डिस्क्लेमर : इस आर्टिकल का उद्देश्य भांग के पीछे की साइंस और कैनेबिस के बारे में अन्य जानकारी प्रदान करना है. इसका मकसद कहीं से भी अवैध और नशीले पदार्थों के उपयोग को बढ़ावा देना नहीं है.भांग या किसी अन्य पदार्थ का उपयोग हमेशा स्थानीय कानूनों और विनियमों के अनुपालन में और डॉक्टर के मार्गदर्शन में ही किया जाना चाहिए.दी लल्लनटॉप अवैध पदार्थों के उपयोग का समर्थन नहीं करता है, और वो इस आर्टिकल को पढ़ने वाले व्यक्तियों द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं.
होली पर भांग छानने के पहले ये आर्टिकल पढ़ लो, असलियत समझ आ जाएगी!
भांग ऐसे काम करता है?
भांग के नशे में कोई सुधबुध खो देता है. कोई हंसना शुरू करता है तो घंटो तक हंसे ही चला जाता है. कोई एक ही बात उसी उत्साह से रिपीट करता रहता है जैसे पहली बार बोल रहा हो. भांग के असर को समर्पित ऐसी कई कालजयी कहानियां आपने भी सुनी होंगी. लेकिन अभी के लिए इन कहानियों को साइड में रखते हैं. आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं कि आखिर भांग के सेवन से बॉडी में ऐसा क्या होता है कि आदमी बहक जाता है? क्या होती है भांग? क्या है इसके पीछे की साइंस? और ये लीगल है भी कि नहीं? आईये जानते हैं.
क्या है भांग?अंग्रेज़ी में भांग के पौधे को Cannabis (कैनेबिस) या Hemp (हैम्प) कहते हैं.
अभी हो सकता है कि आप में से कोई ये सोच रहा हो कि काहे हमको घुमा रहे हो. ये सब तो चरस-गांजा को बोलते हैं. तो ये अभी ही क्लियर कर देते हैं कि भांग जो है, वो गांजे की करीबी रिश्तेदार ही होती है. इन सब में कुछ-कुछ फर्क ज़रूर हैं. थोड़े बायोलॉजी के. थोड़े कल्चर के. लेकिन Cannabis (कैनेबिस) एक ब्रॉड टर्म है जिसमें Hemp (हैम्प) और Marijuana (मैरुआना) दोनों ही शामिल हैं. कई जगह मिला-पिलाकर लिख देंगे. भरोसा मत करिएगा. cannabis के अलग-अलग प्रकार हैं.
सबसे पहले जानें कि कैनेबिस के पौधे से अपने को तीन तरह की नशीली चीज़ें मिलती हैं:
# पहली गांजा - ये कैनेबिस के फूलों से बनता है. इन फूलों को सुखाया जाता है और फिर इसको स्मोक किया जाता है. बोलचाल की भाषा में इसे ही ‘गांजा फूंकना’ कहते हैं. भारत समेत कई देशों में गैरकानूनी है
# दूसरी चरस - इसे कैनेबिस के पौधे से निकले मैल से तैयार किया जाता है. कुछ-कुछ रेज़िन जैसा. चरस को हशीश या हैश भी कहते हैं. ये भी गैरकानूनी है.
# तीसरी होती है भांग - भांग को कैनेबिस की पत्तियों और बीजों को पीसकर बनाया जाता है. ये सरकारी भांग की दुकानों पर मिलता है. इन दुकानों के ठेके होते हैं, टेंडर होते हैं, पक्का लाइसेंस होता है.
अब आगे सुनिए.
दुनिया में दो टाइप के Cannabis (कैनेबिस) ने अपना दबदबा बना रखा है. साइंटिस्ट लोग अपनी भाषा में इनको
# Cannabis Sativa (कैनेबिस सैटाइवा) और
# Cannabis Indica (कैनेबिस इंडिका) बोल देते हैं.
इसके अलावा और भी किस्में हैं लेकिन कॉन्सेप्ट समझने के लिए अपने काम की नहीं हैं.
