आपको सबसे डरावना जीव कौन सा लगता है? शार्क, सांप या मच्छर.
साइंसकारी: अमरीका अरबों मच्छरों के साथ क्या करने जा रहा है?
मच्छर हमें एक जैसे ही दिखते हैं. लेकिन ये ऐसे हैं नहीं.
शार्क के हमले से हर साल दस लोगों की मौत होती है. सांप के कारण प्रति वर्ष 50,000 लोग मरते हैं. लेकिन मच्छर हर साल 7,25,000 लोगों की जान ले लेते हैं.
मच्छरों से पूरी दुनिया परेशान है. ये काटते और भुनभुनाते तो हैं ही. जानलेवा बीमारियां भी फैलाते हैं. मच्छरों को रोकने के प्रयास में मनुष्यों ने कई आविष्कार किए. मच्छरदानी, मॉर्टीन, कीटनाशक और करंट मारने वाला रैकेट. अपनी सीमित पहुंच के चलते ये आविष्कार बहुत कम मच्छरों को ही रोक पाए हैं.
फाइनली, UK की एक कंपनी ने मच्छरों को बड़े स्तर पर मारने का एक तरीका खोज निकाला है. तरीका बहुत पहले खोज लिया गया था. अब इससे जुड़े बड़े प्रयोग हो रहे हैं. एक एक्पेरिमेंट के लिए अमेरिका ने करीब 2400 करोड़ मच्छरों को खुली हवा में छोड़ने की इजाज़त दे दी है.
हैं? मच्छरों को मारने के लिए ये अरबों मच्छर क्यों छोड़े जा रहे हैं? क्योंकि ये एक टेक्नीक है. लेकिन इस टेक्नीक में मिस्टेक हो गई, तो लेने के देने पड़ जाएंगे. मच्छरों के को मिटाने का ये कौन सा नया प्लान है? आइए साइंसकारी का एक एपिसोड यही समझने में खर्च करें.
भुनभुनाहटमच्छर हमें एक जैसे ही दिखते हैं. लेकिन ये ऐसे है नहीं. पृथ्वी पर मच्छरों की करीब 3500 प्रजातियां हैं. इनमें से कुछ गिनी-चुनी प्रजाति जानलेवा बीमारियां फैलाती हैं.
इनमें से एक मच्छरों की एक प्रजाति है - Aedes aegypti(ऐडेस इजिप्टी). ये मच्छर Invasive Specie यानी आक्रामक प्रजाति है. इनसे चिकनगुन्या, डेंगू, ज़ीका और यलो फीवर जैसी बीमारियां फैलती हैं. इस प्रजाति के मच्छर मनुष्यों के घरों के आसपास प्रजनन और भोजन करते हैं. और ये दिन में हमला करने निकलते हैं.
इन्हें मारने का एक प्रचलित तरीका तो ये है कि Insecticides(कीटनाशक) छिड़के जाएं. अमेरिका में मच्छरों को कंट्रोल करने के लिए कीटनाशकों का हैवी इस्तेमाल किया जाता रहा है. लेकिन इससे तितलियों औ मधुमक्खियों के मरने का भी रिस्क रहता है.
कीटनाशक के साथ एक और समस्या है. खूब इस्तेमाल करने पर मच्छर प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं. वो इस तरह इवॉल्व हो जाते हैं कि उनके ऊपर कीटनाशकों का असर न हो.
पिछले कुछ सालों से अमरीका के कुछ इलाकों में ऐडेस इजिप्टी प्रजाति के मच्छरों की तादात बढ़ रही है. इन्हें कंट्रोल करने के लिए यूके की एक कंपनी आगे आई. कंपनी का नाम है ऑक्सीटेक.
अमेरिका में फ्लोरिडा नाम का एक राज्य है. फ्लोरिडा के दक्षिण में आयलैंड्स की एक चेन है. इस जगह का नाम है ‘फ्लोरिडा कीज़’. यहां 2009 से डेंगू और ज़ीका वायरस के केस बढ़ रहे हैं. ऑक्सीटेक ने 2021 में फ्लोरिडा कीज़ में मच्छरों मारने का एक एक्सपेरिमेंट किया. और बाद में इसकी सफलता की घोषणा की.
