सबसे पहले तो हम अपनी तारीफ करेंगे. क्योंकि कल जो हमने देखा उसके बाद दिल खुश हो गया. तारीफ इसलिए काहे से हमने कई बार कहा है कि आज की तारीख में सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी YouTube है. लेकिन फालतू का नहीं, बल्कि ढंग का ज्ञान लेने पर. ऐसा ही काम का ज्ञान लिया ‘Shark Tank Season 3’ में आए बिहार के दो पिचर ने. यूट्यूब से सीखी कोडिंग और बना दिया कैब सर्विस का ऐप. ऐप ऐसा कि शार्क अमन को कहना पड़ा कि इसके लिए तो ओला-उबर को करोड़ों खर्च करने पड़े हैं, जो आपने फ्री में कर लिया.
Shark Tank: यूट्यूब से सीखी कोडिंग, बिहार के गांव में कंपनी खोल गर्दा उड़ा दिया!
Shark Tank Season 3 के तीसरे एपिसोड में आए बिहार के दिलखुश. कंपनी का नाम है RodBez. कंपनी के नाम के पीछे भी दिलचस्प कहानी है. उसके बारे में भी बताएंगे. ये भी बताएंगे कि क्यों उन्होंने अपने पढ़ाई के सर्टिफिकेट जला दिए थे. और ये भी कि शार्क टैंक से कितना पैसा मिला.
दरअसल, शार्क टैंक इंडिया सीजन 3 के तीसरे एपिसोड में आए बिहार के दिलखुश. कंपनी का नाम है RodBez. कंपनी के नाम के पीछे भी दिलचस्प कहानी है. उसके बारे में भी बताएंगे. ये भी बताएंगे कि क्यों उन्होंने अपनी पढ़ाई के सारे सर्टिफिकेट जला दिए थे. और ये भी कि शार्क टैंक से कितना पैसा मिला और किससे मिला.
देसी कैब सर्विस है RodBezसबसे पहले नाम के पीछे का कारण. दिलखुश के पापा काम करते थे बिहार सरकार की रोडवेज सर्विस में. जब कंपनी का नाम रखने की बारी आई तो उन्होंने रोड में मिलाया बिजनेस और नाम रखा RodBez. ये एक कैब सर्विस है, मगर इसका काम करने का तरीका कैजुअल नहीं है. इस कैब सर्विस में ड्राइवर अपना रूट डालते हैं और यात्री अपना गंतव्य. माने कि अगर ड्राइवर अपनी कार लेकर उसी तरफ जा रहा है जिस तरफ यात्री को जाना है तो बस दोनों मिलेंगे और सफर तय हो जाएगा. ऐसे करने से जहां यात्री को कैब का दोनों तरफ का किराया नहीं देना पड़ेगा और ड्राइवर को खाली गाड़ी की टेंशन नहीं होगी.
दिलखुश कुमार सिर्फ मैट्रिक तक पढ़े हैं और 16 साल के थे जब उनकी शादी हो गई. मगर RodBez उनकी दूसरी सफल कंपनी है. वजह जब वो पहली बार एक छोटी सी नौकरी का इंटरव्यू देने गए तो उनको भगा दिया गया. वजह सिर्फ इतनी कि वो iPhone का लोगो नहीं पहचान पाए. दिलखुश ने इसके बाद अपने सारे सर्टिफिकेट जला दिए. पापा से गाड़ी चलाना सीखा, कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम किया, थोड़े पैसे जोड़े और और फिर बनाई अपनी पहली कंपनी.
कहां? सहरसा में. ये हमारा नहीं बल्कि जजों का रिएक्शन था. सहरसा में ही उन्होंने इसके लिए सॉफ्टवेयर इंजीनियर रखे. 2016 में कंपनी बनाई और 2021 में जब उन्होंने उसको छोड़ा तो उनका अकेले का कमीशन 8 लाख रुपये महीना था. लगभग 80 लाख महीने का कारोबार. कंपनी क्यों छोड़ी? क्योंकि कुछ और करना था.
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रोड पर आई RodBezइधर, साल 2022 के जुलाई महीने में उन्होंने इसको लॉन्च किया. आज की तारीख में पटना को बिहार के हर शहर और गांव से जोड़ने का सपना देख रहे हैं. हाल-फिलहाल उनके पास 20 टैक्सी हैं, जिनको वो हर महीने गारंटी से 45 हजार रुपये देते हैं. खुद भी 20 हजार रुपये कमीशन कमाते हैं. मोटा-माटी सब जान लिया, अब समझते हैं कि शार्क टैंक में क्यों?
50 लाख रुपये कंपनी की 5 फीसदी हिस्सेदारी के बदले. क्योंकि 20 की जगह 200 कैब का नेटवर्क बनाना है. अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि उनको फंडिंग मिल गई होगी. शार्क रितेश अग्रवाल (OYO Rooms) और शार्क नमिता ने 20 लाख रुपये कैश और 30 लाख रुपये 5 टका ब्याज पर उनकी कंपनी में इन्वेस्ट किया. कंपनी की वैल्यू हुई 4 करोड़ रुपये.
ये हमने बड़ा शॉर्ट इसलिए रखा क्योंकि कुछ दिलचस्प बताना था. दिलखुश अपने कस्टमर का बड़ा खयाल रखते हैं. जैसे ही राइड बुक होती है, तो एक बंदा तुरंत WhatsaApp पर हालचाल लेने लगता है. ऐसा करने का मकसद यूजर को कंफरटेबल फ़ील करवाना है. दिलखुश के शब्दों में कस्टमर को लगता है कि कोई तो उसके टच में है.
भाई वाह 'दिलखुश' कर दिया आपने अपने आइडिया से.
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