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"कागज नहीं तो भी मिलेगा बीमा का पैसा..."- नियम बदल गए हैं, एक-एक बात जान लीजिए!

इंश्योरेंस कंपनियां बेवजह आपका क्लेम रिजेक्ट नहीं कर पायेंगी. इतना ही नहीं, क्लेम सबमिट होते ही कंपनी को उसके सेटलमेंट का टाइम भी उसी समय बताना होगा. Insurance Regulatory and Development Authority (IRDAI) ने इसको लेकर नए नियम लागू किये हैं.

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इंश्योरेंस को लेकर जरूरी नियम. (सांकेतिक फोटो)

इंश्योरेंस कितनी जरूरी चीज है ये हमें आपको बताने की जरूरत नहीं. इंश्योरेंस को जरूरत और जिम्मेदारी दोनों ही कह सकते हैं. फिर भले वो लाइफ इंश्योरेंस हो, व्हीकल इंश्योरेंस हो या हेल्थ. आमतौर पर हमारे और आपके पास इंश्योरेंस होता भी है मगर एक जगह गरारी फंस (IRDAI New Rules) जाती है. इसकी क्लेम प्रोसेस में. हालांकि, कंपनियां क्लेम सेटलमेंट प्रोसेस को मक्खन की तरह बताती हैं. कैशलेस से लेकर तमाम तरह की सुविधाओं का दावा करती हैं लेकिन कड़वी हकीकत यही है कि सेटलमेंट शायद ही टाइम पर होता हो. क्लेम रिजेक्ट होने के केस भी देखने को मिलते ही हैं.

आगे से शायद ऐसा नहीं होगा. इंश्योरेंस कंपनियां बेवजह आपका क्लेम रिजेक्ट नहीं कर पाएंगी. इतना ही नहीं, क्लेम सबमिट होते ही कंपनी को उसके सेटलमेंट का टाइम भी उसी समय बताना होगा. Insurance Regulatory and Development Authority (IRDAI) ने इसको लेकर नए नियम लागू किये हैं.

कागज नहीं तो भी इंश्योरेंस मिलेगा!

ये सबसे जरूरी नियम है जो उपभोक्ताओं को बड़ी राहत देगा. बीमा कंपनी सिर्फ इस बात के लिए आपका क्लेम रिजेक्ट नहीं कर सकेगी कि फलां कागज नहीं है. कहने का मतलब, कई बार कंपनी आपसे ऐसे-ऐसे कागजात मांगती है जिनका कोई पता नहीं होता. अब पॉलिसी 10 साल से चल रही है और पहले साल का कागज जुटाना वाकई बड़ा दर्द है. अब इस प्रोसेस पर लगाम लगेगी. नॉर्मल कागज, मसलन आधार या पैन कार्ड ही बहुत होगा. कहने का मतलब, आपने बीमा किया तो सारे कागजात आपने चेक किए थे. अब क्यों कागजों में उलझा रहे?

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अभी के अभी टाइम बताओ

किसी भी वजह से इंश्योरेंस क्लेम करना अपने आप में दुखद ही होता है. ऐसे में उसके सेटलमेंट की टाइम लाइन का पता नहीं होना परेशान कर देता है. क्लेम कर दिया अब मेसेज का इंतजार. कस्टमर केयर को फोन घुमा रहे, मगर रटा-रटाया जवाब मिल रहा है. बहुत हुई ये टालम-टोली. नए नियम के मुताबिक, अब कंपनियों को क्लेम सबमिट होते समय उसके सेटलमेंट का टाइम भी बताना होगा. उस तारीख से ज्यादा टाइम लगा तो बीमा कंपनी को जुर्माना देना होगा. सर्वे इत्यादि का बहाना नहीं चलेगा.

जितना चलेंगे उतना देंगे

बीमा की भाषा में कहें तो 'pay as you drive'/ ‘pay as you go.’ मतलब जितना गड्डी चलेगी उतना बीमा लगेगा. ये वाला सिस्टम उन लोगों के बहुत काम का है जिनकी गाड़ी सालभर में कुछ किलोमीटर ही चलती है. मगर उनको इंश्योरेंस पूरा देना होता है. हालांकि, ये व्यवस्था कुछ सालों से है मगर कंपनियां अपने आप से इसकी जानकारी नहीं देतीं. अब बताना ही पड़ेगा. मतलब इंश्योरेंस के समय पहला ऑप्शन pay as you drive का होगा और दूसरा नॉर्मल या कहें comprehensive वाला. आगे आपकी मर्जी.

फ्रॉड तो ही क्लेम रिजेक्ट

अब बीमा कंपनियों को अपने उपभोक्ता को बीमा से जुड़े सारे डिटेल एक शीट पर साझा करने होंगे. Customer Information Sheet (CIS) जिसमें पूरी प्रोसेस को डिटेल में बताया गया होगा. मसलन क्या कवर होगा और क्या नहीं. क्या इस पॉलिसी में शामिल नहीं. सेटलमेंट प्रोसेस क्या है. हालांकि ये सब पहले से था मगर अब डिटेल में और साफ शब्दों में देना होगा. कंपनियां अपने मन से या कोई लूप होल निकालकर क्लेम रिजेक्ट नहीं कर पायेंगी. हां, प्रोसेस में पता चला कि कस्टमर ने फ्रॉड किया है तो अलग बात. वरना मौजा ही मौजा.

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