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जिस QR Code से फटाक पेमेंट कर लेते हो, उसका Toyota से कनेक्शन हक्का-बक्का कर देगा

टोयोटा चाहती तो दुनिया बदल देने वाली इस तकनीक को पेटेंट करा सकती थी. लेकिन उसने ऐसा नहीं किया.

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टोयोटा और क्यूआर कोड का कनेक्शन. (तस्वीर साभार: पिक्सेल)

क्यूआर कोड कितने काम का है ये अब शायद बताने की जरूरत नहीं. डिजिटल होते इंडिया की एक सीढ़ी तो क्यूआर कोड ही है. फट से मोबाइल निकाला और झट से पेमेंट हो गया. इसके अलावा क्यूआर कोड कहां-कहां इस्तेमाल हो सकता है वो भी हमने आपको डिटेल में बताया है. लेकिन मेरे दिमाग में ख्याल आया कि आखिर क्यूआर कोड आया कहां से. दूसरा आड़ा-तिरछा होने पर भी फटाक से स्कैन कैसे कर लेता है. जानकारी हैरान करने वाली है क्योंकि क्यूआर कोड का कनेक्शन टोयोटा कंपनी से है. सोचा आपसे भी साझा कर लूं कार और क्यूआर के इस जोड़ को.  

क्यूआर कोड और जापान 

साल 1994 में DENSO WAVE नाम की कंपनी ने सबसे पहले क्यूआर कोड का इस्तेमाल करना चालू किया. DENSO WAVE मशहूर जापानी कार निर्माता टोयोटा की एक सहायक कंपनी है. हालांकि पहले-पहल क्यूआर कोड का टोयोटा से कोई सीधा कनेक्शन नहीं था, लेकिन आगे चलकर ये कनेक्शन जुड़ा और क्यूआर कोड को लोकप्रिय बनाने में इसका अहम रोल रहा. पहले कोड की कहानी जानते हैं.

क्यूआर कोड मतलब कंप्यूटरी भाषा में लिखे गए Machine Readable Label. इनके अंदर बहुत सारी जानकारी डाली जा सकती है और इनको स्कैन करने के लिए किसी विशेष मशीन की भी जरूरत नहीं होती. ये सब हुआ साल 1994 में. लेकिन DENSO WAVE काफी पहले से ही बार कोड बना रही थी. बार कोड काम का तो था लेकिन इसका इस्तेमाल बहुत सीमित था. एक तो उसको स्कैन करने के लिए एकदम सटीक एंगल की जरूरत पड़ती थी, दूसरा बार कोड सिर्फ 20 अल्फान्यूमेरिक कैरेक्टर (जानकारी) स्टोर कर सकता था. ऐसे में पब्लिक डिमांड पर कंपनी के डेवलपमेंट हेड Masahiro Hara ने क्यूआर कोड बनाया. असल में कहें तो रिसर्च करके बार कोड में बदलाव किये.

Masahiro Hara (तस्वीर साभार: QRcode.com)

जहां बार कोड सिर्फ एक डायरेक्शन (One D) में काम करता था वहीं क्यूआर कोड दो डायरेक्शन (2D) में काम कर सकता था. कोड को बहुत जल्दी पढ़ने के लिए इसमें तीन कोनों पर जरूरी जानकारी डाली गई. कोड में ब्लैक और व्हाइट डॉटस के बैलेंस को एकदम सटीक रखने के लिए 1:1:3:1:1 का अनुपात चुना गया. ऐसा करने से कोड को लगभग 360 डिग्री का एरिया कवर करने के लिए मिला. इसके साथ इसमें 20 की जगह 7 हजार जानकारियां भी एक साथ स्टोर हो सकती थीं. 

तस्वीर साभार (qrcode.com)

यहां मुझे अपने पहले ख्याल का जवाब मिला. माने कि कोड की डिजाइन की वजह से तीनों कोनों पर मौजूद स्क्वेर, स्कैन करने वाली डिवाइस को संकेत देते हैं कि कोड सीधा किधर से है भले डिवाइस आड़ा-तिरछा क्यों ना हो. आज तो तकनीक इतनी आगे आ चुकी है कि क्यूआर कोड भी कई किस्म के हो गए हैं जैसे माइक्रो क्यूआर, फ्रेम क्यूआर, आदि. लेकिन बेसिक आज भी वही है. अब चलते हैं मेरे पहले ख्याल पर.

क्यूआर कोड और टोयोटा

Masahiro Hara ने क्यूआर कोड बना तो लिया, लेकिन उनको भरोसा नहीं था कि इसका उपयोग होगा या नहीं. इसलिए उन्होंने वाहनों और वाहन के तमाम कल-पुर्जों को ट्रेक करने के लिए इनका इस्तेमाल करना शुरू किया. टोयोटा के बाद जल्द ही आटो इंडस्ट्री ने क्यूआर कोड को हाथों-हाथ लिया और साल 2002 तक जापान में हर जगह इसका खूब इस्तेमाल होने लगा. हालांकि DENSO WAVE ने एक अच्छा काम और किया था. कंपनी ने साल 1994 में ही इस तकनीक को पूरी दुनिया के लिए रिलीज कर दिया था जबकि वो चाहती तो पेटेंट अपने पास रख सकती थी.

वीडियो: इंस्टा ID से लेकर वॉट्सऐप बिजनेस तक, क्यूआर कोड के इतने फ़ायदे जानकर हैरान रह जाएंगे