iPhone के बेस मॉडल को हमेशा से एक बात के लिए टोका जाता है. टोका क्या जाता है बल्कि इस बात के लिए उसका खूब मजाक (refresh rates and fps) बनाया जाता है. एक्सपर्ट से लेकर आम आदमी भी कहता है कि इतना पैसा लेते हो मगर एक जरूरी फीचर आधा ही देते हो. जो पूरा फीचर चाहिए तो बहुत सारा पैसा खर्च करना पड़ता है. आप ठहरे स्मार्ट पाठक तो आपने अंदाजा लगा ही लिया होगा कि हम आईफोन के बेस मॉडल में आने वाले 60 हर्ट्ज रिफ्रेश रेट की बात कर रहे. 50 हजार का आईफोन अभी भी यहीं अटका है, मगर 10 हजार वाले एंड्रॉयड में 120 हर्ट्ज आता है.
फोन का डिस्प्ले 120 हर्ट्ज का ही होता है, फिर सस्ते में मजा कम और महंगे में ज्यादा क्यों?
आपका एंड्रॉयड फोन 20 हजार वाला हो, दोस्त का फोन 40 हजार वाला और पड़ोसी के फूफा का 10 हजार वाला. 120 हर्ट्ज रिफ्रेश रेट (refresh rates and fps) तो मिलना ही है. मगर क्या तीनों को स्क्रीन का अनुभव एक सा मिलता है. नहीं. अगर दो फोन एक साथ चलाएं तो अंतर साफ समझ आता है. अंतर का मंतर हम बताते.
मतलब भले आपका एंड्रॉयड फोन 20 हजार वाला हो, दोस्त का फोन 40 हजार वाला और पड़ोसी के फूफा का 10 हजार वाला. 120 हर्ट्ज रिफ्रेश रेट तो मिलना ही है. मगर क्या तीनों को स्क्रीन का अनुभव एक सा मिलता है, नहीं. अगर दो फोन एक साथ चलाएं तो अंतर साफ समझ आता है. अंतर का मंतर हम बताते.
क्या है रिफ्रेश रेट?रिफ्रेश रेट (Refresh rate) के नाम में ही इसका पूरा तिया-पांचा छिपा हुआ है. अगर इसको देखना है तो कभी विंडोज सिस्टम में माउस को राइट क्लिक करके रिफ्रेश करना. डिस्प्ले मिली सेकंड के लिए हिलता है. कुछ ऐसा ही होता है स्मार्टफोन में. अगर 60 हर्ट्ज का रिफ्रेश रेट है तो डिस्प्ले एक सेकंड में 60 बार बंद चालू होता है. 120 है तो 120 बार ऐसा होगा. क्योंकि ये प्रोसेस मिली सेकंड से भी कम में हो जाता है तो कभी नजर नहीं आता. इसके मापने की जो इकाई है उसे हर्ट्ज कहते हैं.
स्मार्टफोन का डिस्प्ले स्थिर नहीं होता, भले आपको स्मार्टफोन की स्क्रीन पर ये कभी पता ना चले. स्मार्टफोन के प्रोसेसर से आने वाले हर कंटेंट के साथ स्क्रीन पर उपलब्ध पिक्सल लगातार अपडेट होते रहते हैं और ये प्रोसेस बड़े व्यवस्थित तरीके से होता है. डिस्प्ले पैनल पर कंटेंट के अपडेट होने का जो अंतराल है वही रिफ्रेश रेट होता है. ये प्रोसेस बेहद ही फास्ट और स्मूद होता है. आपको कभी एहसास ही नहीं होता कि स्क्रीन के पीछे बहुत कुछ चलता रहता है.
इसका मतलब तो हर स्मार्टफोन में सब एक जैसा लगना चाहिए?, नहीं क्योंकि इधर आ जाता है FPS का खेल.
ये FPS क्या बला है?एक शब्द में कहें तो जो वीडियो आप देखते हैं उसका बेस यही होता है. असल में वीडियो कई सारी तस्वीरों से बना मोशन होता है. ये तस्वीरें हैरतअंगेज गति से आंखों के सामने से गुजरती हैं तो फ्रेम हरकत करता है. उसमें दिख रही चीजों (सब्जेक्ट और ऑब्जेक्ट्स) में मूवमेंट होती है.
तकनीक में भाषा में कहें तो फ्रेम पर सेकंड (Frame Per Second). अब एक सेकंड में एक तस्वीर चले तो फिर बन लिया वीडियो. आपने शायद सुना हो कि 30 FPS पर 4K वीडियो रिकॉर्ड हो रहा. मतलब एक सेकंड में 30 तस्वीरें. अब तस्वीरें 30 होंगी या तीन, ये तय होता है ग्राफिक कार्ड से. ग्राफिक कार्ड मतलब इमेज और वीडियो का असल गेम. वो चिप जिसकी मदद से तस्वीरें तेजी से मूव करती हैं, जिसके चलते वीडियो स्क्रीन पर जल्दी लोड होते हैं. अब ये जितनी ताकतवर है, उसी के हिसाब से डिस्प्ले का अनुभव मिलता है.
अगर आपके फोन का FPS अगर 60 है तो रिफ्रेश रेट भी वही दिखा पाएगा. अगर 240 है तो फिर समझ लीजिए सब कितना शानदार होगा. भले रिफ्रेश रेट 120 हर्ट्ज है, लेकिन अंदर से माल तो कम या ज्यादा मिल रहा इसलिए अनुभव भी अलग-अलग होता है. इसका सीधा संबंध उस फोन के प्रोसेसर से लेकर बजट तक पर निर्भर करता है.
हालांकि इसमें आपको कोई टेंशन लेने की जरूरत नहीं, क्योंकि ये सब कोई ऐसे ही नहीं दिखता और पता चलता. बजट फोन में भी सब सर्र-सर्र चलता है. वो तो हम ठहरे फुरसतगंज के निवासी. एक बजट से भी बजट वाला फोन चला रहे थे और एक प्रीमियम, तो फर्क दिखा. इसलिए आपको भी बता दिया.
एक बात और जान लीजिए. हाई रिफ्रेश रेट अच्छे फोन की गारंटी नहीं. दूसरा ये बैटरी भी खूब चूसता है. इसलिए अगर जरूरत नहीं तो अपने फोन को लो-रिफ्रेश रेट पर इस्तेमाल करें, विशेषकर डेली यूज में.
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