नासा ने छह सितारों वाले एक सिस्टम की खोज की है. इसमें सितारे एक-दूसरे के चक्कर काटते हैं. और ऐसा करते हुए ये ग्रहण लगाते हैं. इसमें कमाल की बात ये है कि इन सभी सितारों पर ग्रहण लगता है. ऐसा बताया जा रहा है कि अब तक खोजा गया ये ऐसा पहला सिस्टम है जिसमें छह सितारे ग्रहण में हिस्सा लेते हैं.
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साइंसकारी के इस ऐपिसोड में छह तारों वाले इस सिस्टम की बात करेंगे. इसे कैसे खोजा गया? ये तारे कैसे ग्रहण लगाते हैं. और इनमें क्या खास है?
सबसे पहले ग्रहण वाला कॉन्सेप्ट समझ लेते हैं. सूरज और चांद वाला ग्रहण पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है. चांद पृथ्वी के चक्कर काटता है. कभी-कभार तीनों का आमना-सामन होता है और ग्रहण पड़ जाता है. आमतौर पर हम लोग दो टाइप के ग्रहण देखते हैं. सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण.
इनकी कक्षा एक प्लेन में नहीं है. इसलिए ग्रहण रेयर होते हैं.
कभी-कभी पृथ्वी और सूरज के बीच चांद आ जाता है. इस चांद की छाया पृथ्वी पर पड़ती है. सूरज की रोशनी को आंशिक या पूर्ण रूप से चांद रोक लेता है. इसे सूर्य ग्रहण कहते हैं.बेसिकली, जब दो के बीच में कोई तीसरा आ जाता है, तो ग्रहण होता है. सोचिए, जब छह तारे एक-दूसरे के इर्द-गिर्द घूम रहे हों, तो कैसा ग्रहण लगेगा? नासा ने जो छह सितारा सिस्टम खोजा है, उसमें हर तारा कभी न कभी ग्रहण में भाग लेता है. ये अब तक खोजा गया ऐसा पहला स्टार-सिस्टम है. छह तारों का नृत्य ये सिक्स-स्टार सिस्टम पृथ्वी से 1900 लाइट ईयर दूर है. अंतरिक्ष में लंबी दूरी नापने के लिए लाइट ईयर यानी प्रकाश वर्ष का इस्तेमाल होता है. लाइट एक सेकंड में लगभग 3 लाख किलोमीटर की दूरी तय करती है. 1900 सालों में लाइट जितनी दूरी तय करती है, वो 1900 लाइट ईयर होगी.
कभी-कभी चांद और सूरज के बीच पृथ्वी आ जाती है. चांद पर पड़ने वाली सूरज की रोशनी को पृथ्वी ब्लॉक कर लेती है. इसे चंद्र ग्रहण कहते हैं.
लाइट की स्पीड दुनिया में सबसे ज़्यादा है.
ये सिक्स-स्टार सिस्टम जहां मौजूद है, उस जगह का नाम है TIC 168789840. ये कैसा नाम हुआ यार? ये नाम मुश्किल लग रहा है, तो इसका दूसरा नाम भी है. TYC 7037-89-1. इसी दिन के लिए शेक्सपीयर कह गए हैं, नाम में क्या रखा है? इसका बिहेवियर समझते हैं.
इतना तो आप समझ ही गए होंगे कि इस सिस्टम में छह तारे हैं. आपस में इनका क्या रिश्ता है? ये छह सितारे दरअसल तीन बाइनरी स्टार के जोड़े हैं. ये बाइनरी स्टार क्या होता है?
बाइनरी स्टार सिस्टम. (विकिमीडिया)
बाइनरी स्टार यानी ऐसा सिस्टम जिसमें दो तारे एक कॉमन सेंटर के चक्कर काटते हैं. बाइनरी स्टार सिस्टम ऐसा होता है, जैसे दो लोग डांडिया खेल रहे हों. या एक-दूसरे के हाथ पकड़ के गोल घूम रहे हों. बस तारों के हाथ नहीं होते, वो एक-दूसरे के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में चक्कर काटते हैं.
सिक्स-स्टार सिस्टम में मौजूद तीन बाइनरी स्टार सिस्टम को A, B और C नाम दिया हैं. सिस्टम A के दो तारे एक परिक्रमा पूरी करने में 1.3 दिन का वक्त लगाते हैं. सिस्टम B के तारे 8.2 दिन में और सिस्टम C के दो तारे 1.6 दिन में परिक्रमा पूरी करते हैं.
आगे की बात समझने के लिए स्क्रीन पर नज़र आ रहे चित्र को ध्यान से देखिए.
छह तारे और उनकी लोकेशन. (नासा)
सिस्टम A और C एक-दूसरे की परिक्रमा भी करते हैं. A और C हर चार साल में परिक्रमा पूरी करते हैं. ये दोनों मिलकर एक चार सितारा सिस्टम बनाते हैं, इसे सिस्टम AC नाम दिया गया है.
B सिस्टम वाला जोड़ा और AC सिस्टम भी एक-दूसरे की परिक्रमा करते हैं. इनकी एक परिक्रमा पूरी होने में लगभग 8000 साल का वक्त लगता है.