Sativa (सैटाइवा) और Indica (इंडिका) के हुलिए और हाइट में थोड़ा फर्क होता है. फिर भी अंतर कर पाना मुश्किल है. एक्सपर्ट्स की सलाह तो यही रहती है कि नाम में कुछ नहीं रखा है. अंदर की बात जानना ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट है. मतलब कौनसा केमिकल किस टाइप के Cannabis (कैनेबिस) में ज़्यादा है पहले ये जाना जाए.
तो अपन भी नाम के झमेले में नहीं पड़ेंगे. और आगे Sativa (सैटाइवा) और Indica (इंडिका) दोनों को Cannabis (कैनेबिस) ही बोलेंगे. इस एक बात का नोट बनाकर कृपया अपने दिमाग में रख लीजिये.
ये Cannabis (कैनेबिस) का पौधा देश भर में उगता है. खासकर ठंडे इलाकों में.
इसी की भीगी हुई पत्तियों को पीसकर भांग बनाई जाती है. इसे ठंडाई और लस्सी जैसी ड्रिंक्स में मिलाया जाता है. कोई इसके पकौड़े बनाता है, कोई चटनी, कोई अचार.
मीठे के शौकीनों का इंतज़ाम भांग के लड्डू के रूप में हो रखा है. और तो और सब्र के कच्चे लोग ताज़ा पिसी भांग की गोलियां ऐसे ही पानी में मिलाकर भी पी जाते हैं.
भारत में भांग की लंबे समय से ही खपत रही है. इसके बारे में हमारे कल्चर में सदियों से बहुत बातें सुनने में आती हैं. अथर्ववेद ने भांग को धरती पर पांच सबसे पवित्र पौधों में से एक बोला है. वहां भांग का उल्लेख एक ‘स्ट्रेस कम करने वाली’, ‘ख़ुशी देने वाली’ और ‘मुक्ति देने वाली’ चीज़ के रूप में किया गया है.
इसके अलावा आयुर्वेद में भी एक दवा के रूप में इसकी चर्चा होती रहती है.
लेकिन इसके ये सारे गुण आते कहां से हैं?
ये अपने को विज्ञान बताएगी!
साइंस क्या कहती है?महफ़िल Sativa (सैटाइवा) की सजे या Indica (इंडिका) की, इन तीन चीज़ों का ज़िक्र हर फ़साने में होता है:
# पहली Tetrahydrocannabinol (टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल) या THC
# दूसरी Cannabidiol (कैनाबिडिओल) यानि CBD और
# तीसरी Endocannabinoid System (एंडोकैनाबिनोइड सिस्टम) या ECS
आइये अब इनको एक-एक करके समझ लिया जाए.
THC और CBD दो तरह के केमिकल होते हैं जो Cannabis (कैनाबिस) में पाए जाते हैं. इनको साथ में cannabinoid (कैनाबिनोइड) भी बोलते हैं. आप नाम से ही समझ सकते हैं. Cannabis (कैनाबिस) में मिलने वाले केमिकल यानि cannabinoids (कैनाबिनोइड्स).
# CBD - घर का वो जिम्मेदार इंसान, जिसका ध्यान पढाई-लिखाई में ज़्यादा लगता है. क्लास में टॉप करता है. कम बोलता है. पापा ने कहा है कि ये संतान उनका नाम करेगी. CBD psychoactive (सायकोएक्टिव) नहीं होता है. psychoactive (सायकोएक्टिव) मतलब दिमाग से छेड़छाड़ करने वाला कुछ. CBD के कई फायदे बताये जाते हैं. खासकर दवा और कॉस्मेटिक बनाने में. उधर दूसरी तरफ THC है. इसका काम है बस घर में उधम मचाना.