ऑक्सीटेक ब्राजील में भी ऐसे ट्रायल कर चुकी है. लेटेस्ट खबर ये है कि इस साल(2022) से ऑक्सिटेक ने फ्लोरिडा और कैलिफॉर्निया में भी यही प्रयोग शुरू कर दिया. लेकिन ये वाला प्रयोग बड़ा है. 2024 तक फ्लोरिडा और कैलिफॉर्निया में करीब 2400 करोड़ मच्छर खुले में छोड़े जाएंगे.
अब आप कहेंगे कि बात तो मच्छर मारने की किए थे. ये एक्ट्रा मच्छर काहे खुले में छोड़ रहे हैं? तो यहां हमें ऑक्सीटेक की मच्छर मारने की टेक्नीक समझनी होगी.
लैब का भेदी लंका ढाएऑक्सीटेक जिन करोड़ों मच्छरों को खुले में छोड़ रही है, वो साधारण मच्छर नहीं है. इन्हें लैब में तैयार किया गया है. ये जेनेटिकली मॉडिफाईड मस्कीटोज़ हैं. इनके जीन्स में छेड़छाड़ की गई है.
ये सब Male यानी नर मच्छर हैं, जो काटते नहीं हैं. मनुष्यों को काटने का डिपार्टमेंट फीमेल मच्छरों का है. इन मच्छरों के जीन्स इस तरह बदल दिए गए हैं कि ये सिर्फ अपने जैसे मेल ही पैदा कर पाएंगे.
लैब में तैयार किए मच्छर खुले में जाकर फीमेल मच्छरों के साथ Mating(मैथुन) करते हैं. फिर फीमेल मच्छर जिन बच्चों को जन्म देती हैं, उनमें से फीमेल अडल्टहुड(वयस्क) से पहले ही मर जाती हैं. सिर्फ मेल मच्छर आगे चलकर वयस्क हो पाते हैं. और ये मेल मच्छर भी आगे चलकर अपने जैसे मेल मच्छर पैदा कर पाते हैं.
इस तरह कई पीढ़ियों के क्रम में फीमेल मच्छरों की संख्या घटने लगती है. और मेल मच्छरों की संख्या बढ़ने लगती है. अंतत: ये होता है कि इनका वंश आगे बढ़ाने के लिए कोई फीमेल मच्छर ही नहीं बचतीं. और वहां इस प्रजाति का दी एंड हो जाता है.
फिलहाल कुछ सिलेक्टेड इलाकों में ऐडेस इजिप्टी प्रजाति के साथ ही यह प्रयोग हो रहा है. ऑक्सीटेक इन मच्छरों के अंडों से भरा एक बक्सा जगह-जगह पर रख देती है. कप नूडल्स की तरह इस बक्से में बस पानी डालो और मच्छर तैयार हो जाते हैं. इन बक्सों की मदद से ये तय किया जाता है कि किन इलाकों में इन मच्छरों को छोड़ना है.
लैब वाले मच्छरों की एक और खास बात है कि इनमें ‘फ्लोरोसेंट मार्कर जीन’ है. एक खास तरह की रोशनी में ये वाले मच्छर ग्लो(चमचमाते) करते हैं. अगर मच्छरों की भीड़ में पता करना हो कि भेदी मच्छर कौन हैं, और नेचुरल मच्छर कौन हैं. तो ये लाइट मारने पर समझ में आ जाते हैं. इससे उन मच्छरों को मॉनिटर करने में मदद मिलती है. और ये सुनिश्चित भी होता है कि एक्सपेरिमेंट सही चल रहा है या नहीं.
अब ये समझ लेते हैं कि अब तक क्या-क्या हो चुका है. औऱ इस एक्सपेरिमेंट से जुड़े रिस्क क्या है?
