स्मार्टफोन की कुल बिक्री का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी बजट और मिडरेंज सेगमेंट से आता है. मतलब ऐसे डिवाइस जो 10 हजार से स्टार्ट होते हैं और 30 हजार पर स्टॉप. आम यूजर अक्सर इसी बजट का फोन खरीदता है. इस सेगमेंट में ऑप्शन की भी कोई कमी नहीं, भतेरे ऑप्शन आसानी से उपलब्ध हैं. अच्छी बात ये भी है कि इस रेंज के स्मार्टफोन काम भी बढ़िया करते हैं. सब चंगा सी. मगर जो हम आपसे कहें कि इस रेंज का जो फोन आपके हाथ में है, उसे उस कंपनी ने बनाया ही नहीं है.
बजट फोन लेकर गजब टशन दिखाने वालों से कंपनियों का ये झूठ सहन नहीं होगा
स्मार्टफोन कंपनियों का काम तो थर्ड पार्टी के भरोसे है. बस कंपनी का ठप्पा लगा हुआ है. जो आपको लगे कि कोई एक कंपनी ऐसा करती होगी तो जनाब ऐसा नहीं है. सैमसंग से लेकर शाओमी तक और वीवो से लेकर ओप्पो तक ऐसा करते हैं. मगर एक नाम तो तकरीबन इसी पर निर्भर है.
अजी बनाया तो छोड़िये, डिजाइन भी नहीं किया है. सब कुछ थर्ड पार्टी के भरोसे है. बस कंपनी का ठप्पा लगा हुआ है. जो आपको लगे कि कोई एक कंपनी ऐसा करती होगी तो जनाब ऐसा नहीं है. सैमसंग से लेकर शाओमी तक और वीवो से लेकर ओप्पो तक ऐसा करते हैं. एक नाम तो तकरीबन इसी पर निर्भर है. मगर इसके लिए आपको OEM और ODM का खेल समझना होगा.
क्या है OEM और ODM?प्रोडक्ट डिजाइन करने से लेकर उसकी मैन्युफैक्चरिंग तक करने वालों के लिए इन शब्दों का इस्तेमाल होता है. हालांकि हम यहां स्मार्टफोन की बात करने वाले हैं, मगर ये शब्द हर इंडस्ट्री में कॉमन हैं. पहले जरा OEM को समझते हैं.
# OEM (Original Equipment Manufacturers) मतलब ऐसा ब्रांड जो अपने स्मार्टफोन को खुद डिजाइन करता है. माने अपनी लैब और अपनी रिसर्च टीम. रिसर्च और डेवलपमेंट से लेकर फोन के सारे स्पेसिफिकेशन उसकी टीम तय करती है. फोन में तीन कैमरे होंगे या एक. स्टोरेज UFS 3.1 होगा या पुराना. बैटरी किस कंपनी की होगी. चिपसेट किसका सेट होगा, चार्जिंग कितनी स्पीड की होगी. सब उसकी इन हाउस टीम तय करती है. भले फोन में 14 प्रकार के कंपोनेंट लगने वाले हों, लेकिन लगेंगे किस कंपनी के वो असल कंपनी तय करेगी. कहने को वो भले ‘भानुमति का कुनबा’ हो मगर पूरा कंट्रोल असली कंपनी का होता है. 100 फीसदी ऐसा करने वाली एक ही कंपनी है.
Apple अकेली कंपनी ठहरी जिसका अपने प्रोडक्ट का डिजाइन, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर पर पूरा कंट्रोल है. कंपनी सब तय करके Foxcon और टाटा जैसी कंपनियों से अपने डिवाइस मैन्युफैक्चर करवाती है. लैपटॉप में ऐसा एचपी कर पाती है.
# ODM (Original Device Manufacturer) मतलब ऐसा ब्रांड जो बस डिजाइन बनाता है, वो भी पूरा नहीं. माने स्कैच पेन लेकर या लैपटॉप पर प्रोडक्ट का खाका तो खींच लिया और फिर निकल पड़े. कहां निकल पड़े. एक ऐसी कंपनी की तलाश में जो एकदम जीरो से स्मार्टफोन बनाकर दे और वो उसमें अपना एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम फिट कर दे. बोले तो यूजर इंटरफेस डालकर काम चला लेते हैं. आसान भाषा में कहें तो एक कंपनी ने कहा कि भईया हमें तो 10 हज़ार में फ़ोन बना दो बस. आपको जानकर झटका लगेगा कि तकरीबन हर एंड्रॉयड स्मार्टफोन कंपनी ऐसा करती है.
बस कोई कम और कोई ज़्यादा. Counterpoint के रिसर्च के मुताबिक मोटोरोला ने यहां टॉप कर रखा है. कंपनी के 97 फीसद स्मार्टफोन थर्ड पार्टी द्वारा बनाए जाते हैं. शाओमी दूसरे नंबर पर है, जिसके 78 फ़ीसदी फोन बाहर से बनते हैं. माने मोटोरोला के 10 में से 9 फोन बाहर से और शाओमी के 8 फोन बाहर से बनते हैं. वीवो का मामला 52 फीसदी तो सैमसंग का 22 फीसदी है. बोले तो प्रीमियम और फ्लैगशिप फोन ख़ुद बना रहे और बजट का बजट थर्ड पार्टी के भरोसे.
अब आपका सवाल होगा कि इससे क्या दिक्कत होगी भला. दिक्कत है ओवर प्राइस की. अभी कुछ दिनों पहले एक फ़ोन लॉन्च हुआ. कीमत 18 हज़ार से स्टार्ट होती है, मगर उसके अपने फैन इसको महंगा बता रहे. इसके साथ क्वालिटी कंट्रोल वाली दिक्कत तो है ही सही. स्क्रीन के हरे-नीले होने से लेकर स्पेयर पार्ट तक की उपलब्धता. हालांकि ऐसा भी नहीं है की सब 'खुला खेल फर्रुखाबादी ' है. कम्पनियां भरसक कंट्रोल करती हैं. मगर ये तो आप भी जानते हैं कि होटल की दाल का स्वाद हमेशा अलग होता है. भले मसाले एक क्यों ना हों.
आगे आप समझदार हैं!
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