# THC - CBD के उलट THC एक नामी-गिरामी psychoactive (सायकोएक्टिव) है. यही वो मुआ है जो भांग से बनी चीज़ों का सेवन करने पर high (हाई) देता है. High (हाई) मतलब वही फीलिंग जो नशा करने के बाद आती है. THC जितना ज़्यादा होगा आप उतना ही high (हाई) फील करेंगे.
अब बात endocannabinoid system (एंडोकैनाबिनोइड सिस्टम) की.
‘Endo (एंडो)’ का मतलब होता है ‘अंदर’. तो endo-cannabinoids (एंडोकैनाबिनोइड्स) हुए अपनी बॉडी में बनने वाले cannabinoid (कैनाबिनोइड) जैसे तत्त्व. ये ज़रूरत के हिसाब से हमारे शरीर के अंदर ही बनते हैं. और इसलिए बनते हैं ताकि अंदर सब सही चलता रहे.
THC और CBD जैसे cannabinoids (कैनाबिनोइड्स) हमारे इसी endocannabinoid system (एंडोकेनाबिनोइड सिस्टम) सिस्टम के साथ खेला करते हैं.
इस सिस्टम को साइंस ज़्यादा समझ नहीं पाया है. इधर-उधर रिसर्च चलती रहती है. निचोड़ यही है कि ये सिस्टम काफी सारी चीज़ों पर असर डालता है. जैसे:
# नींद
# मूड
# पुरानी चोट से होने वाला दर्द
# दिल और लिवर की सेहत
# ब्लड प्रेशर
# याद्दाश्त
# फर्टिलिटी यानि प्रजनन क्षमता
# चलने फिरने की क्षमता
# जी मचलना या उल्टी आना और
# स्ट्रेस
इसके अलावा शरीर का तापमान एक सा बना रहे, ज़रुरत के हिसाब से भूख लगे. इन सब को भी ये कंट्रोल करता है.
सार ये कि जैसा चलता है वैसा चलता रहे. और ये तभी चलता रहेगा जब ये सिस्टम स्वस्थ रहेगा.
एक बात और जानते चलिए. ये सिस्टम हमेशा हमारे साथ रहता है. हमारे अंदर रहते हैं. हमारे पूरे शरीर में फैला हुआ होता है. और खुद से ही चालू यानि एक्टिव रहता है. तो गांजा फूंककर या भांग पी कर इस सिस्टम को ठोक-बजाकर चेक करने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ना लें.
इस सिस्टम का एक ज़रूरी हिस्सा और है. Cannabinoid Receptors (कैनेबिनॉइड रिसेप्टर्स ).
Endocannabinoids (एंडोकेनाबिनोइड्स) “तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई!” वाला गाना गाते हुए इन रिसेप्टर्स से चिपक जाते हैं.
फिर क्या होता है? गड़बड़ होती है.
कहाँ होती है? दिमाग में!
दिमाग में भी प्रमुख रूप से तीन जगह.
कौनसी तीन जगह? और उनकी क्या कहानी है? अब उसकी बात.
# सबसे पहले तो Hippocampus (हिपोकैंपस)- इनके यहाँ सीखने और याद रखने वाले काम होते हैं
# दूसरा, Cerebellum (सेरेबेलम)- आप बिना गिरे-पड़े चल पाएं और ठीक से बोल पाएं उसका हिसाब ये रखता है, और
# तीसरा, Basal Ganglia (बेसल गैंग्लिया)- ये ध्यान रखता है कि चलना कब शुरू करना है, कब रुकना है, गिटार कैसे बजाना है, कार चलाते वक़्त गियर कैसे बदलने हैं. मतलब वही काम जिनको हम मानों बिना सोचे कर लेते हैं. बायोलॉजी इनको involuntary action (इनवॉलेंटरी एक्शन) कहती है.