तो ऐसा है कि तीन जोड़े हैं. हर जोड़े में दो लोग गोल-गोल वाला गरबा खेल रहे हैं. जोड़ा A और जोड़ा C एक दूसरे के गोल-गोल भी घूम रहे हैं. ये AC की चौकड़ी और जोड़ी B आपस में चकरा रहे हैं.
कुल-मिलाकर इस सिक्स-स्टार सिस्टम में डांस चल रहा है. पहले भी ऐसे छह सितारों वाले सिस्टम देखे गए हैं. लेकिन ये वाला खास है. ये वाला पहला ऐसा सिस्टम है, जिसमें सभी तारे एक दूसरे के आगे-पीछे से गुज़रते हैं. मतलब ग्रहण लगाते हैं. कम से कम पृथ्वी से देखने पर तो ऐसा ही लग रहा है.
बाइनरी स्टार को दर्शाता डांडिया नृत्य.
किसने और कैसे खोजा? इस सिक्स स्टार सिस्टम को बाहरी ग्रह खोजने वाली एक सैटेलाइट ने ढूंढा है. पहले हमें सिर्फ हमारे सौरमंडल के ग्रहों के बारे में ही पता था. 1992 में पहली बार सौरमंडल के बाहर ग्रहों की पुष्टि हुई. हमारे सौरमंडल से बाहर मौजूद ग्रहों को ऐक्सोप्लानेट कहते हैं.
2018 में नासा ने स्पेसऐक्स की मदद से एक सैटेलाइट लॉन्च की. इस सैटेलाइट को अंतरिक्ष में एक्सोप्लानेट खोजने के लिए भेजा गया है. इसका नाम है ट्रांज़िटिंग एक्सोप्लानेट सर्वे सैटेलाइट. शॉर्ट फॉर्म TESS. इसी सैटेलाइट ने ये छह-सितारा सिस्टम खोजा है.
नासा की TESS सैटेलाइट.
एक्सोप्लानेट खोजने के लिए TESS जैसी सैटेलाइट लाइट डिप का पता लगाती हैं. लाइट डिप यानी रोशनी में आने वाली कमी. सैटेलाइट से तारों की रोशनी पर नज़र रखी जाती है. जब भी कोई एक्सोप्लानेट परिक्रमा करते हुए किसी तारे के सामने से गुज़रता है, तो उस तारे की रोशनी में कमी आ जाती है. इसी रोशनी की कमी से TESS को पता चलता है कि वहां कोई एक्सोप्लानेट है.
इसी लाइट डिप वाले सिद्धांत से वैज्ञानिक बाइनरी स्टार भी खोजते हैं. इसी सिद्धांत की मदद से ये छह-सितारा सिस्टम खोजा गया. इसे खोजने वाली टीम का नेतृत्व दो वैज्ञानिक कर रहे हैं. पहले हैं डेटा साइंटिस्ट ब्रायन पॉवेल. और दूसरे हैं ऐस्ट्रोफिज़िसिस्ट वेसेलीन कॉस्टोव. इन वैज्ञानिकों ने अपनी ये खोज दी ऐस्ट्रोनॉमिकल जर्नल में प्रकाशित की है.
एक्सोप्लानेट की खोज के लिए 2019 का फिज़िक्स नोबेल प्राइज़ दिया गया था.
ये छह ग्रहण वाले तारे सिर्फ देखने और सोचने में ही मजेदार नहीं हैं. ऐस्ट्रनॉमर्स यानी खगोल वैज्ञानिकों को इन ग्रहणों से कई अनुमान लगाने में मदद मिलती है. ग्रहण की गहराई और समय अवधि से सितारों के आयाम, द्रव्यमान और सापेक्षिक तापमान का अंदाज़ा लगाते हैं. इस जानकारी से इन सितारों के मॉडल बनाने में काम आती है. इससे हमारी इस समझ में इज़ाफा होगा कि ऐसे स्टार-सिस्टम कैसे बनते हैं? क्या नज़ारा होगा? अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हुई है कि इस सिक्स-स्टार सिस्टम में कहीं कोई ऐग्ज़ोप्लानेट है या नहीं. वैज्ञानिकों को लगता है कि अगर वहां ग्रह है, तो उसके C बाइनरी सिस्टम में होने की ज़्यादा संभावना है.
स्टार वॉर्स फिल्म का एक सीन. जब एक ग्रह से आसमान में दो सूर्य दिखते हैं.
सिस्टम A और सिस्टम B एक-दूसरे के बहुत करीब है. अगर A और B में ग्रह होगा, तो या वो बाहर फेंक दिया गया होगा, या उसे चार में से किसी एक सितारे ने निगल लिया होगा.
अगर सिस्टम C में कोई ग्रह होगा तो वहां से आसमान का नज़ारा देखने लायक होगा. यहां रहने वालों को आसमान में दो बड़े सूर्य दिखेंगे. इसके अलावा चार बहुत चमकदार सितारे आसमान में नाचते दिखाई देंगे.