आपका प्रोडक्ट लोकसभा की लाइब्रेरी में लगा हुआ है. नए जमाने की तकनीक मतलब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस है. अब तक 1 लाख से ज्यादा नेत्रहीन या आंशिक रूप से नेत्रहीन लोगों की मदद कर चुका है. आपकी कंपनी प्रॉफ़िट में है फिर भी Shark Tank India Season 3 के जजों को संदेह है. शार्क पीयूष ने तो साफ कह दिया ' आपको शार्क टैंक में आने की जरूरत नहीं होती. इतना पढ़कर लगेगा कि इस आइडिया को कोई भाव नहीं मिला होगा. नहीं जनाब क्योंकि यहीं तो ट्विस्ट है. भाव मतलब फंडिंग मिली वो भी दो जजों से. क्योंकि,
Shark Tank Season 3: लोकसभा की लाइब्रेरी में लगा डिवाइस जजों को प्रभावित कर पाया या नहीं
Shark Tank India Season 3 में आया AI पॉवर वाला Kibo. ऐसा प्रोडक्ट जो कागज-पत्री से लेकर हैंडराइटिंग तक को ऑडियो फॉर्मेट में बदल देता है. हिन्दी-इंग्लिश-मराठी से लेकर कई भाषाओं को सपोर्ट करता है.
शार्क टैंक इंडिया सीजन 3 के 16वें एपिसोड में आया AI पॉवर वाला Kibo. ऐसा प्रोडक्ट जो कागज-पत्री से लेकर हैंडराइटिंग तक को ऑडियो फॉर्मेट में बदल देता है. हिन्दी-इंग्लिश-मराठी से लेकर कई भाषाओं को सपोर्ट करता है. कहने का मतलब दृष्टिबाधित लोगों के काम आने वाला जरूरी प्रोडक्ट. और क्या खास है और कैसे पीयूष फंडिंग के लिए राजी हो गए. चलिए जानते हैं.
ब्रेल लिपी का AI वर्जनKibo को ब्रेल लिपी का AI वर्जन या ऑडियो आउटपुट कह सकते हैं. ये एक पोर्टेबल किट है जो पानी की बोतल के शेप जैसा दिखता है. डिवाइस ओपन होने पर टेबल लैंप जैसे दिखता है. इस डिवाइस की सबसे अच्छी बात ये है कि इसको इस्तेमाल करने के लिए किसी ऐप की जरूरत नहीं. किसी भी इंटरनेट ब्राउजर पर एक छोटी सी कमांड देकर इसको चलाया जा सकता है. डिवाइस को ऑन कीजिए. उसके बाद इसके नीचे किताब से लेकर हाथ से लिखा हुआ कुछ भी रख दीजिए. ये उसको ऑडियो फॉर्मेट में बदल देगा. और जैसे हमने बताया ऑडियो फ़ाइल कई भाषाओं में कन्वर्ट की जा सकती है.
Kibo एक सब्सक्रिप्शन बेस्ड प्रोडक्ट है. आम यूजर को जहां इसके लिए 89 रुपये महीना या 979 रुपये साल का खर्च करना होता है. वहीं कॉलेज से लेकर संस्थानों को इसके लिए 99000 रुपये देना पड़ेंगे. हालांकि ये जीवन भर की फीस है. इसका एक और अड्वान्स मॉडल है जिसका खर्च ढाई लाख रुपये है. kibo का सब्सक्रिप्शन अच्छा चल रहा है और कंपनी ने साल 22-23 में 26 फीसदी का मुनाफा भी बनाया है. रही बात शार्क टैंक की तो यहां इसके फाउंडर को चाहिए थे 60 लाख रुपये जिसके बदले उन्होंने 1 फीसदी की हिस्सेदारी ऑफर की.
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kibo के फाउंडर दम्पत्ति अक्षिता और बोनी अब इस मॉडल को दुनिया जहान में ले जाना चाहते हैं. उन्हें तो गूगल से भी टक्कर लेनी है. हालांकि पहले-पहल शार्क पीयूष और रोनी (UTV) 'रोनी' सी सूरत बनाते नजर आए मगर फिर उनको इस प्रोडक्ट में खूब संभावनाएं नजर आईं. शार्क अनुपम का भी इसमें योगदान रहा क्योंकि उन्होंने प्रोडक्ट की कई बारीकियां सभी को समझाईं. अब बारी आई पैसा देने की. इसके लिए ज्यादा मेहनत-मशक्कत नहीं करना पड़ी. क्योंकि रोनी और Lenskart वाले पीयूष ने 60 लाख रुपये के लिए हामी भर दी. हालांकि उन्होंने इसके बदले कंपनी में 6 फीसदी हिस्सेदारी भी ली.
Kibo अब 10 करोड़ की वैल्यूएशन वाला प्रोडक्ट बन गया.
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