भांग में THC और CBD दोनों होते हैं. ये हमारे शरीर में बनने वाले Endocannabinoids (एंडोकेनाबिनोइड्स) की नक़ल करते हैं. Endocannabinoid (एंडोकेनाबिनोइड) की तरह ये भी रिसेप्टर्स से चिपक जाते हैं और दिमाग में दौड़ रहे सिग्नल्स का रास्ता रोकते हैं.
THC के ऐसे ही रिसेप्टर्स से चिपकने के बाद मन-मस्तिष्क में अलग-अलग हरकतें होती हैं.
दर्द में आराम मिल सकता है. भूख लग सकती है. कुछ मामलों में पागलपन या घबराहट होने लगती है. तभी तो भांग खाने पर किसी का बैलेंस खराब हो जाता है तो कोई अपनी ज़बान पर से कंट्रोल खो बैठता है।
सरल शब्दों में लक्षण ठीक नहीं नज़र आते.
वहीं CBD का ऐसा कोई खास नेगेटिव असर नहीं देखा गया है. बोले तो CBD आपको ‘हाई’ नहीं करता. पाया गया है कि ये पाचन रिलेटेड प्रॉब्लम में, सरदर्द में, मसल पेन में राहत देता है. यहीं से भांग को दवा वाले गुण मिल जाते हैं. हालांकि ईमानदारी की बात ये कि इस बारे में और रिसर्च की ज़रूरत है.
स्टडी से पता चला है कि cannabis (कैनाबिस) को फूंकने से खून में कैनाबिनोइड का लेवल 15-30 मिनट में बढ़ता है. वहीं अगर इसका सेवन खा कर या पी कर किया जाए तो असर दिखने में समय लगता है. 2-3 घंटे लगभग.
ऐसा इसलिए क्योंकि गांजा फूंकने पर हमारे फेफड़े बहुत जल्दी रियेक्ट करते हैं. इसके उलट खाना पचाने की मशीन को टाइम लगता है. पहले पेट में गयी चीज़ छोटे-छोटे हिस्सों में टूटती है और फिर वो वहां से खून के ज़रिये होते हुए पूरे शरीर में ट्रेवल करती है. इस वजह से असर रहता भी ज़्यादा देर तक है.
यही भांग के केस में होता है. चूंकि इसे खाया या पिया जाता है इसलिए ये लेट असर करती है. खाने वाले को लगता है कि असर नहीं हो रहा है. वो और भांग खा लेता है. दो तीन घंटों बाद अचानक भांग ऐसा हिट करती है जैसे जाड़े में ठंडा पानी.
भांग से नुकसान क्या होता है?1 - भांग पीने से दिमागी क्षमता कम हो सकती है.भांग हमारे दिमाग में जा कर जो हरकतें करती हैं उससे दिमाग में डोपामीन हॉर्मोन रिलीज़ होता है. डोपामीन आपको खुशी और आनंद फ़ील कराता है. इस वजह से लोगों को भांग की लत लगने लगती है. खासकर बढ़ती उम्र में.
2 - भांग कुछ समय के लिए दिमाग को इनएक्टिव भी कर देती है. और ज़ाहिर सी बात है अगर दिमाग सोएगा तो सोचने-समझने की शक्ति भी कम होने लगेगी. आदमी चिड़चिड़ा हो सकता है. सिरियस केस में ऐंगज़ाइटी या डिप्रेशन भी हो सकता है.
3 - याद कीजिए कि Endocannabinoid System (एंडोकेनाबिनोइड सिस्टम) आपकी बॉडी के कितनी ज़रूरी कामों पर असर डालता है. और भांग उस सिस्टम से छेड़छाड़ करती है. इससे नींद आना कम हो सकता है. भूख और ब्लड प्रेशर अचानक बढ़ सकते हैं. हार्ट संबंधी दिक्कतें भी ट्रिगर हो सकती हैं.
4 - भांग खाने के बाद सिरदर्द,घबराहट,जी मचलना और ऊल्टी आना तो आम है.
