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इस रिपोर्ट में हम बात करेंगे कि ये ऐप चलते कहां पर हैं और इनको बनाता कौन है. ये भी कि सरकार ऐसे ऐप पर लगाम क्यों नहीं लगा पाती है.

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ये जायज सवाल आपके मन में भी आते होंगे, क्योंकि आपके स्मार्टफोन के प्ले स्टोर या ऐप स्टोर में ऐसे ऐप नहीं दिखते हैं. दरअसल ऐसे ऐप GitHub जैसे ओपन सोर्स प्लेटफ़ॉर्म पर बनाए और बेचे जाते हैं. गिटहब का उदाहरण इसलिए, क्योंकि "बुल्ली बाई" और "सुल्ली डील्स" ऐप इसी प्लेटफ़ॉर्म पर बनाए गए हैं. ओपन सोर्स शब्द से भ्रमित होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि एंड्रॉयड और iOS भी ओपन सोर्स होते हैं. लेकिन इन प्लेटफ़ॉर्म पर कोई भी ऐप उपलब्ध होने से पहले उसको संबंधित कंपनी, जैसे गूगल या ऐपल द्वारा तय किए गए मानदंडों से गुजरना होता है.
आसान भाषा में कहें तो डेवलपर ओपन सोर्स से ऐप तो बना सकता है, लेकिन पब्लिश कंपनी की सभी शर्तों को पूरा करने के बाद ही होता है. आमतौर पर शर्तों से मतलब है, जैसे कि कोई ऐसी जानकारी जो भ्रम फैलाती हो. बच्चों से जुड़ी अनुचित जानकारी, और भी कई मानदंड होते हैं. इन्हें पूरा करना ही होता है. ऐसा ना करने पर किसी भी ऐप को हटाया जा सकता है. एक अच्छा उदाहरण Tumblr ऐप का है. Apple ने अपने ऐप स्टोर से 2018 में इसको हटा दिया था, क्योंकि ऐप कुछ सेंसेटिव जानकारी अपने यूजर से साझा कर रहा था. इस ऐप की वापसी अब जाकर हो पाई है, जब उसने सभी शर्तों को पूरा किया है. क्या है GitHub? गूगल प्ले और ऐपल के ऐप स्टोर पर ऐप पब्लिश होने का क्या प्रोसेस है वो तो समझ लिया. अब वापस आते हैं गिटहब पर. ये भी एक ओपन सोर्स प्लेटफ़ॉर्म है जिस पर ऐप डेवलप करके उसको शेयर किया जा सकता है. गिटहब पर कोई भी व्यक्ति पर्सनल या एडमिनिस्ट्रेटर के तौर पर ऐप बना सकता है. इस पर साइन इन करके इसके मार्केटप्लेस (ऐप स्टोर) से ऐप डेस्कटॉप या मोबाइल पर डाउनलोड किए जा सकते हैं. एक बात आपको जानना जरूरी है कि इस प्लेटफ़ॉर्म पर अधिकतर ऐप पेड होते हैं और जो फ्री भी हैं, उन पर बहुत सीमित एक्सेस मिलता है.
GitHub की शुरुआत 2008 में अमेरिका में हुई थी. इसके बारे में कोई भी नेगेटिव राय बनाने से पहले जान लीजिए कि इस सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट प्लेटफॉर्म का मालिकाना हक टेक जगत की दिग्गज कंपनी Microsoft के पास है. उसने साल 2018 में इस कंपनी को खरीदा था. गिटहब के अधिग्रहण के समय माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला ने कहा था कि वो गिटहब के साथ मिलकर डेवलपर्स की फ़्रीडम और इनोवेशन की प्रतिबद्धता को और मजबूत करेंगे.

Github Platform
सत्या नडेला की कही यही बात गिटहब को बाकी ओपन सोर्स प्लेटफ़ॉर्म से अलग करती हैं. मतलब यहां पर काम करते वक्त ऐप डेवलपर को अपने हिसाब से काम करने की फ़्रीडम होती है. ऐप बनाने और शेयर करने की इसी फ़्रीडम का कुछ लोग गलत फायदा उठाते हैं और "सुल्ली डील्स" और "बुल्ली बाई" जैसे ऐप बनाते हैं. आज की तारीख में गिटहब पर 7.3 करोड़ से अधिक डेवलपर्स और 40 लाख से अधिक कंपनियां मौजूद हैं. Facebook, Ford, Pintrest, 3M जैसी कंपनियां भी इस प्लेटफ़ॉर्म पर मौजूद हैं.
इन बड़ी कंपनियों के नाम सुनकर आपको लगा होगा कि ये तो ऐप स्टोर और प्ले स्टोर पर भी हैं, तो ओपन सोर्स प्लेटफ़ॉर्म पर क्या कर रही हैं. दरअसल हर एक कंपनी की एक सीमा है. मतलब ऐप डेवलप करने की और उसको रन करने की. कंपनी की सीमा है, लेकिन यूजर के साथ ऐसा नहीं है, क्योंकि वो आसानी से बोर हो जाता है और दूसरे ऐप पर स्विच कर सकता है या फिर ऐप को यूज करना बंद कर सकता है. ऐसे में काम आते हैं ओपन सोर्स प्लेटफ़ॉर्म जहां पर ऐप डेवलपर्स के अलावा बाकी लोग भी नई चीजें जोड़ सकते हैं या रिव्यू कर सकते हैं. तकनीकी भाषा में इसको Committing and Reviewing कहा जाता है. जाहिर है ये प्रोसेस उस ऐप को और बेहतर करने में काम आता है.
