक ही, लेकिन पहनते अलग-अलग कानों में हैं. लाइन भले पहेली जैसी लगे, लेकिन आपको पता है कि हम हेडफोन या ईयरफोन की बात कर रहे हैं. लेकिन कभी आपने इस बात पर गौर किया कि हर हेडफोन या ईयरफोन पर लेफ्ट (L) और राइट (R) क्यों लिखा होता है. जैसा हमने पहले कहा कि काम तो कॉल करना या म्यूजिक सुनना है. किसी भी कान में लगा लो. बिना-वजह लेफ्ट-राइट करवा रहे. हमें भी ऐसा ही लगा, लेकिन ये ऐवई नहीं होता. आवाज के विज्ञान का बड़ा राज छुपा है इसमें. आज इस राज को ‘सुनने’ की कोशिश करेंगे.

L और R चैनल का मतलब

हेडफोन पर L और R लिखे होने की कई वजहें हैं. साउंड इंजीनियरिंग से लेकर रिकॉर्डिंग तक. हेडफोन पर L और R लिखे होने का पहला कारण है 'रिकॉर्डिंग'. दरअसल, स्टीरियो रिकॉर्डिंग के समय कोई म्यूजिक या आवाज बाईं तरफ से आती है तो आपके बाएं चैनल (कान ) से यह आवाज तेज और दाएं में धीमी सुनाई देगी. आपको लगेगा क्या भाई काहे कोरी गप मार रहे हो. थोड़े आप सही और थोड़े हम. बात गप जैसी लग सकती है जब आप मोनो ऑडियो वाला साउंड सुनते हैं. मोनो ऑडियो मतलब सीधा-सीधा साउंड जैसे फोन पर बात करना. लेकिन बात अगर म्यूजिक या कॉन्टेन्ट की हो तो हम सही होंगे. इसके लिए आपको साउंड का साइंस समझना होगा.

क्या है साउंड का साइंस 

बीबीसी साइंस के एक आर्टिकल के मुताबिक, भले हमें ऐसा लगे कि साउंड बहुत तेजी से ट्रेवल करता है लेकिन वैसा है नहीं. उदाहरण के लिए आवाज को दीवार से या पहाड़ से टकराकर आने में बहुत-बहुत थोड़ा समय लगता ही है. थोड़ी दूर दीवार से टकराकर आवाज वापस आएगी तो 330m/s (मिली/सेकंड) गुजर चुके होंगे. समय का ये अंतराल बहुत छोटा है लेकिन इंसानी मस्तिष्क के लिए नहीं. उसके हिसाब से तो साउंड स्लो चल रिया है. अब ये जो असंभव ही स्लो स्पीड है वही हमारे दिमाग का ट्रिगर पॉइंट है. इसी देरी की वजह से दिमाग पता करता है कि आवाज लेफ्ट से आई या राइट से. साइंस की भाषा में इसको interaural टाइम डिफरेंस कहते हैं. 

वैसे दिमाग की ताकत का अंदाजा लगाना मुश्किल है इसलिए एक उदाहरण काफी रहेगा. 330m/s (मिली/सेकंड) छोड़िए, दिमाग 10m/s की देरी से आए साउंड को भी धर लेता है और हमारे सही कान के नीचे बजाता है, मेरा मतलब सुनाता है. लेफ्ट से आई आवाज लेफ्ट वाले कान में राइट वाले की तुलना में मिली सेकंड पहले आती है. स्टीरियो म्यूजिक से ऐसा भ्रम होता है कि आवाज चारों तरफ से आ रही लेकिन हेडफोन्स ऐसे भ्रम को दूर करते हैं और लेफ्ट की आवाज को लेफ्ट और राइट की आवाज को राइट में रखते हैं. साइंस से जान लिया. अब थोड़ा अपने अनुभव को रिफ्रेस करते हैं.  

 तो आप खुद इस चीज को आजमा कर देख सकते हैं. अगली बार जब भी अपने मोबाइल या लैपटॉप पर कोई भी फिल्म ईयरफोन्स के साथ देखें तो थोड़ा गौर करें. स्क्रीन की बाईं ओर से निकलने वाली आवाज पहले बाएं कान की ही तरफ आती है और फिर धीरे-धीरे दाएं ओर पहुंचती है. दाईं ओर से आने वाली आवाज के साथ भी ऐसा ही होता है. इसकी वजह ये है कि फिल्म देखने वाले को सामने घट रही घटनाओं का एहसास सही तरीके से हो.

Free White Earphones Beside Orange Music Player Stock Photo

ये तो हुई आपके और हमारे अनुभव की बात लेकिन हेडफोन में L और R चैनल होने का एक और बड़ा कारण है. इसके जरिए दो साउंड्स को अलग करके सुनना और इनके बीच के अंतर को पहचानना. दरअसल, ऐसे कई गाने होते हैं, जिसमें एक साथ हाई और लो नोट बजते हैं. बोले तो तेज म्यूजिक वाले इंस्ट्रूमेंट्स और कम आवाज वाले म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट्स. ऐसे में एक इंस्ट्रूमेंट की आवाज के सामने दूसरे की दब ना जाए, इसलिए दोनों इंस्ट्रूमेंट्स की आवाज एक साथ दो अलग-अलग चैनल पर सुनाई जाती है.

आपके मन में सवाल होगा कि कितनी बार हम सिर्फ एक ही ईयरपीस लगाकर भी काम करते हैं लेकिन कुछ तो अलग नहीं होता. ऐसा हमें लगता है क्योंकि ये सब बड़े माइनर डिटेल्स होते हैं. आमतौर पर नजरअंदाज हो जाते हैं. लेकिन जो कभी आप एक ईयरपीस पहने हुए दूसरा भी पहन लेंगे तो आपको तुरंत फर्क समझ आएगा. साउंड बेहतर लगेगा और म्यूजिक के नोट्स भी साफ सुनाई देंगे.

वैसे साउंड की साइंस और निजी अनुभव अगर आपको कम लगे लेफ्ट और राइट समझने के लिए, तो हेडफोन बनाने वाली कंपनी के पॉइंट ऑफ व्यू से सोचिए. अगर L और R का कोई लेना देना नहीं होता तो वो सिर्फ एक ईयरपीस बनाते और अपनी कमाई डबल करते.

अगली बार जब भी कानों में ईयरफोन लगाकर गाने सुनें तो और जो हाई और लो नोट्स पकड़ में आये तो हमसे जरूर साझा करें.

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