5 - इसके अलावा,गर्भावस्था के दौरान या स्तनपान के दौरान इसका सेवन करने से समय से पहले डिलीवरी होने का खतरा है. साथ ही जन्म के समय बच्चे का कम वजन और दिमाग का डेवलपमेंट ठीक से नहीं होने का खतरा भी बढ़ सकता है.
इसके अलावा भांग और गांजे को गेटअवे ड्रग भी माना जाता है. मतलब इनका नशा करने वाला शख्स और भी दूसरे किस्म के नशों की ओर जा सकता है, इसकी पूरी आशंका बनी रहती है.
अब आखिरी सवाल ये कि जब चरस, गांजा और भांग तीनों एक ही थाली के बैंगन हैं तो फिर क्यों एक तरफ तो सरकार भांग की दुकानें खोलती है और दूसरी तरफ गांजा बेचना जुर्म है?
इसके लिए थोड़े कानूनी पेच भी समझ लिए जाएं.
क़ानून क्या कहता है?ऐसा नहीं है कि अपने यहां शुरू से ही सब इल्लीगल यानि गैरकानूनी था. एक टाइम पे भांग के साथ गांजे का भी भारत में खुलेआम यूज़ होता था. उसके बाद साल 1985 में भारत ने Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act (नारकोटिक्स और साइकोट्रॉपिक सब्सटैंस एक्ट) यानि NDPS एक्ट लागू किया.
नारकोटिक्स वो ड्रग्स जो प्राकृतिक या नेचुरल होती हैं. जैसे चरस, गांजा और अफीम. और साइकोट्रोपिक वो ड्रग्स जिन्हें कुछ केमिकल्स को आपस में मिलाकर तैयार किया जाता है. जैसे LSD, MDMA वगैरह.
खैर इस एक्ट से हुआ क्या?
इससे हुआ ये कि भांग के पौधे के फल और फूल के इस्तेमाल को एक क्राइम माना गया. गांजा और चरस को हार्ड ड्रग माना जाने लगा. लेकिन यहां एक लूपहोल भी है. गांजा तो पिक्चर से बाहर हो गया मगर भांग के पौधे की पत्तियों और बीज के उत्पादन, सेवन और खरीद-बिक्री पर ये एक्ट कोई साफ़ टिपण्णी नहीं देता है.
शॉर्ट में बात ये कि भांग को गांजे की श्रेणी में नहीं रखा जाता. इसलिए इस पर NDPS एक्ट लागू नहीं होता. इसलिए इसे सरकारी ठेकों पर खुले में कानूनी रूप से बेचा जाता है.
हालांकि कुछ राज्यों में भांग अभी भी गैरकानूनी है. जैसे असम और महाराष्ट्र में.
NDPS एक्ट में एक विशेष प्रावधान भी है. सेक्शन 14. ये कहता है कि कैनेबिस के पौधे के फाइबर और बीज के इंडस्ट्रियल यूज़ के लिए इसको उगाना अलाउड है. इसी के सहारे ना जाने कितनी ही कंपनियों और स्टार्टअप्स ने कैनेबिस से बिज़नेस भी बना लिया है.
अब भांग के पौधे से कपड़े और बैग बनने लगे हैं. शिमला-मसूरी की मॉल रोड पर एक चक्कर लगा आइए दिख जाएंगे. कॉस्मेटिक के रूप में हैम्प सीड ऑयल का चलन बढ़ गया है. इसके अलावा फर्नीचर भी. उत्तराखंड में एक जोड़े ने तो इस पौधे के फाइबर को काम में ले कर एक घर तक बना लिया.
बहरहाल, जब तक भारत में केवल भांग के पौधे की पत्तियों का सेवन किया जा रहा है, तब तक कानून हरकत में नहीं आएगा. आगे इस पर क्या होगा इसे फ़िलहाल सरकार का झंझट समझ कर इग्नोर किया जा सकता है. और वैसे भी आगे इस पर कुछ भी हो लल्लनटॉप आपको बताएगा ही बताएगा.
तब तक होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
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