आपको लगेगा कि अब खुल्लम खुल्ला है तो कोई भी आकार कुछ भी कर जाएगा, तो ऐसा भी नहीं है. किसी भी बदलाव या एडिट का एक यूनीक आईडी होता है जिसको SHA या Hash कहा जाता है. इस यूनीक आईडी में उस बदलाव से जुड़ी जानकारी, जैसे कब बदलाव किया गया और किसने किया, ये सब दर्ज होता है. जो भी बदलाव या एडिटिंग की गई है, उससे जुड़ी पूरी जानकारी भी बदलाव करने वाले को विस्तार से साझा करनी होती है. प्रोसेस से समझ पड़ता है कि भले ये ओपन सोर्स हो, लेकिन संबंधित डेवलपर का कंट्रोल हमेशा होता है.
एक बात और, ऐसे ओपन सोर्स में सब कुछ फ्री में एक्सेस नहीं होता है. कई बार आपको भुगतान भी करना पड़ता है. अभी तक की जानकारी से अगर आपको लग रहा है कि कोई भी ऐसे प्लेटफ़ॉर्म पर साइन इन करके ऐप बना सकता है, तो ऐसा नहीं है. आपको ऐप बनाने के प्रोसेस (कोडिंग, एपीआई, सर्वर और भी बहुत कुछ) की सटीक जानकारी होनी चाहिए.
गिटहब जैसे प्लेटफ़ॉर्म का यूजर इंटरफेस भी थोड़ा अलग होता है. मतलब आम आदमी गूगल प्ले स्टोर की तरह अगर इसके अन्दर चला भी गया तो कुछ समझ आने से रहा. डेवलपर्स या कंपनी का कंट्रोल यहां भी होता है ताकि कोई भी इसका गलत फायदा ना उठा सके. ये बात तो हो गई नामी गिरामी कंपनियों की जहां चीजें कंट्रोल में रहती हैं. लेकिन यहां अपराधी प्रवृत्ति के लोग भी मौजूद हैं, जो "बुल्ली बाई" जैसे ऐप भी बनाते हैं. इसके तमाम कारण हो सकते हैं, पैसा कमाना या धार्मिक उन्माद फैलाना. कानून क्या कहता है? अपराधी अपराध क्यों करता है वो एक अलग विषय है, लेकिन ऐसे अपराधों पर सरकार या संबंधित कंपनी क्या कदम उठाती है वो जान लेते हैं. सरकार साइबर क्राइम की धाराओ के तहत मुकदमे दर्ज करती है. ऐसे ऐप बनाने वालों को अपराधी साबित करने के लिए आईटी एक्ट और क्रिमिनल लॉ (Amendment) एक्ट 2013 में तमाम प्रावधान हैं.
आईटी एक्ट के सेक्शन 66C, 66E, 67, 67A और अन्य के तहत ऐसे अपराधियों को जेल भेजा जा सकता है. "बुल्ली बाई" जैसे ऐप जिनमें किसी की भी फोटो को उसकी इजाजत के बिना इस्तेमाल किया गया है, उसके लिए आईपीसी में भी सजा का प्रावधान है. सरकार या पुलिस के आईटी एक्सपर्ट ऐसे मामलों में ऐप के सोर्स का पता करते हैं. इनसे जुड़े अपराधी अगर देश के अन्दर हैं तो उनको धर दबोचा जाता है.
इस तरह के ऐप से जुड़ी कंपनी का ऑफिस या हेडक्वार्टर अगर देश में हो तो कार्रवाई आसान होती है. समस्या तब होती है जब संबंधित कंपनी का ऑफिस नहीं होता है. गिटहब का केस ऐसा ही है. कंपनी भारत में गिटहब इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के नाम से 2020 से रजिस्टर्ड है, लेकिन ऑफिस जैसा कुछ नहीं है. इंडिया टुडे के कनसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई से बातचीत में क्रिमिनल लॉयर रिजवान मर्चेन्ट ने बताया,
ऐसे केस में एफआईआर करना तो आसान है. कुछ लोगों को पकड़ा भी जा सकता है. (लेकिन) आगे की पूरी कार्रवाई साइबर सेल पर निर्भर करेगी, क्योंकि अपराध वर्चुअल वर्ल्ड में किया गया है. पकड़े गए अपराधियों को इस क्राइम से जोड़ना सबसे महत्वपूर्ण होगा.इस केस में दिल्ली पुलिस ने ट्विटर को उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा है जिसने सबसे पहले इससे जुड़ा ट्वीट किया था, साथ में गिटहब को भी इस ऐप को तुरंत हटाने के लिए बोला है. "सुल्ली डील्स" के समय हुए विवाद के चलते कंपनी ने इस ऐप को अपने प्लेटफ़ॉर्म से हटा दिया था. लेकिन उस मामले में कोई कानूनी कार्रवाई आज तक नहीं की गई. यहां अहम बात ये है कि ऐसे ऐप ओपन सोर्स प्लेटफ़ॉर्म पर बनाए जाते हैं, जाहिर है आईडी सब फर्जी ही डाले जाते हैं जिससे असली सोर्स का पता चलना बहुत मुश्किल होता है. इस केस में भी पकड़े गए व्यक्ति ने फर्जी अकाउंट का यूज किया था.