स्मार्टफोन मेकर्स अपने डिवाइस बेचने के लिए तमाम जतन करते हैं. कैमरे को दोहरे शतक के पार ले जाते हैं तो चार्जिंग स्पीड को शतक के पार. रैम का राग अलापते हैं तो प्रोटेक्शन के फंडे भी बताने से नहीं चूकते. स्क्रीन को गोरिल्ला के बराबर बताना तो नॉर्मल बात है. IP रेटिंग को लेकर तो दावा प्रो मैक्स वाला मामला है. माने कि ऐसी तगड़ी रेटिंग की पानी के छींटे तो दूर, फुल प्रेशर से आता हुआ पानी भी कछु नहीं बिगाड़ पाएगा. ऐसे सेफ़्टी फीचर्स के लिए नाम भी तगड़ा होता है- Military Grade Protection
आपने भी 'Military Grade Protection' वाला स्मार्टफोन खरीदा है? कैसी लगी फीकी मिठाई!
अपन आज स्मार्टफोन में भौकाल मचाने वाले Military Grade Protection का असल ग्रेड तय करने वाले हैं. जो आपके मन में सवाल उठा हो ऐसा करने की जरूरत ही क्यों आन पड़ी. जनाब जरा सोशल मीडिया झांक लीजिए. आपने ही झांकना होगा क्योंकि हम बताने लगे तो लगेगा कि किसी ब्रांड से कट्टी हो रखी.
अब तक आप समझ ही गए होंगे कि अपन आज किस तरफ जा रहे हैं. आज हम इसी Military Grade Protection का असल ग्रेड तय करने वाले हैं. जो आपके मन में सवाल उठा हो ऐसा करने की जरूरत ही क्यों आन पड़ी, जनाब जरा सोशल मीडिया झांक लीजिए. आपने ही झांकना होगा क्योंकि हम बताने लगे तो लगेगा कि किसी ब्रांड से कट्टी हो रखी.
Military Grade Protection का झुनझुनाबिना लाग-लपेट के 'झुनझुना' इसलिए कह दिया क्योंकि जिस दाम में इस दावे के साथ मोबाइल मार्केट में आता है, उस कीमत में इस ग्रेड को पाना तकरीबन असंभव है. अब इस ग्रेडिंग में क्या झोल है, वो जानने से पहले जरा एक और शब्द से राब्ता कर लेते हैं. स्मार्टफोन की दुनिया में Rugged शब्द का बहुत रौला है. Rugged को रगड़ का अंग्रेजी वर्जन जान लीजिए. जो किसी स्मार्टफोन के साथ ये शब्द नत्थी है तो फिर उस फोन को जैसे चाहे इस्तेमाल कीजिए. आंधी, तूफान, बरसात से लेकर मर्करी फाड़ती गर्मी और माइनस में जाती ठंड में भी इसका कुछ नहीं बिगड़ता. हां, Rugged वाले फोन के लिए कंपनियां रगड़ कर, मतलब खूब सारे पैसे भी लेती हैं. ये इसलिए बता दिया ताकि Rugged और Military Grade Protection में अंतर समझ आ जाए. अब वापस आते हैं Military Grade Protection पर.
ये भी पढ़ें: iPhone, Google, Samsung सब भूल जाएंगे, Ulefone Armor 24 को जान दिमाग झन्ना जाएगा
इसके नाम पर पिछले कुछ महीनों से कई फोन लॉन्च हुए. फोन के विज्ञापन में बड़े-बड़े टायरों के नीचे इनको दबाया गया. ऊंची-ऊंची इमारतों से पटका गया. तेज पानी की बौछार मारी गई. दावा किया गया कि बहुत मजबूत फोन है. मगर हकीकत इसके उलट. जिस अखरोट को तोड़ा गया वो एक विशेष किस्म का अखरोट था जिसका खोल बहुत मुलायम होता है. पानी भी डाला गया तो नीचे कोने में महीन अक्षरों में ‘control environment’ लिख दिया गया. हद तो तब हो गई जब एक कस्टमर ने ऐसा ही एक फोन धीमे से जमीन पर फेंका और वो टूट गया. तो क्या कंपनियों ने बेईमानी की? नहीं जनाब.
लूपहोल का चक्कर बाबू भईयादरअसल कंपनियों ने शब्दों से खेला है. दरअसल Military Grade Protection अमेरिकी डिफेंस विभाग का एक टेस्ट है जो फोन या दूसरे डिवाइस के कठिन से कठिन कंडीशन में काम करने के लिए किया जाता है. इसमें MIL-STD-810, MIL-STD-810G और MIL-STD-810H जैसे कई टेस्ट होते हैं. अब जो कोई भी डिवाइस इस प्रोसेस से गुजरा तो वो वाकई में तगड़ा होगा. मगर इस टेस्ट में एक लूपहोल है.
अगर प्रोडक्ट सेना के लिए नहीं तो कंपनी अपने हिसाब से टेस्ट करवा सकती है. इसको ऐसे समझ लीजिए कि मिठाई में अपने हिसाब से शक्कर मिलाकर बेचने का मामला. कम शक्कर है, फीकी है या फिर शुगर फ्री मिलाया है. मतलब आप खरीदने के बाद दुकानदार से कुछ कह नहीं पाएंगे. ऐसा ही कुछ मामला इधर भी है. अपने हिसाब से टेस्ट करवाओ और लेबल चस्पा कर दो. वैसे भी ये कोई नई बात नहीं. IP रेटिंग के साथ भी यही है. रेटिंग भले कोई सी भी दी गई हो, अगर डिवाइस में पानी मिला तो फिर वारंटी भूल जाइए. मतलब जो आप मोबाइल लेकर समुंदर में डुबकी मारे और फोन खराब हुआ तो आपकी गलती. हमने तो पहले ही बोला था (ऐसा हर स्मार्टफोन कंपनी कहती ही है).
तो सार ये है कि स्मार्टफोन कंपनियां जो भी कहती हैं उसमें सीधे भरोसा नहीं करने का. उनके पास महीन-महीन अक्षरों और टर्म्स एंड कंडीशन का Military Grade Protection होता है. आपके पास सिर्फ ग्रेड के चक्कर में डाउनग्रेड होने का. समझदार बनने में भलाई है.
वीडियो: सोशल लिस्ट : iPhone 16 हुआ भारत में लॉन्च, भीड़-भाड़ और पागलपन देख उठे सवाल