कमरे का AC 18 डिग्री पर है और छत पर टंगा हुआ पंखा भी अपनी पूरी स्पीड से घूम रहा है. मगर गर्मी जाने का नाम नहीं ले रही. सारे जतन कर लिए लेकिन कमरे का तापमान कम नहीं हो रहा. आपने खिड़की पर मोटे वाले परदे भी लगा लिए लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा. उधर आपका ऑफिस है जहां AC इतना चिल कर रखा कि कंपकपी छूट रही. पंखा है नहीं और खिड़की पर कोई पर्दा भी नहीं. बढ़िया रोशनी आ रही सो अलग. कुछ ऐसा ही होता है ना आपके साथ भी?
घर में ये कांच लगाइए, गर्मी के भी पसीने छूट जाएंगे लेकिन अंदर घुस नहीं पाएगी!
दमदार AC और पूरी स्पीड से घूमते पंखे के बावजूद आपको गर्मी से राहत नहीं मिल रही. कमरे का तापमान कम होने का नाम ही नहीं ले रहा तो शायद आपको कमरे की खिड़की और दरवाजे पर ध्यान देने की जरूरत है. आपको जरूरत है Low-E Glass लगाने की. गर्मी से दुश्मनी और ठंडी से दोस्ती वाला ग्लास.

तो जनाब आपको जरूरत है खिड़की और दरवाजे में लगे कांच को बदलने की. आपको जरूरत है Low-E Glass लगाने की. गर्मी से दुश्मनी और ठंडी से दोस्ती वाला ग्लास. ग्लास जो सूरज दद्दा की रोशनी को अंदर आने देता है मगर उनके ताप को नहीं. बवाल चीज है.
क्या है Low-E Glass?सबसे पहली बात तो ये कि ये कोई नई चीज नहीं है. Low-E Glass या low-Emissivity ग्लास 1975 से ही चलन में हैं. आपने अक्सर देखा होगा कि बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स में बड़े-बड़े कांच लगे होते हैं, मगर तापमान नियंत्रित रहता है. जबकि होना तो इसका उल्टा चाहिए. माने कांच लगा है तो सूरज की गर्मी ज्यादा ही लगती है. मगर ऐसा होता नहीं, क्योंकि वो नॉर्मल नहीं बल्कि Low-E Glass होते हैं.

ये ग्लास एक बड़ा कमाल का काम करते हैं. ये सूरज की रोशनी तो अंदर आने देते हैं मगर उसके ताप को नहीं. माने सूरज की किरणों के साथ आने वाली इन्फ्रारेड किरणों (IR) और अल्ट्रावायलेट (UV) लाइट को बाहर ही रोक देता है. अपनी भाषा में कहें तो चाय वाली छननी समझ लीजिए. पत्ती, अदरक, इलायची के टुकड़े बाहर और सिर्फ गरमा-गरम चाय प्याले में. हमारे घरों में जो थर्मस होते हैं ना, वो भी कुछ इसी तरीके से काम करते हैं.
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ऐसे ग्लास में एक बेहद पतली लेयर लगी होती है. हमारे बाल से भी 500 गुना पतली ये लेयर सिल्वर या इसके जैसे low Emissivity पदार्थ, मसलन metal-oxide से बनी होती है. एक तरफ ये सूरज की गर्मी को बाहर रखती है तो दूसरी तरफ अंदर की गर्मी को बाहर नहीं जाने देती. मतलब दो तरफा फायदा. हां कीमत थोड़ी ज्यादा होती है. अच्छी गुणवत्ता वाली कोटिंग की कीमत 8 हजार रुपये प्रति स्क्वायर फीट तक हो सकती है. पता है आप कहोगे प्रोडक्ट के बारे में बता दिया मगर ये Emissivity क्या बला है.

हिंदी में कहें तो उत्सर्जन, माने किसी पदार्थ का अपनी सतह से ऊर्जा को बाहर फेंकना वो भी एक निश्चित वेवलेंथ पर. अक्सर इसे थर्मल एनर्जी को मापने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसकी वैल्यू को मापने के लिए दो डिजिट का इस्तेमाल होता है. 0 (शून्य) और 1. अगर किसी पदार्थ की Emissivity वैल्यू शून्य है तो वो एक परफेक्ट रिफ्लेक्टर है. माने सब बाहर ही फेंक देगा. जो वैल्यू एक है तो वो बढ़िया अवशोषक है, माने सब अंदर आने देगा.
ऐसे ही पदार्थ से Low-E Glass पर लगने वाली फिल्म बनाई जाती है. वैसे इसके भी कई प्रकार होते हैं. मसलन आपको धूप का ताप रोकने वाली फिल्म चाहिए या अंदर की गर्मी को. प्रोडक्ट अगर अरब देश में लगना है तो solar control low-e coatings लगेगी. और अगर यूरोप के ठंडे देश में लगनी है तो passive low-e coatings.
अब खिड़की पर लगाने का फंडा भी जान लीजिए. एक कमरे की 70 फीसदी ऊर्जा खिड़की और दरवाजे से इधर-उधर होती है. और खिड़की की 90 फीसद ऊर्जा उसमें लगे कांच से. मतलब कांच और खिड़की का रोल आप समझ ही चुके होंगे. अब जो वाकई आप कमरे की गर्मी से गरम हो रहे तो ये वाली 'फिल्म' देख डालिए, फिर लगा भी लीजिए.
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