ना कोई कंपनी, ना कोई भारी भरकम सैटअप. मुनाफा भी कुछ खास नहीं. फिर भी आपको शार्क टैंक के सारे जजों से फंडिंग (All Shark Deal) मिल जाए तो! जाहिर सी बात है इसके पीछे तो बस एक जबरदस्त आइडिया ही हो सकता है. ऐसा ही हुआ शार्क टैंक इंडिया सीजन 2 (Shark Tank India Season 2) में जब अपने यूनीक आइडिया के साथ आए गुजरात के दो लड़के. चाय से जुड़े आइडिया ने ऐसा चौका मारा की सारे जज बिना नौटंकी किए पैसे देने को राजी हो गए. क्या है आइडिया और कितनी मिली फंडिंग, हम बताते हैं.
गजब! शार्क टैंक के सारे जजों को बेच डाली गिलास धोने की मशीन, नाम रखा 'महानतम'
ना कंपनी, ना मुनाफा. फिर भी गुजरात के इन दो लड़कों ने शार्क टैंक के सारे जजों से फंडिंग ले ली.

शार्क टैंक इंडिया सीजन 2 के एपिसोड में आए गुजरात के दो लड़के जयेश और धवल. इनकी टीम का नाम है ‘Mahantam’. इतना पढ़कर आपको लगेगा शायद चाय का कोई नया फ्लेवर है या फिर चाय का स्टार्ट-अप. दरअसल ऐसा कुछ भी नहीं. ‘Mahantam’ तो चाय के गंदे गिलास धोने वाली मशीन है. वही गंदे गिलास जो आमतौर पर टपरी में एक तसले में धो दिए जाते हैं. क्या हुआ, याद करके घिन आई. जजों को भी ऐसा ही लगा. लेकिन 'महानतम' ने इसका शानदार जुगाड़ बनाया है.
'महानतम' का ग्लास वाशर जो एक बार में 15 ग्लास साफ कर सकता है. लेकिन इसके बनने के पीछे भी एक कहानी है. शार्क टैंक के सबसे लोकप्रिय जजों में से एक अनुपम मित्तल अपने स्तर पर भी लोगों को फंडिंग देते हैं, वो भी बिना किसी हिस्सेदारी के. उनका मानना है कि हर कोई तो शार्क टैंक में आ नहीं पाता, इसलिए वो अपने लेवल पर भी लोगों को सपोर्ट करते हैं. आपको बस अपने आइडिया के साथ एक रील बनानी है. ऐसी ही एक रील को देखकर उनकी कंपनी ने 'महानतम' को 1 लाख की फंडिंग की थी. इसी पैसे से उनका लेटेस्ट मॉडल बना है.
चलिए वापस आते हैं शार्क टैंक पर. जयेश ने कई सारे एक्सपेरिमेंट करके और अपने मेंटॉर से मिले 10 हजार रुपये से ग्लास वाशर बनाया था. कमाल बात है कि पहला वॉशर तो उन्होंने मुफ़्त में ही दे दिया. हालांकि बाद के तीन उन्होंने थोड़े से मुनाफे के साथ बेच दिए. 'महानतम' एक छोटी सी मशीन है जिसमें ग्लास धुलते जाते हैं और उठा कर रखने की जरूरत भी नहीं.
'महानतम' की खासियत है कि इसमें कोई पाउडर या लिक्विड नहीं डलता. सिर्फ पानी के प्रेशर से सारा काम होता है. हालांकि जजों के पूछने पर जयेश ने बताया कि अगर जरूरत पड़े तो उसका भी इंतजाम मशीन में किया जा सकता है. मशीन मामूली सी बिजली खर्चे के साथ और जरूरत पड़े तो बैटरी से भी चल जाती है.
जैसा हमने बताया, जयेश और धवल की तो अभी कंपनी भी नहीं है. कोई फैक्टरी भी नहीं. लेकिन आइडिया जबरदस्त है. सारे शार्क इसी से इंप्रेस नजर आए. वैसे तो उन्होंने 10 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए 30 लाख रुपये मांगे थे जो कोई भी शार्क देने को तैयार था. लेकिन यहां वो हुआ जो बहुत कम होता है, सारे शार्क डील में साथ आए और 20 प्रतिशत हिस्सेदारी पर 30 लाख की फंडिंग की. शार्क टैंक की जबान में कहें तो 'All Shark Deal'
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