डर का माहौलअप्रैल 2021 में फ्लोरिडा कीज़ में ये प्रयोग शुरू हुआ. ऑक्सीटेक ने अगले सात महीनों में वहां 50 लाख मच्छर छोड़े. इन मच्छरों को लगातार मॉनिटर किया गया. आखिर में जाकर ऑक्सीटेक ने अपने प्रयोग को सक्सेसफुल बताया.
दुनिया में हर प्रजाति दूसरी प्रजाति से जुड़ी है. हम सबका जीवन एक साथ गुथा हुआ है. इस तरह के प्रयोग से पर्यावरण को नुकसान पहुंचने का रिस्क होता है. इसलिए ऐसे एक्सपेरिमेंट्स के लिए अमेरिका में एक संस्था से परमीशन लेनी होती है. इस संस्था का नाम है Environmental Protection Agency (EPA).
EPA ने अपनी जांच में पाया कि इस प्रयोग से पर्यावरण और मनुष्यों को कोई खतरा नहीं है. 2022 में EPA ने ऑक्सीटेक को फ्लोरिडा और कैलिफॉर्निया में भी ये प्रयोग करने की मंज़ूरी दे दी. इसके तहत 2024 तक ऐडेस इजिप्टी प्रजाति के 2400 करोड़ जेनेटिकली मॉडिफाईड मच्छर हवा में छोड़े जाएंगे.
इस पूरी स्ट्रैटेजी में एक कमज़ोर कड़ी है. उसका नाम है टेट्रासाइक्लिन. ये खेती किसानी में यूज़ किया जाने वाला एक एंटीबायोटिक है. ये इन जेनेटिकली मॉडिफाईड मच्छरों के लिए एक एंटीडोट की तरह काम करता है. एंटीडोट मतलब जहर की काट.
टेट्रासाइक्लिन के साथ संपर्क में आने पर ये लैब वाले मच्छरों में बड़ा बदलाव आता है. इससे इन मच्छरों की फीमेल संतान भी जीवित बच सकती हैं. टेट्रासाइक्लिन का इस्तेमाल कई जगहों पर होता है. और ये नालियों के पानी में भी पहुंच जाता है. EPA ने अपनी गाइडलाइन्स में साफ लिखा है कि इन मच्छरों को किसी भी ऐसी जगह के आसपास न छोड़ा जाए, जहां कोई टेट्रासाइक्लिन का सोर्स हो.
अभी तक तो EPA जैसी जांच संस्थाओं को इस प्रोजेक्ट में कोई और खामी नज़र नहीं आ रही है. उन्हें ऐसा लगता है कि इस तरह के एक्सपेरिमेंट से रिस्क बहुत कम है.
ऑक्सीटेक अलग-अलग जगहों पर ऐसे प्रयोग करके अपनी समझ में इज़ाफा करना चाहती है. अलग माहौल में इन मच्छरों के उड़ने की क्षमता कैसे प्रभावित होगी? अलग क्लाइमेट में इनके प्रजनन पर क्या फर्क पड़ेगा? ये सारे कई ऐसे सवाल हैं जिनके मुकम्मल जवाब खोजे जाने बाकी हैं. लेकिन ऑक्सीटेक अपने इस प्रयोग को लेकर कॉन्फिडेंट है.
दूसरी ओर कुछ स्थानीय लोग और वैज्ञानिक चिंतित हैं. कई बार ऐसे एक्सीडेंट्स भी हो जाते हैं, जिनसे हमारे सारे सुरक्षा घेरे धरे रह जाते हैं. इस प्रयोग के विरोध में उठ रही आवाज़ों का कहना है कि हमें ऐसी एक्सपेरिमेंटल बायोटेक्नोलॉजी के साथ रिस्क नहीं लेना चाहिए.
तो ये है मच्छरों को मारने का मास्टरप्लान और उसकी खामियां. इसे लेकर आपकी क्या राय है? हमें बताइए कॉमेंट सेक्शन में.
(आपके लिए ये स्टोरी साइंसकारी वाले आयुष ने लिखी है.)